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खाड़ी देशों के कारण भारत की विदेश नीति में दिख रहा प्रमुख बदलाव

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Published : Dec 12, 2020, 2:16 PM IST

विदेश मंत्रालय ने खाड़ी सहयोग परिषद-भारत (गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल-इंडिया) पर दो वर्चुअल पैनल चर्चाओं का आयोजन किया. भारत ने चार साल में पहली बार खाड़ी में एक अग्र सक्रिय (प्रो एक्टिव) नीति अपनाई है, जिसे विदेश नीति में एक प्रमुख बदलाव के रूप में देखा जा रहा है.

Gulf countries
भारत की विदेश नीति

नई दिल्ली: अगले माह आयोजित होने वाले प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन के लिए विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को खाड़ी सहयोग परिषद-भारत (गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल-इंडिया) पर दो वर्चुअल पैनल चर्चाओं का आयोजन किया. एक विशेषज्ञ की राय है कि भारत ने चार साल में पहली बार खाड़ी में एक अग्र सक्रिय (प्रो एक्टिव) नीति अपनाई है, जिसे यथास्थिति वाली विदेश नीति में एक प्रमुख बदलाव के रूप में देखा जा रहा है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन प्रो. अश्विनी महापात्रा ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा, हम याद करें तो भारत और खाड़ी के बीच विक्रेता और खरीदार के रिश्ते से आगे का रिश्ता बताया गया था. खरीदने और बेचने वाले का यह रिश्ता ऊर्जा संसाधनों के लिए खाड़ी के देशों पर भारत की अधिक निर्भरता का संकेत देता है.

उन्होंने आगे कहा, भारत ने विशेष रूप से यूएई और सऊदी अरब जैसे खाड़ी के देशों के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों में विविधता लाने की शुरुआत इस तरह से की है कि सेना प्रमुख ने सऊदी अरब की यात्रा की है और अब विदेश मंत्री की ओमान यात्रा संबंधों की गहराई का संकेत देती है. खाड़ी देशों ने हमेशा से अग्र सक्रिय भूमिका के लिए भारत की ओर देखा है, क्योंकि उन्हें तत्काल ईरान से खतरा है.

विदेश राज्य मंत्री मुरलीधरन की अध्यक्षता में भारत-जीसीसी (गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल) के पहले पैनल डिस्कशन ने उन तरीकों और साधनों पर चर्चा करने के लिए एक मंच दिया, जिनका इस्तेमाल एक दूसरे देश के लोगों से लोगों के बीच के ऐतिहासिक रिश्ते और भारत और जीसीसी के बीच बहुत अच्छे राजनीतिक व आर्थिक संबंधों के योगदान से एक आत्मनिर्भर भारत के लिए पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की राह पर आगे बढ़ने के लिए किया जा सकता है.

सैन्य संरचना को बढ़ाने की जरूरत
प्रोफेसर महापात्र ने आगे कहा, जैसा कि मैंने समझा है कि ये जो हालिया संदेश है, उसके जरिए भारत ईरानी पक्ष को यह बताने की कोशिश कर रहा है. वह पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय मुद्दों का समाधान जल्दी से करे. दूसरी बात भारत की अपनी सुरक्षा की मजबूरी है, जिसकी ईरान वासियों को सराहना करनी चाहिए, यानी वह हमारे पड़ोसी चीन की बढ़ती शक्ति है और दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव बढ़ा हुआ है. इसलिए भारत को किसी भी प्रकार के आकस्मिक हालात से निपटने के लिए अपनी सैन्य संरचना को बढ़ाने की जरूरत है.

पढ़ें- भारत और उज्बेकिस्तान ने नौ समझौतों पर किए हस्ताक्षर

उन्होंने उल्लेख किया कि भारत ने पश्चिमी देशों विशेष रूप से अमेरिका की ओर झुकना शुरू कर दिया है. खाड़ी के साथ भारत के संबंध को व्यापक संदर्भ में देखा जाना चाहिए. भारत के पास संतुलित भूमिका निभाने के लिए पहले जगह थी और गुंजाइश भी थी, अब नीति निर्माताओं के लिए ऐसा करना कठिन होता जा रहा है.

पश्चिम एशिया का ध्रुवीकरण
उन्होंने कहा कि भारत पर एक तरह से एक पक्ष लेने के लिए दबाव है और इन दिनों पूरे पश्चिम एशिया का ध्रुवीकरण हो रखा है, उसमें भी ज्यादातर संप्रदाय के आधार पर है, लेकिन भारत मतभेदों को सुलझाने के मामले में खुद को मध्यस्थ या एक सूत्रधार के रूप में शामिल नहीं करना चाहता है. हम ईरान के खिलाफ इतने खुले तौर पर पक्ष नहीं ले रहे हैं, लेकिन खाड़ी देशों के साथ संबंध गहरा करने का मतलब है कि हम सऊदी और यूएई के साथ हैं, जो ईरान के कट्टर विरोधी हैं.

कतर और कई अन्य देशों के बीच तनाव
महापात्रा बताते हैं कि एक अन्य आयाम इजराइल और खाड़ी देशों के बीच सामान्य होते रिश्ते हैं. उन्होंने समझाते हुए कहा, मेरे विचार से पश्चिम एशिया में एक नया गठबंधन बनाया जा रहा है. यह किस तरह का आकार लेगा इसका अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन खाड़ी देशों और इजराइल के बीच यह निश्चित रूप से किसी तरह का आकार लेना शुरू कर चुका है. बीच में भारत इस गठबंधन को समर्थन देने की कोशिश कर रहा है. भारत ने खाड़ी क्षेत्र के सभी देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों की भी उम्मीद जताई है. खाड़ी क्षेत्र में कतर और कई अन्य देशों के बीच तनाव को कम करने के लिए कुवैत ने मध्यस्थता की है.

पढ़ें- भारत और 11 देशों के बीच 'एयर बबल' समझौता, नागरिक कर सकेंगे यात्राएं : सरकार

कुवैत के वित्त मंत्री ने एक मीडिया के सवाल के जवाब में कहा, इंट्रा-जीसीसी संकट के समाधान में प्रगति हुई है. इस बयान पर भारत आधिकारिक प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने शुक्रवार को कहा, हमने कुवैत की ओर से जारी बयान देखा है कि इस क्षेत्र में मतभेदों को हल करने की दिशा में फलदायक बातचीत हुई है. हमने इस संबंध में अन्य देशों के बयान भी देखे हैं. श्रीवास्तव ने कहा, हम इन घोषणाओं का स्वागत करते हैं. भारत का खाड़ी के सभी देशों के साथ घनिष्ठ सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंध है. हम इस क्षेत्र के सभी देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों की उम्मीद करते हैं.

सऊदी अरब, यूएई, बहरीन और मिस्र ने वर्ष 2017 के मध्य में कतर के साथ राजनयिक संबंध खत्म कर लिए थे. अमेरिका और कुवैत ने इस विवाद को समाप्त करने के लिए काम किया है. भारत-जीसीसी पैनल चर्चा का ध्यान उस भूमिका पर भी केंद्रित था, जो जीसीसी में बड़ी संख्या में और सफल भारतीय समुदाय इस दृष्टिकोण को साकार करने में निभा सकते हैं.

पैनल ने विभिन्न कदमों पर की चर्चा
दूसरे पैनल चर्चा में खाड़ी क्षेत्र में तकनीकी विकास और आर्थिक परिवर्तनों की गति को ध्यान में रखते हुए भारत के कार्यबल के कौशल के सामंजस्य के बारे में विचार-विमर्श किया गया. पैनल ने भारत सरकार की ओर से खाड़ी क्षेत्र में विशेष रूप से भारतीय श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों पर भी चर्चा की.

विदेश मंत्रालय के अनुसार, पैनल चर्चा में भारत और विदेश के लगभग 15 प्रसिद्ध पैनलिस्टों ने भाग लिया.

नई दिल्ली: अगले माह आयोजित होने वाले प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन के लिए विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को खाड़ी सहयोग परिषद-भारत (गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल-इंडिया) पर दो वर्चुअल पैनल चर्चाओं का आयोजन किया. एक विशेषज्ञ की राय है कि भारत ने चार साल में पहली बार खाड़ी में एक अग्र सक्रिय (प्रो एक्टिव) नीति अपनाई है, जिसे यथास्थिति वाली विदेश नीति में एक प्रमुख बदलाव के रूप में देखा जा रहा है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन प्रो. अश्विनी महापात्रा ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा, हम याद करें तो भारत और खाड़ी के बीच विक्रेता और खरीदार के रिश्ते से आगे का रिश्ता बताया गया था. खरीदने और बेचने वाले का यह रिश्ता ऊर्जा संसाधनों के लिए खाड़ी के देशों पर भारत की अधिक निर्भरता का संकेत देता है.

उन्होंने आगे कहा, भारत ने विशेष रूप से यूएई और सऊदी अरब जैसे खाड़ी के देशों के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों में विविधता लाने की शुरुआत इस तरह से की है कि सेना प्रमुख ने सऊदी अरब की यात्रा की है और अब विदेश मंत्री की ओमान यात्रा संबंधों की गहराई का संकेत देती है. खाड़ी देशों ने हमेशा से अग्र सक्रिय भूमिका के लिए भारत की ओर देखा है, क्योंकि उन्हें तत्काल ईरान से खतरा है.

विदेश राज्य मंत्री मुरलीधरन की अध्यक्षता में भारत-जीसीसी (गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल) के पहले पैनल डिस्कशन ने उन तरीकों और साधनों पर चर्चा करने के लिए एक मंच दिया, जिनका इस्तेमाल एक दूसरे देश के लोगों से लोगों के बीच के ऐतिहासिक रिश्ते और भारत और जीसीसी के बीच बहुत अच्छे राजनीतिक व आर्थिक संबंधों के योगदान से एक आत्मनिर्भर भारत के लिए पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की राह पर आगे बढ़ने के लिए किया जा सकता है.

सैन्य संरचना को बढ़ाने की जरूरत
प्रोफेसर महापात्र ने आगे कहा, जैसा कि मैंने समझा है कि ये जो हालिया संदेश है, उसके जरिए भारत ईरानी पक्ष को यह बताने की कोशिश कर रहा है. वह पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय मुद्दों का समाधान जल्दी से करे. दूसरी बात भारत की अपनी सुरक्षा की मजबूरी है, जिसकी ईरान वासियों को सराहना करनी चाहिए, यानी वह हमारे पड़ोसी चीन की बढ़ती शक्ति है और दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव बढ़ा हुआ है. इसलिए भारत को किसी भी प्रकार के आकस्मिक हालात से निपटने के लिए अपनी सैन्य संरचना को बढ़ाने की जरूरत है.

पढ़ें- भारत और उज्बेकिस्तान ने नौ समझौतों पर किए हस्ताक्षर

उन्होंने उल्लेख किया कि भारत ने पश्चिमी देशों विशेष रूप से अमेरिका की ओर झुकना शुरू कर दिया है. खाड़ी के साथ भारत के संबंध को व्यापक संदर्भ में देखा जाना चाहिए. भारत के पास संतुलित भूमिका निभाने के लिए पहले जगह थी और गुंजाइश भी थी, अब नीति निर्माताओं के लिए ऐसा करना कठिन होता जा रहा है.

पश्चिम एशिया का ध्रुवीकरण
उन्होंने कहा कि भारत पर एक तरह से एक पक्ष लेने के लिए दबाव है और इन दिनों पूरे पश्चिम एशिया का ध्रुवीकरण हो रखा है, उसमें भी ज्यादातर संप्रदाय के आधार पर है, लेकिन भारत मतभेदों को सुलझाने के मामले में खुद को मध्यस्थ या एक सूत्रधार के रूप में शामिल नहीं करना चाहता है. हम ईरान के खिलाफ इतने खुले तौर पर पक्ष नहीं ले रहे हैं, लेकिन खाड़ी देशों के साथ संबंध गहरा करने का मतलब है कि हम सऊदी और यूएई के साथ हैं, जो ईरान के कट्टर विरोधी हैं.

कतर और कई अन्य देशों के बीच तनाव
महापात्रा बताते हैं कि एक अन्य आयाम इजराइल और खाड़ी देशों के बीच सामान्य होते रिश्ते हैं. उन्होंने समझाते हुए कहा, मेरे विचार से पश्चिम एशिया में एक नया गठबंधन बनाया जा रहा है. यह किस तरह का आकार लेगा इसका अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन खाड़ी देशों और इजराइल के बीच यह निश्चित रूप से किसी तरह का आकार लेना शुरू कर चुका है. बीच में भारत इस गठबंधन को समर्थन देने की कोशिश कर रहा है. भारत ने खाड़ी क्षेत्र के सभी देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों की भी उम्मीद जताई है. खाड़ी क्षेत्र में कतर और कई अन्य देशों के बीच तनाव को कम करने के लिए कुवैत ने मध्यस्थता की है.

पढ़ें- भारत और 11 देशों के बीच 'एयर बबल' समझौता, नागरिक कर सकेंगे यात्राएं : सरकार

कुवैत के वित्त मंत्री ने एक मीडिया के सवाल के जवाब में कहा, इंट्रा-जीसीसी संकट के समाधान में प्रगति हुई है. इस बयान पर भारत आधिकारिक प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने शुक्रवार को कहा, हमने कुवैत की ओर से जारी बयान देखा है कि इस क्षेत्र में मतभेदों को हल करने की दिशा में फलदायक बातचीत हुई है. हमने इस संबंध में अन्य देशों के बयान भी देखे हैं. श्रीवास्तव ने कहा, हम इन घोषणाओं का स्वागत करते हैं. भारत का खाड़ी के सभी देशों के साथ घनिष्ठ सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंध है. हम इस क्षेत्र के सभी देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों की उम्मीद करते हैं.

सऊदी अरब, यूएई, बहरीन और मिस्र ने वर्ष 2017 के मध्य में कतर के साथ राजनयिक संबंध खत्म कर लिए थे. अमेरिका और कुवैत ने इस विवाद को समाप्त करने के लिए काम किया है. भारत-जीसीसी पैनल चर्चा का ध्यान उस भूमिका पर भी केंद्रित था, जो जीसीसी में बड़ी संख्या में और सफल भारतीय समुदाय इस दृष्टिकोण को साकार करने में निभा सकते हैं.

पैनल ने विभिन्न कदमों पर की चर्चा
दूसरे पैनल चर्चा में खाड़ी क्षेत्र में तकनीकी विकास और आर्थिक परिवर्तनों की गति को ध्यान में रखते हुए भारत के कार्यबल के कौशल के सामंजस्य के बारे में विचार-विमर्श किया गया. पैनल ने भारत सरकार की ओर से खाड़ी क्षेत्र में विशेष रूप से भारतीय श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों पर भी चर्चा की.

विदेश मंत्रालय के अनुसार, पैनल चर्चा में भारत और विदेश के लगभग 15 प्रसिद्ध पैनलिस्टों ने भाग लिया.

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