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अराजकता का दोष सरकार पर मढ़, आंदोलन की छवि सुधारने की कवायद में किसान मोर्चा - farmers protest

किसान मोर्चा ट्रैक्टर परेड से हुई बदनामी के बाद अब आंदोलन की छवि सुधारने की कवायद में जुट गया है. जानकारी के अनुसार इसके लिए 30 जनवरी को किसान नेता एक दिन का उपवास रख देश में शांति और अहिंसा का संदेश देना चाहते हैं.

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Published : Jan 28, 2021, 4:35 PM IST

नई दिल्ली : संयुक्त किसान मोर्चा ने गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई अराजकता को सुनियोजित बताते हुए सरकार को इसके लिए सीधे-सीधे जिम्मेदार ठहरा दिया. अब किसान संगठन आंदोलन की बिगड़ी छवि सुधारने में लगे हैं.

संयुक्त किसान मोर्चा ने बुधवार रात घोषणा की है कि 30 जनवरी को महात्मा गांधी के शहीदी दिवस के मौके पर सभी किसान नेता एक दिन का उपवास रखेंगे और शहीदों की याद में देशभर में रैलियों का आयोजन किया जाएगा.

आंदोलन में दो कदम पीछे हटते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने एक फरवरी को संसद मार्च के कार्यक्रम को रद्द कर दिया और 26 जनवरी के दिन हुई घटना की निंदा करते हुए इसकी नैतिक जिम्मेदारी भी ली. संयुक्त किसान मोर्चा के वर्किंग कमेटि में शामिल सात किसान नेताओं में से एक शिव कुमार शर्मा 'कक्काजी' ने कहा कि ट्रैक्टर परेड का आह्वान संयुक्त किसान मोर्चा का था और इसलिए वह घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हैं, लेकिन जो जत्थेबंदियां अराजकता में शामिल थीं, उनसे मोर्चे का कोई संबंध नहीं है.

बहरहाल, सूत्रों की मानें तो बुधवार देर शाम तक चली बैठक में मुख्य रूप से इस बात पर चर्चा हुई है कि आंदोलन की बिगड़ी छवि को कैसे सुधारा जाए. इसके लिए आगे की रणनीति भी तैयार की गई है. 30 जनवरी को किसान नेता एक दिन का उपवास रख देश में शांति और अहिंसा का संदेश देना चाहते हैं.

गौरतलब है कि 26 जनवरी को हुई हिंसा की निंदा करते हए दो किसान संगठन - राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन और भारतीय किसान यूनियन (भानु) ने आंदोलन वापस लेने की घोषणा की और अपने समर्थकों के साथ गाजीपुर और चिल्ला बॉर्डर से वापस चले गए. हालांकि, इन दोनों संगठनों का संयुक्त किसान मोर्चा से आंदोलन के दौरान कोई समन्वय नहीं था और दोनों ही संगठन अपना आंदोलन अलग चला रहे थे.

26 जनवरी को हुई घटना ने संगठनों के आत्मविश्वास को जरूर कम किया है और एक फरवरी के संसद मार्च को वापस लेने का निर्णय इसके संकेत स्पष्ट रूप से देते हैं. हालांकि, किसान मोर्चा से जुड़े नेताओं का अब भी यही कहना है कि आंदोलन जारी रहेगा.

पढ़ें :- किसान नेताओं के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी करेगी पुलिस, पासपोर्ट सरेंडर की तैयारी

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने बुधवार रात सोशल मीडिया पर जारी वीडियो व्यक्तव्य में कहा कि जिन लोगों ने लाल किले पर झंडा फहराने का काम किया है, उन्हें किसान मोर्चा ने चिह्नित कर लिया है और किसी राजनीतिक पार्टी से उस व्यक्ति का संबंध भी पाया गया है. आंदोलन के खिलाफ एक बड़ी साजिश की गई है. उनके ट्रैक्टर परेड में शामिल सभी ट्रैक्टर शाम 6 बजे तक अपने धरना स्थल या गांव की तरफ वापस हो गए थे. राकेश टिकैत का नाम गाजीपुर थाने में एफआईआर में दर्ज है, लेकिन उनका कहना है कि जो भी हिंसा की घटनाएं हुईं वह एक साजिश का हिस्सा थी.

आंदोलन से जुड़े अन्य नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने आरएसएस को आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि जिस संगठन ने कभी देश के तिरंगे झंडे को अपना नहीं माना, अपने कार्यालय पर कई सालों तक तिरंगा नहीं फहराया. आज इस घटना को धार्मिक रंग देने का प्रयास कर रहे हैं और धर्म के ठेकेदार बन रहे हैं.

26 जनवरी ट्रैक्टर परेड को संयुक्त किसान मोर्चा ने ऐतिहासिक बताया, लेकिन परेड के दौरान हुई हिंसा और अनुसाशनहीनता से फैली नकारात्मकता से किसान मोर्चा और उसके सभी समर्थक संगठन सकते में दिख रहे हैं. किसान नेताओं के सामने अब आंदोलन को एकजुट रखने की चुनौती है, क्योंकि मौजूदा हालात में अब उनके पास सरकार की तरफ से बातचीत का प्रस्ताव भी नहीं है.

नई दिल्ली : संयुक्त किसान मोर्चा ने गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई अराजकता को सुनियोजित बताते हुए सरकार को इसके लिए सीधे-सीधे जिम्मेदार ठहरा दिया. अब किसान संगठन आंदोलन की बिगड़ी छवि सुधारने में लगे हैं.

संयुक्त किसान मोर्चा ने बुधवार रात घोषणा की है कि 30 जनवरी को महात्मा गांधी के शहीदी दिवस के मौके पर सभी किसान नेता एक दिन का उपवास रखेंगे और शहीदों की याद में देशभर में रैलियों का आयोजन किया जाएगा.

आंदोलन में दो कदम पीछे हटते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने एक फरवरी को संसद मार्च के कार्यक्रम को रद्द कर दिया और 26 जनवरी के दिन हुई घटना की निंदा करते हुए इसकी नैतिक जिम्मेदारी भी ली. संयुक्त किसान मोर्चा के वर्किंग कमेटि में शामिल सात किसान नेताओं में से एक शिव कुमार शर्मा 'कक्काजी' ने कहा कि ट्रैक्टर परेड का आह्वान संयुक्त किसान मोर्चा का था और इसलिए वह घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हैं, लेकिन जो जत्थेबंदियां अराजकता में शामिल थीं, उनसे मोर्चे का कोई संबंध नहीं है.

बहरहाल, सूत्रों की मानें तो बुधवार देर शाम तक चली बैठक में मुख्य रूप से इस बात पर चर्चा हुई है कि आंदोलन की बिगड़ी छवि को कैसे सुधारा जाए. इसके लिए आगे की रणनीति भी तैयार की गई है. 30 जनवरी को किसान नेता एक दिन का उपवास रख देश में शांति और अहिंसा का संदेश देना चाहते हैं.

गौरतलब है कि 26 जनवरी को हुई हिंसा की निंदा करते हए दो किसान संगठन - राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन और भारतीय किसान यूनियन (भानु) ने आंदोलन वापस लेने की घोषणा की और अपने समर्थकों के साथ गाजीपुर और चिल्ला बॉर्डर से वापस चले गए. हालांकि, इन दोनों संगठनों का संयुक्त किसान मोर्चा से आंदोलन के दौरान कोई समन्वय नहीं था और दोनों ही संगठन अपना आंदोलन अलग चला रहे थे.

26 जनवरी को हुई घटना ने संगठनों के आत्मविश्वास को जरूर कम किया है और एक फरवरी के संसद मार्च को वापस लेने का निर्णय इसके संकेत स्पष्ट रूप से देते हैं. हालांकि, किसान मोर्चा से जुड़े नेताओं का अब भी यही कहना है कि आंदोलन जारी रहेगा.

पढ़ें :- किसान नेताओं के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी करेगी पुलिस, पासपोर्ट सरेंडर की तैयारी

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने बुधवार रात सोशल मीडिया पर जारी वीडियो व्यक्तव्य में कहा कि जिन लोगों ने लाल किले पर झंडा फहराने का काम किया है, उन्हें किसान मोर्चा ने चिह्नित कर लिया है और किसी राजनीतिक पार्टी से उस व्यक्ति का संबंध भी पाया गया है. आंदोलन के खिलाफ एक बड़ी साजिश की गई है. उनके ट्रैक्टर परेड में शामिल सभी ट्रैक्टर शाम 6 बजे तक अपने धरना स्थल या गांव की तरफ वापस हो गए थे. राकेश टिकैत का नाम गाजीपुर थाने में एफआईआर में दर्ज है, लेकिन उनका कहना है कि जो भी हिंसा की घटनाएं हुईं वह एक साजिश का हिस्सा थी.

आंदोलन से जुड़े अन्य नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने आरएसएस को आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि जिस संगठन ने कभी देश के तिरंगे झंडे को अपना नहीं माना, अपने कार्यालय पर कई सालों तक तिरंगा नहीं फहराया. आज इस घटना को धार्मिक रंग देने का प्रयास कर रहे हैं और धर्म के ठेकेदार बन रहे हैं.

26 जनवरी ट्रैक्टर परेड को संयुक्त किसान मोर्चा ने ऐतिहासिक बताया, लेकिन परेड के दौरान हुई हिंसा और अनुसाशनहीनता से फैली नकारात्मकता से किसान मोर्चा और उसके सभी समर्थक संगठन सकते में दिख रहे हैं. किसान नेताओं के सामने अब आंदोलन को एकजुट रखने की चुनौती है, क्योंकि मौजूदा हालात में अब उनके पास सरकार की तरफ से बातचीत का प्रस्ताव भी नहीं है.

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