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ग्रीन एनर्जी : जर्मन वैज्ञानिकों के साथ शोध कर रहे आईआईटी मद्रास के वैज्ञानिक

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Published : Jun 29, 2020, 9:25 AM IST

Updated : Jun 29, 2020, 9:40 AM IST

आईआईटी मद्रास जर्मनी के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर 'ग्रीन एनर्जी सॉल्यूशन' पर काम कर रहा है. बता दें कि भारत सरकार की परियोजना SPARC के तहत इस ग्रीन एनर्जी सॉल्यूशन पर काम किया जा रहा है. SPARC यानी (Scheme for Promotion of Academic and Research Collaboration/शैक्षणिक और अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देने की योजना) भारत सरकार के मानव संस्थान विकास मंत्रालय (MHRD) की एक पहल है. इसके लिए 66 लाख रुपये का बजट आवंटित किया गया है.

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हरित ऊर्जा समाधान पर काम कर रहा आईआईटी मद्रास

चेन्नई : इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) मद्रास जर्मन शोधकर्ताओं के साथ मिलकर ग्रीन एनर्जी सॉल्यूशंस के लिए नए पदार्थ विकसित कर रहा है. परियोजना का उद्देश्य ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए वैकल्पिक प्रौद्योगिकी विकसित करना है. ऐसा इसलिए क्योंकि वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि दुनिया भविष्य में हाइड्रोजन-आधारित अर्थव्यवस्था (hydrogen-based economy) के रूप में बदलने वाली है.

पारंपरिक जीवाश्म ईंधन और प्राकृतिक गैसों की लगातार कमी हो रही है. इसी के साथ ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की मांग भी बढ़ती जा रही है. दोनों परिस्थितियों के मद्देनजर गैर-प्रदूषणकारी ऊर्जा के लिए अनुसंधान जरूरी बनता जा रहा है. इसके अलावा ऐसी ऊर्जा का संचय भी अनिवार्य बनता जा रहा है जिसे ग्रीन एनर्जी भी कहा जाता है.

इस संदर्भ में, कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में प्रयास कर रहे वैज्ञानिकों और इंसानों के लिए हाइड्रोजन आधारित अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में निवेश एक आशाजनक और भरोसेमंद विकल्प है.

ग्रीन एनर्जी सॉल्यूशंस पर काम कर रही शोध टीम की अगुवाई प्रोफेसर एनवी रवि कुमार कर रहे हैं. प्रोफेसर रवि आईआईटी मद्रास के मैटालर्जिकल (Metallurgical) और मटीरियल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में कार्यरत हैं. शोधकर्ताओं की यह टीम जर्मनी की कोलोन यूनिवर्सिटी (University of Cologne) के प्रोफेसर संजय माथुर सहित कई अन्य शोधकर्ताओं के साथ मिल कर काम कर रही है.

बता दें कि प्रोफेसर संजय माथुर आईआईटी मद्रास के मैटालर्जिकल (Metallurgical) और मटीरियल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में भी पढ़ाते रहे (Adjunct Faculty Member) हैं.

पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से हाइड्रोजन (H2) पैदा करने के महत्व के बारे में प्रोफेसर एनवी रवि कुमार ने कहा कि हाइड्रोजन उत्पादन के पारंपरिक तरीकों से बड़े पैमाने पर कार्बनडाइऑक्साइड (Co2) पैदा होता है. उन्होंने बताया कि Co2 एक ग्रीन हाउस गैस है और इसके उत्सर्जन से पर्यावरण के समक्ष गंभीर खतरे पैदा होते हैं. गौरतलब है कि हाइड्रोजन उत्पादन के पारंपरिक तरीकों में 'वाटर गैस कनवर्जन' और 'पार्शियल ऑक्सीडेशन ऑफ हाइड्रोकार्बन' शामिल हैं.

यह भी पढ़ें: पारंपरिक कैंसर चिकित्सा को बनाया जा सकता है प्रभावी

यह भी पढ़ें: आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने की माइक्रोआरएनए की पहचान, जीभ कैंसर के इलाज में होगा कारगर

प्रोफेसर रवि ने बताया कि शुद्ध हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए वाटर इलेक्ट्रोलायसिस (Water Electrolysis) एक साफ, आसान और प्रभावी पद्धति है. उन्होंने बताया कि इस पद्धति के माध्यम से पानी से इलेक्ट्रोकेमिल अलग किया जाता है. उन्होंने बताया कि शोध में अंतरराष्ट्रीय सहयोग लेने का मकसद एक नया और कम कीमत का इलेक्ट्रोकैटलिस्ट विकसित करना है. इससे हाइड्रोजन इवॉल्यूशन रिएक्शन किया जा सकेगा.

बता दें कि ग्रीन एनर्जी सॉल्यूशंस पर काम कर रही इस टीम में मैटेरियल केमिस्ट, सेरामिसिस्ट (ceramicists), निरुपण (characterization) के विशेषज्ञ शामिल हैं. इनके अलावा किरणों के वर्णक्रम को मापने के विषय (spectroscopy) और अभिकलनात्मक (computational) मैटेरियल से जुड़े विशेषज्ञ भी इस शोध कार्य से जुड़े हुए हैं.

टीम में शामिल शोधकर्ता अलग-अलग विषयों के हैं, इस बारे में प्रो. रवि कुमार ने कहा कि यह बहुविषयक (interdisciplinary) टीम वैज्ञानिक मुद्दों का समाधान करेगी. उन्होंने बताया कि शोध से वैज्ञानिक मुद्दों के अलावा एडवांस्ड इलेक्ट्रोकैटलिस्ट के बारे में समझ भी व्यापक बनेगी. प्रो. रवि ने बताया कि एडवांस्ड इलेक्ट्रोकैटलिस्ट को लैब की रिसर्च के बाद रिएक्टर या यंत्रों में लगाया जा सकता है.

चेन्नई : इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) मद्रास जर्मन शोधकर्ताओं के साथ मिलकर ग्रीन एनर्जी सॉल्यूशंस के लिए नए पदार्थ विकसित कर रहा है. परियोजना का उद्देश्य ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए वैकल्पिक प्रौद्योगिकी विकसित करना है. ऐसा इसलिए क्योंकि वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि दुनिया भविष्य में हाइड्रोजन-आधारित अर्थव्यवस्था (hydrogen-based economy) के रूप में बदलने वाली है.

पारंपरिक जीवाश्म ईंधन और प्राकृतिक गैसों की लगातार कमी हो रही है. इसी के साथ ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की मांग भी बढ़ती जा रही है. दोनों परिस्थितियों के मद्देनजर गैर-प्रदूषणकारी ऊर्जा के लिए अनुसंधान जरूरी बनता जा रहा है. इसके अलावा ऐसी ऊर्जा का संचय भी अनिवार्य बनता जा रहा है जिसे ग्रीन एनर्जी भी कहा जाता है.

इस संदर्भ में, कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में प्रयास कर रहे वैज्ञानिकों और इंसानों के लिए हाइड्रोजन आधारित अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में निवेश एक आशाजनक और भरोसेमंद विकल्प है.

ग्रीन एनर्जी सॉल्यूशंस पर काम कर रही शोध टीम की अगुवाई प्रोफेसर एनवी रवि कुमार कर रहे हैं. प्रोफेसर रवि आईआईटी मद्रास के मैटालर्जिकल (Metallurgical) और मटीरियल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में कार्यरत हैं. शोधकर्ताओं की यह टीम जर्मनी की कोलोन यूनिवर्सिटी (University of Cologne) के प्रोफेसर संजय माथुर सहित कई अन्य शोधकर्ताओं के साथ मिल कर काम कर रही है.

बता दें कि प्रोफेसर संजय माथुर आईआईटी मद्रास के मैटालर्जिकल (Metallurgical) और मटीरियल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में भी पढ़ाते रहे (Adjunct Faculty Member) हैं.

पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से हाइड्रोजन (H2) पैदा करने के महत्व के बारे में प्रोफेसर एनवी रवि कुमार ने कहा कि हाइड्रोजन उत्पादन के पारंपरिक तरीकों से बड़े पैमाने पर कार्बनडाइऑक्साइड (Co2) पैदा होता है. उन्होंने बताया कि Co2 एक ग्रीन हाउस गैस है और इसके उत्सर्जन से पर्यावरण के समक्ष गंभीर खतरे पैदा होते हैं. गौरतलब है कि हाइड्रोजन उत्पादन के पारंपरिक तरीकों में 'वाटर गैस कनवर्जन' और 'पार्शियल ऑक्सीडेशन ऑफ हाइड्रोकार्बन' शामिल हैं.

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प्रोफेसर रवि ने बताया कि शुद्ध हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए वाटर इलेक्ट्रोलायसिस (Water Electrolysis) एक साफ, आसान और प्रभावी पद्धति है. उन्होंने बताया कि इस पद्धति के माध्यम से पानी से इलेक्ट्रोकेमिल अलग किया जाता है. उन्होंने बताया कि शोध में अंतरराष्ट्रीय सहयोग लेने का मकसद एक नया और कम कीमत का इलेक्ट्रोकैटलिस्ट विकसित करना है. इससे हाइड्रोजन इवॉल्यूशन रिएक्शन किया जा सकेगा.

बता दें कि ग्रीन एनर्जी सॉल्यूशंस पर काम कर रही इस टीम में मैटेरियल केमिस्ट, सेरामिसिस्ट (ceramicists), निरुपण (characterization) के विशेषज्ञ शामिल हैं. इनके अलावा किरणों के वर्णक्रम को मापने के विषय (spectroscopy) और अभिकलनात्मक (computational) मैटेरियल से जुड़े विशेषज्ञ भी इस शोध कार्य से जुड़े हुए हैं.

टीम में शामिल शोधकर्ता अलग-अलग विषयों के हैं, इस बारे में प्रो. रवि कुमार ने कहा कि यह बहुविषयक (interdisciplinary) टीम वैज्ञानिक मुद्दों का समाधान करेगी. उन्होंने बताया कि शोध से वैज्ञानिक मुद्दों के अलावा एडवांस्ड इलेक्ट्रोकैटलिस्ट के बारे में समझ भी व्यापक बनेगी. प्रो. रवि ने बताया कि एडवांस्ड इलेक्ट्रोकैटलिस्ट को लैब की रिसर्च के बाद रिएक्टर या यंत्रों में लगाया जा सकता है.

Last Updated : Jun 29, 2020, 9:40 AM IST
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