लखनऊ : अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह वैकल्पिक मस्जिद के निर्माण के लिए उत्तर प्रदेश केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा गठित ट्रस्ट इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन (IICF) ने अपना आधिकारिक लोगो जारी कर दिया है. शनिवार को जारी किया गया यह लोगो बहुभुजी आकार का है.
इसको 60 हिज्बों में विभाजित किया गया है. हिज्ब कुरान को याद करने का एक आसान तरीका होता है. आम तौर पर इस प्रतीक का उपयोग अरबी कैलिग्राफी में अध्याय को चिन्हित करने के लिए मार्कर के तौर पर किया जाता है. आकृति के निचले हिस्से में अंग्रेजी में आईआईसीएफ लिखा गया है.
बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने 9 नवंबर 2019 को अपने फैसले में अयोध्या के विवादित स्थल पर राम मंदिर का निर्माण कराने और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को मस्जिद के निर्माण के लिए अयोध्या में किसी प्रमुख स्थान पर 5 एकड़ जमीन देने का आदेश जारी किया था.
इसके बाद सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ट्रस्ट का गठन किया. ट्रस्ट में लोगों की अधिकतम संख्या 15 होगी, इसमें अब तक केवल 9 नामों की घोषणा की गई है.
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड फाउंडेशन का ट्रस्टी होगा, जबकि अध्यक्ष जफर फारूकी मुख्य ट्रस्टी होंगे और अतहर हुसैन को ट्रस्ट का सचिव और प्रवक्ता नियुक्त किया गया.
अतहर हुसैन ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि अयोध्या के धन्नीपुर में बनने वाली मस्जिद का नाम मुगल सम्राट बाबर के नाम का नहीं होगा। दूसरे शब्दों में कहे तो नई मस्जिद को 'बाबरी मस्जिद' नहीं कहा जाएगा. इसका नाम किसी भी सम्राट या शासक के नाम पर नहीं होगा.
उन्होंने कहा कि इस साल 24 फरवरी को जमीन उपलब्ध कराने के तुरंत बाद तुरंत ही कोविड-19 महामारी शुरू हो गई. चीजें उस समय उतनी बुरी नहीं थीं, जितनी आज हैं. इस बीच, इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन की स्थापना सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा की गई और इसे मस्जिद और आसपास की सुविधाओं के निर्माण के लिए सौंपा गया.
उन्होंने कहा किहमारी गतिविधि और हमारी गति की दूसरे ट्रस्ट के साथ तुलना करना बहुत अनुचित है. हमें दो अगस्त को ही भूमि के कागजात सौंपे गए हैं और पांच अगस्त को प्रधानमंत्री ने एक कार्यक्रम में भाग लिया था. हम कागजात दिए जाने के बाद से वहां नहीं गए. एक-दो दिन में हम जाकर औपचारिक रूप से जमीन का कब्जा ले लेंगे.
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उन्होंने आगे कहा कि जिस इस्लाम में हम विश्वास रखते हैं, उसमें मस्जिद के नाम का कोई महत्व नहीं है। 'सजदा' ही सब मायने रखता है। इमारत या संरचना का आकार और नाम मायने नहीं रखता। इस तरह की बातों को लेकर चिल्लाना और मस्जिद के नाम पर रोना महज पहचान की राजनीति के लिए ही है। जहां तक धार्मिक पहलू का सवाल है, मस्जिद का नाम से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन हमने विचार किया है कि हम किसी भी सम्राट या किसी शासक के नाम पर मस्जिद का नाम नहीं रखेंगे, यह सुनिश्चित