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आईआईटी मंडी ने प्लास्टिक बोतलों से बनाया नैनो फाइबर मास्क, कीमत है ₹25

आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने बेकार 'प्लास्टिक (पीईटी) बोतलों' से असरदार फेस मास्क बनाने की स्वदेशी तकनीक विकसित की है. आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुमीत सिन्हा राय ने अपने शोध विद्वान आशीष काकोरिया और शेषनाग सिंह चंदेल के साथ बेकार प्लास्टिक बोतल से नैनो-नॉनवोवन मेम्ब्रन की एक पतली परत बनाई है.

IIT Mandi developed technology for making nano fiber face masks
फेस मास्क
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Published : Jun 8, 2020, 3:09 AM IST

मंडी : हिमाचल प्रदेश स्थित आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने बेकार 'प्लास्टिक (पीईटी) बोतलों' से असरदार फेस मास्क बनाने की स्वदेशी तकनीक विकसित की है. आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में एसिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुमीत सिन्हा राय ने अपने शोध विद्वान आशीष काकोरिया और शेषनाग सिंह चंदेल के साथ बेकार प्लास्टिक बोतल से नैनो-नॉनवोवन मेम्ब्रन की एक पतली परत विकसित है.

कणों को फिल्टर करने में एन 95 रेस्पिरेटर और मेडिकल मास्क के बराबर सक्षम है. इस प्रोडक्ट का विकास और परीक्षण आईआईटी मंडी के मल्टीस्केल फैब्रिकेशन और नैनो टेक्नोलॉजी लेबोरेटरी में किया गया है. इंसान के बाल लगभग 50 माइक्रोमीटर (0.05 मिमी) मोटे होते हैं जबकि आईआईटी मंडी में विकसित नैनोफाइबर के फाइबर इंसान के बाल से 250 गुना ज्यादा बारीक हैं. मास्क के लिए शोध टीम के विकसित किए हुए नैनो-नॉनवेवन मेम्ब्रेन की एक पतली परत 0.3 माइक्रोन तक के अत्यंत सूक्ष्म वायु कणों को फिल्टर करने में 98 प्रतिशत से अधिक सक्षम हैं.

ये कण सबसे अधिक अंदर घुसने वाले माने जाते हैं और इन्हें रोकना सबसे मुश्किल होता है. अब शोधकर्ताओं का लक्ष्य बाजार के मेल्ट-डाउन फैब्रिक मास्क (माइक्रोफाइबर वाले) के बदले अल्ट्रा-फाइन नैनोफाइबर-आधारित मास्क के उपयोग को बढ़ावा देना है.

इस खोज पर आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुमीत सिन्हा राय ने कहा, नैनोफाइबर फेस मास्क के लिए चमत्कार कर सकते हैं. किसी अच्छे फेस मास्क के दो बुनियादी मानक हैं. वायु कण और प्रदूषक रोकने की क्षमता और खुल कर सांस लेने की सुविधा. बाजार के मेल्ट-डाउन फैब्रिक की कीमत तो कम है पर इसमें खुल कर सांस नहीं आती है. हालांकि आम तौर पर उपलब्ध 3-प्लाई सर्जिकल मास्क में सांस लेना आसान है, पर यह असरदार नहीं है.

ऐसे में नैनोफाइबर वाले मास्क आपको खुल कर सांस लेने की सुविधा देने के साथ हवा में मौजूद छोटे कणों को रोकने में भी असरदार हैं. आशा है इस तकनीक से मास्क के औद्योगिक उत्पादन के लिए इच्छुक भागीदार आगे आएंगे.

नैनो फाइबर मास्क

नैनो फाइबर विकसित करने के लिए डॉ. सुमीत सिन्हा राय और उनकी टीम ने प्लास्टिक की बोतलों की ‘इलेक्ट्रोस्पिनिंग’ कर बेहद बारीक टुकड़े कर दिए और इन्हें कई सॉल्वेंट के घोल में डाला और फिर इस घोल से नैनोफाइबर प्राप्त किए. बैक्टीरिया और संक्रामक तत्वों को हटा कर नैनोफाइबर के उपयोग के सुरक्षा मानकों को पूरा किया. इस तरह बने मास्क से बाजार के मास्क की तुलना में सांस लेना आसान होता है.

डॉ. सुमीत ने इलेक्ट्रोस्पिनिंग आधारित बेकार प्लास्टिक की बोतल से फिल्टर मेम्ब्रेन बनाने की तकनीक के प्रोविजनल पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया है. लेबरोटरी में निर्माण सामग्री की लागत लगभग 25रु./मास्क है. हालांकि औद्योगिक उत्पादन में यह लागत लगभग आधी हो जाएगी. आईआईटी मंडी में विकसित मास्क के प्रभावी होने पर इसमें लगे संस्थान के शोध विद्वान आशीष काकोरिया ने कहा कि ये अल्ट्राफाइन फाइबर हवा को कम से कम रोकते हैं.

ऐसा एक विशेष परिघटना की वजह से मुमकिन होता है जिसे हम ‘स्लिप फ्लो’ कहते हैं. इसलिए आप खुल कर सांस ले सकते हैं. इतना ही नहीं, इस तकनीक के उपयोग से बेकार प्लास्टिक बोतलों के कचरे का सदुपयोग हो जाएगा.

प्लास्टिक कचरे से होने वाला प्रदूषण गंभीर चुनौती

प्लास्टिक कचरे से होने वाला प्रदूषण पहले से ही पूरी दुनिया के शोधकर्ताओं के लिए गंभीर चुनौती बना हुआ है और कोरोना महामारी के दौर में प्लास्टिक से बनी वस्तुओं के उत्पादन और खपत बढ़ने से यह संकट और गहरा गया है, लेकिन आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं की इस पहल से प्लास्टिक प्रदूषण कम होगा और प्लास्टिक कचरे से अधिक कीमती चीज बन जाएगी. हाल ही में विकसित इस तकनीक के अन्य उपयोग भी हैं यह धुंआ फिल्टर करने और निरंतर वायु स्वच्छ करने में भी काम आएगी

नैनोफाइबर वाले 3 प्लाई सेमी रीयूजेबल मास्क

डॉ. सुमीत सिन्हा रय और उनके शोध विद्वानों ने नायलन से बने नैनोफाइबर वाले तीव प्लाई सेमी रीयूजेबल मास्क भी बनाया है. इसमें फ्री-स्टैंडिंग नैनो-नॉनवोवन आर्किटेक्चर की खूबी है. इन मेम्ब्रेन में 0.5 माइक्रोन डायमीटर के अलग-अलग फाइबर हैं और बुनियादी वजन 20-25 ग्राम प्रति वर्ग मीटर (जीएसएम) है.

आईआईट मंडी की ईडब्ल्यूओके सोसायटी की मदद से ये मेम्ब्रेन दो पतले सूती कपड़ों के बीच सिल कर फेस मास्क बनाए गए. सांस लेने के मानक पर बराबर सक्षमता के साथ वायु कण रोकने में सक्षम ये मास्क 3-प्लाई मेडिकल फेस मास्क से अधिक कारगर हैं.

यह टीम लैबरोटरी स्तर पर प्रति दिन 20 मास्क मेम्ब्रेन बनाने में सक्षम हो गई है. जिसे मांग के अनुसार बढ़ाया जाएगा. नैनोफाइबर वाले 3-प्लाई सेमी-रीयूजेबल मास्क धुलने और बार-बार पहनने योग्य हैं. लेबोरेटरी स्तर पर निर्माण सामग्री की लागत 12रु./मास्क है.

पढ़ें: 27 कीटनाशकों को बैन करने की तैयारी में सरकार, देखें ये खास रिपोर्ट

मंडी : हिमाचल प्रदेश स्थित आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने बेकार 'प्लास्टिक (पीईटी) बोतलों' से असरदार फेस मास्क बनाने की स्वदेशी तकनीक विकसित की है. आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में एसिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुमीत सिन्हा राय ने अपने शोध विद्वान आशीष काकोरिया और शेषनाग सिंह चंदेल के साथ बेकार प्लास्टिक बोतल से नैनो-नॉनवोवन मेम्ब्रन की एक पतली परत विकसित है.

कणों को फिल्टर करने में एन 95 रेस्पिरेटर और मेडिकल मास्क के बराबर सक्षम है. इस प्रोडक्ट का विकास और परीक्षण आईआईटी मंडी के मल्टीस्केल फैब्रिकेशन और नैनो टेक्नोलॉजी लेबोरेटरी में किया गया है. इंसान के बाल लगभग 50 माइक्रोमीटर (0.05 मिमी) मोटे होते हैं जबकि आईआईटी मंडी में विकसित नैनोफाइबर के फाइबर इंसान के बाल से 250 गुना ज्यादा बारीक हैं. मास्क के लिए शोध टीम के विकसित किए हुए नैनो-नॉनवेवन मेम्ब्रेन की एक पतली परत 0.3 माइक्रोन तक के अत्यंत सूक्ष्म वायु कणों को फिल्टर करने में 98 प्रतिशत से अधिक सक्षम हैं.

ये कण सबसे अधिक अंदर घुसने वाले माने जाते हैं और इन्हें रोकना सबसे मुश्किल होता है. अब शोधकर्ताओं का लक्ष्य बाजार के मेल्ट-डाउन फैब्रिक मास्क (माइक्रोफाइबर वाले) के बदले अल्ट्रा-फाइन नैनोफाइबर-आधारित मास्क के उपयोग को बढ़ावा देना है.

इस खोज पर आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुमीत सिन्हा राय ने कहा, नैनोफाइबर फेस मास्क के लिए चमत्कार कर सकते हैं. किसी अच्छे फेस मास्क के दो बुनियादी मानक हैं. वायु कण और प्रदूषक रोकने की क्षमता और खुल कर सांस लेने की सुविधा. बाजार के मेल्ट-डाउन फैब्रिक की कीमत तो कम है पर इसमें खुल कर सांस नहीं आती है. हालांकि आम तौर पर उपलब्ध 3-प्लाई सर्जिकल मास्क में सांस लेना आसान है, पर यह असरदार नहीं है.

ऐसे में नैनोफाइबर वाले मास्क आपको खुल कर सांस लेने की सुविधा देने के साथ हवा में मौजूद छोटे कणों को रोकने में भी असरदार हैं. आशा है इस तकनीक से मास्क के औद्योगिक उत्पादन के लिए इच्छुक भागीदार आगे आएंगे.

नैनो फाइबर मास्क

नैनो फाइबर विकसित करने के लिए डॉ. सुमीत सिन्हा राय और उनकी टीम ने प्लास्टिक की बोतलों की ‘इलेक्ट्रोस्पिनिंग’ कर बेहद बारीक टुकड़े कर दिए और इन्हें कई सॉल्वेंट के घोल में डाला और फिर इस घोल से नैनोफाइबर प्राप्त किए. बैक्टीरिया और संक्रामक तत्वों को हटा कर नैनोफाइबर के उपयोग के सुरक्षा मानकों को पूरा किया. इस तरह बने मास्क से बाजार के मास्क की तुलना में सांस लेना आसान होता है.

डॉ. सुमीत ने इलेक्ट्रोस्पिनिंग आधारित बेकार प्लास्टिक की बोतल से फिल्टर मेम्ब्रेन बनाने की तकनीक के प्रोविजनल पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया है. लेबरोटरी में निर्माण सामग्री की लागत लगभग 25रु./मास्क है. हालांकि औद्योगिक उत्पादन में यह लागत लगभग आधी हो जाएगी. आईआईटी मंडी में विकसित मास्क के प्रभावी होने पर इसमें लगे संस्थान के शोध विद्वान आशीष काकोरिया ने कहा कि ये अल्ट्राफाइन फाइबर हवा को कम से कम रोकते हैं.

ऐसा एक विशेष परिघटना की वजह से मुमकिन होता है जिसे हम ‘स्लिप फ्लो’ कहते हैं. इसलिए आप खुल कर सांस ले सकते हैं. इतना ही नहीं, इस तकनीक के उपयोग से बेकार प्लास्टिक बोतलों के कचरे का सदुपयोग हो जाएगा.

प्लास्टिक कचरे से होने वाला प्रदूषण गंभीर चुनौती

प्लास्टिक कचरे से होने वाला प्रदूषण पहले से ही पूरी दुनिया के शोधकर्ताओं के लिए गंभीर चुनौती बना हुआ है और कोरोना महामारी के दौर में प्लास्टिक से बनी वस्तुओं के उत्पादन और खपत बढ़ने से यह संकट और गहरा गया है, लेकिन आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं की इस पहल से प्लास्टिक प्रदूषण कम होगा और प्लास्टिक कचरे से अधिक कीमती चीज बन जाएगी. हाल ही में विकसित इस तकनीक के अन्य उपयोग भी हैं यह धुंआ फिल्टर करने और निरंतर वायु स्वच्छ करने में भी काम आएगी

नैनोफाइबर वाले 3 प्लाई सेमी रीयूजेबल मास्क

डॉ. सुमीत सिन्हा रय और उनके शोध विद्वानों ने नायलन से बने नैनोफाइबर वाले तीव प्लाई सेमी रीयूजेबल मास्क भी बनाया है. इसमें फ्री-स्टैंडिंग नैनो-नॉनवोवन आर्किटेक्चर की खूबी है. इन मेम्ब्रेन में 0.5 माइक्रोन डायमीटर के अलग-अलग फाइबर हैं और बुनियादी वजन 20-25 ग्राम प्रति वर्ग मीटर (जीएसएम) है.

आईआईट मंडी की ईडब्ल्यूओके सोसायटी की मदद से ये मेम्ब्रेन दो पतले सूती कपड़ों के बीच सिल कर फेस मास्क बनाए गए. सांस लेने के मानक पर बराबर सक्षमता के साथ वायु कण रोकने में सक्षम ये मास्क 3-प्लाई मेडिकल फेस मास्क से अधिक कारगर हैं.

यह टीम लैबरोटरी स्तर पर प्रति दिन 20 मास्क मेम्ब्रेन बनाने में सक्षम हो गई है. जिसे मांग के अनुसार बढ़ाया जाएगा. नैनोफाइबर वाले 3-प्लाई सेमी-रीयूजेबल मास्क धुलने और बार-बार पहनने योग्य हैं. लेबोरेटरी स्तर पर निर्माण सामग्री की लागत 12रु./मास्क है.

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