नई दिल्ली : भारत पूर्वोत्तर की विकास परियोजनाओं में विदेशी शक्तियों की भागीदारी हालांकि नहीं चाहता, लेकिन यह नई दिल्ली का जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे पर भरोसा है, जिसकी वजह से उस क्षेत्र की परियोजनाओं में जापान की भागीदारी हुई है. एक पूर्व भारतीय राजनयिक ने यह बात कही. आबे ने स्वास्थ्य कारणों के चलते इस्तीफा दे दिया है.
म्यांमार में भारत के राजदूत रह चुके और गेटवे हाउस विचार मंच के प्रतिष्ठित फेलो राजीव भाटिया ने ईटीवी भारत से कहा कि परंपरागत तौर पर पूर्वोत्तर में विदेशी शक्तियों को शामिल करने को लेकर भारत बहुत संवेदनशील रहा है.
हिंद-प्रशांत मामलों पर नियमित टिप्पणी करने वाले भाटिया ने कहा कि नई दिल्ली ने वास्तव में पूर्वोत्तर के विकास में जापान की भागीदारी मांगी है. यह आबे के नेतृत्व पर भारत के विश्वास का एक स्पष्ट सूचक है.
हिंद-प्रशांत क्षेत्र नई दिल्ली और टोक्यो के बीच सहयोग का एक प्रमुख क्षेत्र है और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को इसके केंद्र बिंदु के रूप में देखा जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान को भारत के एक्ट ईस्ट पॉलिसी की आधारशिला बताया है और दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विकास के लिए और अधिक ठोस शर्तों के साथ काम करने को सहमत हुए हैं. पूर्वोत्तर इस सिलसिले में एक प्रमुख कड़ी के रूप में उभरा है.
हिंद-प्रशांत क्षेत्र जापान के पूर्वी तट से लेकर अफ्रीका के पूर्वी तट तक फैला है. भारत और जापान दोनों इस बात पर सहमत हैं कि दक्षिण-पूर्व एशिया के 10 देशों के संगठन (आसियान) के क्षेत्रीय ब्लॉक को क्षेत्र की शांति और समृद्धि के लिए केंद्रीय भूमिका निभानी होगी.
वर्ष 2018 में टोक्यो में मोदी और आबे के बीच वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के बाद जारी भारत-जापान के विजन स्टेटमेंट’] के अनुसार, दोनों पक्षों ने स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए एक साथ काम करने के लिए अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता को दोहराया है. कहा गया है कि दोनों नेताओं ने इसकी भी पुष्टि की है कि आसियान की एकता और केंद्रीयता हिंद-प्रशांत अवधारणा के केंद्र में है, जो समावेशी है और सबके लिए खुला हुआ है.
पूर्वोत्तर क्षेत्र आसियान के साथ ऐतिहासिक और पारंपरिक बंधनों को साझा करता है. एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत इसे दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भारत के बढ़ते व्यवसाय के लिए छलांग मारने के तख्ता के रूप में देखा जाता है और इसके विकास के लिए नई दिल्ली ने टोक्यो को बड़े तरीके से राजी किया है.
भाटिया ने कहा कि मोदी और आबे के बीच की दोस्ती विशेष है. उन्होंने 2012 से 2020 के बीच के वर्षों को भारत-जापान संबंधों का स्वर्णिम काल बताया.
उन्होंने बताया कि भारत-जापान संबंधों के तीन पहलू थे. पहला द्विपक्षीय आर्थिक संबंध, दूसरा पूर्वोत्तर पर विशेष ध्यान और तीसरा पूर्वोत्तर में चीन में कोई प्रभाव नहीं है, जो 2014 में मोदी की टोक्यो यात्रा के दौरान बढ़कर 'विशेष सामरिक और वैश्विक भागीदारी' तक पहुंच गए.
भाटिया ने बताया कि पूर्वोत्तर पर ध्यान केंद्रित करने के दो पहलू हैं. विकास परियोजनाएं और सांस्कृतिक और शैक्षणिक परियोजनाएं. उन्होंने कहा कि जापान का ऐतिहासिक कारणों से पूर्वोत्तर से विशेष लगाव है.
जापान पिछले कुछ समय से पूर्वोत्तर में विकास के लिए काम कर रहा है लेकिन दिसंबर 2017 में इंडो-जापान एक्ट ईस्ट फोरम की शुरुआत के साथ इसमें और जोश आ गया. फोरम का लक्ष्य भारत-जापान सहयोग के लिए दिल्ली के एक्ट ईस्ट पॉलिसी के निर्देश और टोक्यो की स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत रणनीति के तहत एक मंच प्रदान करना है. यह पूर्वोत्तर के आर्थिक आधुनिकीकरण के लिए विशिष्ट परियोजनाओं की पहचान करना चाहता है, जिसमें कनेक्टिविटी, विकास से जुड़े बुनियादी ढांचे, औद्योगिक संपर्क के साथ-साथ पर्यटन, संस्कृति और खेल-संबंधी गतिविधियों के माध्यम से लोगों से लोगों के बीच संपर्क शामिल है.
पिछले साल जून में पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जितेंद्र सिंह और भारत के तत्कालीन जापानी राजदूत केंजी हिरामत्सु के नेतृत्व में एक जापानी प्रतिनिधिमंडल के बीच बैठक हुई थी. जिसके बाद जापान ने 205.784 अरब येन (करीब 13 हजार करोड़ रुपये) का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई, जिनसे पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों में चल रहीं कई परियोजनाओं के साथ-साथ नई परियोजनाएं भी शामिल थीं.
जिन महत्वपूर्ण परियोजनाओं में जापान सहयोग करेगा उनमें असम में गुवाहाटी जल आपूर्ति परियोजना और गुवाहाटी सीवेज परियोजना, असम से मेघालय तक फैली पूर्वोत्तर सड़क नेटवर्क कनेक्टिविटी सुधार परियोजना, मेघालय में पूर्वोत्तर नेटवर्क कनेक्टिविटी सुधार परियोजना, सिक्किम में जैव विविधता संरक्षण और वन प्रबंधन परियोजना शामिल हैं. त्रिपुरा में टिकाऊ वन प्रबंधन परियोजना, मिजोरम में सतत कृषि और सिंचाई के लिए तकनीकी सहयोग परियोजना और नगालैंड में वन प्रबंधन परियोजना शामिल है.
भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत कनेक्टिविटी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, इस वजह से नई दिल्ली पूर्वोत्तर में बुनियादी ढांचे के विकास पर बहुत जोर दे रहा है.
जापान की फ्री एंड ओपन इंडो-पेसिफिक स्ट्रेटेजी में भी कनेक्टिविटी है, क्योंकि इसके केंद्र में लक्ष्य हिंद–प्रशांत क्षेत्र में पूर्वी अफ्रीका से दक्षिण एशिया तक दक्षिण-पूर्व एशिया से पश्चिमी प्रशांत महासागर क्षेत्र और जापान तक वस्तुओं और सेवाओं का निर्बाध आवागमन है.
अब भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को टोक्यो की हिंद- प्रशांत रणनीति के प्रमुख हिस्से के रूप में देखा जा रहा है. जापान इंटरनेशनल को-ऑपरेशन एजेंसी (जेआईसीए) एक ओवर्सिज डेवलपमेंट असिस्टेंस (ओडीए) यानी समुद्रपारीय विकास सहायता देगी. यह करीब 1570 करोड़ रुपए का कर्ज होगा.
जिससे भारत के सबसे लंबे पुल का निर्माण होगा. यह पुल ब्रह्मपुत्र नदी पर 19.3 किलोमीटर लंबा होगा जो उत्तर तट को असम के धुबरी से और दक्षिणी तट को मेघालय के फलबारी से जोड़ेगा. पुल पूर्वोत्तर सड़क नेटवर्क कनेक्टिविटी सुधार परियोजना के तहत आता है, जिसे जापान ने सहयोग के लिए चिन्हित किया है.
भाटिया के अनुसार, दोनों देशों के बीच लोगों से लोगों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने के लिए सॉफ्ट पावर भी तैनात की जा रही है. जापानी पर्यटक प्राकृतिक आकर्षणों, बौद्ध स्थलों और द्वितीय विश्व युद्ध का स्पष्ट स्मरण दिलाने वाले अपने अनुभव के लिए भी पूर्वोत्तर की ओर आकर्षित होते हैं. हाल ही में मेघालय में चेरी ब्लॉसम फूल का उगना जापानियों ने पसंद किया.
भाटिया ने कहा कि आबे ने ही 2006-07 में जापान के प्रधानमंत्री बनने पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र का विचार व्यक्त किया था. भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक ऐसे चतुष्कोण का हिस्सा है जो क्षेत्र में चीन के बढ़ते पद चिह्न को देखते हुए हिंद- प्रशांत क्षेत्र में शांति, समृद्धि और कनेक्टिविटी के लिए काम कर रहा है.
भाटिया ने कहा कि शिंजो आबे को हमेशा वृहद स्तर पर भारत-जापान सहयोग के लिए याद किया जाएगा.
(अरुणिम भुयान)