पुरी (ओडिशा) : बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित मंदिर के पवित्र शहर पुरी को नीलाचल धाम के नाम से भी जाना जाता है. भगवान सुदर्शन, जिन्हें चक्रराज के रूप में जाना जाता है, भगवान विष्णु के चक्र का प्रतीक है. पुरी के भव्य मंदिर अथवा पुरुषोत्तम क्षेत्र के, जो नीली पहाड़ी पर स्थित है, शीर्ष पर नीले रंग के पहिए पर चक्रराज को विराजमान किया गया है. और यही भगवान श्री जगन्नाथ का निवास है. यह नीलाचक्र असाधारण, आकर्षक और शानदार है. हवा में लहराते ध्वज को 'पतितपावन बाना' नाम से जाना जाता है. इसे पापी व्यक्तियों का उद्धारकर्ता माना जाता है.
भगवान जगन्नाथ या 'पुरुषोत्तम' के इस 'पतितपावन बाना' की विशिष्टता रहस्यमयी भगवान की तरह रहस्य में डूबी हुई है. यह ध्वज हवा की विपरीत दिशा में लहराता है. परंपरा के अनुसार, ध्वज सफेद, लाल और पीले रंग का होता है. ध्वज का आकार त्रिकोणीय होता है. इसके केंद्र में ऊपर की ओर चंद्रमा का एक आकार है और उसके भीतर सूर्य देवता का आकार है. अनुष्ठानिक नियमों के अनुसार एक ध्वज एक दिन से ज्यादा समय तक नहीं फहराया जाता. हर शाम पुराने ध्वज को नीचे उतारा जाता है और 'नीलाचक्र' पर एक नया ध्वज फरहाया जाता है. जब तक नीलाचक्र पर कोई ध्वज नहीं होता, भगवान जगन्नाथ को भोग नहीं अर्पित किया जाता. यदि नीलाचक्र पर स्थित ध्वज उड़ जाता है तो चुनरा सेवक तुरंत श्रीमंदिर के शिखर पर चढ़ता है और एक नई पताका लगाता है.
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हर दिन शाम को चुनरा सेवक नीलाचक्र पर एक नई पताका फहराते हैं. हजारों श्रद्धालु अपनी आंखों से इस मनोरम दृश्य का दर्शन करते हैं. पुरानी पताका को उतारने और नीलाचक्र पर नया ध्वज लगाने का यह दृश्य सुंदर, अद्वितीय और शानदार होता है. नीलाचक्र के शीर्ष पर स्थित इस पवित्र ध्वजा को अपनी दोनों आंखों से देखने से सभी भक्तों, पापियों, धनवानों, पीड़ितों, साधु-संतों और सभी नेक इरादे वालों के पाप धुल जाते हैं और उन्हें श्री जगन्नाथ का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है.