नई दिल्ली : भारत के प्रमुख मुस्लिम निकाय जमात-ए-इस्लामी हिंद (JIH) ने शनिवार को फैसला सुनाया कि मुसलमानों के लिए कोरोना वायरस का टीका स्वीकार है, भले ही उनमें पोर्क जेलेटिन हो, क्योंकि इसका सेवन दवा के रूप में किया जा रहा है न कि भोजन के रूप में.
ईटीवी भारत से बात करते हुए JIH के उपाध्यक्ष मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने कहा कि चिकित्सा अधिकारियों द्वारा किसी दवा या वैक्सीन का सत्यापन किया जाता है, तो इसे केवल दवा माना जाना चाहिए और इसको लेकर किसी को फतवा नहीं देना चाहिए.
उन्होंने एक उदहारण देते हुए कहा कि खांसी के कई सीरप में एल्कोहल होता है, लेकिन लोग उसको बीमारी के इलाज के लिए लेते हैं.
ऐसा ही कई अन्य दवाओं के साथ भी होता है. इसलिए, यदि कोई दवा चिकित्सकीय रूप से सक्षम अधिकारियों द्वारा सत्यापित की जाती है, तो किसी को भी किसी अन्य अर्थ में नहीं लेना चाहिए.
इसके अलावा प्रमुख सुन्नी मौलवी और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य रशीद फिरंगी महली ने भी मुसलमानों को वैक्सीन लेने और खुद को अफवाहों से बचने का निर्देश दिया है.
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इस बीच, संयुक्त अरब अमीरात के सर्वोच्च इस्लामी प्राधिकरण, संयुक्त अरब अमीरात फतवा परिषद के अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला बिन बियाह ने कहा कि मानव शरीर की रक्षा की उच्च आवश्यकता के कारण कोरोना वायरस के टीके में पोर्क शामिल होने पर इस्लाम के प्रतिबंधों के अधीन नहीं होंगे.
उल्लेखनीय है कि मुंबई की रजा अकादमी के सुन्नी मुस्लिम विद्वानों ने कहा था कि सुअर के जेलेटिन युक्त चीनी टीका हराम है और यह मुसलमानों के लिए निषिद्ध है.
एक वीडियो में रजा अकादमी के महासचिव सईद नूरी ने भारत सरकार से उस चीनी टीका का इस्तेमाल न करने का आग्रह किया, जिसमें पोर्क जिलेटिन शामिल है.
उन्होंने कहा कि यदि पोर्क जिलेटिन का कोई विकल्प है, तो किसी को कोई समस्या नहीं होगी, लेकिन यदि उनका कोई अन्य विकल्प नहीं है और बीमारी का इलाज केवल उस पदार्थ या रसायन से किया जा सकता है, तो भी उन्हें इसे लेने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.
बता दें टीकों में पोर्क- जिलेटिन का उपयोग फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा स्टेबलाइजर के रूप में किया जाता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे भंडारण और परिवहन के दौरान सुरक्षित और प्रभावी रहें.