हैदराबाद : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महत्वाकांक्षी सी प्लेन परियोजना के तहत साबरमती नदी से सीप्लेन सेवा का उद्घाटन किया. यह पीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट का एक हिस्सा रहा है. यह सेवा गुजरात के केवड़िया में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी और अहमदाबाद में साबरमती रिवरफ्रंट के बीच शुरू की गई है. उद्घाटन के बाद पीएम ने सी प्लेन में साबरमती रिवरफ्रंट तक का सफर तय किया. आइए जानते हैं सी-प्लेन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें.
क्या है सी प्लेन
- सी प्लेन को उड़ने वाली नावों के रूप में जानते हैं, क्योंकि विमान का एक हिस्सा नाव के आकार का है.
- सी प्लेन ऐसा विमान है जो पानी की सतह और हवा दोनों ही जगह आसानी से उड़ान भर सकता है.
- इसे एंफीबियस कैटेगरी वाला प्लेन कहा जाता है. विज्ञान के अनुसार एंफीबियन उस वर्ग को कहते हैं जो पानी और जमीन दोनों जगह रह सके.
- यह छोटे फिक्स्ड विंग वाला विमान है जो जलाशय, पथरीले उबड़-खाबड़ जमीन और घास पर भी उतर सकता है.
- सी प्लेन में पानी में लैंडिंग और टेक-ऑफ करने की क्षमता होती है.
- सी प्लेन को पानी में उतरने के लिए छह फीट की न्यूनतम गहराई की जरूरत होती है.
- उड़ान भरने के लिए कम से कम 300 मीटर के रनवे और पानी की सतह की जरूरत होती है.
- डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन की गाइडलाइन के अनुसार, कमर्शियल एयरलाइन के प्लेन के लिए दो इंजन और चार्टर्ड प्लेन के लिए एक इंजन की जरूरत होती है.
- टर्मिनल बिल्डिंग और पार्किंग स्थापित करने के लिए दो एकड़ जमीन की आवश्यकता होती है.
- विमान में 14 से 19 यात्रियों को ले जाने की क्षमता है.
- इसमें लैंडिंग और टेक ऑफ के लिए फ्लोटिंग मार्कर होते हैं.
सी प्लेन दो तरह के होते हैं फ्लोट प्लेन्स और फ्लाइंग बोट. गुजरात के केवड़िया में शुरू समुद्री विमान सेवा के लिए फ्लोटिंग बोट (फ्लोटिंग जेटी) लाई गई है.
- यह जेटी 9 मीटर चौड़ी और 24 मीटर लंबी है. इस जेटी का कुल वजन 102 टन है.
- इस ट्विन ऑट्टर 300 सी-प्लेन की टंकी 1419 लीटर ईंधन से फुल हो जाती है और महज 272 लीटर ईंधन में ये एक घंटे तक उड़ सकता है.
- इसमें पीटी 61-32 ट्विन टर्बो इंजन लगाया गया है.
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बता दें कि, 1911 में पहला सी प्लेन पानी में उतरा था. अमेरिकी इंजीनियर ग्लेन एच कर्टिस ने पहला सी प्लेन बनाया था. प्रथम विश्वयुद्ध में सीप्लेन का पहली बार इस्तेमाल किया गया था और युद्ध समाप्त होने के बाद इसका इस्तेमाल व्यावसायिक उद्देश्य के लिए किया गया था. सी प्लेन का इस्तेमाल सीमित पैमाने पर दूसरे विश्वयुद्ध में भी किया गया था. द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में विमान को बर्फ से ढकी भूमि, दलदली भूमि और घास के मैदान पर उतारने के लिए डिजाइन में संशोधन किए गए थे.