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विशेष लेख : हमारी सक्रियता से ही हारेगा कोरोना

जर्मनी की चांसलर आयरन लेडी एजेंला मार्केल ने देश के नाम अपने संबोधन में साफ-साफ कहा कि कोरोना वायरस के कारण स्थिति बहुत ही गंभीर है. मार्केल ने कहा कि ऐसी स्थिति से निबटने के लिए एकजुट होकर असाधारण कार्रवाई करने की जरूरत है. एम्स के वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया कि इस वायरस की एक कमजोरी है, जब तक आप बाहर नहीं निकलेंगे, तब तक यह आपको छू नहीं सकता. इसे याद रखने की जरूरत है.

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जर्मनी की चांसलर आयरन लेडी एजेंला मार्केल
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Published : Mar 23, 2020, 10:27 PM IST

जर्मनी की चांसलर आयरन लेडी एजेंला मार्केल ने देश के नाम अपने संबोधन में साफ-साफ कहा कि कोरोना वायरस के कारण स्थिति बहुत ही गंभीर है. उन्होंने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी सबसे अधिक भयानक स्थिति का सामना कर रहा है. मार्केल ने कहा कि ऐसी स्थिति से निबटने के लिए एकजुट होकर असाधारण कार्रवाई करने की जरूरत है. 21 मार्च तक जर्मनी में 22,364 मामले आ चुके हैं. 84 लोगों की जान जा चुकी है. हालांकि, जर्मनी में इटली के मुकाबले काफी बेहतर स्थिति है. जर्मनी में मरने वालों का औसत 0.37 फीसदी है, जबकि इटली में यह दर नौ फीसदी है. विश्व स्तर पर औसतन कोरोना के कारण मृत्युदर 4.26 फीसदी है.

इटली में 21 मार्च तक 4825 लोगों की जान जा चुकी है. 53 हजार से ज्यादा लोग कोरोना से संक्रमित पाए जा चुके हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर जर्मनी ने ऐसा क्या किया, जिस पर भारत गंभीरता से विचार कर सकता है, ताकि मृत्यु दर कम की जा सके. और इटली ने ऐसा क्या किया, जिससे उनके यहां मौत की दरें खौफनाक तरीके से बढ़ गईं.

16 मार्च को जिनेवा में डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के प्रमुख टेड्रोस एडनोम घेब्येयूसस ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, 'हमारे पास सभी देशों के लिए एक सरल संदेश है - परीक्षण, परीक्षण, परीक्षण ... सभी संदिग्ध मामलों का परीक्षण करें. आंख बंद करके आप इस महामारी से नहीं लड़ सकते. '

ऐसा लगता है कि जर्मनी ने इस संदेश को गंभीरता से लिया है. जहां भी कोई संदिग्ध मिलता है, आक्रामक रूप से परीक्षण किया गया है. भारत की तरह इसने भी स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों को बंद कर दिया है, सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है और जल्द ही लॉकडाउन की घोषणा हो सकती है. 10 मार्च को यहां पर 341 मामले आए थे, लेकिन 20 मार्च को 4,528 मामलों की पुष्टि की गई. विशेषज्ञों ने इस फेज को कम्युनिटी ट्रांसमिशन बताया है. किसी को अंदाजा नहीं है, यह कब तक चलेगा.

भारत उन कुछ देशों में से शामिल है, जिसने चुनौती को समझा. गंभीरता से कई कदम उठाने की घोषणा भी कर दी. भारत ने एक फरवरी को चीन के वुहान से अपने नागरिकों को निकालने का काम शुरू कर दिया था. चार फरवरी को चीन से भारत आने पर पाबंदी लगा दी गई. चीनी नागरिकों को जारी किए गए वीजा रद कर दिए गए. प्रतिबंध धीरे-धीरे जापान, दक्षिण कोरिया, यूरोप, मलेशिया, ईरान, खाड़ी और अन्य देशों तक बढ़ा दिया गया. भारत ने अब अपने हवाई क्षेत्र को 22 से 29 मार्च तक बंद करने का फैसला किया है.

पढे़ं : ग्लोबल कोविड-19 ट्रैकर : अब तक हजारों लोग गंवा चुके हैं जान, जानें कहां-कितनी मौतें

गत नौ मार्च से भारत में मोबाइल यूज करने वाले 1.1 अरब लोग कोरोना को लेकर मैसेज सुनने लगे. हर कॉल के पहले यह जानकारी दी जाने लगी. जैसे- नियमित रूप से साबुन से हाथ धोएं. अपने चेहरे, आंखों और नाक को छूने से बचें. यह प्रचार काफी सफल रहा. देश के हर कोने में रहने वाले लोगों के बीच जागरूकता पैदा की गई. प्रचार करने का यह एक कल्पनाशील तरीका था.

तब से सामाजिक गड़बड़ी को लागू करने और छूत के प्रसार को रोकने के लिए कई उपाय किए गए हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने 18 मार्च को राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में 'संकल्प और संयम' की आवश्यकता को रेखांकित किया. उन्होंने अत्यधिक भय या शालीनता दोनों के प्रति आगाह किया. उन्होंने रविवार 22 मार्च को 'जनता कर्फ्यू' में स्वैच्छिक भागीदारी का आग्रह करके संभावित आंशिक या पूर्ण तालाबंदी के लिए देश को तैयार करने का प्रयास किया. यह एक युद्ध से पहले फुल-ड्रेस रिहर्सल के समान है. यह युद्ध जटिल है. इसमें दुश्मन अज्ञात, अदृश्य और दुर्जेय मालूम पड़ता है.

भारत संदिग्ध कोविद -19 मामलों के परीक्षण और जांच को आगे बढ़ाने के लिए भी प्रयास कर रहा है. कुल 14,514 लोगों का अब तक परीक्षण किया चुका है (20 मार्च तक). यह संख्या काफी कम है. उदाहरण के लिए दक्षिण कोरिया (जनसंख्या 5.1 करोड़) ने, जो प्रकोप को नियंत्रित करने में कामयाब रहा है, 3,16,664 परीक्षण किए. विदेशों से अतिरिक्त 10 लाख परीक्षण किट खरीदे जा रहे हैं और परीक्षण किट के उत्पादन के लिए घरेलू क्षमताओं को विकसित किया जा रहा है.

यह भारत की जिम्मेदारी की भावना और पीएम मोदी के दृष्टिकोण की बात करता है. साथ ही साथ घरेलू स्तर पर संकट से निबटने के लिए, भारत अपने संसाधनों और क्षमताओं को पड़ोसियों के साथ साझा करने के लिए तैयार रहा है. 15 टन फेसमास्क, दस्ताने और आपूर्ति पिछले महीने चीन को उपहार में दिए गए थे. नई दिल्ली को मालदीव, बांग्लादेश और भूटान से सहायता के लिए अनुरोध प्राप्त हुए हैं, जो मिल रहे हैं. पीएम मोदी ने 15 मार्च को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सार्क सम्मेलन का आयोजन किया, जहां उन्होंने कोरोनो वायरस से निबटने के लिए सार्क आपातकाल कोष की स्थापना का प्रस्ताव रखा और शुरू में एक करोड़ डॉलर देने का वचन दिया. उनके सुझाव पर सउदी अरब के क्राउन प्रिंस जल्द ही जी 20 वीडियो शिखर सम्मेलन का आयोजन करेंगे.

यह अनुमान लगाना संभव नहीं है कि महामारी पर नियंत्रण लगाने में कितना समय लगेगा. हालांकि, एक बात निश्चित है कि मानवीय नुकसान बहुत बड़ी आर्थिक क्षति भी होगी. भारत समेत पूरी दुनिया इस आर्थिक संकट की ओर बढ़ रही है. रूढ़िवादी अनुमान के अनुसार वैश्विक जीडीपी विकास दर एक फीसदी तक कम हो जाएगी. अलग-अलग क्षेत्रों में यह कितने समय तह रहता है, उस पर निर्भर करता है. यह देखते हुए कि वैश्विक जीडीपी 87 ट्रिलियन डॉलर है, कम से कम 500 बिलियन डॉलर से एक ट्रिलियन डॉलर तक के नुकसान का अंदाजा लगाया जा रहा है. इसका मतलब है कि आर्थिक मंदी बहुत दूर नहीं है. हालांकि पहली प्राथमिकता आर्थिक नुकसान की भरपाई नहीं, बल्कि लोगों की जान बचाना है. इस बीमारी का प्रसार रोकना सबसे बड़ी चुनौती है.

यह सुकून वाली बात है कि पूरा देश राजनीतिक विभेदों को भुलाकर इस प्रत्याशित संकट का एक होकर सामना करने के लिए तैयार है. इस बीमारी के तीसरे स्टेज में हैं. इस दौरान कम्युनिटी स्तर पर संक्रमण फैलने का खतरा रहता है. एम्स के वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया कि इस वायरस की एक कमजोरी है, जब तक आप बाहर नहीं निकलेंगे, तब तक यह आपको छू नहीं सकता. इसे याद रखने की जरूरत है.

(लेखक- विष्णु प्रकाश, पूर्व राजनयिक)

जर्मनी की चांसलर आयरन लेडी एजेंला मार्केल ने देश के नाम अपने संबोधन में साफ-साफ कहा कि कोरोना वायरस के कारण स्थिति बहुत ही गंभीर है. उन्होंने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी सबसे अधिक भयानक स्थिति का सामना कर रहा है. मार्केल ने कहा कि ऐसी स्थिति से निबटने के लिए एकजुट होकर असाधारण कार्रवाई करने की जरूरत है. 21 मार्च तक जर्मनी में 22,364 मामले आ चुके हैं. 84 लोगों की जान जा चुकी है. हालांकि, जर्मनी में इटली के मुकाबले काफी बेहतर स्थिति है. जर्मनी में मरने वालों का औसत 0.37 फीसदी है, जबकि इटली में यह दर नौ फीसदी है. विश्व स्तर पर औसतन कोरोना के कारण मृत्युदर 4.26 फीसदी है.

इटली में 21 मार्च तक 4825 लोगों की जान जा चुकी है. 53 हजार से ज्यादा लोग कोरोना से संक्रमित पाए जा चुके हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर जर्मनी ने ऐसा क्या किया, जिस पर भारत गंभीरता से विचार कर सकता है, ताकि मृत्यु दर कम की जा सके. और इटली ने ऐसा क्या किया, जिससे उनके यहां मौत की दरें खौफनाक तरीके से बढ़ गईं.

16 मार्च को जिनेवा में डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के प्रमुख टेड्रोस एडनोम घेब्येयूसस ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, 'हमारे पास सभी देशों के लिए एक सरल संदेश है - परीक्षण, परीक्षण, परीक्षण ... सभी संदिग्ध मामलों का परीक्षण करें. आंख बंद करके आप इस महामारी से नहीं लड़ सकते. '

ऐसा लगता है कि जर्मनी ने इस संदेश को गंभीरता से लिया है. जहां भी कोई संदिग्ध मिलता है, आक्रामक रूप से परीक्षण किया गया है. भारत की तरह इसने भी स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों को बंद कर दिया है, सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है और जल्द ही लॉकडाउन की घोषणा हो सकती है. 10 मार्च को यहां पर 341 मामले आए थे, लेकिन 20 मार्च को 4,528 मामलों की पुष्टि की गई. विशेषज्ञों ने इस फेज को कम्युनिटी ट्रांसमिशन बताया है. किसी को अंदाजा नहीं है, यह कब तक चलेगा.

भारत उन कुछ देशों में से शामिल है, जिसने चुनौती को समझा. गंभीरता से कई कदम उठाने की घोषणा भी कर दी. भारत ने एक फरवरी को चीन के वुहान से अपने नागरिकों को निकालने का काम शुरू कर दिया था. चार फरवरी को चीन से भारत आने पर पाबंदी लगा दी गई. चीनी नागरिकों को जारी किए गए वीजा रद कर दिए गए. प्रतिबंध धीरे-धीरे जापान, दक्षिण कोरिया, यूरोप, मलेशिया, ईरान, खाड़ी और अन्य देशों तक बढ़ा दिया गया. भारत ने अब अपने हवाई क्षेत्र को 22 से 29 मार्च तक बंद करने का फैसला किया है.

पढे़ं : ग्लोबल कोविड-19 ट्रैकर : अब तक हजारों लोग गंवा चुके हैं जान, जानें कहां-कितनी मौतें

गत नौ मार्च से भारत में मोबाइल यूज करने वाले 1.1 अरब लोग कोरोना को लेकर मैसेज सुनने लगे. हर कॉल के पहले यह जानकारी दी जाने लगी. जैसे- नियमित रूप से साबुन से हाथ धोएं. अपने चेहरे, आंखों और नाक को छूने से बचें. यह प्रचार काफी सफल रहा. देश के हर कोने में रहने वाले लोगों के बीच जागरूकता पैदा की गई. प्रचार करने का यह एक कल्पनाशील तरीका था.

तब से सामाजिक गड़बड़ी को लागू करने और छूत के प्रसार को रोकने के लिए कई उपाय किए गए हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने 18 मार्च को राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में 'संकल्प और संयम' की आवश्यकता को रेखांकित किया. उन्होंने अत्यधिक भय या शालीनता दोनों के प्रति आगाह किया. उन्होंने रविवार 22 मार्च को 'जनता कर्फ्यू' में स्वैच्छिक भागीदारी का आग्रह करके संभावित आंशिक या पूर्ण तालाबंदी के लिए देश को तैयार करने का प्रयास किया. यह एक युद्ध से पहले फुल-ड्रेस रिहर्सल के समान है. यह युद्ध जटिल है. इसमें दुश्मन अज्ञात, अदृश्य और दुर्जेय मालूम पड़ता है.

भारत संदिग्ध कोविद -19 मामलों के परीक्षण और जांच को आगे बढ़ाने के लिए भी प्रयास कर रहा है. कुल 14,514 लोगों का अब तक परीक्षण किया चुका है (20 मार्च तक). यह संख्या काफी कम है. उदाहरण के लिए दक्षिण कोरिया (जनसंख्या 5.1 करोड़) ने, जो प्रकोप को नियंत्रित करने में कामयाब रहा है, 3,16,664 परीक्षण किए. विदेशों से अतिरिक्त 10 लाख परीक्षण किट खरीदे जा रहे हैं और परीक्षण किट के उत्पादन के लिए घरेलू क्षमताओं को विकसित किया जा रहा है.

यह भारत की जिम्मेदारी की भावना और पीएम मोदी के दृष्टिकोण की बात करता है. साथ ही साथ घरेलू स्तर पर संकट से निबटने के लिए, भारत अपने संसाधनों और क्षमताओं को पड़ोसियों के साथ साझा करने के लिए तैयार रहा है. 15 टन फेसमास्क, दस्ताने और आपूर्ति पिछले महीने चीन को उपहार में दिए गए थे. नई दिल्ली को मालदीव, बांग्लादेश और भूटान से सहायता के लिए अनुरोध प्राप्त हुए हैं, जो मिल रहे हैं. पीएम मोदी ने 15 मार्च को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सार्क सम्मेलन का आयोजन किया, जहां उन्होंने कोरोनो वायरस से निबटने के लिए सार्क आपातकाल कोष की स्थापना का प्रस्ताव रखा और शुरू में एक करोड़ डॉलर देने का वचन दिया. उनके सुझाव पर सउदी अरब के क्राउन प्रिंस जल्द ही जी 20 वीडियो शिखर सम्मेलन का आयोजन करेंगे.

यह अनुमान लगाना संभव नहीं है कि महामारी पर नियंत्रण लगाने में कितना समय लगेगा. हालांकि, एक बात निश्चित है कि मानवीय नुकसान बहुत बड़ी आर्थिक क्षति भी होगी. भारत समेत पूरी दुनिया इस आर्थिक संकट की ओर बढ़ रही है. रूढ़िवादी अनुमान के अनुसार वैश्विक जीडीपी विकास दर एक फीसदी तक कम हो जाएगी. अलग-अलग क्षेत्रों में यह कितने समय तह रहता है, उस पर निर्भर करता है. यह देखते हुए कि वैश्विक जीडीपी 87 ट्रिलियन डॉलर है, कम से कम 500 बिलियन डॉलर से एक ट्रिलियन डॉलर तक के नुकसान का अंदाजा लगाया जा रहा है. इसका मतलब है कि आर्थिक मंदी बहुत दूर नहीं है. हालांकि पहली प्राथमिकता आर्थिक नुकसान की भरपाई नहीं, बल्कि लोगों की जान बचाना है. इस बीमारी का प्रसार रोकना सबसे बड़ी चुनौती है.

यह सुकून वाली बात है कि पूरा देश राजनीतिक विभेदों को भुलाकर इस प्रत्याशित संकट का एक होकर सामना करने के लिए तैयार है. इस बीमारी के तीसरे स्टेज में हैं. इस दौरान कम्युनिटी स्तर पर संक्रमण फैलने का खतरा रहता है. एम्स के वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया कि इस वायरस की एक कमजोरी है, जब तक आप बाहर नहीं निकलेंगे, तब तक यह आपको छू नहीं सकता. इसे याद रखने की जरूरत है.

(लेखक- विष्णु प्रकाश, पूर्व राजनयिक)

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