हैदराबाद : आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 75वीं पुण्यतिथि है. उन्हें लोग नेताजी के रूप में जानते हैं. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता माने जाते रहे हैं. उन्होंने अपने विचार से दुनिया भर में हजारों लोगों को प्रभावित किया.
उनकी जयंती पर देश में लोग उस नेता को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिन्होंने कई भारतीयों के दिलों में प्रसिद्ध नारा 'तुम मुझे खून दो मै तुम्हें आजादी दूंगा' दिया था.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा, बंगाल डिवीजन में हुआ था. सुभाष 14 सदस्यों वाले परिवार के नौवें सदस्य थे. उन्होंने 1918 में प्रथम श्रेणी के साथ दर्शनशास्त्र में बीए पूरा किया.
नेताजी ने 1920 में इंग्लैंड में भारतीय सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन भारत की आजादी के संघर्ष के बारे में सुनकर 23 अप्रैल 1921 को अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया.
नेताजी 1920 और 1930 के दशक के उत्तरार्ध में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के युवा, कट्टरपंथी नेता थे. 1938 और 1939 का वह दौर था जब सुभाष कांग्रेस अध्यक्ष बनने की रेस में आगे चल रहे थे. हालांकि 1939 में महात्मा गांधी के साथ मतभेदों के कारण उन्हें कांग्रेस नेतृत्व के पद से हटा दिया गया था. 1921-1941 के दौरान उन्हें ग्यारह बार विभिन्न जेलों में कैद किया गया.
महात्मा गांधी की अहिंसावादी विचारधारा का विरोध करते हुए नेताजी का मानना था कि अहिंसा स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने और हिंसक प्रतिरोध की वकालत करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी.
जिस कारण उन्होंने भारत की आजादी के लिए समर्थन के लिए नाजी जर्मनी और जापान की यात्रा करने का फैसला किया.
जर्मनी में उन्होंने ऑस्ट्रियाई महिला एमिली शेंकल से मुलाकात की और उससे शादी की. उनकी बेटी अनीता बोस एक प्रसिद्ध जर्मन अर्थशास्त्री हैं.
बाद में, जापान की मदद से नेताजी ने आजाद हिंद फौज या भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) का गठन किया.
नेताजी ने द इंडियन स्ट्रगल ’नामक एक पुस्तक भी लिखी थी, जो 1935 में प्रकाशित हुई थी.
उन्होंने जर्मनी में आजाद हिंद रेडियो स्टेशन की भी स्थापना की.
नेताजी का मानना था कि भगवद् गीता उनके लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत थी.
नेताजी स्वामी विवेकानंद की सार्वभौमिक भाईचारे, उनके राष्ट्रवादी विचारों और समाज सेवा पर जोर देने की शिक्षाओं पर भी विश्वास करते थे.
जापानी शासित फॉर्मोसा (अब ताइवान) में अपने ओवरलोड जापानी विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद 18 अगस्त, 1945 को नेताजी की मृत्यु हो गई.
हालांकि, उनकी मृत्यु के बारे में कई विवाद और रहस्य हैं. कई अनुयायियों का यह भी मानना है कि कांग्रेस कभी भी अपने नायक के बारे में सच्चाई जानने की अनुमति नहीं देगी क्योंकि यह नेहरू परिवार की पार्टी है और जवाहरलाल नेहरू और नेताजी कड़वे प्रतिद्वंद्वी थे.
कुछ का यह भी मानना है कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्रता के बाद नेताजी को भारत लौटने से रोकने के लिए सोवियत संघ के साथ मिलकर साजिश रची थी क्योंकि उन्हें लगा कि इससे उनको खतरा हो सकता है.