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कोरोना दवाइयों को बाजार में लाने में बाधा न बने लालफीताशाही : आईसीएमआर

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Published : Jul 4, 2020, 10:02 PM IST

स्वदेशी कोरोना वैक्सीन विवाद पर आईसीएमआर ने कहा है कि फास्ट ट्रैक परीक्षण किटों के अनुमोदन में या भारतीय बाजार में इन किटों को उतारने के लिए जब लालफीताशाही बाधा नहीं बनी तो कोरोना की दवाइयों को बाजार में लाने के लिए भी लालफीताशाही को बाधा नहीं बनना चाहिए. पढ़ें विस्तार से...

कोरोना वैक्सीन विवाद पर आईसीएमआर
कोरोना वैक्सीन विवाद पर आईसीएमआर

नई दिल्ली: भारत के स्वदेशी कोरोना वैक्सीन विवाद के बीच भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने शनिवार को स्वीकार किया कि लालफीताशाही भारत सरकार के कामकाज में अड़चनें पैदा करती है.

कोविड-19 वैक्सीन के फास्ट ट्रैक का उल्लेख करते हुए आईसीएमआर ने कहा कि फास्ट ट्रैक परीक्षण किटों के अनुमोदन में या भारतीय बाजार में इन किटों को उतारने के लिए जब लालफीताशाही बाधा नहीं बनी तो कोरोना की दवाइयों को बाजार में लाने के लिए भी लालफीताशाही को बाधा नहीं बनना चाहिए.

आईसीएमआर ने आगे कहा कि वह भारत के लोगों की सुरक्षा और हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के लिए प्रतिबद्ध है.

आईसीएमआर का यह बयान डायरेक्टर जनरल डॉ. बलराम भार्गव के विवादों में घिरने के बाद आया है, जब उन्होंने कहा था कि देश के 12 क्लीनिकल ट्रायल साइट्स को 15 अगस्त तक या उससे पहले कोरोना वायरस के वैक्सीन को तैयार करने का निर्देश दिया गया है.

जिस समय डॉ. भार्गव ने पत्र लिखकर वैक्सीन तैयार करने को कहा, उसी समय देशभर के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने आवाज उठाते हुए पूछा कि 30-40 दिनों में एक महामारी का टीका कैसे विकसित किया जा सकता है.

आईसीएमआर ने कहा कि भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड के दिए गए आंकड़ों की गहन समीक्षा और विश्लेषण के बाद आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (पुणे) ने इसके क्लीनिकल ​​विकास का समर्थन किया है, क्योंकि वैक्सीन के लिए जिस उम्मीदवार का चयन किया गया है, ट्रायल के बाद परीक्षण के सकारात्मक रिजल्ट आने की उम्मीद है.

आईसीएमआर ने कहा कि प्री-क्लीनिकल स्टडीज से उपलब्ध आंकड़ों की गहराई से जांच के आधार पर, ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने फेज 1 और फेज 2 क्लीनिकल ट्रायल करने की अनुमति दर्ज की है. बड़े जनहित में आईसीएमआर के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह एक होनहार स्वदेशी वैक्सीन के साथ क्लीनिकल ​​परीक्षणों में तेजी लाए.

आईसीएमआर ने कहा कि आईसीएमआर की प्रक्रिया विश्वस्तर पर मान्य उन मानदंडों के अनुसार है जिसमें महामारी की स्थिति में उसके इलाज के लिए टीके के विकास को तेजी से विकासित करने के लिए मनुष्य और जानवर दोनों पर क्लीनिकल ट्रायल साथ-साथ किया जा सकता है.

अब जब प्री-क्लीनिकल अध्ययन सफलतापूर्वक पूरा हो गया है, फेज 1 और फेज 2 में मानव परीक्षण शुरू किए जाने हैं. आईसीएमआर ने एक बयान में कहा कि जो पत्र आईसीएमआर के डीजी ने शोधकर्ताओं को लिखा था उसका सीधा मतलब था लालफीताशाही द्वारा परीक्षण की गति को धीमा न किया जाए और परीक्षण को किसी तरह की बाधा पहुंचाए बिना जरूरी कदम उठाए जाएं ताकि परीक्षण को जल्द से जल्द पूरा किया जा सके.

आईसीएमआर चिकित्सा अनुसंधान और विनियमों के क्षेत्र में दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित संगठन में से एक है और भारत के विश्वस्तर पर सम्मानित और स्वीकृत वैक्सीन और ड्रग उद्योग की सुविधा मुहैया कराने के लिए मान्यता प्राप्त है.

आईसीएमआर ने कहा कि हमारा परीक्षण हर कसौटी पर परखा जाएगा और इसके परिणामों की डेटा सुरक्षा निगरानी बोर्ड द्वारा समीक्षा की जाएगी. समय-समय पर उठाए गए सवालों का आईसीएमआर स्वागत करता है लेकिन भारत के चिकित्सकों और शोधकर्ताओं की क्षमताओं पर सवाल नहीं उठाना चाहिए.

नई दिल्ली: भारत के स्वदेशी कोरोना वैक्सीन विवाद के बीच भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने शनिवार को स्वीकार किया कि लालफीताशाही भारत सरकार के कामकाज में अड़चनें पैदा करती है.

कोविड-19 वैक्सीन के फास्ट ट्रैक का उल्लेख करते हुए आईसीएमआर ने कहा कि फास्ट ट्रैक परीक्षण किटों के अनुमोदन में या भारतीय बाजार में इन किटों को उतारने के लिए जब लालफीताशाही बाधा नहीं बनी तो कोरोना की दवाइयों को बाजार में लाने के लिए भी लालफीताशाही को बाधा नहीं बनना चाहिए.

आईसीएमआर ने आगे कहा कि वह भारत के लोगों की सुरक्षा और हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के लिए प्रतिबद्ध है.

आईसीएमआर का यह बयान डायरेक्टर जनरल डॉ. बलराम भार्गव के विवादों में घिरने के बाद आया है, जब उन्होंने कहा था कि देश के 12 क्लीनिकल ट्रायल साइट्स को 15 अगस्त तक या उससे पहले कोरोना वायरस के वैक्सीन को तैयार करने का निर्देश दिया गया है.

जिस समय डॉ. भार्गव ने पत्र लिखकर वैक्सीन तैयार करने को कहा, उसी समय देशभर के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने आवाज उठाते हुए पूछा कि 30-40 दिनों में एक महामारी का टीका कैसे विकसित किया जा सकता है.

आईसीएमआर ने कहा कि भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड के दिए गए आंकड़ों की गहन समीक्षा और विश्लेषण के बाद आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (पुणे) ने इसके क्लीनिकल ​​विकास का समर्थन किया है, क्योंकि वैक्सीन के लिए जिस उम्मीदवार का चयन किया गया है, ट्रायल के बाद परीक्षण के सकारात्मक रिजल्ट आने की उम्मीद है.

आईसीएमआर ने कहा कि प्री-क्लीनिकल स्टडीज से उपलब्ध आंकड़ों की गहराई से जांच के आधार पर, ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने फेज 1 और फेज 2 क्लीनिकल ट्रायल करने की अनुमति दर्ज की है. बड़े जनहित में आईसीएमआर के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह एक होनहार स्वदेशी वैक्सीन के साथ क्लीनिकल ​​परीक्षणों में तेजी लाए.

आईसीएमआर ने कहा कि आईसीएमआर की प्रक्रिया विश्वस्तर पर मान्य उन मानदंडों के अनुसार है जिसमें महामारी की स्थिति में उसके इलाज के लिए टीके के विकास को तेजी से विकासित करने के लिए मनुष्य और जानवर दोनों पर क्लीनिकल ट्रायल साथ-साथ किया जा सकता है.

अब जब प्री-क्लीनिकल अध्ययन सफलतापूर्वक पूरा हो गया है, फेज 1 और फेज 2 में मानव परीक्षण शुरू किए जाने हैं. आईसीएमआर ने एक बयान में कहा कि जो पत्र आईसीएमआर के डीजी ने शोधकर्ताओं को लिखा था उसका सीधा मतलब था लालफीताशाही द्वारा परीक्षण की गति को धीमा न किया जाए और परीक्षण को किसी तरह की बाधा पहुंचाए बिना जरूरी कदम उठाए जाएं ताकि परीक्षण को जल्द से जल्द पूरा किया जा सके.

आईसीएमआर चिकित्सा अनुसंधान और विनियमों के क्षेत्र में दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित संगठन में से एक है और भारत के विश्वस्तर पर सम्मानित और स्वीकृत वैक्सीन और ड्रग उद्योग की सुविधा मुहैया कराने के लिए मान्यता प्राप्त है.

आईसीएमआर ने कहा कि हमारा परीक्षण हर कसौटी पर परखा जाएगा और इसके परिणामों की डेटा सुरक्षा निगरानी बोर्ड द्वारा समीक्षा की जाएगी. समय-समय पर उठाए गए सवालों का आईसीएमआर स्वागत करता है लेकिन भारत के चिकित्सकों और शोधकर्ताओं की क्षमताओं पर सवाल नहीं उठाना चाहिए.

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