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जज्बे को सलाम : नीम के पेड़ पर चढ़कर बच्चों को दे रहा ऑनलाइन शिक्षा - पेड़ पर चढ़कर ऑनलाइन शिक्षा

कोरोना वायरस ने देश और दुनिया के परिदृश्य को ही बदलकर रख दिया है. इतना ही नहीं इस महामारी के कारण पूरा विश्व लॉकडॉउन की मार झेल रहा है. इतना ही नहीं इसने कई व्यवसायों को बदलने के लिए मजबूर किया है. इस वैश्विक संकट ने सांसारिक मुद्दों को हल करने के लिए कई अभिनव व्यक्तित्व को भी सामने लाया है.

online education in bankura
बांकुड़ा में ऑनलाइन शिक्षा
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Published : Apr 23, 2020, 3:15 PM IST

Updated : Apr 24, 2020, 2:12 PM IST

बांकुरा : कोरोना वायरस ने देश और दुनिया के परिदृश्य को ही बदलकर रख दिया है. इतना ही नहीं इस महामारी के कारण पूरा विश्व लॉकडॉउन की मार झेल रहा है. इतना ही नहीं इसने कई व्यवसायों को बदलने के लिए मजबूर किया है. इस वैश्विक संकट के बीच सांसारिक मुद्दों को हल करने के लिए कई अभिनव व्यक्तित्व भी सामने आए हैं.

पेशे से ट्यूटर सुब्रत पति पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले के रहने वाले हैं. वह कोलकाता में किसी ऐसे संस्थान से जुड़े हुए हैं, जहां छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए दाखिला लेते हैं.

सुब्रत के लिए चीजें सुचारू रूप से चल रही थीं, लेकिन लॉकडाउन के कारण वह कोलकाता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए. वहां से वह अपने घर बांकुरा जिले के अहंडा गांव लौट गए.

ननन
नीम के पेड़ पर सुब्रत

एक दिन जब वह घर पर बैठे हुए थे कि अचानक एक ऐसी सूचना आई कि वह चौंक गए और चिंतित होने के साथ-साथ उनके चेहरे से अजीब दुविधा के भाव उत्पन्न हो गए थे. यह फोन कोलकाता से था. जहां वह बच्चों को पढ़ाते थे. सुब्रत से कहा गया कि लॉकडाउन में वह बच्चों को घर से ही ऑनलाइन पढ़ाएं.

बंगाल के बांकुड़ा में बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा

सुब्रत के लिए खुशी की बात थी कि वह फिर से संस्थान से जुड़ गए थे. लेकिन साथ ही दुख की बात यह थी कि वह एक ऐसे गांव के रहने वाले थे, जहां इंटरनेट की सुविधा ना के बराबर थी. इस गांव में मुश्किल से ही मोबाइल से इंटरनेट कनेक्ट हो पाता था.

सुब्रत ने इंटरनेट सिग्नल के लिए हर तरह के पैंतरे आजमा लिए. लेकिन उन्हें नाकामी ही हाथ लगी. वहां दूर,-दूर तक इंटरनेट की कोई सुविधा ही नहीं थी.

ममम
दोपहर के खाने के लिए टिफिन लेकर बच्चों को पढ़ाने जाते हैं सुब्रत

जब कुछ नहीं सूझा तो सुब्रत गांव में टहलने के लिए निकला. घर से एक किलोमीटर की दूरी पर एक खेत के पास में नीम का पेड़ था. वहां वह जाकर कुछ देर विश्राम करने के लिए रुके. इसी बीच उन्होंने अपने मोबाइल पर अंगुली दौड़ाना शुरू किया. उन्हें लगा कि इस स्थान पर इंटरनेट मोबाइल से कनेक्ट हो रहा है. हालांकि नेटवर्क कुछ खास नहीं था, लेकिन उसे उम्मीद की किरण नजर आ गई थी.

मममम
लॉकडाउन के कारण स्कूल में लटका ताला

पढ़ें : इंटरनेट की बुनियादी संरचना ऑनलाइन पठन-पाठन की दिशा में बढ़ने के लिए तैयार नहीं : रिपोर्ट

उम्मीदों के बीच सुब्रत नीम के पेड़ पर चढ़ गए. उन्हें मालूम हुआ कि पेड़ की ऊंचाई पर उनके मोबाइल पर इंटरनेट साफ पकड़ रहा है. वह खुशी से झूम उठे, क्योंकि उन्हें मरुस्थल में ओस की एक बूंद जो दिख गई थी.

सुब्रत ने ईटीवी भारत को बताया कि नीम के पेड़ के सबसे ऊंचे स्थान से इंटरनेट का सिग्नल साफ पकड़ रहा है. उन्होंने अब इसी पेड़ पर बैठने का स्थान बना लिया है. उन्होंने कहा कि वह बच्चों को यहीं से ऑनलाइन पढ़ाते हैं.

बांकुरा : कोरोना वायरस ने देश और दुनिया के परिदृश्य को ही बदलकर रख दिया है. इतना ही नहीं इस महामारी के कारण पूरा विश्व लॉकडॉउन की मार झेल रहा है. इतना ही नहीं इसने कई व्यवसायों को बदलने के लिए मजबूर किया है. इस वैश्विक संकट के बीच सांसारिक मुद्दों को हल करने के लिए कई अभिनव व्यक्तित्व भी सामने आए हैं.

पेशे से ट्यूटर सुब्रत पति पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले के रहने वाले हैं. वह कोलकाता में किसी ऐसे संस्थान से जुड़े हुए हैं, जहां छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए दाखिला लेते हैं.

सुब्रत के लिए चीजें सुचारू रूप से चल रही थीं, लेकिन लॉकडाउन के कारण वह कोलकाता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए. वहां से वह अपने घर बांकुरा जिले के अहंडा गांव लौट गए.

ननन
नीम के पेड़ पर सुब्रत

एक दिन जब वह घर पर बैठे हुए थे कि अचानक एक ऐसी सूचना आई कि वह चौंक गए और चिंतित होने के साथ-साथ उनके चेहरे से अजीब दुविधा के भाव उत्पन्न हो गए थे. यह फोन कोलकाता से था. जहां वह बच्चों को पढ़ाते थे. सुब्रत से कहा गया कि लॉकडाउन में वह बच्चों को घर से ही ऑनलाइन पढ़ाएं.

बंगाल के बांकुड़ा में बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा

सुब्रत के लिए खुशी की बात थी कि वह फिर से संस्थान से जुड़ गए थे. लेकिन साथ ही दुख की बात यह थी कि वह एक ऐसे गांव के रहने वाले थे, जहां इंटरनेट की सुविधा ना के बराबर थी. इस गांव में मुश्किल से ही मोबाइल से इंटरनेट कनेक्ट हो पाता था.

सुब्रत ने इंटरनेट सिग्नल के लिए हर तरह के पैंतरे आजमा लिए. लेकिन उन्हें नाकामी ही हाथ लगी. वहां दूर,-दूर तक इंटरनेट की कोई सुविधा ही नहीं थी.

ममम
दोपहर के खाने के लिए टिफिन लेकर बच्चों को पढ़ाने जाते हैं सुब्रत

जब कुछ नहीं सूझा तो सुब्रत गांव में टहलने के लिए निकला. घर से एक किलोमीटर की दूरी पर एक खेत के पास में नीम का पेड़ था. वहां वह जाकर कुछ देर विश्राम करने के लिए रुके. इसी बीच उन्होंने अपने मोबाइल पर अंगुली दौड़ाना शुरू किया. उन्हें लगा कि इस स्थान पर इंटरनेट मोबाइल से कनेक्ट हो रहा है. हालांकि नेटवर्क कुछ खास नहीं था, लेकिन उसे उम्मीद की किरण नजर आ गई थी.

मममम
लॉकडाउन के कारण स्कूल में लटका ताला

पढ़ें : इंटरनेट की बुनियादी संरचना ऑनलाइन पठन-पाठन की दिशा में बढ़ने के लिए तैयार नहीं : रिपोर्ट

उम्मीदों के बीच सुब्रत नीम के पेड़ पर चढ़ गए. उन्हें मालूम हुआ कि पेड़ की ऊंचाई पर उनके मोबाइल पर इंटरनेट साफ पकड़ रहा है. वह खुशी से झूम उठे, क्योंकि उन्हें मरुस्थल में ओस की एक बूंद जो दिख गई थी.

सुब्रत ने ईटीवी भारत को बताया कि नीम के पेड़ के सबसे ऊंचे स्थान से इंटरनेट का सिग्नल साफ पकड़ रहा है. उन्होंने अब इसी पेड़ पर बैठने का स्थान बना लिया है. उन्होंने कहा कि वह बच्चों को यहीं से ऑनलाइन पढ़ाते हैं.

Last Updated : Apr 24, 2020, 2:12 PM IST
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