हैदराबाद : संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 19 दिसंबर, 2019 को हर साल सात सितंबर को इंटरनेशनल डे ऑफ क्लीन एयर फॉर ब्लू स्काई (नीले आकाश के लिए साफ हवा अंतरराष्ट्रीय दिवस) मनाने की घोषणा की गई थी. यूएन महासभा की 74वीं बैठक में रेजोल्यूशन 74/2012 के अंतर्गत यह निर्णय लिया गया था.
वायु प्रदूषण को दूर करने के लिए जागरुकता बढ़ाने और वैश्विक कार्रवाई के लिए इस दिवस को मनाया जाता है.
वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा पर्यावरणीय जोखिम है. इसके कारण साल 2016 में दुनियाभर में अनुमानित 6.5 मिलियन लोगों की समय से पहले मृत्यु हो गई थी. हालांकि, इस खतरे व बीमारी को टाला जा सकता है.
खास कर विकासशील देशों में वायु प्रदूषण महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को प्रभावित करता है. कम आय वाली आबादी पर इसका ज्यादा प्रभाव होता है, क्योंकि वह अक्सर लकड़ी की ईंधन और मिट्टी के तेल से खाना पकाने के कारण उच्च स्तर के वायु प्रदूषण के संपर्क में रहते हैं.
वायु प्रदूषण से 5.2 वर्ष कम होती है भारतीयों की जीवन प्रत्याशा
शिकागो विश्वविद्यालय में ऊर्जा नीति संस्थान के एक आकलन के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण से औसत जीवन प्रत्याशा 5.2 वर्ष कम हो गई है और यह गंगा के मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों को सबसे अधिक प्रभावित कर रहा है. आकलन में कहा गया है कि 2016 और 2018 के बीच स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ था.
भारत दुनिया में पांचवां सबसे प्रदूषित देश
IQAir की रिपोर्ट के अनुसार, भारत साल 2019 में पांच सबसे प्रदूषित देशों में शामिल था और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में आने वाला गाजियाबाद दुनिया में सबसे प्रदूषित शहर माना गया था.
2020 तक विश्व में सबसे अधिक प्रदूषित देश
1. बांग्लादेश
2. पाकिस्तान
3. मंगोलिया
4. अफगानिस्तान
5. भारत
वायु प्रदूषण दुनियाभर में शीर्ष चिंता का विषय बना
भारत में 2018 में वायु प्रदूषण से लगभग 1.2 मिलियन लोगों की मौत हुई थी. सर्वे में शामिल 10 भारतीयों में से नौ ने कहा कि वह अपने क्षेत्र में वायु गुणवत्ता में सुधार देखना चाहते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तरी गोलार्द्ध के देशों में मार्च और अप्रैल में सख्त लॉकडाउन से वायु प्रदूषण पिछले स्तरों की तुलना में लगभग एक तिहाई गिर गया था.
कोरोना लॉकडाउन ने भारत के पांच शहरों में खतरनाक वायु प्रदूषकों को 54 प्रतिशत तक कम कर दिया था.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि जून 2020 तक दुनियाभर में कोरोना महामारी से 477,000 से अधिक मौतें हुईं, जिनमें से 14,000 भारत में हुईं. भारत में कोरोना से निबटने के लिए 25 मार्च 2020 को पूर्ण लॉकडाउन लागू किया गया था, जिससे 1.3 बिलियन लोगों का जीवन थम सा गया था.
सस्टेनेबल सिटीज एंड सोसायटी द्वारा प्रकाशित इस ताजा स्टडी में, शोधकर्ताओं ने पांच भारतीय शहरों चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में वाहनों और अन्य गैर-वाहन स्रोतों से उत्पन्न हानिकारक महीन कण पदार्थ (PM2.5) के स्तर का अध्ययन किया. यह अध्ययन लॉकडाउन की शुरुआत से 11 मई 2020 तक किया गया. टीम ने PM2.5 वितरण का विश्लेषण किया और दुनियाभर के अन्य शहरों से मिले अपने निष्कर्षों का विश्लेषण किया. उन्होंने विभिन्न शहरों में विचलन सांद्रता परिवर्तन के साथ-साथ क्षेत्रीय स्तर पर एरोसोल लोडिंग के बीच अंतर को प्रभावित करने वाले संभावित कारकों का पता लगाया.
वायु की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के उपाय
कृषि फसल के अवशेष : कृषि अवशेषों का प्रबंधन करें. फसलों को खुले में जलाने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.
रिहायशी कचरा जलाना : घरेलू कचरे को जलाने पर सख्त प्रतिबंध लागू होना चाहिए.
बिजली उत्पादन के लिए नवीकरण : बिजली उत्पादन के लिए पवन, सौर और पनबिजली के विस्तारित उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए.
औद्योगिक प्रक्रिया उत्सर्जन मानक : उद्योगों में उन्नत उत्सर्जन मानकों का उपयोग करना चाहिए. जैसे कि लोहा और इस्पात संयंत्रों, सीमेंट कारखानों, कांच उत्पादन, रासायनिक उद्योग आदि.
बेहतर सार्वजनिक परिवहन : निजी यात्री वाहनों से सार्वजनिक परिवहन में बदलाव को प्रोत्साहित करना चाहिए.
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन : गैस के उपयोग सहित स्रोत पृथक्करण और उपचार के साथ केंद्रीकृत अपशिष्ट संग्रह को प्रोत्साहित करना चाहिए.
कोयला खनन : कोयला खदान गैस की प्री-माइन रिकवरी को प्रोत्साहित करना चाहिए.
तेल और गैस का उत्पादन : पेट्रोलियम गैस की रिकवरी को प्रोत्साहित करना चाहिए. इसके अलवा गैस के रिसाव को नियंत्रण में सुधार लाना चाहिए.
हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) रेफ्रिजरेंट रिप्लेसमेंट : किगली संशोधन के साथ पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए, जिसका उद्देश्य उनके उत्पादन और खपत को कम करने के लिए वातावरण में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एयर कंडीशनिंग में इस्तेमाल होने वाले कार्बनिक यौगिकों और रेफ्रिजरेंट के रूप में) की सांद्रता को कम करना होना चाहिए.