ETV Bharat / bharat

अदालतों को सार्वजनिक आलोचना और जांच स्वीकार करनी चाहिए : साल्वे

author img

By

Published : Jan 17, 2021, 6:18 PM IST

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे का कहना है कि न्यायपालिका को सार्वजनिक जांच पड़ताल तथा आलोचनाओं को स्वीकार करना चाहिए. उनका मानना है कि कोर्ट के फैसले की निंदा की जा सकती है. पढ़ें पूरी खबर...

harish-salve
हरीश साल्वे

अहमदाबाद : सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि अदालतों को 'शासन प्रणाली की संस्थाओं' के तौर पर सार्वजनिक जांच पड़ताल तथा आलोचनाओं को स्वीकार करना चाहिए.

अहमदाबाद में आयोजित व्याख्यान को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए शनिवार को साल्वे ने कहा कि न्यायाधीशों, न्यायिक मर्यादाओं और कार्यप्रणाली के तरीकों की आलोचना से अदालतें नाराज नहीं होतीं और जिस लहजे में इस तरह की आलोचनाएं की जाती हैं, वह हल्के फुल्के अंदाज में होनी चाहिए.

उन्होंने कहा, 'आज हमने यह स्वीकार कर लिया है कि न्यायाधीश, या कहें अदालतें और खासकर संवैधानिक अदालतें शासन प्रणाली की संस्थाएं बन गई हैं और इस नाते उन्हें सार्वजनिक जांच पड़ताल तथा सार्वजनिक आलोचनाओं को स्वीकार करना चाहिए.'

साल्वे ने कहा, 'हमने यह हमेशा माना है कि अदालतों के फैसलों की आलोचना की जा सकती है, ऐसी भाषा में की गई आलोचना भी जो विनम्र न हो. अत: फैसलों की निंदा हो सकती है. क्या हम निर्णय निर्धारण की प्रक्रिया की निंदा कर सकते हैं? क्यों नहीं?'

वरिष्ठ अधिवक्ता 16वें पीडी देसाई स्मृति व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे, जिसका विषय था- न्यायपालिका की आलोचना, मानहानि का न्यायाधिकार और सोशल मीडिया के दौर में इसका उपयोग.

पढ़ें- वकीलों को सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ प्रदर्शन करना चाहिए : प्रशांत भूषण

व्याख्यान में उन्होंने कहा, 'सूर्य की तेज रोशनी के उजाले तले शासन होना चाहिए. मेरा मानना है कि ऐसा वक्त आएगा, जब सुप्रीम कोर्ट सरकारी गोपनीयता कानून के बड़ी संख्या में प्रावधानों पर गंभीरता से विचार करेगा और देखेगा कि वे लोकतंत्र के अनुरूप हैं या नहीं.'

अहमदाबाद : सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि अदालतों को 'शासन प्रणाली की संस्थाओं' के तौर पर सार्वजनिक जांच पड़ताल तथा आलोचनाओं को स्वीकार करना चाहिए.

अहमदाबाद में आयोजित व्याख्यान को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए शनिवार को साल्वे ने कहा कि न्यायाधीशों, न्यायिक मर्यादाओं और कार्यप्रणाली के तरीकों की आलोचना से अदालतें नाराज नहीं होतीं और जिस लहजे में इस तरह की आलोचनाएं की जाती हैं, वह हल्के फुल्के अंदाज में होनी चाहिए.

उन्होंने कहा, 'आज हमने यह स्वीकार कर लिया है कि न्यायाधीश, या कहें अदालतें और खासकर संवैधानिक अदालतें शासन प्रणाली की संस्थाएं बन गई हैं और इस नाते उन्हें सार्वजनिक जांच पड़ताल तथा सार्वजनिक आलोचनाओं को स्वीकार करना चाहिए.'

साल्वे ने कहा, 'हमने यह हमेशा माना है कि अदालतों के फैसलों की आलोचना की जा सकती है, ऐसी भाषा में की गई आलोचना भी जो विनम्र न हो. अत: फैसलों की निंदा हो सकती है. क्या हम निर्णय निर्धारण की प्रक्रिया की निंदा कर सकते हैं? क्यों नहीं?'

वरिष्ठ अधिवक्ता 16वें पीडी देसाई स्मृति व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे, जिसका विषय था- न्यायपालिका की आलोचना, मानहानि का न्यायाधिकार और सोशल मीडिया के दौर में इसका उपयोग.

पढ़ें- वकीलों को सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ प्रदर्शन करना चाहिए : प्रशांत भूषण

व्याख्यान में उन्होंने कहा, 'सूर्य की तेज रोशनी के उजाले तले शासन होना चाहिए. मेरा मानना है कि ऐसा वक्त आएगा, जब सुप्रीम कोर्ट सरकारी गोपनीयता कानून के बड़ी संख्या में प्रावधानों पर गंभीरता से विचार करेगा और देखेगा कि वे लोकतंत्र के अनुरूप हैं या नहीं.'

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.