नई दिल्ली : अधिवक्ता प्रशांत भूषण अवमानना केस में सुप्रीम कोर्ट को फैसला सुनाने के ठीक एक दिन पहले कानून के छात्रों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा को पत्र लिखकर मामले पर पुनर्विचार करने की मांग की है.
छात्रों ने शीर्ष अदालत को लिखा कि 1975 में आपातकाल के दौरान कोर्ट ने विफलता को लेकर माफी मांगी थी और आलोचनाओं को सहन किया था. हालांकि इस बार अधिवक्ता प्रशांत भूषण के दो ही ट्वीट ने उसे हिला दिया है.
छात्रों ने आगे कहा कि न्यायपालिका को जनता के विश्वास की बहाली के लिए आलोचना का जवाब देना चाहिए और जब कोई व्यक्ति न्याय के लिए प्यार से आलोचना करता है, तो उसे अवमानना का आरोप नहीं लगाना चाहिए.
वह दो ट्वीट अदालत की पवित्रता को चोट नहीं पहुंचाते हैं, क्योंकि यह न्याय के प्रति न्यायाधीशों के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है.
हम देख रहे हैं कि गंभीर और संवेदनशील मामलों में न्यायधीश कार्यकारणी के आदेश को स्वीकार करते हैं और आगे बढ़ जाते हैं.
आपको और अन्य न्यायाधीशों की चिंता करनी चाहिए कि क्या केवल एक यह ही कारण है कि जिससे जनता का विश्वास हिल सकता है.
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जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण को मुख्य न्यायधीश और उनके 4 पूर्ववर्तियों के खिलाफ अपने दो ट्वीट्स के लिए अदालत की अवमानना के लिए दोषी ठहराया था.
मामले में अदालत ने उनसे माफी मांगने को कहा था, ताकि वह मामले को सुलझा सकें, लेकिन भूषण ने इनकार कर दिया. जिसके बाद यह निर्णय लिया गया कि उन्हें सजा सुनाई जाएगी. अदालत इस मामले पर सोमवार को अपना फैसला सुनाएगी.