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जानें, कैसे एक भारतीय महिला बनीं पाकिस्तान की मादर-ए-वतन

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Published : Jun 30, 2020, 6:44 AM IST

आइरीन पंत का जन्म 13 फरवरी 1905 में उत्तराखंड में अल्मोड़ा के डेनियल पंत के घर में हुआ था. शुरुआती पढ़ाई अल्मोड़ा और नैनीताल में पूरी करने के बाद आइरीन लखनऊ चली गईं. वहीं लालबाग स्कूल से उन्होंने पढ़ाई पूरी की और लखनऊ के ही मशहूर आईटी (इसाबेला थोबर्न) कॉलेज से एमए अर्थशास्त्र और धार्मिक अध्ययन की डिग्री ली. एमए में अपनी क्लास में वह आत्मविश्वास से भरी अकेली लड़की थीं, जो आगे चलकर पाकिस्तान की फस्ट लेडी बनीं.

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कैसे एक भारतीय महिला बनीं पाकिस्तान की मादर-ए-वतन

अल्मोड़ा (उत्तराखंड) : ऐतिहासिक नगरी अल्मोड़ा ने देश को कई विभूतियां दी हैं, जिनमें भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत और कदमों की ताल से नृत्य को आसमान तक पहुंचाने वाले नृत्य सम्राट उदय शंकर शामिल हैं. आज हम आपको एक ऐसी हस्ती से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिनका नाम रखा गया था आइरीन पंत लेकिन वह आगे चलकर पाकिस्तान की फर्स्ट लेडी बनीं. आइरीन को उनकी सेवाओं के लिए पाकिस्तान के सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'निशान-ए-इम्तियाज' और 'मादर-ए-वतन' के खिताब से भी नवाजा गया.

ब्राह्मण परिवार ने अपनाया ईसाई धर्म
आइरीन पंत का जन्म 13 फरवरी 1905 में अल्मोड़ा के डेनियल पंत के घर में हुआ था. आइरीन पंत के दादा ने साल 1887 में ईसाई धर्म अपना लिया था. जब आइरीन पंत के दादा तारादत्त पंत ने ईसाई धर्म अपनाया था तो पूरे कुमाऊं क्षेत्र में यह बात आग की तरह फैल गई थी. लोगों में यह बात घर कर गई कि कैसे एक उच्च कुल का ब्राह्मण परिवार ईसाई बन गया. बताया जाता है कि बिरादरी में यह बात ऐसे घर कर गई कि समुदाय के लोगों ने उनके परिवार से सारे नाते तोड़ लिए.

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लियाकत अली के हर कदम में साथ देती थी आइरीन पंत.

शुरुआती पढ़ाई अल्मोड़ा और नैनीताल में पूरी करने के बाद आइरीन लखनऊ चली गईं. वहीं लालबाग स्कूल से उन्होंने पढ़ाई पूरी की और लखनऊ के ही मशहूर आईटी (इसाबेला थोबर्न) कॉलेज से एमए अर्थशास्त्र और धार्मिक अध्ययन की डिग्री ली. एमए में अपनी क्लास में वह आत्मविश्वास से भरी अकेली लड़की थीं.

आइरीन बनीं पाकिस्तान की फस्ट लेडी.

पढ़ें-'कोरोनिल' पर पहली बार बोले बालकृष्ण, आयुष विभाग से ज्यादा पतंजलि ने किए रिसर्च

अल्मोड़ा में सहेजी हुई हैं यादें
अल्मोड़ा के मैथोडिस्ट चर्च के ठीक नीचे स्थित आइरीन पंत का पुश्तैनी मकान आज भी उनकी यादों को सहेजे हुए हैं. अब इस मकान में उनके भाई नॉर्मन पंत की बहू मीरा पंत और उनका पोता राहुल पंत रहते हैं. आइरीन की यादों को साझा करते हुए आइरीन के पोते राहुल पंत कहते हैं कि उनकी यादें आज भी अल्मोड़ा में हैं. हालांकि, शादी के बाद वह एक बार भी अल्मोड़ा नहीं आ सकीं, लेकिन वह अपने भाई नॉर्मन पंत को चिठ्ठी लिखा करती थीं.

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राना लियाकत अली खान का अल्मोड़ा स्थित पुश्तैनी मकान.

आइरीन पंत का बचपन अल्मोड़ा में ही बीता, उस दौर में वह जब अल्मोड़ा में साइकिल चलाती थी, जिसे देखकर पर्वतीय क्षेत्रों के लोग हैरत में पड़ जाते थे. साथ ही आइरीन को पर्वतीय व्यंजनों का खास शौक था. शादी के बाद भले ही वह अल्मोड़ा नहीं आ पाई लेकिन वह नॉर्मन पंत को लगातार पत्र लिखती रहती थी, जिसमें अल्मोड़ा का जिक्र जरूर होता था. वह बताते हैं कि बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) नेता मुरली मनोहर जोशी का मकान भी उनके बगल में ही हुआ करता था. जब भी वह अल्मोड़ा आते थे आइरिन पंत के परिवार वालों का हालचाल जानना नहीं भूलते थे.

पढें-लद्दाख गतिरोध : एलएसी पर तैनात थे मार्शल आर्ट में प्रशिक्षित चीनी सैनिक

वहीं, मीरा पंत बताती हैं कि आइरीन बहुत की साहसी महिला थीं. जब वह लखनऊ के आईटी कॉलेज से पढ़ाई कर रही थीं, तो उस समय बिहार में बाढ़ आ गई. बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए वह नाटकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर उनके लिए फंड जुटाने का काम कर रही थीं. मीरा पंत ने बताया कि फंड जुटाने के दौरान ही उनकी मुलाकात लियाकत अली खान से हुई थी.

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ग्रुप फोटो में आइरीन पंत और लियाकत अली खान.

लियाकत अली और आइरीन की पहली मुलाकात
दरअसल, लखनऊ कॉलेज में पढ़ाई के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए धन जमा करने के दौरान आयरीन पंत को टिकट बेचने की जिम्मेदारी दी गई थी. कार्यक्रम के लिए धन जुटाने के लिए आयरीन पंत टिकट बेचने के लिए लखनऊ विधानसभा गईं, जहां उनकी मुलाकात लियाकत अली खान से हुई.

पहली बार में लियाकत टिकट खरीदने को लेकर कश्मकश में थे लेकिन कुछ देर आग्रह करने पर मान गए. आइरीन ने उनसे कम से कम दो टिकट खरीदने को कहा. लियाकत ने कहा कि अपने साथ किसी को लाने के लिए वह किसी को नहीं जानते तब आइरीन ने कहा कि अगर आपके साथ बैठने लिए कोई नहीं होगा तो वह उनके साथ बैठेंगी. बस वहीं से दोनों की मुलाकातों का दौर शुरू हो गया. यही लियाकत अली पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने.

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लियाकत अली खान.

पढ़ें-बाघ को पकड़ने के लिए सोनकोट के ग्रामीणों का वन चौकी पर प्रदर्शन, पुतला फूंका

आइरीन डेढ़ साल के लिए इंद्रप्रस्थ कॉलेज, दिल्ली में प्रोफेसर के तौर पर भी कार्यरत रहीं. इसी दौरान एक मौका ऐसा आया, जिसने उन्हें लियाकत खान के साथ फिर से संपर्क में ला दिया. दरअसल, आइरीन को यह सूचना मिली कि लियाकत अली को यूपी विधानसभा का उपाध्यक्ष चुना गया था. उनके करियर में इस प्रगति से प्रसन्न होकर आइरीन ने तुरंत उन्हें बधाई संदेश लिखा. आइरीन का संदेश पाकर लियाकत ने उन्हें जवाब भी भेजा. उन्होंने आश्चर्य जताया कि आइरीन दिल्ली में थीं, क्योंकि वह उनके गृह नगर करनाल के करीब था. उन्होंने उम्मीद जताई कि आइरीन उनके साथ दिल्ली के कनॉट प्लेस वेंगर्स रेस्तरां में चाय पिएंगी.

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आइरीन पंत और लियाकत अली खान.

दिल्ली के सबसे महंगे होटल में हुई थी शादी
लियाकत अली पहले से ही शादीशुदा थे और उनका एक बेटा भी था. उन्होंने अपनी चचेरी बहन जहांआरा बेगम से शादी की थी. लेकिन आइरीन की शख्सियत ऐसी थी कि उससे प्रभावित होकर 16 अप्रैल 1933 को लियाकत अली ने आइरीन से शादी कर ली. उनकी शादी दिल्ली के इकलौते सबसे महंगे मशहूर 'मेडेंस होटल' में हुई थी. यह होटल पहले 'मेट्रोपोलिटन होटल' हुआ करता था. वर्ष 1903 में इसे 'मेडेंस' नाम दिया गया. हालांकि, अब इसका नाम बदलकर 'ऑबराय मेडेंस' कर दिया गया है. 1994 में इस होटल को हेरिटेज होटल का दर्जा दिया गया था.

शादी के बाद बनीं गुल-ए-राना

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पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के साथ लियाकत अली खान.
शादी के बाद आयरीन ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया और उनका नया नाम गुल-ए-राना रखा गया. बेगम लियाकत अली खान ने अपनी आंखों के सामने इतिहास बनते ही नहीं देखा बल्कि वह खुद उसका हिस्सा रहीं. अगस्त, 1947 में गुल-ए-राना ने अपने पति लियाकत अली और अपने दो बेटों अशरफ और अकबर के साथ दिल्ली से कराची के लिए उड़ान भरी. लियाकत अली पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने और राना वहां की 'फर्स्ट लेडी.' उन्हें लियाकत ने मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक और महिला मंत्री के तौर पर भी जगह मिली.
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दिल्ली स्थित वेंगर्स रेस्तरां.

लियाकत अली की हत्या
वहीं, 1947 में हिंदुस्तान से अलग होने के बाद पाकिस्तान बना और लियाकत अली नए देश के पहले प्रधानमंत्री बने. वहीं राना पाकिस्तान की 'फर्स्ट लेडी' बनीं. इसके साथ ही लियाकत अली खान ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक और महिला मंत्री के तौर पर जगह दी. सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था फिर 16 अक्टूबर 1951 को रावलपिंडी के कंपनी बाग में सभा को संबोधित करने के दौरान लियाकत अली खान की हत्या कर दी गई.

तानाशाह से लोहा लिया
इस घटना के बाद लोगों ने सोचा था कि राना पाकिस्तान को छोड़कर भारत जाने का फैसला लेंगी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और अंतिम सांस तक पाकिस्तान में ही रहीं और वहां महिला अधिकारों के लिए काफी लड़ाई लड़ी. उन्होंने वहां मौजूद कट्टरपंथियों के खिलाफ भी आवाज उठाई. राना ने पाकिस्तान के तानाशाह जनरल ज़ियाउल हक़ से भी लोहा लिया. जब हक ने भुट्टो को फांसी पर चढ़ाया तो राना ने सैनिक सरकार के खिलाफ प्रचार तेज कर दिया. उन्होंने जनरल जिया के इस्लामी कानून लागू करने के फैसले का भी पुरज़ोर विरोध किया.

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ज़ियाउल हक.

तीन साल बाद उन्हें पहले हॉलैंड और फिर इटली में पाकिस्तान का राजदूत बनाया गया. 13 जून, 1990 को राना लियाकत अली ने अंतिम सांस ली. करीब 85 साल के जीवनकाल में उन्होंने 43 साल भारत और लगभग इतने ही साल पाकिस्तान में गुजारे. साल 1947 के बाद राना हालांकि तीन बार भारत आईं, लेकिन वह फिर कभी अल्मोड़ा वापस नहीं गईं लेकिन अल्मोड़ा को उन्होंने कभी नहीं भुलाया. वह हमेशा उनके जहन में जिदा रहा.

कई खिताबों से नवाजी गईं आइरीन

  • आइरीन को पाकिस्तान में मादर-ए-वतन का खिताब मिला.
  • जुल्फिकार अली भुट्टो ने उन्हें काबिना मंत्री बनाया और वह सिंध की गर्वनर भी बनीं.
  • कराची यूनिवर्सिटी की पहली महिला वाइस चांसलर भी बनी.
  • इसके अलावा वह नीदरलैंड, इटली, ट्यूनिशिया में पाकिस्तान की राजदूत रहीं.
  • उन्हें 1978 में संयुक्त राष्ट्र ने ह्यूमन राइट्स के लिए सम्मानित किया.

अल्मोड़ा (उत्तराखंड) : ऐतिहासिक नगरी अल्मोड़ा ने देश को कई विभूतियां दी हैं, जिनमें भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत और कदमों की ताल से नृत्य को आसमान तक पहुंचाने वाले नृत्य सम्राट उदय शंकर शामिल हैं. आज हम आपको एक ऐसी हस्ती से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिनका नाम रखा गया था आइरीन पंत लेकिन वह आगे चलकर पाकिस्तान की फर्स्ट लेडी बनीं. आइरीन को उनकी सेवाओं के लिए पाकिस्तान के सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'निशान-ए-इम्तियाज' और 'मादर-ए-वतन' के खिताब से भी नवाजा गया.

ब्राह्मण परिवार ने अपनाया ईसाई धर्म
आइरीन पंत का जन्म 13 फरवरी 1905 में अल्मोड़ा के डेनियल पंत के घर में हुआ था. आइरीन पंत के दादा ने साल 1887 में ईसाई धर्म अपना लिया था. जब आइरीन पंत के दादा तारादत्त पंत ने ईसाई धर्म अपनाया था तो पूरे कुमाऊं क्षेत्र में यह बात आग की तरह फैल गई थी. लोगों में यह बात घर कर गई कि कैसे एक उच्च कुल का ब्राह्मण परिवार ईसाई बन गया. बताया जाता है कि बिरादरी में यह बात ऐसे घर कर गई कि समुदाय के लोगों ने उनके परिवार से सारे नाते तोड़ लिए.

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लियाकत अली के हर कदम में साथ देती थी आइरीन पंत.

शुरुआती पढ़ाई अल्मोड़ा और नैनीताल में पूरी करने के बाद आइरीन लखनऊ चली गईं. वहीं लालबाग स्कूल से उन्होंने पढ़ाई पूरी की और लखनऊ के ही मशहूर आईटी (इसाबेला थोबर्न) कॉलेज से एमए अर्थशास्त्र और धार्मिक अध्ययन की डिग्री ली. एमए में अपनी क्लास में वह आत्मविश्वास से भरी अकेली लड़की थीं.

आइरीन बनीं पाकिस्तान की फस्ट लेडी.

पढ़ें-'कोरोनिल' पर पहली बार बोले बालकृष्ण, आयुष विभाग से ज्यादा पतंजलि ने किए रिसर्च

अल्मोड़ा में सहेजी हुई हैं यादें
अल्मोड़ा के मैथोडिस्ट चर्च के ठीक नीचे स्थित आइरीन पंत का पुश्तैनी मकान आज भी उनकी यादों को सहेजे हुए हैं. अब इस मकान में उनके भाई नॉर्मन पंत की बहू मीरा पंत और उनका पोता राहुल पंत रहते हैं. आइरीन की यादों को साझा करते हुए आइरीन के पोते राहुल पंत कहते हैं कि उनकी यादें आज भी अल्मोड़ा में हैं. हालांकि, शादी के बाद वह एक बार भी अल्मोड़ा नहीं आ सकीं, लेकिन वह अपने भाई नॉर्मन पंत को चिठ्ठी लिखा करती थीं.

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राना लियाकत अली खान का अल्मोड़ा स्थित पुश्तैनी मकान.

आइरीन पंत का बचपन अल्मोड़ा में ही बीता, उस दौर में वह जब अल्मोड़ा में साइकिल चलाती थी, जिसे देखकर पर्वतीय क्षेत्रों के लोग हैरत में पड़ जाते थे. साथ ही आइरीन को पर्वतीय व्यंजनों का खास शौक था. शादी के बाद भले ही वह अल्मोड़ा नहीं आ पाई लेकिन वह नॉर्मन पंत को लगातार पत्र लिखती रहती थी, जिसमें अल्मोड़ा का जिक्र जरूर होता था. वह बताते हैं कि बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) नेता मुरली मनोहर जोशी का मकान भी उनके बगल में ही हुआ करता था. जब भी वह अल्मोड़ा आते थे आइरिन पंत के परिवार वालों का हालचाल जानना नहीं भूलते थे.

पढें-लद्दाख गतिरोध : एलएसी पर तैनात थे मार्शल आर्ट में प्रशिक्षित चीनी सैनिक

वहीं, मीरा पंत बताती हैं कि आइरीन बहुत की साहसी महिला थीं. जब वह लखनऊ के आईटी कॉलेज से पढ़ाई कर रही थीं, तो उस समय बिहार में बाढ़ आ गई. बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए वह नाटकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर उनके लिए फंड जुटाने का काम कर रही थीं. मीरा पंत ने बताया कि फंड जुटाने के दौरान ही उनकी मुलाकात लियाकत अली खान से हुई थी.

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ग्रुप फोटो में आइरीन पंत और लियाकत अली खान.

लियाकत अली और आइरीन की पहली मुलाकात
दरअसल, लखनऊ कॉलेज में पढ़ाई के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए धन जमा करने के दौरान आयरीन पंत को टिकट बेचने की जिम्मेदारी दी गई थी. कार्यक्रम के लिए धन जुटाने के लिए आयरीन पंत टिकट बेचने के लिए लखनऊ विधानसभा गईं, जहां उनकी मुलाकात लियाकत अली खान से हुई.

पहली बार में लियाकत टिकट खरीदने को लेकर कश्मकश में थे लेकिन कुछ देर आग्रह करने पर मान गए. आइरीन ने उनसे कम से कम दो टिकट खरीदने को कहा. लियाकत ने कहा कि अपने साथ किसी को लाने के लिए वह किसी को नहीं जानते तब आइरीन ने कहा कि अगर आपके साथ बैठने लिए कोई नहीं होगा तो वह उनके साथ बैठेंगी. बस वहीं से दोनों की मुलाकातों का दौर शुरू हो गया. यही लियाकत अली पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने.

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लियाकत अली खान.

पढ़ें-बाघ को पकड़ने के लिए सोनकोट के ग्रामीणों का वन चौकी पर प्रदर्शन, पुतला फूंका

आइरीन डेढ़ साल के लिए इंद्रप्रस्थ कॉलेज, दिल्ली में प्रोफेसर के तौर पर भी कार्यरत रहीं. इसी दौरान एक मौका ऐसा आया, जिसने उन्हें लियाकत खान के साथ फिर से संपर्क में ला दिया. दरअसल, आइरीन को यह सूचना मिली कि लियाकत अली को यूपी विधानसभा का उपाध्यक्ष चुना गया था. उनके करियर में इस प्रगति से प्रसन्न होकर आइरीन ने तुरंत उन्हें बधाई संदेश लिखा. आइरीन का संदेश पाकर लियाकत ने उन्हें जवाब भी भेजा. उन्होंने आश्चर्य जताया कि आइरीन दिल्ली में थीं, क्योंकि वह उनके गृह नगर करनाल के करीब था. उन्होंने उम्मीद जताई कि आइरीन उनके साथ दिल्ली के कनॉट प्लेस वेंगर्स रेस्तरां में चाय पिएंगी.

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आइरीन पंत और लियाकत अली खान.

दिल्ली के सबसे महंगे होटल में हुई थी शादी
लियाकत अली पहले से ही शादीशुदा थे और उनका एक बेटा भी था. उन्होंने अपनी चचेरी बहन जहांआरा बेगम से शादी की थी. लेकिन आइरीन की शख्सियत ऐसी थी कि उससे प्रभावित होकर 16 अप्रैल 1933 को लियाकत अली ने आइरीन से शादी कर ली. उनकी शादी दिल्ली के इकलौते सबसे महंगे मशहूर 'मेडेंस होटल' में हुई थी. यह होटल पहले 'मेट्रोपोलिटन होटल' हुआ करता था. वर्ष 1903 में इसे 'मेडेंस' नाम दिया गया. हालांकि, अब इसका नाम बदलकर 'ऑबराय मेडेंस' कर दिया गया है. 1994 में इस होटल को हेरिटेज होटल का दर्जा दिया गया था.

शादी के बाद बनीं गुल-ए-राना

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पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के साथ लियाकत अली खान.
शादी के बाद आयरीन ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया और उनका नया नाम गुल-ए-राना रखा गया. बेगम लियाकत अली खान ने अपनी आंखों के सामने इतिहास बनते ही नहीं देखा बल्कि वह खुद उसका हिस्सा रहीं. अगस्त, 1947 में गुल-ए-राना ने अपने पति लियाकत अली और अपने दो बेटों अशरफ और अकबर के साथ दिल्ली से कराची के लिए उड़ान भरी. लियाकत अली पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने और राना वहां की 'फर्स्ट लेडी.' उन्हें लियाकत ने मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक और महिला मंत्री के तौर पर भी जगह मिली.
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दिल्ली स्थित वेंगर्स रेस्तरां.

लियाकत अली की हत्या
वहीं, 1947 में हिंदुस्तान से अलग होने के बाद पाकिस्तान बना और लियाकत अली नए देश के पहले प्रधानमंत्री बने. वहीं राना पाकिस्तान की 'फर्स्ट लेडी' बनीं. इसके साथ ही लियाकत अली खान ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक और महिला मंत्री के तौर पर जगह दी. सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था फिर 16 अक्टूबर 1951 को रावलपिंडी के कंपनी बाग में सभा को संबोधित करने के दौरान लियाकत अली खान की हत्या कर दी गई.

तानाशाह से लोहा लिया
इस घटना के बाद लोगों ने सोचा था कि राना पाकिस्तान को छोड़कर भारत जाने का फैसला लेंगी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और अंतिम सांस तक पाकिस्तान में ही रहीं और वहां महिला अधिकारों के लिए काफी लड़ाई लड़ी. उन्होंने वहां मौजूद कट्टरपंथियों के खिलाफ भी आवाज उठाई. राना ने पाकिस्तान के तानाशाह जनरल ज़ियाउल हक़ से भी लोहा लिया. जब हक ने भुट्टो को फांसी पर चढ़ाया तो राना ने सैनिक सरकार के खिलाफ प्रचार तेज कर दिया. उन्होंने जनरल जिया के इस्लामी कानून लागू करने के फैसले का भी पुरज़ोर विरोध किया.

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ज़ियाउल हक.

तीन साल बाद उन्हें पहले हॉलैंड और फिर इटली में पाकिस्तान का राजदूत बनाया गया. 13 जून, 1990 को राना लियाकत अली ने अंतिम सांस ली. करीब 85 साल के जीवनकाल में उन्होंने 43 साल भारत और लगभग इतने ही साल पाकिस्तान में गुजारे. साल 1947 के बाद राना हालांकि तीन बार भारत आईं, लेकिन वह फिर कभी अल्मोड़ा वापस नहीं गईं लेकिन अल्मोड़ा को उन्होंने कभी नहीं भुलाया. वह हमेशा उनके जहन में जिदा रहा.

कई खिताबों से नवाजी गईं आइरीन

  • आइरीन को पाकिस्तान में मादर-ए-वतन का खिताब मिला.
  • जुल्फिकार अली भुट्टो ने उन्हें काबिना मंत्री बनाया और वह सिंध की गर्वनर भी बनीं.
  • कराची यूनिवर्सिटी की पहली महिला वाइस चांसलर भी बनी.
  • इसके अलावा वह नीदरलैंड, इटली, ट्यूनिशिया में पाकिस्तान की राजदूत रहीं.
  • उन्हें 1978 में संयुक्त राष्ट्र ने ह्यूमन राइट्स के लिए सम्मानित किया.
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