नई दिल्ली : लॉकडाउन में लाखों प्रवासी मजदूर फंसे हुए हैं. इनके पास न तो पैसे हैं और न ही खाने को कुछ और न ही इन मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी दी गई. कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण राष्ट्रीय जीडीपी का लगभग 10 फीसदी योगदान करने वाले प्रवासी श्रमिक आज बेरोजगार रह गए हैं. यह वे मजदूर हैं, जो खामोशी से देश की जीडीपी में अपना योगदान देते हैं.
लॉकडाउन के कारण प्रवासी श्रमिकों को होने वाली समस्या स्वाभाविक है, क्योंकि अधिकतर प्रवासी श्रमिकों का न केवल काम छिना है, बल्कि उन्हें अपने न्यूनतम वेतन का भुगतान नहीं किया गया. केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा भले ही कितने दावे किए जा रहे हों, लेकिन हकीकत यह है कि उनको एक वक्त का खाना तक नहीं मिल पा रहा है.
ऐसे ही असहाय और बेबस मजदूरों से ईटीवी भारत ने बात की और जानने की कोशिश की कि वे संकट के इस समय में किन-किन परेशानियों का सामना कर रहे हैं.
महाराष्ट्र के पुणे में फंसे कंस्ट्रक्शन का काम करने वाले श्रमिक सद्दाम हुसैन ने बताया कि मजदूरों को अपने पिछले काम का भुगतान अब तक नहीं हुआ है. उनके पास अब तक न तो काम है और न ही पैसे हैं. इस वजह से घर भी नहीं जा सकते. इसके अलावा राशन भी महंगा हो गया है. हालांकि कुछ लोग उन्हें खाना दे रहे हैं, लेकिन वह काफी नहीं है.
सद्दाम ने कहा, 'काम शुरू होने पर हम कंस्ट्रक्शन के काम में लौट भी जाएंगे तो कंपनी का मालिक हमारी न्यूनतम मजदूरी में भी कटौती करेगा, जिससे हमारे हालात में कोई बदलाव नहीं आएगा. हम झारखंड सरकार से अपील करते हैं कि वह हमारे लिए कम से कम राशन मुहैया करवाए. हम झारखंड के 18 मजदूर हैं, जो फंसे हुए हैं.'
छत्तीसगढ़वासी एक अन्य ईंट भट्ठा श्रमिक कविता टंडन ने कहा, 'मैं 7 साल से जम्मू-कश्मीर में थी, लेकिन मुझे एक पैसा भी नहीं दिया गया. उसके बाद में पंजाब के बंदाला आई, जहां मुझे दो महीने से वेतन नहीं मिला. जैसे-तैसे मैं अन्य 200 श्रमिकों के साथ ट्रेन से छत्तीसगढ़ पहुंची. हमें ट्रेन तक में भोजन नहीं मिला. हम निवेदन करते हैं वहां कई बच्चे, गर्भवती महिलाएं फंसे हुए हैं, उनकी मदद की जाए.'
एक अन्य मजदूर विक्की भट्ट ने अपनी दास्तान सुनाते हुए कहा, 'हम स्कूल में काम करते थे. लेकिन स्कूल बंद होने की वजह से हम बेरोजगार हो गए हैं. हमारी तरह लगभग 400 मजदूर बदरपुर के भट कैंप ठहरे हुए हैं. उनके पास न तो कोई काम है और न खाना. हम सड़क पर आ गए हैं.'
देशभर में फंसे मजदूरों का संज्ञान लेते हुए वर्किंग पीपुल्स चार्टर (WPC) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें 4000 लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं. इनमें प्रमुख स्कॉलर्स, सिविल सर्वेंट, श्रम कार्यकर्ताओं आदि ने केंद्रीय बलों के माध्यम से लाखों प्रवासियों के सुरक्षित और सम्मानजनक तरीके से उनके घर पहुंचाने का आग्रह किया है.
WPC के राष्ट्रीय संयोजक चंदन कुमार के कहा, 'राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के अनुसार, श्रमिक ट्रेनें शुरू हो गई हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. इसलिए, इस संबंध में, हम सरकार से धारा 35 (1) में राज्य सरकारों के साथ निकट समन्वय से काम करने के लिए भारत की केंद्रीय सशस्त्र बलों को तैनात करने का आग्रह करते हैं.'
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कुमार ने कहा, 'हम मजदूरों को कम से कम सात हजार रुपये आर्थिक सहायता देने की मांग करते हैं, जो कुल जीडीपी का तीन प्रतिशत है. अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए, इस तरह के उपाय जरूरी हैं.'
उन्होंने कहा कि कई प्रवासी श्रमिकों ऐसे हैं, जिनकी दुर्दशा न तो प्रशासन ने देखी और न किसी के सामने आई जबकि कई ऐसे उदाहरण सुर्खियों में आए, जहां मजदूर भूख से मरते हुए देखे गए. इनमें से अधिकतर मामले ऐसे हैं, जहां मजदूर चिलचिलाती धूप में बिना खाए-पिए अपने घरों की ओर पैदल चल पड़े और मर गए. जबकि कुछ केस ऐसे भी हैं. जहां घर लौट रही गर्भवती महिला श्रमिक ने रास्ते में ही बच्चे को जन्म दिया.
इन दिनों प्रवासी कामगारों के दिल दहला देने वाले कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए. इसमें बिहार के मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर एक अर्ध-नग्न बच्चे को अपनी मृत मां को आंशिक रूप से ढके हुए चादर पर थिरकते देखा गया.
यह सिर्फ मुट्ठीभर प्रवासी कामगारों की कहानी नहीं है. इनमें लाखों अब भी सड़कों पर हैं, बच्चों और सामान के साथ सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल रहे हैं तो कुछ फंसे हुए हैं और घर जाने के लिए अब भी इंतजार कर रहे हैं.