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भारत और फ्रांस जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में एक साथ : फ्रांसीसी मंत्री

फ्रांसी की पारिस्थितिक और समावेशी राज्य मंत्री ब्रुइन पॉयरसन ने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) शुरू करने की भारतीय पहल को एक 'राजनीतिक परियोजना' करार दिया है. पॉयरसन ने गुरुवार को नई दिल्ली में कहा कि जलवायु परिवर्तन शमन पर 2015 के पेरिस समझौते से वाशिंगटन के हटने के बाद, भारत और फ्रांस जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. जानें विस्तार से उन्होंने और क्या कहा...

ई दिल्ली में फ्रांस में पारिस्थितिक और समावेशी राज्य मंत्री ब्रुइन पॉयरसन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह...
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Published : Oct 31, 2019, 10:39 PM IST

नई दिल्ली : फ्रांस ने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) शुरू करने की भारतीय पहल को एक 'राजनीतिक परियोजना' करार दिया है. फ्रांस के अनुसार जलवायु परिवर्तन से लड़ने की इस परियोजना ने दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत किया है.

दरअसल नई दिल्ली में फ्रांस की पारिस्थितिक और समावेशी राज्य मंत्री ब्रुइन पॉयरसन ने बयान दिया. पॉयरसन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन शमन पर 2015 के पेरिस समझौते से वाशिंगटन के हटने के बाद, भारत और फ्रांस जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

पॉयरसन ने आईएसए की दूसरे आयोजन की रूपरेखा तैयार करने के दौरान कहा, 'अमेरिका पेरिस समझौते को छोड़ने वाला है, उसे इसका पछतावा होगा और अब यह हमें उम्मीद देता है कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ने के लिए हमारे पास एक बहुत ही मजबूत साथी भारत है. यह एक राजनीतिक परियोजना है.'

नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने पॉयरसन के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त देते हुए कहा कि आईएसए का गठन वैश्विक भाईचारे के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

france India on climate change
नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का ट्वीट.

सिंह ने कहा, 'भारत और फ्रांस द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए आईएसए की स्थापना की गयी थी. जलवायु परिवर्तन हमारे लिए एक चुनौती है और हमें उम्मीद है कि आईएसए में प्रयासों से हम जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ने में सक्षम होंगे.'

इसे भी पढ़ें - हिमालय क्षेत्रों में तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर, भविष्य में बड़े खतरे का संकेत

जलवायु परिवर्तन शमन पर 2015 का पेरिस समझौता
बता दें कि 2017 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने घोषणा की थी कि अमेरिका जलवायु परिवर्तन 2015 पेरिस समझौते में भागीदारी कम करेगा, क्योंकि अमेरिका अपने व्यापारी और श्रमिकों को मदद करेगा. हालांकि अमेरिका के इस निर्णय ने एक वैश्विक बहस शुरू कर दी थी.

बता दें कि 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रेंकोइस हॉलैंड ने पेरिस में संधि के दौरान अंतर सरकारी संगठन आईएसए का शुभारंभ किया था.

इसे भी पढ़ें - जलवायु परिवर्तन : 'कार्बन उत्सर्जन के स्रोतों पर ध्यान देना जरूरी'

आईएसए की स्थापना
उल्लेखनीय है कि आईएसए की स्थापना जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई पर आधारित है. इसका उद्देश्य सौर संसाधन संपन्न देशों और व्यापक वैश्विक समुदाय-सहित द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संगठनों के बीच सहयोग के लिए एक समर्पित मंच प्रदान करना है, ताकि सौर ऊर्जा के बढ़ते उपयोग को समर्थन मिल सके.

आज तक 83 देशों ने आईएसए के तहत कार्यों के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं. इसके अलावा 58 अन्य देशों ने भी पुष्टि की है.

नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) के अधिकारियों ने कहा कि भारत सौर ऊर्जा क्षमता और कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के मामले में दुनिया के शीर्ष पांच देशों में शामिल है.

अधिकारियों ने कहा, 'जमीन पर 82 GW अक्षय क्षमता और विभिन्न स्तर पर लगभग 70 GW के साथ भारत 2022 तक 175 GW के महत्वाकांक्षी लक्ष्य पर अच्छी तरह से काम कर रहा है.'

इसे भी पढ़ें - मोदी ने भारत का अक्षय ऊर्जा उत्पादन लक्ष्य बढ़ाकर 450 गीगावाट तक पहुंचाने का संकल्प लिया

आईएसए का बुनियादी ढांचा तैयार करेगा भारत

भारत आईएसए के दृष्टिकोण और उद्देश्यों के लिए सभी तरह की सहायता प्रदान कर रहा है. सरकार ने गुरुग्राम में राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान (एनआईएसई) के परिसर में आईएसए को 5 एकड़ जमीन आवंटित की है.

भारत ने वर्ष 2012-22 तक आईएसए का बुनियादी ढांचा तैयार करने और हर दिन बैठक के लिए 160 करोड़ रुपये की राशि भी आवंटित की है. प्रतिबद्धता के अनुसार भारत वर्ष 2020-21 में अतिरिक्त 15 करोड़ रुपये जारी करेगा. भारत ने अफ्रीका में सौर परियोजनाओं के लिए यूएस दो बिलियन डॉलर अलग से देगा.

बता दें कि भारत सरकार ने अफ्रीका के लिए 10 बिलियन डॉलर राशि की लाइन ऑफ क्रेडिट (LoC) दी है.

नई दिल्ली : फ्रांस ने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) शुरू करने की भारतीय पहल को एक 'राजनीतिक परियोजना' करार दिया है. फ्रांस के अनुसार जलवायु परिवर्तन से लड़ने की इस परियोजना ने दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत किया है.

दरअसल नई दिल्ली में फ्रांस की पारिस्थितिक और समावेशी राज्य मंत्री ब्रुइन पॉयरसन ने बयान दिया. पॉयरसन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन शमन पर 2015 के पेरिस समझौते से वाशिंगटन के हटने के बाद, भारत और फ्रांस जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

पॉयरसन ने आईएसए की दूसरे आयोजन की रूपरेखा तैयार करने के दौरान कहा, 'अमेरिका पेरिस समझौते को छोड़ने वाला है, उसे इसका पछतावा होगा और अब यह हमें उम्मीद देता है कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ने के लिए हमारे पास एक बहुत ही मजबूत साथी भारत है. यह एक राजनीतिक परियोजना है.'

नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने पॉयरसन के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त देते हुए कहा कि आईएसए का गठन वैश्विक भाईचारे के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

france India on climate change
नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का ट्वीट.

सिंह ने कहा, 'भारत और फ्रांस द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए आईएसए की स्थापना की गयी थी. जलवायु परिवर्तन हमारे लिए एक चुनौती है और हमें उम्मीद है कि आईएसए में प्रयासों से हम जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ने में सक्षम होंगे.'

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जलवायु परिवर्तन शमन पर 2015 का पेरिस समझौता
बता दें कि 2017 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने घोषणा की थी कि अमेरिका जलवायु परिवर्तन 2015 पेरिस समझौते में भागीदारी कम करेगा, क्योंकि अमेरिका अपने व्यापारी और श्रमिकों को मदद करेगा. हालांकि अमेरिका के इस निर्णय ने एक वैश्विक बहस शुरू कर दी थी.

बता दें कि 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रेंकोइस हॉलैंड ने पेरिस में संधि के दौरान अंतर सरकारी संगठन आईएसए का शुभारंभ किया था.

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आईएसए की स्थापना
उल्लेखनीय है कि आईएसए की स्थापना जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई पर आधारित है. इसका उद्देश्य सौर संसाधन संपन्न देशों और व्यापक वैश्विक समुदाय-सहित द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संगठनों के बीच सहयोग के लिए एक समर्पित मंच प्रदान करना है, ताकि सौर ऊर्जा के बढ़ते उपयोग को समर्थन मिल सके.

आज तक 83 देशों ने आईएसए के तहत कार्यों के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं. इसके अलावा 58 अन्य देशों ने भी पुष्टि की है.

नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) के अधिकारियों ने कहा कि भारत सौर ऊर्जा क्षमता और कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के मामले में दुनिया के शीर्ष पांच देशों में शामिल है.

अधिकारियों ने कहा, 'जमीन पर 82 GW अक्षय क्षमता और विभिन्न स्तर पर लगभग 70 GW के साथ भारत 2022 तक 175 GW के महत्वाकांक्षी लक्ष्य पर अच्छी तरह से काम कर रहा है.'

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आईएसए का बुनियादी ढांचा तैयार करेगा भारत

भारत आईएसए के दृष्टिकोण और उद्देश्यों के लिए सभी तरह की सहायता प्रदान कर रहा है. सरकार ने गुरुग्राम में राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान (एनआईएसई) के परिसर में आईएसए को 5 एकड़ जमीन आवंटित की है.

भारत ने वर्ष 2012-22 तक आईएसए का बुनियादी ढांचा तैयार करने और हर दिन बैठक के लिए 160 करोड़ रुपये की राशि भी आवंटित की है. प्रतिबद्धता के अनुसार भारत वर्ष 2020-21 में अतिरिक्त 15 करोड़ रुपये जारी करेगा. भारत ने अफ्रीका में सौर परियोजनाओं के लिए यूएस दो बिलियन डॉलर अलग से देगा.

बता दें कि भारत सरकार ने अफ्रीका के लिए 10 बिलियन डॉलर राशि की लाइन ऑफ क्रेडिट (LoC) दी है.

Intro:New Delhi: France on Thursday termed India's initiative of launching International Solar Alliance (ISA) as a "political project" which has strengthened the bonds between both the countries to fight climate change.


Body:The observation was made by France Minister of State for the Ecological and Inclusive Transition, Brune Poirson in New Delhi.

Years after Washington decided to withdrew itself from the "2015 Paris Agreement on climate change mitigation", France Minister Poirson said that India and France are committed to combat climate change.

"US is about to leave the Paris agreement, as they have only regreted...and now it gives us hope that we have a very strong partner India to fight against climate chagne...this is a political project," said Poirson on the sideline of second Assembly of the ISA.

Reacting over her statement, Minister for New and Renewable Energy, RK Singh said that formation of ISA is very important for the global fraternity.

"ISA was set up by India and France for environmental protection. Climate change is a challenge for us and we hope with the efforts in ISA we will be able to fight against climate change," said Singh.

In 2017, US President Donald Trump has announced that US would ease all participation in the 2015 Paris Agreement on climate change mitigation as the withdrawl would help American business and workers.

The US decision, however, generated a global debate.


Conclusion:In 2015, Prime Minister Narendra Modi and former France President Francois Hollande launched ISA, a treaty based intergovernmental organisation in Paris.

Foundation of ISA was based to fight against climate change. It also aims to provide a dedicated platform for cooperation among solar resource rich countries and the wider global community-including bilateral and multilateral organisations-to put support the increasing use of solar energy.

As on date, 83 countries have signed the Framework Agreement of ISA. Of these, 58 countries have ratified the same.

Officials in the Ministry for New and Renewable Energy (MNRE) said that India today stands among the top five countries of the world in terms of solar energy capacity and total renewable energy capacity.

"With over 82 GW renewable capacity on ground and about 70 GW at different stage, India is well in the way to realize the ambitious target of 175 GW by 2022," said officials.

India has been providing all support to realise ISA's vision and objectives. The government has alloted 5 acres of land to the ISA in National Institute of Solar Energy (NISE) campus at Gurugram. India has also released a sum of Rs 160 crore for creating a corpus fund, building infrastructure, and meeting day to day recurring expenditure of the ISA up to the year 2012-22.

As per commitment, India will release additional Rs 15 crore in the year 2020-21. India has also set aside US$ 2 Billion for solar projects in Africa out of Government of India's US$ 10 Billion concessional Line of Credit (LoC) for Africa.


end.
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