जयपुर : मेडिकल साइंस की तरक्की भारत में पहली बार दो मरीजों के लिए वरदान साबित हुई है. देश में पहली बार जयपुर के डॉक्टर्स ने हॉर्ट-सीआरटी तकनीक से पेसमेकर के तार को दिल की तार से जोड़ कर एक हार्ट फैलियर मरीज की जान बचाई है. वहीं ऐसे ही एक अन्य दुर्लभ केस में बिना चीरफाड़ के कैथेटर के जरिए दो वाल्व एक साथ बदलने में सफलता प्राप्त की.
दरअसल भारत में इन दो हार्ट केसों का गवाह बना जयपुर के जवाहर सर्किल स्थित एक निजी हॉस्पिटल. अमेरिका के जाने माने कार्डियोलोजिस्ट और हॉस्पिटल के चेयरमैन डॉ समीन के. शर्मा ने बताया कि, देश मे यह दोनों केस पहली बार हुए हैं. वहीं विदेशों में भी ऐसे केस दुर्लभ ही हैं.
उन्होंने बताया कि दिल को विद्युत प्रवाह देने के लिए पेसमेकर के तीन तारों से भी लाभ नहीं मिलने पर चौथे तार को सीधे हार्ट के तार से जोड़ना अपने आप मे अजूबा है. इससे दिल के सभी हिस्सों को बराबर करंट पहुंचने से दिल की धड़कन सामान्य करने में मदद मिलती है.
इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी डायरेक्टर डॉ जितेन्द्र सिंह मक्कड़ और डॉ कुश कुमार भगत ने यह केस सफलता पूर्वक करके हार्ट फेलियर मरीज की जान बचाई है. इसी तरह डॉ रविन्द्र सिंह राव ने भी बिना ओपन सर्जरी के देश मे पहली बार किसी मरीज के हार्ट के दो वॉल्व एक साथ बदल कर कामयाबी हासिल की है. इसमें ट्रांसकेथेटर वॉल्व रिप्लेसमेंट तकनीक से ह्दय के एओर्टिक और माइट्रल वॉल्व बदले गए हैं.
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3 तारों से नहीं बना काम तो दिल से जोड़ा चौथा तार
डॉ जितेंद्र सिंह मक्कड़ ने बताया कि भरतपुर की 67 वर्षीय शकुंतला देवी को लंबे समय से हार्ट प्रॉब्लम चल रही थी और बढ़ते-बढ़ते हार्ड फेलियर की स्थिति इतनी हो गई कि ह्दय की कार्य क्षमता 15 से 20 फिसदी ही रह गई. पेसमेकर के 3 तारों से भी काम नहीं बना तो ऐसे में उनकी जान बचाने के लिए हॉट-सीआरटी तकनीक अपनाकर चौथे तार को ह्दय से विद्युत प्रवाह करने वाली मुख्य तार जिसे हिज बंडल कहते हैं, उससे जोड़ा गया. ऐसा भारत में पहली बार हुआ है.
बिना चिरफाड़ बदल दिए दो वॉल्व
ट्रांसकेथेटर वॉल्व रिप्लेसमेंट तकनीक से बिना किसी चीरफाड़ के एक साथ दो वॉल्व बदलने का मामला विदेश में अनूठा है. डॉ रविंद्र सिंह राव ने बताया कि दिल की मरीज नागपुर की 78 वर्षीय सरिता को सांस लेने और सीने में दर्द की शिकायत थी. उनके दो वॉल्व काम नहीं कर रहे थे.
वर्ष 2012 में उनके ओपन हार्ट सर्जरी में वॉल्व बदला गया था, लेकिन अब दो वाल्व खराब हो चुके थे. मरीज के अधिक उम्र में पहले की गई ऑपरेशन से दोबारा ओपन सर्जरी करना खतरनाक साबित हो सकता था. इसीलिए ट्रांसकेथेटर वॉल्व रिप्लेसमेंट तकनीक का इस्तेमाल कर उनका इलाज किया गया. देश में पहला केस है, जिसमें बिना चिरफाड़ के एक साथ एओर्टिक और माइट्रल दोनों वॉल्व कैथेटर के जरिए बदले गए हैं. 1.3 घंटे के इस प्रोसेस के बाद मरीज 1 दिन में आईसीयू में रही और रिकवर फास्ट हुआ.