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जानें : इस साल की हाड़ कपकपाती ठंड कहीं हिमयुग का संकेत तो नहीं!

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Published : Jan 17, 2020, 11:22 AM IST

पृथ्वी अधिक गर्म होने के बाद जब अपने आप को ठंडा करती है तो उसे हिमयुग कहते हैं. इस दौरान पृथ्वी का तापमान बहुत कम हो जाता है, यही नहीं चारों तरफ बस बर्फ ही बर्फ नजर आती है. पृथ्वी का सब कुछ जम जाता है. जिसके बाद एक बार फिर धीरे-धीरे समुंद्र के माध्यम से पृथ्वी अपने आपको गर्म करती है. हालांकि, पृथ्वी पर यह चक्र लगातार चलता रहता है. जानें विस्तार से...

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बर्फबारी कहीं हिमयुग का संकेत तो नहीं

देहरादून : इस साल उत्तराखंड में हुई बर्फबारी ने पिछले कई सालों के रिकॉर्ड तोड़ दिए है. उत्तराखंड में हुई बर्फबारी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश के पहाड़ बर्फ की सफेद चादर के ढके हुए हैं. ऐसे में अटकलें लगाई जा रही है कि इस सीजन में हो रही बर्फबारी कहीं हिमयुग का संकेत तो नहीं है.

दरअसल वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान देहरादून वैज्ञानिकों ने जहां रिकॉर्ड तोड़ बर्फबारी पर खुशी जाहिर की है तो वहीं कुछ मामलों पर उनकी चिंता भी बढ़ गई है. क्या वास्तव में छोटे हिमयुग की शुरूआत तो नहीं है? आखिर क्या है हिमयुग, कैसे होती है हिमयुग की शुरुआत? इस पर ईटीवी भारत की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट.

हिमालयी क्षेत्रों में इस सीजन जो भारी बर्फबारी हो रही है उसने वैज्ञानिकों को भी चिंता में डाल दिया है. क्योंकि इस साल भारी बर्फबारी से न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि कई हिमालयी राज्य बर्फ की सफेद चादर से ढक गए हैं, बल्कि हिमालय क्षेत्र पूरी तरह बर्फ में समा गया है. आलम यह है कि दिनों दिन हो रही भारी बर्फबारी ने पूरे हिमालय का नक्शा ही बदल दिया. जी हां...! हिमालय क्षेत्रो में बर्फबारी की तस्वीर देखकर तो यही लगता है कि वास्तव में लिटिल हिमयुग की शुरुआत हो गयी है.

इसे भी पढ़ें- देखिए हिमाचल की वादियों में बर्फबारी का अदभुत नजारा

क्या है हिमयुग?
पृथ्वी अधिक गर्म होने के बाद जब अपने आप को ठंडा करती है तो उसे हिमयुग कहते है. इस दौरान पृथ्वी का तापमान बहुत कम हो जाता है, यही नहीं चारों तरफ बस बर्फ ही बर्फ नजर आती है. पृथ्वी पर सब कुछ जम जाता है. जिसके बाद एक बार फिर धीरे-धीरे समुंद्र के माध्यम से पृथ्वी अपने आपको गर्म करती है. हालांकि, पृथ्वी पर यह चक्र लगातार चलता रहता है.

भारी बर्फबारी से ग्लेशियर ग्रो करता है
पिछले साल 2018-19 में भी बर्फबारी तो अच्छी हुई थी, लेकिन काफी देर से हुई थी. हालांकि, इस सीजन में रिकॉर्ड तोड़ बर्फबारी हो रही है, जो नवंबर के पहले महीने में ही शुरू हो गई थी. हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी होने से एक सिस्टम बनता है, क्योंकि अच्छी बर्फबारी होने से न सिर्फ ग्लेशियर ग्रो करते हैं बल्कि ग्लेशियरों के मेल्ट होने की संभावना भी कम हो जाती है. इसके साथ ही हिमालयों पर बर्फबारी होने से ग्लेशियर पर बर्फ की परत चढ़ जाती है, जो पहले पिघलती है. हालांकि, बर्फबारी पहले से ही होती रही हैं. लेकिन पहले कम बर्फबारी हो रही थी और लेट भी शुरू हो रही थी. जिस वजह से ग्लेशियर रिचार्ज नहीं हो पा रहे थे. इससे गर्मियों में ग्लेशियर सीधे मेल्ट होने लगते थे. लेकिन इस सीजन में हो रही बर्फबारी की रिपोर्ट बेहद अच्छी है. हर साल इसी तरह बर्फबारी होती रही तो ग्लेशियर और रिचार्ज होंगे, जो भविष्य के लिए बहुत अच्छा साबित होगा.

उत्तराखंड में हुई बर्फबारी, हिमयुग की शुरुआत तो नहीं...

इसे भी पढ़ें- 'बर्फ का शेर' देख सैलानी हुए मंत्रमुग्ध, सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल

चक्र के अनुसार होती है कम और अधिक बर्फबारी
अब पहले 2004, 2009 और 2014 में भी इसी तरह की बर्फबारी देखने को मिली थी. हिमालयी क्षेत्रों में भारी बर्फबारी होने का एक छोटा चक्र होता है. क्योंकि, बर्फबारी चार साल और 11 साल की छोटे-छोटे चक्रों में होती है. इसी चक्र के अनुसार कम और अधिक बर्फबारी होती है. क्योंकि, क्लाइमेट का एक बहुत बड़ा सिस्टम है और यह पृथ्वी के चक्र से रिलेटेड है.

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उत्तराखंड में हुई बर्फबारी

भारी बर्फबारी से हिमालय के माइक्रो क्लाइमेट पर पड़ेगा असर
इस सीजन में जो भारी बर्फबारी हुई है उसका हिमालय के माइक्रो क्लाइमेट पर असर पड़ेगा. इससे हिमालय कुछ अधिक दिनों तक ठंडा रहेगा, क्योंकि गर्मियों शुरू होते ही तापमान बढ़ने लगता है. लेकिन इस सीजन में हो रही भारी बर्फबारी के चलते हिमालय के तापमान पर कम असर पड़ेगा. इसी के साथ ये बर्फबारी पिछले कुछ सालों में कम हुई बर्फबारी की भी भरपाई करेगा. यही नहीं भरी बर्फबारी से हिमालय क्षेत्रों का पॉल्युशन भी बर्फबारी से सिल्ट हो जाता है. इसके साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों के स्प्रिंग्स भी रिचार्ज होते हैं.

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उत्तराखंड में हुई बर्फबारी

ऐसे हो सकती है लिटिल हिमयुग की शुरुआत
इस बारे में वाडिया के वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल ने बताया कि हिमयुग आ सकता है. क्योंकि, इससे पहले भी चार बार हिमयुग आ चुका हैं. हिमयुग आने की एक प्रक्रिया है. इस सीजन में जिस तरह से भारी बर्फबारी हो रही है अगर उसी तरह लगातार 10-12 सालों तक बर्फबारी होती रही है तो हिमालयी ग्लेशियरों का मास बढ़ना शुरू हो जाएगा. ऐसे में यह भी कहा सकता हैं कि लिटिल हिमयुग की शुरुआत हो गई है.

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उत्तराखंड में हुई बर्फबारी

इसे भी पढ़ें- उत्तराखंड : चकराता की हसीन वादियों का लुत्फ उठाते सैलानी

वैज्ञानिक डोभाल की मानें तो हिमयुग अचानक से नहीं आ जाता है, बल्कि धीरे-धीरे हिमयुग की शुरुआत होती है. यदि इस साल की तरह अगले 10-12 साल भी ऐसी बर्फबारी होती रही और गर्मियों में भी पांच हजार मीटर से ऊपर की पहाड़ियों पर बर्फबारी हुई तो इसे छोटे से हिमयुग की शुरुआत माना जाएगा. हालांकि, जब हिमालय क्षेत्रों का तापमान सही और क्रम से गिरेगा, तभी धीरे-धीरे निचले क्षेत्रों के तापमान में भी गिरावट आएगी.

देहरादून : इस साल उत्तराखंड में हुई बर्फबारी ने पिछले कई सालों के रिकॉर्ड तोड़ दिए है. उत्तराखंड में हुई बर्फबारी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश के पहाड़ बर्फ की सफेद चादर के ढके हुए हैं. ऐसे में अटकलें लगाई जा रही है कि इस सीजन में हो रही बर्फबारी कहीं हिमयुग का संकेत तो नहीं है.

दरअसल वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान देहरादून वैज्ञानिकों ने जहां रिकॉर्ड तोड़ बर्फबारी पर खुशी जाहिर की है तो वहीं कुछ मामलों पर उनकी चिंता भी बढ़ गई है. क्या वास्तव में छोटे हिमयुग की शुरूआत तो नहीं है? आखिर क्या है हिमयुग, कैसे होती है हिमयुग की शुरुआत? इस पर ईटीवी भारत की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट.

हिमालयी क्षेत्रों में इस सीजन जो भारी बर्फबारी हो रही है उसने वैज्ञानिकों को भी चिंता में डाल दिया है. क्योंकि इस साल भारी बर्फबारी से न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि कई हिमालयी राज्य बर्फ की सफेद चादर से ढक गए हैं, बल्कि हिमालय क्षेत्र पूरी तरह बर्फ में समा गया है. आलम यह है कि दिनों दिन हो रही भारी बर्फबारी ने पूरे हिमालय का नक्शा ही बदल दिया. जी हां...! हिमालय क्षेत्रो में बर्फबारी की तस्वीर देखकर तो यही लगता है कि वास्तव में लिटिल हिमयुग की शुरुआत हो गयी है.

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क्या है हिमयुग?
पृथ्वी अधिक गर्म होने के बाद जब अपने आप को ठंडा करती है तो उसे हिमयुग कहते है. इस दौरान पृथ्वी का तापमान बहुत कम हो जाता है, यही नहीं चारों तरफ बस बर्फ ही बर्फ नजर आती है. पृथ्वी पर सब कुछ जम जाता है. जिसके बाद एक बार फिर धीरे-धीरे समुंद्र के माध्यम से पृथ्वी अपने आपको गर्म करती है. हालांकि, पृथ्वी पर यह चक्र लगातार चलता रहता है.

भारी बर्फबारी से ग्लेशियर ग्रो करता है
पिछले साल 2018-19 में भी बर्फबारी तो अच्छी हुई थी, लेकिन काफी देर से हुई थी. हालांकि, इस सीजन में रिकॉर्ड तोड़ बर्फबारी हो रही है, जो नवंबर के पहले महीने में ही शुरू हो गई थी. हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी होने से एक सिस्टम बनता है, क्योंकि अच्छी बर्फबारी होने से न सिर्फ ग्लेशियर ग्रो करते हैं बल्कि ग्लेशियरों के मेल्ट होने की संभावना भी कम हो जाती है. इसके साथ ही हिमालयों पर बर्फबारी होने से ग्लेशियर पर बर्फ की परत चढ़ जाती है, जो पहले पिघलती है. हालांकि, बर्फबारी पहले से ही होती रही हैं. लेकिन पहले कम बर्फबारी हो रही थी और लेट भी शुरू हो रही थी. जिस वजह से ग्लेशियर रिचार्ज नहीं हो पा रहे थे. इससे गर्मियों में ग्लेशियर सीधे मेल्ट होने लगते थे. लेकिन इस सीजन में हो रही बर्फबारी की रिपोर्ट बेहद अच्छी है. हर साल इसी तरह बर्फबारी होती रही तो ग्लेशियर और रिचार्ज होंगे, जो भविष्य के लिए बहुत अच्छा साबित होगा.

उत्तराखंड में हुई बर्फबारी, हिमयुग की शुरुआत तो नहीं...

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चक्र के अनुसार होती है कम और अधिक बर्फबारी
अब पहले 2004, 2009 और 2014 में भी इसी तरह की बर्फबारी देखने को मिली थी. हिमालयी क्षेत्रों में भारी बर्फबारी होने का एक छोटा चक्र होता है. क्योंकि, बर्फबारी चार साल और 11 साल की छोटे-छोटे चक्रों में होती है. इसी चक्र के अनुसार कम और अधिक बर्फबारी होती है. क्योंकि, क्लाइमेट का एक बहुत बड़ा सिस्टम है और यह पृथ्वी के चक्र से रिलेटेड है.

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उत्तराखंड में हुई बर्फबारी

भारी बर्फबारी से हिमालय के माइक्रो क्लाइमेट पर पड़ेगा असर
इस सीजन में जो भारी बर्फबारी हुई है उसका हिमालय के माइक्रो क्लाइमेट पर असर पड़ेगा. इससे हिमालय कुछ अधिक दिनों तक ठंडा रहेगा, क्योंकि गर्मियों शुरू होते ही तापमान बढ़ने लगता है. लेकिन इस सीजन में हो रही भारी बर्फबारी के चलते हिमालय के तापमान पर कम असर पड़ेगा. इसी के साथ ये बर्फबारी पिछले कुछ सालों में कम हुई बर्फबारी की भी भरपाई करेगा. यही नहीं भरी बर्फबारी से हिमालय क्षेत्रों का पॉल्युशन भी बर्फबारी से सिल्ट हो जाता है. इसके साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों के स्प्रिंग्स भी रिचार्ज होते हैं.

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उत्तराखंड में हुई बर्फबारी

ऐसे हो सकती है लिटिल हिमयुग की शुरुआत
इस बारे में वाडिया के वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल ने बताया कि हिमयुग आ सकता है. क्योंकि, इससे पहले भी चार बार हिमयुग आ चुका हैं. हिमयुग आने की एक प्रक्रिया है. इस सीजन में जिस तरह से भारी बर्फबारी हो रही है अगर उसी तरह लगातार 10-12 सालों तक बर्फबारी होती रही है तो हिमालयी ग्लेशियरों का मास बढ़ना शुरू हो जाएगा. ऐसे में यह भी कहा सकता हैं कि लिटिल हिमयुग की शुरुआत हो गई है.

is-this-year-snowfall-signal-of-ice-age-return-special-report
उत्तराखंड में हुई बर्फबारी

इसे भी पढ़ें- उत्तराखंड : चकराता की हसीन वादियों का लुत्फ उठाते सैलानी

वैज्ञानिक डोभाल की मानें तो हिमयुग अचानक से नहीं आ जाता है, बल्कि धीरे-धीरे हिमयुग की शुरुआत होती है. यदि इस साल की तरह अगले 10-12 साल भी ऐसी बर्फबारी होती रही और गर्मियों में भी पांच हजार मीटर से ऊपर की पहाड़ियों पर बर्फबारी हुई तो इसे छोटे से हिमयुग की शुरुआत माना जाएगा. हालांकि, जब हिमालय क्षेत्रों का तापमान सही और क्रम से गिरेगा, तभी धीरे-धीरे निचले क्षेत्रों के तापमान में भी गिरावट आएगी.

Intro:नोट - फीड ftp से भेजी गई है.....
uk_deh_03_ice_age_vis_7205803

उत्तराखंड राज्य में इस सीजन हो रही बर्फ़बारी ने पिछले कई सालो के रिकॉर्ड को तोड़ दिए है, आलम यह है कि उत्तराखंड राज्य के मैदानी क्षेत्रो को छोड़ पूरा हिमालय बर्फ की चादर में ढक गया है। ऐसे में अटकले यही लगायी जा रही है कि इस सीजन हो रही भरी बर्फ़बारी कही हिमयुग का संकेत तो नहीं है। तो वही वाडिया के वैज्ञानिक भी इस सीजन हुई बर्फ़बारी से काफी खुश नज़र आ रहे है इसके साथ ही हिम युग को लेकर चिंतित भी नज़र आ रहे है, कि क्या वास्तव में लिटिल हिमयुग की शुरुवात तो नहीं हो गयी है। आखिर क्या है हिमयुग, कैसे होती है हिमयुग की शुरुवात? देखिये ईटीवी भारत की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट.........



Body:हिमालयी क्षेत्रों में इस सीजन हो रही भारी बर्फबारी ने वैज्ञानिकों को भी चिंता में डाल दिया है क्योंकि इस साल भारी बर्फबारी के चलते ना सिर्फ उत्तराखंड के कई राज्य सफेद चादर में ढक गए हैं बल्कि हिमालय क्षेत्र पूरी तरह बर्फ में समा गया है। आलम यह है कि दिनों दिन हो रही भारी बारिश ने पूरे हिमालय का नक्शा ही बदल दिया। जी हाँ हिमालय क्षेत्रो की इन बर्फ़बारी की तस्वीर देखकर तो यही लगता है वास्तव में लिटिल हिमयुग की शुरुआत हो गयी है।

क्या है हिमयुग..........

पृथ्वी अधिक गर्म होने के बाद जब अपने आप को ठंडा करती है तो उसे हिमयुग कहते है। इस दौरान पृथ्वी का तापमान बहुत कम हो जाता है, यही नहीं चारों तरफ बस बर्फ ही बर्फ नज़र आता है। और पृथ्वी का सब कुछ जैम जाता है। जिसके बाद एक बार फिर धीरे धीरे समुन्द्र के माध्यम से पृथ्वी अपने आपको गर्म करती है। हलाकि पृथ्वी पर यह चक्र लगातार चलता रहता है। 


भारी बर्फ़बारी से ग्लेशियर ग्रो करता है....... 

पिछले सीजन साल 2018-19 में भी अच्छी बर्फबारी हुई थी, लेकिन पहाड़ो में लेट बर्फबारी शुरू हुई थी। लेकिन इस सीजन पिछले कई सालो का रिकॉर्ड तोड़ बर्फबारी हो रही है, यही नहीं इस सीजन बर्फबारी बहुत पहले, नवंबर महीने से ही शुरू हो गई थी। हालांकि हिमालयी क्षेत्रो में बर्फबारी से एक सिस्टम बनता है क्योंकि अच्छी बर्फबारी होने से ना सिर्फ ग्लेशियर ग्रो करते हैं बल्कि के ग्लेशियरो के मेल्ट होने की संभावना भी कम हो जाती है। इसके साथ ही हिमालयों पर बर्फबारी होने से ग्लेशियर पर बर्फ की परत चढ़ जाती है, जो पहले पिघलती है। हालांकि बर्फबारी पहले से ही होते रहे हैं। लेकिन पहले कम बर्फबारी हो रहे थे, और थोड़ी लेट बर्फ़बारी शुरू हो रहे थे जिस वजह से ग्लेशियर रिचार्ज नहीं हो पा रहे थे, इसके साथ ही गर्मियों के सीजन में सीधे ग्लेशियर मेल्ट होने लगते थे। लेकिन इस सीजन में हो रही बर्फबारी की रिपोर्ट बेहद अच्छी है। और ऐसे ही हर साल बर्फबारी होती रही तो ग्लेशियर और रिचार्ज होगा। जो भविष्य के लिए बहुत अच्छा साबित होगा। 


चक्र के अनुसार होती है कम और अधिक बर्फ़बारी.............

इस सीजन में हो रही भारी बर्फबारी की तरह ही साल 2004, 2009 और 2014 में भी भारी बर्फ़बारी हुई थी। हिमालयी क्षेत्रो में भारी बर्फबारी होने का भी एक छोटी चक्र है, क्योंकि बर्फबारी 4 साल और 11 साल की छोटी-छोटी चक्रो में होती है। इसी चक्र के अनुसार कम और अधिक बर्फबारी होती है। क्योकि क्लाइमेट एक बहुत बड़ा सिस्टम है और यह पृथ्वी के चक्र से रिलेटेड है। 


भारी बर्फबारी से हिमालय के माइक्रो क्लाइमेट पर पड़ेगा असर.............  

इस सीजन हो रही भारी बर्फबारी से हिमालय के माइक्रो क्लाइमेट पर असर पड़ेगा। और हिमालय कुछ अधिक दिनों तक ठंडा रहेगा, क्योंकि गर्मियों का सीजन शुरू होते ही तापमान बढ़ने लगता है। लेकिन इस सीजन हो रही भारी बर्फ़बारी के चलते हिमालय के तापमान पर कम असर पड़ेगा। इसके साथ ही जो पिछले कुछ सालों से कम बर्फबारी हुई है उसको भी भरेगा। यही नहीं भरी बर्फ़बारी से हिमालय क्षेत्रो का पॉल्युशन भी बर्फबारी से सिल्ट हो जाता है। इसके साथ ही पर्वतीय क्षेत्रो के स्प्रिंग्स भी रिचार्ज होंते है। 


लगातार कुछ सालो तक ऐसे ही होती रही बर्फ़बारी, तो हो सकती है लिटिल हिमयुग की शुरुवात.........

वही वाडिया के वैज्ञानिक डॉ डीपी डोभाल ने बताया कि हिमयुग आ सकता है क्योंकि इससे पहले भी चार बार हिम युग आ चुका हैं और हिमयुग आने की  एक प्रक्रिया है। इस सीजन जिस तरह से भारी बर्फबारी हो रही है अगर उसी तरह लगातार 17 सालों तक बर्फबारी होती रही, तो हिमालयी ग्लेशियरो का मास बढ़ना शुरू हो जाएगा। ऐसे में यह भी कह सकते हैं कि लिटिल हिमयुग की शुरुआत हो गई है। साथ ही बताया कि हिमयुग अचानक से नही आ जाता है बल्कि धीरे-धीरे हिमयुग की शुरुआत होती है। लेकिन इस सीजन जिस तरह की बर्फबारी हो रही है ऐसे ही लगातार 10-12 साल तक बर्फबारी होती रही और समर सीजन में 5000 मीटर से ऊपर पहाड़ी क्षेत्रों में भी ऐसी ही बर्फबारी होती रही तो कह सकते है कि लिटिल हिम युग की शुरुआत हो गयी है। हालांकि जब हिमालय क्षेत्रों का तापमान सही रूप से गिरेगा, तभी धीरे-धीरे निचले क्षेत्रों के तापमान में भी गिरावट आएगी। 

बाइट - डॉ डी०पी० डोभाल, वैज्ञानिक, वाडिया इंस्टिट्यूट 





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