नई दिल्ली: रोहिंग्या प्रत्यर्पण पर बांग्लादेश और म्यांमार की चौथे चरण की वार्ता का आयोजन तीन मई को नैय पई तौ में होगा. संघर्ष के मुद्दों के क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञ सुहास चकमा ने रोहिंग्या शरणार्थियों के प्रलेखन पर जोर दिया है. उन्होंने ईटीवी भारत से इस मुद्दे पर अपनी बात रखी.
राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप के निदेशक सुहास चकमा ने कहा, 'वास्तव में भारत सरकार भी रोहिंग्या शरणार्थियों को आश्रय देने के उद्देश्य से प्रलेखित कर सकती है और उन्हें उचित समय पर म्यांमार वापस भेज सकती है.'
बता दें, चकमा और उनकी टीम पूर्वोत्तर राज्यों के संघर्ष क्षेत्र में काम कर रही है.
उनका बयान इस तथ्य को महत्व देता है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कई मौकों पर कहा है कि रोहिंग्या शरणार्थी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं.
गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने पहले कहा था, 'भारत में रहने वाले रोहिंग्या समुदाय के लोग अवैध गतिविधियों में शामिल रहे हैं. हम जानते हैं कि यह रोहिंग्या गलत और अवैध गतिविधियों से जुड़े हैं.'
रिपोर्टों के अनुसार भारत में 40,000 से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी रह रहे हैं.
चकमा ने कहा, 'म्यांमार की सरकार रोहिंग्याओं को वापस लेने नहीं जा रही है. क्षेत्र की सरकार को रोहिंग्या शरणार्थियों के दस्तावेज बनाने चाहिए थे.'
दिलचस्प बात यह है कि, रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे पर भारत सरकार और म्यांमार सरकार ने एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं.
चकमा ने बताया, 'एमओयू का भी खुलासा नहीं किया गया है.'
माना जाता है कि हाल ही में अपनी तीन दिवसीय ब्रूनेई यात्रा के दौरान, बांग्लादेश की प्रमुख शेख हसीना ने ASEAN देशों से रोहिंग्या प्रत्यावर्तन की प्रक्रिया में मदद मांगी है.