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विशेष लेख : 2019 के कुछ अहम फैसले, जिन्होंने देश को हिला दिया

2019 में दोबारा केंद्र सरकार में वापसी करने वाली मोदी सरकार ने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए. इसके अलावा उच्चतम न्यायालय ने भी अयोध्या भूमि विवाद जैसे अतिसंवेदनशील मुद्दे पर फैसला सुनाया. नजर डालते हैं वर्ष 2019 में सरकार के कुछ महत्वपूर्ण फैसलों पर.

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Published : Dec 29, 2019, 9:36 PM IST

2019 खत्म हो रहा है और जाते-जाते हमें अच्छी और बुरी यादों के साथ छोड़े जा रह है. आईये जानने की कोशिश करते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार ने इस साल लोगों को क्या खट्टी और क्या मीठी यादे दी हैं, जो इतिहासाकर आने वाले समय में अपने लेखन में याद रखेंगे.

2019 में नामुमकिन दिखने वाले कई संविधान संशोधन किये गये हैं, इनमें से कई बड़े बदलाव रहे हैं. इस सरकार ने जिस तरह से देश के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश को बदला है, उसने कांग्रेस की दशकों पुरानी समझ को तोड़ दिया, कि देश को चौंकाने वाला कोई भी काम अप्रजातंत्रवादी होता है. बीजेपी सरकार के ज्यादातर फैसले लोगों को कुछ हद तक चौंका गये और अंत में इन्हें लोगों ने स्वीकार कर लिया. हालांकि, इस लिस्ट में नागिरक संशोधन एक्ट, 2019 एक अपवाद रहा.

तीन तलाक :
तीन तलाक के फैसले पर मुस्लिम समाज से कुछ गैरजरूरी पक्षों को छोड़कर कहीं से भी विरोध के स्वर नहीं सुनाई दिये. पिछली सरकारों में लोगों को यह यकीन दिला दिया गया था कि, धर्म से जुड़े मसलों को छुआ नहीं जा सकता है, इसलिये इन्हें लेकर कोई बहस या बात नहीं होनी चाहिये, लेकिन बीजेपी सरकार ने आगे बढ़कर रूढ़िवादी, महिला विरोधी, अमानवीय कानूनों के खिलाफ मुहिम छेड़ उन्हे संसद के दोनों सदनों से पास कराकर बदलने का काम किया. विपक्षी दलों के विरोध को सरकार ने इस हद तक गैरजरूरी बना दिया कि कोई भी सरकार का विरोध करे तो उसे देश विरोधी घोषित कर दिया जाता. सरकार ने हर अहम मसलों को राष्ट्रीय मान और सुरक्षा से ऐसा जोड़ा कि इनके विरोध के लिये कोई स्थान नहीं बचा.

आर्टिकल 370 :
आर्टिकल 370 हटाना इस सरकार के सबसे बड़े कदमों के तौर पर याद रखा जायेगा. इस तरह का कदम पिछली किसी सरकार ने लेने का खतरा नहीं उठाया. इस कदम से पहले की योजना सटीक थी और इसके बाद होने वाली प्रतिक्रिया के लिये पूरी तैयारी की गई थी. तैयारियां इतनी पुख्ता थीं कि सरकार ने इसके विरोध में जम्मू-कश्मीर में जिन 5% लोगों के सड़कों पर आने का अंदाजा लगाया था, वो भी अपने घरों में ही रहे. 370 हटने के पहले कुछ हफ्तों में तो राज्य की सड़कों पर लोगों की आवाजाही को ही रोक दिया था. राज्य की सारी आबादी को डिजिटल दुनिया से अलग कर दिया गया था. इनमें दूरसंचार, मोबाइल और इंटरनेट सेवाऐं शामिल थीं. राज्य के सभी राजनैतिक नेतृत्व को नजरबंद कर किसी तरह के आंदोलन को भी सरकार ने रोक दिया. आर्टिकल 370 को हटाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटकर सरकार ने देश-विदेश में सभी को चौंका दिया.

कश्मीर में इंटरनेट बंद :
कश्मीर में इंटरनेट सेवाऐं अभी भी बंद हैं, इसके चलते यह दुनिया में सबसे लंबे समय तक इंटरनेट बंद होने वाला मौका हो गया है. अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने सरकार के इस कदम का पुरजोर विरोध किया, लेकिन सरकार ने इसे काउंटर करने के लिये पुख्ता और कारगर हथियारों को इस्तेमाल किया. इस मसले पर पाकिस्तान ने अपनी हरकतों से ही चीन, मलेशिया और तुर्की को छोड़कर, विश्व के अधिकतर देशों को भारत के साथ खड़ा कर दिया है.

रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद फैसला :
वहीं, इसी साल हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सबसे पुराने धार्मिक विवाद, रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को भी सुलझा दिया गया. इस फैसले के लिये भी कई तरह की तैयारियों को अंजाम दिया गया था. फैसला आने से हफ्तों पहले ही, कई मुस्लिम धर्म गुरुओं ने मुस्लिम समाज से भाईचारे को बढ़ाने के लिये विवादित जमीन को हिंदुओं को देने का आह्वान किया था. अगर राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो, सरकार को इस फैसले के बाद इस साल के लिये अन्य किसी बड़े कदम को रोक देना चाहिये था.

नागरिकता संशोधन कानून :
सरकार ने संविधान और कानूनी बदलावों को करने की झड़ी सी लगा दी थी और इसी के कारण वो हुआ जो कोई भी नहीं चाहता था. नागरिक संशोधन एक्ट में किये जा रहे बदलाव समाज के छोटे हिस्से को नागवार हो सकता था, इसके कारण सरकार ने किसी बड़े विरोध की उम्मीद नहीं की थी.

आखिरकार सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून, 2019 को लागू कर दिया. इसके तहत 31, दिसंबर 2014 से पहले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत आये गैर-मुस्लिम धर्म के लोगों को भारतीय नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया. हालांकि इस कदम के बाद सरकार की स्थिति खराब हो गई क्योंकि उसने इस एक्ट के विरोध में देशव्यापी आंदोलन की उम्मीद नहीं की थी. देशभर में हुए विरोध में अकेले उत्तर प्रदेश में ही 20 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और देश के अलग-अलग कोनों में हिंसक आंदोलन हुए.

इस बिल के संसद के दोनो सदनों में पास होने का बाद देश के गृह मंत्री अमित शाह टीवी चैनलों पर यह कहते पाए गए कि दुनियाभर में धार्मिक शोषण के शिकार, गैर मुस्लिम समाज के लोगों के लिये भारत के दरवाजे खुले हैं. सरकार की तरफ से इस तरह की बातों ने भारत के संविधान के मूल में बसे धर्मनिरपेक्षता को काफी गहरा झटका पहुंचाया. इस तरह के बयानों को मुसलमानों के लिये देश के दरवाजों के बंद होने की तरह देखा गया. राजनीति में आत्मसंतुष्टता हानिकारक होती है. मौजूदा सरकार के लिये पार्टी को जनता के फैसले से ऊपर रखना नुकसानदायक साबित हुआ. इस सबसे क्या सीख मिलती है- जनता के फैसले का सम्मान हर हाल में होना चाहिये.

(लेखक- बिलाल भट्ट, ईटीवी भारत)

2019 खत्म हो रहा है और जाते-जाते हमें अच्छी और बुरी यादों के साथ छोड़े जा रह है. आईये जानने की कोशिश करते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार ने इस साल लोगों को क्या खट्टी और क्या मीठी यादे दी हैं, जो इतिहासाकर आने वाले समय में अपने लेखन में याद रखेंगे.

2019 में नामुमकिन दिखने वाले कई संविधान संशोधन किये गये हैं, इनमें से कई बड़े बदलाव रहे हैं. इस सरकार ने जिस तरह से देश के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश को बदला है, उसने कांग्रेस की दशकों पुरानी समझ को तोड़ दिया, कि देश को चौंकाने वाला कोई भी काम अप्रजातंत्रवादी होता है. बीजेपी सरकार के ज्यादातर फैसले लोगों को कुछ हद तक चौंका गये और अंत में इन्हें लोगों ने स्वीकार कर लिया. हालांकि, इस लिस्ट में नागिरक संशोधन एक्ट, 2019 एक अपवाद रहा.

तीन तलाक :
तीन तलाक के फैसले पर मुस्लिम समाज से कुछ गैरजरूरी पक्षों को छोड़कर कहीं से भी विरोध के स्वर नहीं सुनाई दिये. पिछली सरकारों में लोगों को यह यकीन दिला दिया गया था कि, धर्म से जुड़े मसलों को छुआ नहीं जा सकता है, इसलिये इन्हें लेकर कोई बहस या बात नहीं होनी चाहिये, लेकिन बीजेपी सरकार ने आगे बढ़कर रूढ़िवादी, महिला विरोधी, अमानवीय कानूनों के खिलाफ मुहिम छेड़ उन्हे संसद के दोनों सदनों से पास कराकर बदलने का काम किया. विपक्षी दलों के विरोध को सरकार ने इस हद तक गैरजरूरी बना दिया कि कोई भी सरकार का विरोध करे तो उसे देश विरोधी घोषित कर दिया जाता. सरकार ने हर अहम मसलों को राष्ट्रीय मान और सुरक्षा से ऐसा जोड़ा कि इनके विरोध के लिये कोई स्थान नहीं बचा.

आर्टिकल 370 :
आर्टिकल 370 हटाना इस सरकार के सबसे बड़े कदमों के तौर पर याद रखा जायेगा. इस तरह का कदम पिछली किसी सरकार ने लेने का खतरा नहीं उठाया. इस कदम से पहले की योजना सटीक थी और इसके बाद होने वाली प्रतिक्रिया के लिये पूरी तैयारी की गई थी. तैयारियां इतनी पुख्ता थीं कि सरकार ने इसके विरोध में जम्मू-कश्मीर में जिन 5% लोगों के सड़कों पर आने का अंदाजा लगाया था, वो भी अपने घरों में ही रहे. 370 हटने के पहले कुछ हफ्तों में तो राज्य की सड़कों पर लोगों की आवाजाही को ही रोक दिया था. राज्य की सारी आबादी को डिजिटल दुनिया से अलग कर दिया गया था. इनमें दूरसंचार, मोबाइल और इंटरनेट सेवाऐं शामिल थीं. राज्य के सभी राजनैतिक नेतृत्व को नजरबंद कर किसी तरह के आंदोलन को भी सरकार ने रोक दिया. आर्टिकल 370 को हटाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटकर सरकार ने देश-विदेश में सभी को चौंका दिया.

कश्मीर में इंटरनेट बंद :
कश्मीर में इंटरनेट सेवाऐं अभी भी बंद हैं, इसके चलते यह दुनिया में सबसे लंबे समय तक इंटरनेट बंद होने वाला मौका हो गया है. अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने सरकार के इस कदम का पुरजोर विरोध किया, लेकिन सरकार ने इसे काउंटर करने के लिये पुख्ता और कारगर हथियारों को इस्तेमाल किया. इस मसले पर पाकिस्तान ने अपनी हरकतों से ही चीन, मलेशिया और तुर्की को छोड़कर, विश्व के अधिकतर देशों को भारत के साथ खड़ा कर दिया है.

रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद फैसला :
वहीं, इसी साल हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सबसे पुराने धार्मिक विवाद, रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को भी सुलझा दिया गया. इस फैसले के लिये भी कई तरह की तैयारियों को अंजाम दिया गया था. फैसला आने से हफ्तों पहले ही, कई मुस्लिम धर्म गुरुओं ने मुस्लिम समाज से भाईचारे को बढ़ाने के लिये विवादित जमीन को हिंदुओं को देने का आह्वान किया था. अगर राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो, सरकार को इस फैसले के बाद इस साल के लिये अन्य किसी बड़े कदम को रोक देना चाहिये था.

नागरिकता संशोधन कानून :
सरकार ने संविधान और कानूनी बदलावों को करने की झड़ी सी लगा दी थी और इसी के कारण वो हुआ जो कोई भी नहीं चाहता था. नागरिक संशोधन एक्ट में किये जा रहे बदलाव समाज के छोटे हिस्से को नागवार हो सकता था, इसके कारण सरकार ने किसी बड़े विरोध की उम्मीद नहीं की थी.

आखिरकार सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून, 2019 को लागू कर दिया. इसके तहत 31, दिसंबर 2014 से पहले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत आये गैर-मुस्लिम धर्म के लोगों को भारतीय नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया. हालांकि इस कदम के बाद सरकार की स्थिति खराब हो गई क्योंकि उसने इस एक्ट के विरोध में देशव्यापी आंदोलन की उम्मीद नहीं की थी. देशभर में हुए विरोध में अकेले उत्तर प्रदेश में ही 20 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और देश के अलग-अलग कोनों में हिंसक आंदोलन हुए.

इस बिल के संसद के दोनो सदनों में पास होने का बाद देश के गृह मंत्री अमित शाह टीवी चैनलों पर यह कहते पाए गए कि दुनियाभर में धार्मिक शोषण के शिकार, गैर मुस्लिम समाज के लोगों के लिये भारत के दरवाजे खुले हैं. सरकार की तरफ से इस तरह की बातों ने भारत के संविधान के मूल में बसे धर्मनिरपेक्षता को काफी गहरा झटका पहुंचाया. इस तरह के बयानों को मुसलमानों के लिये देश के दरवाजों के बंद होने की तरह देखा गया. राजनीति में आत्मसंतुष्टता हानिकारक होती है. मौजूदा सरकार के लिये पार्टी को जनता के फैसले से ऊपर रखना नुकसानदायक साबित हुआ. इस सबसे क्या सीख मिलती है- जनता के फैसले का सम्मान हर हाल में होना चाहिये.

(लेखक- बिलाल भट्ट, ईटीवी भारत)

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