लंदन: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लेने के लिए अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को निरस्त किये जाने को 'संवैधानिक रूप से उपयुक्त' करार दिया है. उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान ने सीमापार से आतंकवाद फैलाने के लिए अनुच्छेद 370 का इस्तेमाल किया.
मंगलवार को ब्रिटेन के 'फाइनेंशियल टाईम्स' में आलेख लिखकर मंत्री ने पिछले महीने इस प्रावधान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र की अगुवाई वाली सरकार की आलोचना का जवाब देने का प्रयास किया और कहा कि इस प्रावधान के चलते जम्मू कश्मीर में राष्ट्रीय कानून लागू नहीं हो पाते थे, फलस्वरूप वहां के लोग सामाजिक-आर्थिक अन्याय का शिकार हो रहे थे.
उन्होंने लिखा है, 'पिछले प्रावधान ने स्थानीय मिल्कियत के लिए एक ऐसी आरामदेह व्यवस्था पैदा की जो राज्य के संभ्रात राजनीतिक वर्ग के पक्ष में था. लेकिन इससे जनसमूह आर्थिक अवसरों एवं सामाजिक लाभों से वंचित हो गये. फलस्वरूप कुछ वर्गों में पनपी अलगाववादी भावनाओं का पड़ोसी देश पाकिस्तान ने सीमापार आतंकवाद फैलाने के लिए शोषण किया.'
उन्होंने आलेख में कहा है, 'जम्मू कश्मीर के दर्जे में संसद द्वारा बदलाव संवैधानिक रूप से उपयुक्त है तथा उसे सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों के अलावा अन्य दलों एवं सांसदों का समर्थन मिला एवं वह दो तिहाई बहुमत से पारित हुआ. यह इस आमूलचूल बदलाव की जरूरत पर व्यापक सहमति को दर्शाता है.'
इस आलेख में मोदी सरकार के इस कदम के संदर्भ की व्याख्या की गयी है और दावा किया गया है कि वैसे तो केंद्र सरकार देश के बाकी हिस्सों की तुलना में जम्मू कश्मीर के औसत बाशिंदे पर दस गुणा अधिक खर्च करती थी लेकिन वह निवेश जमीनी स्तर पर नजर नहीं आता था.
पढ़ें-रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारतीय तटरक्षक बल में 'वराह' को किया शामिल
आलेख के मुताबिक सार्वजनिक व्यय में अनियमितताओं के बारे में चिंता के बीच बुनियादी ढांचा परियोजनाएं धीमी हो गयीं. बैंकिंग और भर्ती में भ्रष्टाचार की हाल की खबरों ने इस स्थिति को रेखांकित किया. फलस्वरूप वहां के लोगों को अन्य राज्यों में शिक्षा, चिकित्सीय पहुंच और रोजगार के लिए जाना पड़ता था.
जयशंकर ने लिखा है, 'राष्ट्रीय कानूनों के (राज्य में) लागू होने की असमर्थता से सामाजिक-आर्थिक न्याय से लोग वंचित हो गये. राज्य के कानूनों ने महिलाओं को संपत्ति में समानता का अधिकार नहीं दिया और बाल संरक्षण कार्यक्रमों को रोका. उन्होंने ठोस कार्रवाई को अस्वीकार कर दिया जो भारत के बाकी हिस्सों में की जाती थी.'
उन्होंने कहा है, 'घरेलू हिंसा कानून, स्थानीय निकायों में महिला प्रतिनिधित्व और शिक्षा के अधिकार सभी का दूर ही रखा गया. शरणार्थियों से भेदभाव खुलेआम है. '
उन्होंने लिखा है, 'राष्ट्र के बाकी हिस्से के साथ मिल जाने की प्रक्रिया को अस्थायी सहूलियत प्रदान करने पर केंद्रित प्रावधान का सालों तक दुरूपयोग किया गया. और इस प्रकार, उससे अलगाववादी नेताओं और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी संगठनों के बीच संबंधों को प्रोत्साहन मिला. राज्य से हजारों अल्पसंख्यकों को भगा दिया गया, और ध्रुवीकृत माहौल का राजनीतिक रूप से दोहन किया गया.'
पढ़ें-भारत चाहता है कि वार्ता से पहले पाक 'कुछ ठोस कदम' उठाए : मोदी ने ट्रम्प से कहा
विदेश मंत्री ने इस क्षेत्र में पिछले दशकों में आतंकवादी हमलों में हजारों जानें जाने का उल्लेख किया और कहा कि सरकार का यह कदम पुरानी नीति को जारी रखने या फिर इस क्षेत्र के कानूनी स्थिति को बदलकर प्रगति एवं आधुनिकता की ओर बढ़ने के बीच चुनाव कठिन था. सरकार ने साहसिक और बेहतर विकल्प का चुनाव किया जिसकी आलोचना नहीं प्रशंसा की जानी चाहिए.
उन्होंने कहा कि वैसे भी इस कानूनी परिवर्तनों से भारत की बाहरी सीमाओं या नियंत्रण रेखा में कोई परिवर्तन नहीं आया है. ये बदलाव पूरी तरह घरेलू हैं. नियंत्रण रेखा तय करती है कि यह क्षेत्र भारत का है तो यह क्षेत्र पाकिस्तान के कब्जे में है.