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केसीआर, वाईएसआर और पटनायक तय कर सकते हैं कौन होगा अगला पीएम....!

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Published : May 11, 2019, 1:55 PM IST

एक तिहाई सीटों पर लोकसभा चुनाव का मतदान हो चुका है. देश के दो प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस को बहुमत नहीं मिलता है और अगर तीसरे मोर्चे की सरकार बनती है तो इस सरकार में प्रधानमंत्री कौन बनेगा, इस पर चर्चा शुरू हो गई है. कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने एक दूसरे से मुलाकात बढ़ा दी है, जिससे सियासी गलियों में पीएम के उम्मीदवार के नाम पर अटकलें तेज हो गई हैं.

केसीआर, जगनमोहन रेडडी और नवीन पटनायक. डिजाइन इमेज

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव अब अंतिम चरण में है. 23 मई को परिणाम आएंगे. लेकिन उसके पहले ही अलग-अलग दलों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो रहा है. इसकी पहल आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू कर रहे हैं. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव कांग्रेस और भाजपा से इतर अलग फ्रंट की वकालत कर रहे हैं. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी संपर्क में बताए जा रहे हैं. वाईएसआर को अगर कुछ सीटें मिलीं, तो वे भी इसमें अहम किरदार हो सकते हैं.

दरअसल, ये कुछ नाम इसलिए सबसे ज्यादा अहमियत रखते हैं, क्योंकि भाजपा के खिलाफ फ्रंट बनाने में इन नेताओं ने आगे बढ़चढ़ कर भूमिका निभाई है. इसके बावजूद यह इस पर निर्भर करता है कि ये अपने-अपने राज्य में कितने मजबूत होकर निकलते हैं. किनको कितनी सीटें मिलती हैं.

केसीआर ने कर्नाटक के सीएम से बातचीत की है. उन्होंने केरल के मुख्यमंत्री से भी बात की है. कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी से भी उनके अच्छे संपर्क हैं.

वाई एस आर आंध्रप्रदेश में बड़ी राजनीतिक शक्ति के तौर पर उभर सकते हैं. कुछ मीडिया रिपोर्ट की मानें तो इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. इनके मजबूत होने का अर्थ है कि चंद्रबाबू नायडू की राजनीतिक शक्ति कमजोर होगी.

वाईएसआर ने अभी तक किसी भी फ्रंट में जाने का निर्णय नहीं लिया है. उन्होंने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. लिहाजा, परिणाम आने के बाद ही वे अपना रूख साफ करेंगे.

नवीन पटनायक ओडिशा के सीएम हैं. ओडिशा में 21 सीटें हैं. इस बार के चुनाव में उन्हें कितनी सीटें मिलती हैं, उनकी राजनीतिक ताकत का अंदाजा तभी लगाया जा सकता है.

वाईएसआर की तरह नवीन पटनायक ने भी अपनी पसंद और नापसंद किसी को नहीं बताया है. उनकी ओर से यह बयान अवश्य आया था कि राज्य के हित में वे फैसला लेंगे. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस या भाजपा जिसका गठबंधन मजबूत रहेगा. उधर वे जा सकते हैं.

चुनाव विश्लेषक मानते हैं कि इस बार भाजपा की स्थिति 2014 जैसी नहीं रहेगी. यानि कमोजर भाजपा एनडीए में वो काम नहीं कर पाएगी, जो अभी वह कर रही है. एनडीए के पास सीटें कम हुईं, तो जाहिर है उन्हें समर्थन ढूंढना होगा. उनके साथ इन दलों के आने की संभावना है.

पढ़ें-ना राम मिला, ना रोजगार मिला, लेकिन हर गली में मोबाइल चलाता बेरोजगार मिला : सिद्धू

वाईएसआर, बीजद और केसीआर ने अभी तक सार्वजनिक तौर पर कुछ भी नहीं कहा है. लिहाजा, एनडीए की उम्मीदें इन पर टिकी होंगी.

इन सबसे हटकर चंद्रबाबू नायडू की अलग रणनीति है. नायडू ने साफ कर दिया है कि वे कांग्रेस वाले गठबंधन में रहेंगे. उन्होंने भाजपा को हराने की बात कही है. लिहाजा, वे गैर भाजपा पार्टियों के संपर्क में हैं.

सवाल ये भी है क्या नायडू, केसीआर को अपनी ओर मिला पाएंगे. दोनों की राजनीतिक दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है. अभी हाल ही में तेलंगाना में हुए चुनाव के दौरान दोनों के बीच तीखी बयानबाजी हुई थी.

नायडू और वाईएसआर एक साथ आएंगे, ऐसा लगता नहीं है. दोनों ही एक दूसरे के खिलाफ एक ही राज्य में चुनाव लड़ रहे हैं.

पढ़ें-राहुल बोले- चुनाव आयोग शिकायतों पर निष्पक्ष और गैर भेदभावपूर्ण कार्रवाई करे

लिहाजा ऐसे में बीजद ही एक ऐसी पार्टी बचती है, जिससे नायडू बात कर सकते हैं. बीजद को कांग्रेस भी अपनी ओर मिलाने का प्रयास कर सकती है और नायडू तथा ममता उन्हें रिझा सकते हैं.

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि परिणाम आने के बाद बीजद, वाईएसआर और केसीआर निर्णायक शक्ति रख सकते हैं, बशर्ते उन्हें अपेक्षित सफलता मिले और एनडीए बहुमत से कम सीटें हासिल करे. यही हाल यूपीए का होगा.

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव अब अंतिम चरण में है. 23 मई को परिणाम आएंगे. लेकिन उसके पहले ही अलग-अलग दलों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो रहा है. इसकी पहल आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू कर रहे हैं. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव कांग्रेस और भाजपा से इतर अलग फ्रंट की वकालत कर रहे हैं. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी संपर्क में बताए जा रहे हैं. वाईएसआर को अगर कुछ सीटें मिलीं, तो वे भी इसमें अहम किरदार हो सकते हैं.

दरअसल, ये कुछ नाम इसलिए सबसे ज्यादा अहमियत रखते हैं, क्योंकि भाजपा के खिलाफ फ्रंट बनाने में इन नेताओं ने आगे बढ़चढ़ कर भूमिका निभाई है. इसके बावजूद यह इस पर निर्भर करता है कि ये अपने-अपने राज्य में कितने मजबूत होकर निकलते हैं. किनको कितनी सीटें मिलती हैं.

केसीआर ने कर्नाटक के सीएम से बातचीत की है. उन्होंने केरल के मुख्यमंत्री से भी बात की है. कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी से भी उनके अच्छे संपर्क हैं.

वाई एस आर आंध्रप्रदेश में बड़ी राजनीतिक शक्ति के तौर पर उभर सकते हैं. कुछ मीडिया रिपोर्ट की मानें तो इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. इनके मजबूत होने का अर्थ है कि चंद्रबाबू नायडू की राजनीतिक शक्ति कमजोर होगी.

वाईएसआर ने अभी तक किसी भी फ्रंट में जाने का निर्णय नहीं लिया है. उन्होंने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. लिहाजा, परिणाम आने के बाद ही वे अपना रूख साफ करेंगे.

नवीन पटनायक ओडिशा के सीएम हैं. ओडिशा में 21 सीटें हैं. इस बार के चुनाव में उन्हें कितनी सीटें मिलती हैं, उनकी राजनीतिक ताकत का अंदाजा तभी लगाया जा सकता है.

वाईएसआर की तरह नवीन पटनायक ने भी अपनी पसंद और नापसंद किसी को नहीं बताया है. उनकी ओर से यह बयान अवश्य आया था कि राज्य के हित में वे फैसला लेंगे. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस या भाजपा जिसका गठबंधन मजबूत रहेगा. उधर वे जा सकते हैं.

चुनाव विश्लेषक मानते हैं कि इस बार भाजपा की स्थिति 2014 जैसी नहीं रहेगी. यानि कमोजर भाजपा एनडीए में वो काम नहीं कर पाएगी, जो अभी वह कर रही है. एनडीए के पास सीटें कम हुईं, तो जाहिर है उन्हें समर्थन ढूंढना होगा. उनके साथ इन दलों के आने की संभावना है.

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वाईएसआर, बीजद और केसीआर ने अभी तक सार्वजनिक तौर पर कुछ भी नहीं कहा है. लिहाजा, एनडीए की उम्मीदें इन पर टिकी होंगी.

इन सबसे हटकर चंद्रबाबू नायडू की अलग रणनीति है. नायडू ने साफ कर दिया है कि वे कांग्रेस वाले गठबंधन में रहेंगे. उन्होंने भाजपा को हराने की बात कही है. लिहाजा, वे गैर भाजपा पार्टियों के संपर्क में हैं.

सवाल ये भी है क्या नायडू, केसीआर को अपनी ओर मिला पाएंगे. दोनों की राजनीतिक दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है. अभी हाल ही में तेलंगाना में हुए चुनाव के दौरान दोनों के बीच तीखी बयानबाजी हुई थी.

नायडू और वाईएसआर एक साथ आएंगे, ऐसा लगता नहीं है. दोनों ही एक दूसरे के खिलाफ एक ही राज्य में चुनाव लड़ रहे हैं.

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लिहाजा ऐसे में बीजद ही एक ऐसी पार्टी बचती है, जिससे नायडू बात कर सकते हैं. बीजद को कांग्रेस भी अपनी ओर मिलाने का प्रयास कर सकती है और नायडू तथा ममता उन्हें रिझा सकते हैं.

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि परिणाम आने के बाद बीजद, वाईएसआर और केसीआर निर्णायक शक्ति रख सकते हैं, बशर्ते उन्हें अपेक्षित सफलता मिले और एनडीए बहुमत से कम सीटें हासिल करे. यही हाल यूपीए का होगा.

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केसीआर, वाईएसआर और पटनायक तय कर सकते हैं कौन होगा अगला पीएम....!



नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव अब अंतिम चरण में है. 23 मई को परिणाम आएंगे. लेकिन उसके पहले ही अलग-अलग दलों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो रहा है. इसकी पहल आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू कर रहे हैं. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव कांग्रेस और भाजपा से इतर अलग फ्रंट की वकालत कर रहे हैं. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी संपर्क में बताए जा रहे हैं. वाईएसआर को अगर कुछ सीटें मिलीं, तो वे भी इसमें अहम किरदार हो सकते हैं. 

दरअसल, ये कुछ नाम इसलिए सबसे ज्यादा अहमियत रखते हैं, क्योंकि भाजपा के खिलाफ फ्रंट बनाने में इन नेताओं ने आगे बढ़चढ़ कर भूमिका निभाई है. इसके बावजूद यह इस पर निर्भर करता है कि ये अपने-अपने राज्य में कितने मजबूत होकर निकलते हैं. किनको कितनी सीटें मिलती हैं.

केसीआर ने कर्नाटक के सीएम से बातचीत की है. उन्होंने केरल के मुख्यमंत्री से भी बात की है. कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी से भी उनके अच्छे संपर्क हैं. 

वाई एस आर आंध्रप्रदेश में बड़ी राजनीतिक शक्ति के तौर पर उभर सकते हैं. कुछ मीडिया रिपोर्ट की मानें तो इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. इनके मजबूत होने का अर्थ है कि चंद्रबाबू नायडू की राजनीतिक शक्ति कमजोर होगी. 

वाईएसआर ने अभी तक किसी भी फ्रंट में जाने का निर्णय नहीं लिया है. उन्होंने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. लिहाजा, परिणाम आने के बाद ही वे अपना रूख साफ करेंगे. 

नवीन पटनायक ओडिशा के सीएम हैं. ओडिशा में 21 सीटें हैं. इस बार के चुनाव में उन्हें कितनी सीटें मिलती हैं, उनकी राजनीतिक ताकत का अंदाजा तभी लगाया जा सकता है. 

वाईएसआर की तरह नवीन पटनायक ने भी अपनी पसंद और नापसंद किसी को नहीं बताया है. उनकी ओर से यह बयान अवश्य आया था कि राज्य के हित में वे फैसला लेंगे. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस या भाजपा जिसका गठबंधन मजबूत रहेगा. उधर वे जा सकते हैं. 

चुनाव विश्लेषक मानते हैं कि इस बार भाजपा की स्थिति 2014 जैसी नहीं रहेगी. यानि कमोजर भाजपा एनडीए में वो काम नहीं कर पाएगी, जो अभी वह कर रही है. एनडीए के पास सीटें कम हुईं, तो जाहिर है उन्हें समर्थन ढूंढना होगा. उनके साथ इन दलों के आने की संभावना है. 

वाईएसआर, बीजद और केसीआर ने अभी तक सार्वजनिक तौर पर कुछ भी नहीं कहा है. लिहाजा, एनडीए की उम्मीदें इन पर टिकी होंगी.

इन सबसे हटकर चंद्रबाबू नायडू की अलग रणनीति है. नायडू ने साफ कर दिया है कि वे कांग्रेस वाले गठबंधन में रहेंगे. उन्होंने भाजपा को हराने की बात कही है. लिहाजा, वे गैर भाजपा पार्टियों के संपर्क में हैं. 

सवाल ये भी है क्या नायडू केसीआर को अपनी ओर मिला पाएंगे. दोनों की राजनीतिक दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है. अभी हाल ही में तेलंगाना में हुए चुनाव के दौरान दोनों के बीच तीखी बयानबाजी हुई थी. 

नाडयू और वाईएसआर एक साथ आएंगे, ऐसा लगता नहीं है. दोनों ही एक दूसरे के खिलाफ एक ही राज्य में चुनाव लड़ रहे हैं. 

लिहाजा ऐसे में बीजद ही एक ऐसी पार्टी बचती है, जिससे नायडू बात कर सकते हैं. बीजद को कांग्रेस भी अपनी ओर मिलाने का प्रयास कर सकती है और नायडू तथा ममता उन्हें रिझा सकते हैं. 

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि परिणाम आने के बाद बीजद, वाईएसआर और केसीआर निर्णायक शक्ति रख सकते हैं, बशर्ते उन्हें अपेक्षित सफलता मिले और एनडीए बहुमत से कम सीटें हासिल करे. 

यही हाल यूपीए का होगा. 

 


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