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तीर्थ यात्रियों के कम होने से स्थानीय रोजगार-धंधे बदहाल - वैष्णोदेवी यात्रा

लॉकडाउन के कारण वैष्णो देवी यात्रा पर लगाई गई रोक से न केवल अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ, बल्कि स्थानीय व्यवसाय भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.

वैष्णोदेवी
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Published : Nov 7, 2020, 6:35 PM IST

जम्मू : मार्च में लॉकडाउन शुरू होने के बाद देश के मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थलों के बंद होने के साथ ही वैष्णो देवी यात्रा को भी रोक दिया गया. जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था में पर्यटन और तीर्थ पर्यटन का बहुत बड़ा योगदान है, लेकिन लॉकडाउन के बाद से यहां काफी कम संख्या में लोग आ रहे हैं, जिससे यहां के स्थानीय व्यवसाय पुरी तरह ठप हो गया है.

घोड़े-टट्टू वालों की कमाई प्रभावित

कोरोना वायरस ने आम आदमी की जिंदगी को तो प्रभावित किया ही, देवी-देवताओं के तीर्थ स्थलों पर पहले हर वक्त लगी रहने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ पर भी ब्रेक लगा दिए हैं. इस कारण ठप पड़ीं पर्यटक सेवाओं के कारण वैष्णो देवी यात्रा के दौरान घोड़े-टट्टू वालों की कमाई बुरी तरह प्रभावित हुई है. आम तौर पर वैष्णो देवी यात्रा के दौरान लोग घोड़े-टट्टू की सवारी करते हैं, लेकिन लॉकडाउन के बाद से यहां घोड़े-टट्टू की सवारी पूरी तरह से बंद है.

तीर्थ यात्रियों के कम होने से धंधे बदहाल

प्रदेश की वित्तीय रीढ़ को नुकसान

जम्मू कश्मीर में त्रिकूटा की पहाड़ियों पर स्थित माता वैष्णो देवी मंदिर के लिए भी यही बात की जा सकती है. यहां हर साल बड़ी संख्या में आने वाले श्रद्धालओं की वजह से ही यहां स्थानीय लोगों का रोजगार चलता है. इसमें जम्मू और कटरा के होटल-व्यापारियों के अलावा बड़ी संख्या में पिट्ठू, खच्चर वालों, पालकी वालों, टैक्सी, ऑटो ड्राइवर्स आदि की गुजर-बसर भी इस तीर्थ पर्यटन पर निर्भर रहती है.

मार्च में लॉकडाउन शुरू होने के बाद देश के अन्य मंदिरों और धार्मिक स्थलों के बंद होने के साथ ही वैष्णो देवी यात्रा को भी रोक दिया गया. जम्मू और कश्मीर की अर्थव्यवस्था में पर्यटन और तीर्थ पर्यटन का बहुत योगदान रहा है. कोरोना काल में इस पर फुल स्टाप लग जाने से इस केंद्र शासित प्रदेश की वित्तीय रीढ़ को नुकसान पहुंचा.

कोरोना महामारी की दस्तक से पहले हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए आते थे. 18 मार्च को यात्रा रुकने के बाद पांच महीने तक ये निलंबित रही. यह यात्रा 16 अगस्त को सीमित संख्या में यात्रियों को अनुमति देते हुए कोविड-19 के कड़े सुरक्षा प्रोटोकॉल के साथ फिर से शुरू हुई. शुरू में, केवल 2000 तीर्थयात्रियों को प्रति दिन यात्रा करने की अनुमति दी गई थी, बाद में इसे बढ़ाकर पहले 5000, फिर नवरात्र उत्सव में 7000 कर दिया.

पढ़ें - पंजाब में ठप पड़ी रेल सेवाएं जल्द होगीं शुरू, हटाए जा रहे अवरोध

पहली नवंबर से, हर दिन श्रद्धालुओं की सीमा 15000 तक बढ़ा दी गई. हालांकि, यात्रा को फिर से शुरू करने से यात्रा के बेस कैम्प वाले कस्बे कटरा में कुछ आर्थिक गतिविधियां शुरू, तो हुई हैं, लेकिन स्थानीय दुकानदारों और अन्य का कहना है कि स्थिति पूरी तरह सामान्य होने में अभी लंबा वक्त लग सकता है.

ड्राई फ्रुट की बिक्री प्रभावित

कटरा शहर में ड्राई फ्रूट और प्रसाद की दुकान चलाने वाले 45 वर्षीय कपिल गुप्ता ने बताया कि यात्रा फिर से शुरू कराई जा सकती है, लेकिन जम्मू और कश्मीर के बाहर से आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या नगण्य है. एक समय था जब हम अच्छा व्यवसाय करते थे. हमारी कमाई अच्छी थी. लेकिन चीजें अब वैसी नहीं हैं. हमारी आय का स्रोत पूरी तरह से अन्य राज्यों से आने वाले तीर्थयात्रियों पर निर्भर है, लेकिन पिछले कई महीनों से हमारी कमाई शून्य है. हम अपनी पहले की बचत के जरिए घर का गुजारा चला रहे हैं, लेकिन यह इस तरह हमेशा नहीं चल सकता है. हम इस तरह से कब तक गाड़ी खींच सकते हैं?

बता दें कि सामान्य दिनों में वैष्णो देवी की यात्रा पर आने वाले यात्री वापसी में अखरोट जैसे प्रसाद कटरा और जम्मू से ही खरीदते थे, जिसे वो घर जाकर करीबियों में बांटते थे. कटरा के ही एक और ड्राईफ्रूट दुकानदार गौतम ने कहा मार्च में हमारा स्टॉक भरा हुआ था और हम अच्छे कारोबार की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन की वजह से हमारा कारोबार ठप हो गया.

हम चाहते हैं कि सरकार कारोबारी समुदाय को कुछ मदद प्रदान करे. कपिल गुप्ता और गौतम जैसी ही कहानी सैकड़ों और स्थानीय लोगों के पास भी सुनाने के लिए है. कटरा में ही गारमेंट्स की दुकान चलाने वाले रविंदर सिंह निराश हैं, क्योंकि यात्रा दोबारा शुरू होने के बाद से भी उनका कारोबार ठप ही है.

पढ़ें - अंतरराष्ट्रीय संबंधों का आधार सहयोग होना चाहिए, प्रतिस्पर्धा नहीं : जयशंकर

तीर्थयात्री कम हो गए

दुकानदारों का कहना है कि लॉकडाउन के बाद से यहां तीर्थयात्रियों की संख्या काफी कम हो गई है.

एक स्थानीय दुकानदार का कहना है कि नवरात्र के दौरान, हमने कटरा में यात्रियों को आते देखा, तो हमें उम्मीद बंधी कि कारोबार पटरी पर वापस आ जाएगा, लेकिन नवरात्र के नौ दिनों के बाद फिर तीर्थयात्री बहुत कम हो गए हैं. हम कुछ भी कमाने में सक्षम नहीं हैं. इस स्थिति में गुजारा बहुत मुश्किल हो गया है. मैंने इस दुकान को किराए पर ले लिया है. मैं दुकान मालिक को 25000 रुपये का किराया देता हूं. जिस तरह के हालात रहे मैं मालिक को किराया देने में असमर्थ था. मुझ पर किराये के दो लाख रुपये बकाया हैं.

इस बीच, कटरा में बेस कैंप से तीर्थयात्रियों को भवन तक घोड़ों, टट्टू (पोनी), पालकी पर ले जाने वाले लोगों और यात्रियों का सामान उठाने वाले पिट्ठुओं को भी तीर्थयात्रियों के न आने से आजीविका का संकट हो गया.

एक पोनी वाले धर्मचंद (उम्र 29 साल) के मुताबिक उन्हें बहुत खराब दिन देखने पड़े, अब भी कोई अधिक सुधार नहीं हुआ है. धर्मचंद ने कहा पिछले कई महीनों से जीवन बहुत कठिन है. हमारे लिए अपने खच्चरों और घोड़ों को बचाना और उन्हें खिलाना बहुत कठिन था. उचित आहार नहीं मिलने के कारण हमारे घोड़े और खच्चर शारीरिक रूप से कमजोर हो गए हैं. नवरात्र पर्व के दौरान, हमने सैकड़ों यत्रियों को आते देखा, हमने कुछ पैसे भी कमाए, लेकिन फिर से स्थिति बहुत मुश्किल हो गई है. कोरोना महामारी के प्रकोप से पहले, हम दिन 1500-2000 रुपये कमा लेते थे, लेकिन अब कमाई घटकर 200-300 रुपये ही रह गई है.

यहां यह बताना जरूरी है कि 16 अगस्त को वैष्णो देवी यात्रा के फिर से शुरू होने के बाद भी, पोनी सेवाएं निलंबित रहीं. नवरात्र से दो दिन पहले 15 अक्टूबर को पोनी और अन्य सेवाओं को बहाल किया गया.

तीर्थस्थल के संचालन और प्रबंधन की जिम्मेदारी श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड (SMVDSB) के पास है. बोर्ड के सीईओ रमेश कुमार ने कहा कि पोनी वाले श्राइन बोर्ड के कर्मचारी नहीं हैं, लेकिन फिर भी बोर्ड ने उन्हें राहत देने में कोई कसर नहीं छोड़ी, हम उनकी समस्याओं को समझते हैं. इसीलिए, लॉकडाउन के दौरान, हमने उन्हें राशन पहुंचाया और उनके घोड़ों-टट्टुओं के लिए चारे की भी व्यवस्था की.

जम्मू : मार्च में लॉकडाउन शुरू होने के बाद देश के मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थलों के बंद होने के साथ ही वैष्णो देवी यात्रा को भी रोक दिया गया. जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था में पर्यटन और तीर्थ पर्यटन का बहुत बड़ा योगदान है, लेकिन लॉकडाउन के बाद से यहां काफी कम संख्या में लोग आ रहे हैं, जिससे यहां के स्थानीय व्यवसाय पुरी तरह ठप हो गया है.

घोड़े-टट्टू वालों की कमाई प्रभावित

कोरोना वायरस ने आम आदमी की जिंदगी को तो प्रभावित किया ही, देवी-देवताओं के तीर्थ स्थलों पर पहले हर वक्त लगी रहने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ पर भी ब्रेक लगा दिए हैं. इस कारण ठप पड़ीं पर्यटक सेवाओं के कारण वैष्णो देवी यात्रा के दौरान घोड़े-टट्टू वालों की कमाई बुरी तरह प्रभावित हुई है. आम तौर पर वैष्णो देवी यात्रा के दौरान लोग घोड़े-टट्टू की सवारी करते हैं, लेकिन लॉकडाउन के बाद से यहां घोड़े-टट्टू की सवारी पूरी तरह से बंद है.

तीर्थ यात्रियों के कम होने से धंधे बदहाल

प्रदेश की वित्तीय रीढ़ को नुकसान

जम्मू कश्मीर में त्रिकूटा की पहाड़ियों पर स्थित माता वैष्णो देवी मंदिर के लिए भी यही बात की जा सकती है. यहां हर साल बड़ी संख्या में आने वाले श्रद्धालओं की वजह से ही यहां स्थानीय लोगों का रोजगार चलता है. इसमें जम्मू और कटरा के होटल-व्यापारियों के अलावा बड़ी संख्या में पिट्ठू, खच्चर वालों, पालकी वालों, टैक्सी, ऑटो ड्राइवर्स आदि की गुजर-बसर भी इस तीर्थ पर्यटन पर निर्भर रहती है.

मार्च में लॉकडाउन शुरू होने के बाद देश के अन्य मंदिरों और धार्मिक स्थलों के बंद होने के साथ ही वैष्णो देवी यात्रा को भी रोक दिया गया. जम्मू और कश्मीर की अर्थव्यवस्था में पर्यटन और तीर्थ पर्यटन का बहुत योगदान रहा है. कोरोना काल में इस पर फुल स्टाप लग जाने से इस केंद्र शासित प्रदेश की वित्तीय रीढ़ को नुकसान पहुंचा.

कोरोना महामारी की दस्तक से पहले हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए आते थे. 18 मार्च को यात्रा रुकने के बाद पांच महीने तक ये निलंबित रही. यह यात्रा 16 अगस्त को सीमित संख्या में यात्रियों को अनुमति देते हुए कोविड-19 के कड़े सुरक्षा प्रोटोकॉल के साथ फिर से शुरू हुई. शुरू में, केवल 2000 तीर्थयात्रियों को प्रति दिन यात्रा करने की अनुमति दी गई थी, बाद में इसे बढ़ाकर पहले 5000, फिर नवरात्र उत्सव में 7000 कर दिया.

पढ़ें - पंजाब में ठप पड़ी रेल सेवाएं जल्द होगीं शुरू, हटाए जा रहे अवरोध

पहली नवंबर से, हर दिन श्रद्धालुओं की सीमा 15000 तक बढ़ा दी गई. हालांकि, यात्रा को फिर से शुरू करने से यात्रा के बेस कैम्प वाले कस्बे कटरा में कुछ आर्थिक गतिविधियां शुरू, तो हुई हैं, लेकिन स्थानीय दुकानदारों और अन्य का कहना है कि स्थिति पूरी तरह सामान्य होने में अभी लंबा वक्त लग सकता है.

ड्राई फ्रुट की बिक्री प्रभावित

कटरा शहर में ड्राई फ्रूट और प्रसाद की दुकान चलाने वाले 45 वर्षीय कपिल गुप्ता ने बताया कि यात्रा फिर से शुरू कराई जा सकती है, लेकिन जम्मू और कश्मीर के बाहर से आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या नगण्य है. एक समय था जब हम अच्छा व्यवसाय करते थे. हमारी कमाई अच्छी थी. लेकिन चीजें अब वैसी नहीं हैं. हमारी आय का स्रोत पूरी तरह से अन्य राज्यों से आने वाले तीर्थयात्रियों पर निर्भर है, लेकिन पिछले कई महीनों से हमारी कमाई शून्य है. हम अपनी पहले की बचत के जरिए घर का गुजारा चला रहे हैं, लेकिन यह इस तरह हमेशा नहीं चल सकता है. हम इस तरह से कब तक गाड़ी खींच सकते हैं?

बता दें कि सामान्य दिनों में वैष्णो देवी की यात्रा पर आने वाले यात्री वापसी में अखरोट जैसे प्रसाद कटरा और जम्मू से ही खरीदते थे, जिसे वो घर जाकर करीबियों में बांटते थे. कटरा के ही एक और ड्राईफ्रूट दुकानदार गौतम ने कहा मार्च में हमारा स्टॉक भरा हुआ था और हम अच्छे कारोबार की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन की वजह से हमारा कारोबार ठप हो गया.

हम चाहते हैं कि सरकार कारोबारी समुदाय को कुछ मदद प्रदान करे. कपिल गुप्ता और गौतम जैसी ही कहानी सैकड़ों और स्थानीय लोगों के पास भी सुनाने के लिए है. कटरा में ही गारमेंट्स की दुकान चलाने वाले रविंदर सिंह निराश हैं, क्योंकि यात्रा दोबारा शुरू होने के बाद से भी उनका कारोबार ठप ही है.

पढ़ें - अंतरराष्ट्रीय संबंधों का आधार सहयोग होना चाहिए, प्रतिस्पर्धा नहीं : जयशंकर

तीर्थयात्री कम हो गए

दुकानदारों का कहना है कि लॉकडाउन के बाद से यहां तीर्थयात्रियों की संख्या काफी कम हो गई है.

एक स्थानीय दुकानदार का कहना है कि नवरात्र के दौरान, हमने कटरा में यात्रियों को आते देखा, तो हमें उम्मीद बंधी कि कारोबार पटरी पर वापस आ जाएगा, लेकिन नवरात्र के नौ दिनों के बाद फिर तीर्थयात्री बहुत कम हो गए हैं. हम कुछ भी कमाने में सक्षम नहीं हैं. इस स्थिति में गुजारा बहुत मुश्किल हो गया है. मैंने इस दुकान को किराए पर ले लिया है. मैं दुकान मालिक को 25000 रुपये का किराया देता हूं. जिस तरह के हालात रहे मैं मालिक को किराया देने में असमर्थ था. मुझ पर किराये के दो लाख रुपये बकाया हैं.

इस बीच, कटरा में बेस कैंप से तीर्थयात्रियों को भवन तक घोड़ों, टट्टू (पोनी), पालकी पर ले जाने वाले लोगों और यात्रियों का सामान उठाने वाले पिट्ठुओं को भी तीर्थयात्रियों के न आने से आजीविका का संकट हो गया.

एक पोनी वाले धर्मचंद (उम्र 29 साल) के मुताबिक उन्हें बहुत खराब दिन देखने पड़े, अब भी कोई अधिक सुधार नहीं हुआ है. धर्मचंद ने कहा पिछले कई महीनों से जीवन बहुत कठिन है. हमारे लिए अपने खच्चरों और घोड़ों को बचाना और उन्हें खिलाना बहुत कठिन था. उचित आहार नहीं मिलने के कारण हमारे घोड़े और खच्चर शारीरिक रूप से कमजोर हो गए हैं. नवरात्र पर्व के दौरान, हमने सैकड़ों यत्रियों को आते देखा, हमने कुछ पैसे भी कमाए, लेकिन फिर से स्थिति बहुत मुश्किल हो गई है. कोरोना महामारी के प्रकोप से पहले, हम दिन 1500-2000 रुपये कमा लेते थे, लेकिन अब कमाई घटकर 200-300 रुपये ही रह गई है.

यहां यह बताना जरूरी है कि 16 अगस्त को वैष्णो देवी यात्रा के फिर से शुरू होने के बाद भी, पोनी सेवाएं निलंबित रहीं. नवरात्र से दो दिन पहले 15 अक्टूबर को पोनी और अन्य सेवाओं को बहाल किया गया.

तीर्थस्थल के संचालन और प्रबंधन की जिम्मेदारी श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड (SMVDSB) के पास है. बोर्ड के सीईओ रमेश कुमार ने कहा कि पोनी वाले श्राइन बोर्ड के कर्मचारी नहीं हैं, लेकिन फिर भी बोर्ड ने उन्हें राहत देने में कोई कसर नहीं छोड़ी, हम उनकी समस्याओं को समझते हैं. इसीलिए, लॉकडाउन के दौरान, हमने उन्हें राशन पहुंचाया और उनके घोड़ों-टट्टुओं के लिए चारे की भी व्यवस्था की.

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