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जब-जब किसानों के हितों की बात होगी, याद किए जाएंगे बाबा टिकैत

चौधरी टिकैत के नेतृत्व में किसान आंदोलन ने दो अहम उपलब्धियां हासिल की है. पहला यह कि किसानों के संगठन ने उदारीकरण की आंधी में खेती बाड़ी और भारत के कृषि क्षेत्र को एक हद तक बचा लिया. इसके लिए टिकैत दिल्ली ही नहीं विदेश तक आवाज उठाने पहुंचे.

mahendra singh tikait
बड़े नेता थे महेंद्र सिंह टिकैत
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Published : Dec 13, 2020, 8:32 PM IST

लखनऊः कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन लगातार जारी है. पंजाब-हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान दिल्ली बार्डर पर हाइवे जाम कर बैठे हैं. केंद्र सरकार के सभी प्रस्तावों को किसानों ने खारिज कर दिया है. इसके अलावा कई दौर की केंद्र सरकार के साथ चली वार्ता भी अबतक बेनतीजा रही है. अब गुस्साए किसानों ने अपना आंदोलन तेज करने का मन बना लिया है. अपने आंदोलन को और तेज करते हुए किसानों ने सभी हाइवे को जाम करने का ऐलान किया है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

अपने हक के लिए सरकार से दो-दो हाथ करने को तैयार किसानों को शायद आज चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की कमी जरूर खल रही होगी. किसानों के हित में एक प्रकाश पुंज की तरह उभरे महेंद्र सिंह टिकैत का वो दौर था जब देश भर से किसान हमेशा उनके पीछे खड़ा था. 80 और 90 के दशक के उस दौर में जब-जब टिकैत ने मुंह से हुंकार भरी सरकारें उल्टे पांव चल कर उनके पास तक पहुंची.

किसान आंदोलन के सबसे बड़े चौधरी थे टिकैत साहब
आजादी के बाद भारत की किसान राजनीति के वे सबसे बड़े चौधरी थे. उस दौर में देश के तमाम इलाकों में किसान संगठन बने और किसानों के कई बड़े नेता उभरे. समय के साथ वे बदल गए. उनका रंग- ढंग और तेवर बदल गया. लेकिन चौधरी टिकैत उन सबसे अलग भारत के किसानों के दिलों में जगह बनाने में कामयाब रहे. किसी हानि लाभ से परे जो दिल में आया वह कहा और जो मन में आया किया.

mahendra singh tikait
फाइल फोटो

बेहद ईमानदारी से किसानों को संगठित किया
चौधरी टिकैत के जीवन का सफर कांटों भरा था. 1935 में मुजफ्फरनगर के सिसौली गांव में जन्मे चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत का पूरा जीवन ग्रामीणों को संगठित करने में बीता. भारतीय किसान यूनियन के गठन के साथ ही 1986 से उनका लगातार प्रयास रहा कि यह अराजनीतिक संगठन बना रहे. 27 जनवरी 1987 को करमूखेड़ा बिजलीघर से बिजली के स्थानीय मुद्दे पर चला आंदोलन किसानों की संगठन शक्ति के नाते पूरे देश में चर्चा में आ गया. मेरठ के घेराव ने किसानों के संगठन और एकता की परिधि को व्यापक बना दिया और उनको एक ईमानदार नायक मिल गया था. जिसके साथ देश के करीब सारे छोटे बड़े किसान जुड़ कर एक झंडे तले आने के लिए उतावले थे.

mahendra singh tikait
फाइल फोटो

सरकारों से होता रहा टकराव
किसानों के हकों के सवाल पर राज्य और केंद्र सरकार से टिकैत की बार-बार लड़ाई हुई, लेकिन उन्होंने आंदोलन को अहिंसक बनाए रखा. उनकी राह गांधी की राह थी और सोच में चौधरी चरण सिंह से लेकर स्वामी विवेकानंद तक थे. 110 दिनों तक चला रजबपुर सत्याग्रह हो या फिर दिल्ली में वोट क्लब की महापंचायत, फतेहगढ़ केंद्रीय कारागार हो या फिर दिल्ली की तिहाड़ जेल उनका जाना, हर आंदोलनों ने किसान यूनियन की ताकत का विस्तार किया. 1987 के बाद अपनी आखिरी सांस तक वे भारत के किसानों के नेता बने रहे. इसके बावजूद कि तमाम मौकों पर सरकारें उनकी ताकत को मिटाने के लिए सभी संभव प्रयास करती रहीं. उन्हें मुट्ठी भर किसानों का नेता तक कहा गया, लेकिन वे भारत के अकेले किसान नेता थे, जिन्होंने किसानों को जाति, धर्म और क्षेत्रीयता के खांचे में बंटने नहीं दिया. उनका नेतृत्व दक्षिण के उन किसानों ने भी स्वीकार किया, जो न उनकी भाषा जानते थे न बोली, लेकिन उनको इस बात का भरोसा था कि चौधरी टिकैत ही हैं जो ईमानदारी से उनके लिए खड़े रहेंगे.

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फाइल फोटो

उदारीकरण के दौर में किसानों को बचाया
चौधरी टिकैत के नेतृत्व में किसान आंदोलन ने दो अहम उपलब्धियां हासिल की है. पहला यह कि किसानों के संगठन ने उदारीकरण की आंधी में खेती बाड़ी और भारत के कृषि क्षेत्र को एक हद तक बचा लिया. इसके लिए टिकैत दिल्ली ही नहीं विदेश तक आवाज उठाने पहुंचे. नीतियों में बदलाव के नाते यह क्षेत्र बेशक प्रभावित हुआ. लेकिन वैसा नहीं जैसा तब के बड़े व्यापारियों की मंशा थी. भारत सरकार को किसानों की ताकत के नाते कई मोर्चों पर झुकना पड़ा.

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फाइल फोटो

अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते थे बाबा टिकैत
कहा जाता है कि चौधरी टिकैत ने प्रधानमंत्री नरंसिम्हा राव से बेहद बेबाकी से अपनी बात रखी थी. उन्होंने कहा था कि हर्षत मेहता पांच हजार करोड़ का घपला करके बैठा है. कई मंत्री घपला किए बैठे हैं. सरकार उनसे वसूली नहीं कर पा रही है, लेकिन किसानों को 200 रुपये की वसूली के लिए जेल भेजा जा रहा है. टिकैत दिल्ली-लखनऊ कूच का ऐलान करते तो सरकारों के प्रतिनिधि उनको मनाने रिझाने में जुट जाते थे, प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक उनके फोन को तरसते थे. लेकिन यह उनकी ताकत का असर था जो उनकी सादगी, ईमानदारी और लाखों किसानों में उनके भरोसे के कारण थी. आंदोलनों में चौधरी साहब हमेशा मंच पर नहीं होते थे. वे हुक्का गुडगुडाते हुए किसानों की भीड़ में शामिल रहते थे.

अलग तरीके से किसान आंदोलनों को नियंत्रित किया
विशाल आंदोलनों को नियंत्रित करना आसान काम नहीं होता है. लेकिन टिकैत इस मामलें में बहुत सफल रहे. बड़ा से बड़ा और सरकार को हिला देने वाला आंदोलन क्यों न रहा हो, वह अनुशासनहीन नहीं रहा. मेरठ या दिल्ली में लाखों किसानों के जमावड़े के बाद भी न कहीं मारपीट न किसी दुकान वालों से लूटपाट या कोई अवांछित घटना नहीं हुई. आंदोलनों में भीड़ को नियंत्रित करना सरल नहीं होता, लेकिन चौधरी साहब ने आंदोलनों को अलग तरीके से चलाया.

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फाइल फोटो

किसानों की लूट के खिलाफ सरकारों आगाह किया
हर आंदोलन में चौधरी टिकैत ने किसानों के वाजिब दाम को केंद्र मे रखा जीवन भर वे किसानों की लूट के खिलाफ सरकारों को आगाह करते रहे. उनका यह कहना एक हद तक सही है कि अगर 1967 को आधार साल मान कर कृषि उपज और बाकी सामानों की कीमतों का औसत निकाल कर फसलों का दाम तय हो तो एक हद तक किसानों की समस्या हल हो सकती है. धूल माटी से लिपटा उनका कुर्ता, धोती और सिर पर टोपी के साथ बेलाग वाणी, उनको सबसे अलग बनाए हुई थी. जब पूरा देश उनकी ओर देखता था तो भी वे रूटीन के जरूरी काम उसी तरह करते हुए देखे जाते थे, जैसा भारत में आम किसान अपने घरों में करता है. उनमें कभी कोई दंभ नहीं दिखा. देश में जब जब किसान आंदोलन होंगे या फिर किसानों के हित की बात होगी तो चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत एक संस्था की तरह याद किए जाएंगे.

लखनऊः कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन लगातार जारी है. पंजाब-हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान दिल्ली बार्डर पर हाइवे जाम कर बैठे हैं. केंद्र सरकार के सभी प्रस्तावों को किसानों ने खारिज कर दिया है. इसके अलावा कई दौर की केंद्र सरकार के साथ चली वार्ता भी अबतक बेनतीजा रही है. अब गुस्साए किसानों ने अपना आंदोलन तेज करने का मन बना लिया है. अपने आंदोलन को और तेज करते हुए किसानों ने सभी हाइवे को जाम करने का ऐलान किया है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

अपने हक के लिए सरकार से दो-दो हाथ करने को तैयार किसानों को शायद आज चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की कमी जरूर खल रही होगी. किसानों के हित में एक प्रकाश पुंज की तरह उभरे महेंद्र सिंह टिकैत का वो दौर था जब देश भर से किसान हमेशा उनके पीछे खड़ा था. 80 और 90 के दशक के उस दौर में जब-जब टिकैत ने मुंह से हुंकार भरी सरकारें उल्टे पांव चल कर उनके पास तक पहुंची.

किसान आंदोलन के सबसे बड़े चौधरी थे टिकैत साहब
आजादी के बाद भारत की किसान राजनीति के वे सबसे बड़े चौधरी थे. उस दौर में देश के तमाम इलाकों में किसान संगठन बने और किसानों के कई बड़े नेता उभरे. समय के साथ वे बदल गए. उनका रंग- ढंग और तेवर बदल गया. लेकिन चौधरी टिकैत उन सबसे अलग भारत के किसानों के दिलों में जगह बनाने में कामयाब रहे. किसी हानि लाभ से परे जो दिल में आया वह कहा और जो मन में आया किया.

mahendra singh tikait
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बेहद ईमानदारी से किसानों को संगठित किया
चौधरी टिकैत के जीवन का सफर कांटों भरा था. 1935 में मुजफ्फरनगर के सिसौली गांव में जन्मे चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत का पूरा जीवन ग्रामीणों को संगठित करने में बीता. भारतीय किसान यूनियन के गठन के साथ ही 1986 से उनका लगातार प्रयास रहा कि यह अराजनीतिक संगठन बना रहे. 27 जनवरी 1987 को करमूखेड़ा बिजलीघर से बिजली के स्थानीय मुद्दे पर चला आंदोलन किसानों की संगठन शक्ति के नाते पूरे देश में चर्चा में आ गया. मेरठ के घेराव ने किसानों के संगठन और एकता की परिधि को व्यापक बना दिया और उनको एक ईमानदार नायक मिल गया था. जिसके साथ देश के करीब सारे छोटे बड़े किसान जुड़ कर एक झंडे तले आने के लिए उतावले थे.

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सरकारों से होता रहा टकराव
किसानों के हकों के सवाल पर राज्य और केंद्र सरकार से टिकैत की बार-बार लड़ाई हुई, लेकिन उन्होंने आंदोलन को अहिंसक बनाए रखा. उनकी राह गांधी की राह थी और सोच में चौधरी चरण सिंह से लेकर स्वामी विवेकानंद तक थे. 110 दिनों तक चला रजबपुर सत्याग्रह हो या फिर दिल्ली में वोट क्लब की महापंचायत, फतेहगढ़ केंद्रीय कारागार हो या फिर दिल्ली की तिहाड़ जेल उनका जाना, हर आंदोलनों ने किसान यूनियन की ताकत का विस्तार किया. 1987 के बाद अपनी आखिरी सांस तक वे भारत के किसानों के नेता बने रहे. इसके बावजूद कि तमाम मौकों पर सरकारें उनकी ताकत को मिटाने के लिए सभी संभव प्रयास करती रहीं. उन्हें मुट्ठी भर किसानों का नेता तक कहा गया, लेकिन वे भारत के अकेले किसान नेता थे, जिन्होंने किसानों को जाति, धर्म और क्षेत्रीयता के खांचे में बंटने नहीं दिया. उनका नेतृत्व दक्षिण के उन किसानों ने भी स्वीकार किया, जो न उनकी भाषा जानते थे न बोली, लेकिन उनको इस बात का भरोसा था कि चौधरी टिकैत ही हैं जो ईमानदारी से उनके लिए खड़े रहेंगे.

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उदारीकरण के दौर में किसानों को बचाया
चौधरी टिकैत के नेतृत्व में किसान आंदोलन ने दो अहम उपलब्धियां हासिल की है. पहला यह कि किसानों के संगठन ने उदारीकरण की आंधी में खेती बाड़ी और भारत के कृषि क्षेत्र को एक हद तक बचा लिया. इसके लिए टिकैत दिल्ली ही नहीं विदेश तक आवाज उठाने पहुंचे. नीतियों में बदलाव के नाते यह क्षेत्र बेशक प्रभावित हुआ. लेकिन वैसा नहीं जैसा तब के बड़े व्यापारियों की मंशा थी. भारत सरकार को किसानों की ताकत के नाते कई मोर्चों पर झुकना पड़ा.

mahendra singh tikait
फाइल फोटो

अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते थे बाबा टिकैत
कहा जाता है कि चौधरी टिकैत ने प्रधानमंत्री नरंसिम्हा राव से बेहद बेबाकी से अपनी बात रखी थी. उन्होंने कहा था कि हर्षत मेहता पांच हजार करोड़ का घपला करके बैठा है. कई मंत्री घपला किए बैठे हैं. सरकार उनसे वसूली नहीं कर पा रही है, लेकिन किसानों को 200 रुपये की वसूली के लिए जेल भेजा जा रहा है. टिकैत दिल्ली-लखनऊ कूच का ऐलान करते तो सरकारों के प्रतिनिधि उनको मनाने रिझाने में जुट जाते थे, प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक उनके फोन को तरसते थे. लेकिन यह उनकी ताकत का असर था जो उनकी सादगी, ईमानदारी और लाखों किसानों में उनके भरोसे के कारण थी. आंदोलनों में चौधरी साहब हमेशा मंच पर नहीं होते थे. वे हुक्का गुडगुडाते हुए किसानों की भीड़ में शामिल रहते थे.

अलग तरीके से किसान आंदोलनों को नियंत्रित किया
विशाल आंदोलनों को नियंत्रित करना आसान काम नहीं होता है. लेकिन टिकैत इस मामलें में बहुत सफल रहे. बड़ा से बड़ा और सरकार को हिला देने वाला आंदोलन क्यों न रहा हो, वह अनुशासनहीन नहीं रहा. मेरठ या दिल्ली में लाखों किसानों के जमावड़े के बाद भी न कहीं मारपीट न किसी दुकान वालों से लूटपाट या कोई अवांछित घटना नहीं हुई. आंदोलनों में भीड़ को नियंत्रित करना सरल नहीं होता, लेकिन चौधरी साहब ने आंदोलनों को अलग तरीके से चलाया.

mahendra singh tikait
फाइल फोटो

किसानों की लूट के खिलाफ सरकारों आगाह किया
हर आंदोलन में चौधरी टिकैत ने किसानों के वाजिब दाम को केंद्र मे रखा जीवन भर वे किसानों की लूट के खिलाफ सरकारों को आगाह करते रहे. उनका यह कहना एक हद तक सही है कि अगर 1967 को आधार साल मान कर कृषि उपज और बाकी सामानों की कीमतों का औसत निकाल कर फसलों का दाम तय हो तो एक हद तक किसानों की समस्या हल हो सकती है. धूल माटी से लिपटा उनका कुर्ता, धोती और सिर पर टोपी के साथ बेलाग वाणी, उनको सबसे अलग बनाए हुई थी. जब पूरा देश उनकी ओर देखता था तो भी वे रूटीन के जरूरी काम उसी तरह करते हुए देखे जाते थे, जैसा भारत में आम किसान अपने घरों में करता है. उनमें कभी कोई दंभ नहीं दिखा. देश में जब जब किसान आंदोलन होंगे या फिर किसानों के हित की बात होगी तो चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत एक संस्था की तरह याद किए जाएंगे.

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