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पारंपरिक कैंसर चिकित्सा को बनाया जा सकता है प्रभावी

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Published : Jun 24, 2020, 12:51 AM IST

डियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मद्रास के शोधकर्ताओं ने बताया कि पारंपरिक कैंसर चिकित्सा को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है. आईआईटी मद्रास टीम द्वारा किए गए अवलोकन बेहतर परिणामों के लिए फाइनेंशियल एंटीकैंसर उपचार के तरीके दिखाते हैं. शोध पढ़ें पूरी खबर...

Efficacy of Anti-Cancer Treatment at IIT Madras
कैंसर उपचार की प्रभावकारिता में सुधार

चेन्नई: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मद्रास के शोधकर्ताओं ने बताया कि पारंपरिक कैंसर चिकित्सा को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है. रिसर्च टीम रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीसीज (आरओएस) का अध्ययन करती है, जो हाइड्रोजन पेरोक्साइड और हाइड्रॉक्सिल रेडिकल्स जैसे अत्यधिक प्रतिक्रियाशील अणु हैं. यह किमोथेरेपी सहित कई सामान्य कैंसर उपचारों में उपयोग किए जाते हैं.

आईआईटी मद्रास टीम द्वारा किए गए अवलोकन बेहतर परिणामों के लिए फाइनेंशियल एंटीकैंसर उपचार के तरीके दिखाते हैं. शोध का नेतृत्व प्रो जी.के. सुर्यकुमार और प्रोफेसर डी. करुणागरण, संकाय, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, आईआईटी मद्रास कर रहा है. उनके हालिया काम को स्प्रिंगर-नेचर के प्रतिष्ठित पीयर-रिव्यू जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है.

शोध पत्र का सह-लेखक प्रो.सूर्यकुमार, प्रो. करुणागरण और रिसर्च स्कॉलर्स, सुश्री उमा किजुवेटिल और सुश्री सोनल ओमर ने किया था. यह विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार से अनुदान द्वारा आर्थिक रूप से समर्थित था.

उनके अनुसंधान और इसके महत्व को बताते हुए प्रो. जी.के. सुरेशकुमार ने कहा, 'प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियां ऐसे अणु हैं जो सामान्य कामकाज के दौरान शरीर में उत्पन्न होते हैं और कई चयापचय प्रक्रियाओं से जुड़े होते हैं. इन प्रजातियों का नियमन महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर अधिक उत्पादन होता है, तो यह ऑक्सीडेटिव तनाव और कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है. जिसके परिणामस्वरूप सूजन और विभिन्न बीमारियां हो सकती हैं.'

सुरेशकुमार ने आगे कहा, 'आरओएस के ज्ञात हानिकारक प्रभावों के बावजूद उनका उपयोग उन कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए किया जा सकता है जिन्हें हम नहीं चाहते हैं. जैसे कि कैंसर कोशिकाएं दरअसल, कीमोथेरेपी सहित सामान्य कैंसर चिकित्सा, कैंसर कोशिकाओं पर दवा द्वारा उत्पन्न आरओएस की कार्रवाई पर आधारित हैं.'

मानव शरीर में ऑक्सीडेटिव क्षति को रोकने के लिए शरीर में मौजूद आरओएस के स्तर को मध्यम करने के लिए एंटीऑक्सीडेंट अणु उत्पन्न होते हैं. आरओएस जनरेट करने वाले कैंसर के उपचार और काउंटर-ट्रीटमेंट का अनुकूलन करने के लिए ऑक्सीडेटिव तनाव का आकलन अक्सर कोशिकाओं में एंटीऑक्सिडेंट स्तर के मापन के माध्यम से किया जाता है.

आईआईटी मद्रास रिसर्च टीम ने दो प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन-प्रजातियों के यौगिकों के प्रभावों का अध्ययन किया है. मेनडायोन (विटामिन के थ्री) और करक्यूमिन (हल्दी का सक्रिय सिद्धांत). गर्भाशय ग्रीवा और पेट के कैंसर की कोशिकाओं पर उन्होंने अपने काम में दो दिलचस्प अवलोकन किए.

टीम ने दिखाया है कि कर्क्यूमिन के साथ इलाज किए जाने पर सेल में प्रभावी आरओएस का स्तर अलग-अलग होता है. इस प्रकार कैंसर विरोधी दवाओं के प्रशासन का समय इसकी प्रभावशीलता को प्रभावित कर सकता है.

पढ़ें- कोविड-19 : विश्व के मुकाबले भारत में प्रति लाख आबादी पर कम मामले

आईआईटी मद्रास टीम ने एक और दिलचस्प अवलोकन किया है कि सेलुलर एंटीऑक्सिडेंट स्तर सेल में प्रभावी आरओएस स्तर को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं. सुरेशकुमार ने कहा, 'यदि चिकित्सा मापदंडों को तय करने के लिए एंटीऑक्सिडेंट स्तरों का उपयोग करना कम उपयोगी होता है, तो हमारा आश्चर्य हमें आश्चर्यचकित करता है'.

चेन्नई: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मद्रास के शोधकर्ताओं ने बताया कि पारंपरिक कैंसर चिकित्सा को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है. रिसर्च टीम रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीसीज (आरओएस) का अध्ययन करती है, जो हाइड्रोजन पेरोक्साइड और हाइड्रॉक्सिल रेडिकल्स जैसे अत्यधिक प्रतिक्रियाशील अणु हैं. यह किमोथेरेपी सहित कई सामान्य कैंसर उपचारों में उपयोग किए जाते हैं.

आईआईटी मद्रास टीम द्वारा किए गए अवलोकन बेहतर परिणामों के लिए फाइनेंशियल एंटीकैंसर उपचार के तरीके दिखाते हैं. शोध का नेतृत्व प्रो जी.के. सुर्यकुमार और प्रोफेसर डी. करुणागरण, संकाय, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, आईआईटी मद्रास कर रहा है. उनके हालिया काम को स्प्रिंगर-नेचर के प्रतिष्ठित पीयर-रिव्यू जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है.

शोध पत्र का सह-लेखक प्रो.सूर्यकुमार, प्रो. करुणागरण और रिसर्च स्कॉलर्स, सुश्री उमा किजुवेटिल और सुश्री सोनल ओमर ने किया था. यह विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार से अनुदान द्वारा आर्थिक रूप से समर्थित था.

उनके अनुसंधान और इसके महत्व को बताते हुए प्रो. जी.के. सुरेशकुमार ने कहा, 'प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियां ऐसे अणु हैं जो सामान्य कामकाज के दौरान शरीर में उत्पन्न होते हैं और कई चयापचय प्रक्रियाओं से जुड़े होते हैं. इन प्रजातियों का नियमन महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर अधिक उत्पादन होता है, तो यह ऑक्सीडेटिव तनाव और कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है. जिसके परिणामस्वरूप सूजन और विभिन्न बीमारियां हो सकती हैं.'

सुरेशकुमार ने आगे कहा, 'आरओएस के ज्ञात हानिकारक प्रभावों के बावजूद उनका उपयोग उन कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए किया जा सकता है जिन्हें हम नहीं चाहते हैं. जैसे कि कैंसर कोशिकाएं दरअसल, कीमोथेरेपी सहित सामान्य कैंसर चिकित्सा, कैंसर कोशिकाओं पर दवा द्वारा उत्पन्न आरओएस की कार्रवाई पर आधारित हैं.'

मानव शरीर में ऑक्सीडेटिव क्षति को रोकने के लिए शरीर में मौजूद आरओएस के स्तर को मध्यम करने के लिए एंटीऑक्सीडेंट अणु उत्पन्न होते हैं. आरओएस जनरेट करने वाले कैंसर के उपचार और काउंटर-ट्रीटमेंट का अनुकूलन करने के लिए ऑक्सीडेटिव तनाव का आकलन अक्सर कोशिकाओं में एंटीऑक्सिडेंट स्तर के मापन के माध्यम से किया जाता है.

आईआईटी मद्रास रिसर्च टीम ने दो प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन-प्रजातियों के यौगिकों के प्रभावों का अध्ययन किया है. मेनडायोन (विटामिन के थ्री) और करक्यूमिन (हल्दी का सक्रिय सिद्धांत). गर्भाशय ग्रीवा और पेट के कैंसर की कोशिकाओं पर उन्होंने अपने काम में दो दिलचस्प अवलोकन किए.

टीम ने दिखाया है कि कर्क्यूमिन के साथ इलाज किए जाने पर सेल में प्रभावी आरओएस का स्तर अलग-अलग होता है. इस प्रकार कैंसर विरोधी दवाओं के प्रशासन का समय इसकी प्रभावशीलता को प्रभावित कर सकता है.

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आईआईटी मद्रास टीम ने एक और दिलचस्प अवलोकन किया है कि सेलुलर एंटीऑक्सिडेंट स्तर सेल में प्रभावी आरओएस स्तर को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं. सुरेशकुमार ने कहा, 'यदि चिकित्सा मापदंडों को तय करने के लिए एंटीऑक्सिडेंट स्तरों का उपयोग करना कम उपयोगी होता है, तो हमारा आश्चर्य हमें आश्चर्यचकित करता है'.

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