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जानें कैसे 1893 में शुरू हुए गणेशोत्सव ने लोगों को एक धागे में पिरो दिया...

गणेश उत्सव बड़े ही धूमधाम से पूरे देशभर में मनाया जाता है. इस रिपोर्ट में हम आपको बताते हैं कैसे देश में गणेश उत्सव की शुरुआत हुई. पढ़ें पूरी खबर...

गणपति बप्पा मोरया
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Published : Aug 31, 2019, 2:58 PM IST

Updated : Sep 28, 2019, 11:26 PM IST

रायपुर: गणपति बप्पा देश के कोने-कोने में विराजने वाले हैं. गणेशोत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं. लेकिन कभी आपने सोचा कि इस उत्सव की शुरुआत कहां से हुई, कैसे ये त्योहार देशभर में धूमधाम से मनाया जाने लगा. देश में आजादी की लौ जगाने शुरू हुआ ये पर्व आज भारत के लगभग हर राज्य में मनाया जाता है.

जानें कैसे 1893 में शुरू हुए गणेशोत्सव
  • देश में गणेश उत्सव मनाने की परंपरा महाराष्ट्र से शुरू हुई है. आजादी की लड़ाई के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसकी शुरुआत की थी. इसके कुछ वर्षों बाद ही यह परंपरा धीरे-धीरे लगभग सभी राज्यों तक जा पहुंची है.
  • महाराष्ट्र में सातवाहन, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि राजाओं ने गणेशोत्सव की प्रथा चलाई थी. हालांकि तब तक ये उत्सव सिर्फ घरों तक ही सीमित था.
  • लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में गणेशोत्सव का शुभारंभ किया था.
  • 1893 में सार्वजनिक रूप से पहली बार पुणे में गणेशोत्सव मनाया गया था.
  • यह उत्सव हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी तक यानी कि 10 दिन तक चलता है.
  • लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणोत्सव को को जो स्वरूप दिया, उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए.
  • अंग्रेजो की हुकूमत को उखाड़ फेंकने और देश को आजादी दिलाने के मकसद से शुरु किए गए गणेशोत्सव ने देखते ही देखते पूरे महाराष्ट्र में एक नया आंदोलन छेड़ दिया.
  • गणेश पंडाल के माध्य्म से लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन ओर राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ा गया. छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का जरिया ये उत्सव बना.
  • गणेश पंडालों में राष्ट्रीय कार्यक्रम और सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ करते थे. बाद में स्थानीय लोगों ने भी गणेश उत्सव मनाना शुरू किया.
  • इतिहासकार डॉ रमेन्द्र नाथ मिश्र बताते हैं कि गणेश रखने की परंपरा से सामाजिक संचेतना का विकास हुआ साथ ही राष्ट्रीय आंदोलन को गति मिली.
  • आजादी की लड़ाई में गणेशोत्सव ने काफी लोगों को जागृत किया क्योंकि उस समय लोग सार्वजनिक रूप से आपस में विचार-विमर्श नहीं कर पाए थे. इस माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान हो जाता था.
  • महाराष्ट्र के बाद पूरे देश में मनाया जाने लगा गणेशोत्सव
  • स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महादेव प्रसाद पाण्डेय बताते हैं, गणेश उत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र में हुई इसके बाद धीरे-धीरे ये पूरे देश में मनाया जाने लगा. गणेशोत्सव के माध्यम से देश में आजादी के आंदोलन को बढ़ाने का और जागरूकता बढ़ाने का काम हुआ. वही बाद में भी गणेश समितियों के द्वारा कई तरह के सामाजिक कार्य संपन्न हुए.
  • छत्तीसगढ़ में गणेशोत्सव का इतिहास-
  • शुरुआत में छत्तीसगढ़ में खासतौर पर रायपुर और राजनांदगांव में गणेश प्रतिमा स्थापित करने और इसे धूमधाम से मनाने की परंपरा शुरू हुई.
  • रायपुर शहर की बात करें, तो यहां करीब सवा सौ साल पहले पुरानी बस्ती में गणपति की स्थापना की गई थी. वहीं लोहार चौक और महाराष्ट्र मंडल द्वारा गणेश उत्सव 100 सालों से मनाया जा रहा है.
  • स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महादेव प्रसाद पाण्डेय बताते हैं, गणेश उत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र में हुई इसके बाद धीरे-धीरे नागपुर और नागपुर के बाद रायपुर में गणेश उत्सव मनाया जाने लगा.
  • महरु दाऊ और लोहारपारा में सुकरू लोहार का गणेश रखा जाता था, जिसे देखने लोग दूर दूर से आते थे.
  • वहीं के गणेश पंडाल के माध्यम से राष्ट्रीय घटनाओं, शहीदों की झांकी रखी जाती थी. राष्ट्र प्रेम और संस्कृति को युवाओं और समाज में जागरूकता मफैलाने का काम किया जाता था.
  • इतिहासकार डॉ रमेन्द्र नाथ मिश्र रायपुर के गणेश उत्सव के बारे में बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में गणेशोत्सव का इतिहास लगभग 100 साल से 150 साल पुराना है. पुरानी बस्ती ,गोल बाजार ,सदर बाजार ,बनियापारा ,लोहार चौक सभी स्थानों में उत्साह पूर्वक गणेश उत्सव मनाया जाता था.
  • लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से प्रेरित होकर रायपुर में रहने वाले महाराष्ट्रीयन ने 1935 में महाराष्ट्र मंडल की स्थापना की, जिसका आफिस तात्यापारा में हुआ करता था. वहीं 1936 से महाराष्ट्र मंडल ने गणपति स्थापना की शुरुआत की . उस समय स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था इसलिए लोगों को जन जागरूक कार्यक्रम कर लोगों को जोड़ा जाने लगा.
  • महाराष्ट्र मंडल के पदाधिकारी बताते हैं महाराष्ट्र मंडल में 1936 से गणपति की स्थापना की शुरुआत की गई उसके बाद 1938 से उसका रेगुलराइजेशन शुरू हुआ, गणेश उत्सव के दौरान एक नाटक, शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम, और गेट टू गेदर किया जाने लगा. बाद में मंडल द्वारा नागरिक संवाद कार्यक्रम की शुरूआत की गई जो पूरे छत्तीसगढ़ में लोकप्रिय कार्यक्रम हुआ करता था.
  • जिसमे कमल नारायण शर्मा, द्वारिका प्रसाद मिश्रा ,पंडित रविशंकर शुक्ल, पंडित सुंदरलाल शर्मा, सुधीर मुखर्जी उस समय के बड़े नेता अलग अलग पक्ष वाले आपस में जोर शोर से एक विषय पर आपस में वाद विवाद होता था.

1938 में गणपति का 100 रुपए का बजट

महाराष्ट्र के रिकॉर्ड के अनुसार गणपति को लेकर कमेटी बनाई गई थी, जिसमें सन 1938 में समिति द्वारा गणपति का बजट 100 रुपए का बनाया गया था. जिमसें प्राण प्रतिष्ठा और मूर्ति के लिए 10 रुपए, कार्यक्रम के लिए 50 रुपए, विसर्जन के लिए 25 रुपए और प्रसाद अन्य खर्च के लिए 15 रुपए.
अब गणेश उत्सव का आकार और भव्यता लगातार बढ़ती जा रही है. जहां आजादी के पहले 100 रुपए के बजट में शहर का सबसे बड़ा गणेश उत्सव संपन्न हो जाता था. वहीं अब यह बजट 10 लाख को भी पार कर गया है.

रायपुर: गणपति बप्पा देश के कोने-कोने में विराजने वाले हैं. गणेशोत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं. लेकिन कभी आपने सोचा कि इस उत्सव की शुरुआत कहां से हुई, कैसे ये त्योहार देशभर में धूमधाम से मनाया जाने लगा. देश में आजादी की लौ जगाने शुरू हुआ ये पर्व आज भारत के लगभग हर राज्य में मनाया जाता है.

जानें कैसे 1893 में शुरू हुए गणेशोत्सव
  • देश में गणेश उत्सव मनाने की परंपरा महाराष्ट्र से शुरू हुई है. आजादी की लड़ाई के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसकी शुरुआत की थी. इसके कुछ वर्षों बाद ही यह परंपरा धीरे-धीरे लगभग सभी राज्यों तक जा पहुंची है.
  • महाराष्ट्र में सातवाहन, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि राजाओं ने गणेशोत्सव की प्रथा चलाई थी. हालांकि तब तक ये उत्सव सिर्फ घरों तक ही सीमित था.
  • लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में गणेशोत्सव का शुभारंभ किया था.
  • 1893 में सार्वजनिक रूप से पहली बार पुणे में गणेशोत्सव मनाया गया था.
  • यह उत्सव हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी तक यानी कि 10 दिन तक चलता है.
  • लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणोत्सव को को जो स्वरूप दिया, उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए.
  • अंग्रेजो की हुकूमत को उखाड़ फेंकने और देश को आजादी दिलाने के मकसद से शुरु किए गए गणेशोत्सव ने देखते ही देखते पूरे महाराष्ट्र में एक नया आंदोलन छेड़ दिया.
  • गणेश पंडाल के माध्य्म से लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन ओर राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ा गया. छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का जरिया ये उत्सव बना.
  • गणेश पंडालों में राष्ट्रीय कार्यक्रम और सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ करते थे. बाद में स्थानीय लोगों ने भी गणेश उत्सव मनाना शुरू किया.
  • इतिहासकार डॉ रमेन्द्र नाथ मिश्र बताते हैं कि गणेश रखने की परंपरा से सामाजिक संचेतना का विकास हुआ साथ ही राष्ट्रीय आंदोलन को गति मिली.
  • आजादी की लड़ाई में गणेशोत्सव ने काफी लोगों को जागृत किया क्योंकि उस समय लोग सार्वजनिक रूप से आपस में विचार-विमर्श नहीं कर पाए थे. इस माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान हो जाता था.
  • महाराष्ट्र के बाद पूरे देश में मनाया जाने लगा गणेशोत्सव
  • स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महादेव प्रसाद पाण्डेय बताते हैं, गणेश उत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र में हुई इसके बाद धीरे-धीरे ये पूरे देश में मनाया जाने लगा. गणेशोत्सव के माध्यम से देश में आजादी के आंदोलन को बढ़ाने का और जागरूकता बढ़ाने का काम हुआ. वही बाद में भी गणेश समितियों के द्वारा कई तरह के सामाजिक कार्य संपन्न हुए.
  • छत्तीसगढ़ में गणेशोत्सव का इतिहास-
  • शुरुआत में छत्तीसगढ़ में खासतौर पर रायपुर और राजनांदगांव में गणेश प्रतिमा स्थापित करने और इसे धूमधाम से मनाने की परंपरा शुरू हुई.
  • रायपुर शहर की बात करें, तो यहां करीब सवा सौ साल पहले पुरानी बस्ती में गणपति की स्थापना की गई थी. वहीं लोहार चौक और महाराष्ट्र मंडल द्वारा गणेश उत्सव 100 सालों से मनाया जा रहा है.
  • स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महादेव प्रसाद पाण्डेय बताते हैं, गणेश उत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र में हुई इसके बाद धीरे-धीरे नागपुर और नागपुर के बाद रायपुर में गणेश उत्सव मनाया जाने लगा.
  • महरु दाऊ और लोहारपारा में सुकरू लोहार का गणेश रखा जाता था, जिसे देखने लोग दूर दूर से आते थे.
  • वहीं के गणेश पंडाल के माध्यम से राष्ट्रीय घटनाओं, शहीदों की झांकी रखी जाती थी. राष्ट्र प्रेम और संस्कृति को युवाओं और समाज में जागरूकता मफैलाने का काम किया जाता था.
  • इतिहासकार डॉ रमेन्द्र नाथ मिश्र रायपुर के गणेश उत्सव के बारे में बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में गणेशोत्सव का इतिहास लगभग 100 साल से 150 साल पुराना है. पुरानी बस्ती ,गोल बाजार ,सदर बाजार ,बनियापारा ,लोहार चौक सभी स्थानों में उत्साह पूर्वक गणेश उत्सव मनाया जाता था.
  • लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से प्रेरित होकर रायपुर में रहने वाले महाराष्ट्रीयन ने 1935 में महाराष्ट्र मंडल की स्थापना की, जिसका आफिस तात्यापारा में हुआ करता था. वहीं 1936 से महाराष्ट्र मंडल ने गणपति स्थापना की शुरुआत की . उस समय स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था इसलिए लोगों को जन जागरूक कार्यक्रम कर लोगों को जोड़ा जाने लगा.
  • महाराष्ट्र मंडल के पदाधिकारी बताते हैं महाराष्ट्र मंडल में 1936 से गणपति की स्थापना की शुरुआत की गई उसके बाद 1938 से उसका रेगुलराइजेशन शुरू हुआ, गणेश उत्सव के दौरान एक नाटक, शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम, और गेट टू गेदर किया जाने लगा. बाद में मंडल द्वारा नागरिक संवाद कार्यक्रम की शुरूआत की गई जो पूरे छत्तीसगढ़ में लोकप्रिय कार्यक्रम हुआ करता था.
  • जिसमे कमल नारायण शर्मा, द्वारिका प्रसाद मिश्रा ,पंडित रविशंकर शुक्ल, पंडित सुंदरलाल शर्मा, सुधीर मुखर्जी उस समय के बड़े नेता अलग अलग पक्ष वाले आपस में जोर शोर से एक विषय पर आपस में वाद विवाद होता था.

1938 में गणपति का 100 रुपए का बजट

महाराष्ट्र के रिकॉर्ड के अनुसार गणपति को लेकर कमेटी बनाई गई थी, जिसमें सन 1938 में समिति द्वारा गणपति का बजट 100 रुपए का बनाया गया था. जिमसें प्राण प्रतिष्ठा और मूर्ति के लिए 10 रुपए, कार्यक्रम के लिए 50 रुपए, विसर्जन के लिए 25 रुपए और प्रसाद अन्य खर्च के लिए 15 रुपए.
अब गणेश उत्सव का आकार और भव्यता लगातार बढ़ती जा रही है. जहां आजादी के पहले 100 रुपए के बजट में शहर का सबसे बड़ा गणेश उत्सव संपन्न हो जाता था. वहीं अब यह बजट 10 लाख को भी पार कर गया है.

Intro:रायपुर।।

वैसे तो देश में गणेश उत्सव मनाने की परंपरा महाराष्ट्र से शुरू होती है। आजादी की लड़ाई के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसकी शुरुआत की थी।इसके कुछ वर्षों बाद ही यह परंपरा छत्तीसगढ़ तक पहुंच गई खासतौर पर रायपुर और राजनांदगांव में गणेश प्रतिमा स्थापित करने और इसे धूमधाम से मनाने की परंपरा शुरू हुई।।

रायपुर शहर की बात करें तो यहां करीब सवा सौ साल पहले पुरानी बस्ती में गणपति की स्थापना की गई थी वहीं लोहार चौक और महाराष्ट्र मंडल द्वारा गणेश उत्सव 100 सालों से मनाया जा रहा है।




Body:गणेश बैठाने से ना केवल बच्चों और युवाओं में धार्मिक भावना मजबूत होती है, वही एक साथ मिलजुल कर बड़े उत्सव को मनाया जाता ।गणेश समिति में कार्य करते करते युवा प्रबंधन की बारीकियों को भी सीख जाते हैं।

जैसा कि गणेश उत्सव के माध्यम से देश में आजादी के आंदोलन को बढ़ाने का और जागरूकता बढ़ाने का काम हुआ वही बाद में भी गणेश समितियों के द्वारा कई तरह के सामाजिक कार्य संपन्न हुए।।

शहर में गणपति उत्सव के इतिहास को याद करते हुए, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महादेव प्रसाद पाण्डेय बताते हैं, गणेश उत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र में हुई इसके बाद धीरे-धीरे नागपुर और नागपुर के बाद रायपुर में गणेश उत्सव मनाया जाने लगा।। उस दौरान गणेश पंडाल के माध्य्म से लोगो को स्वतंत्रता आंदोलन ओर राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ा गया। रायपुर में बाल समाज ,महाराष्ट्र मंडल द्वारा इसका प्रारंभ किया गया।। गणेश पंडालों में राष्ट्रीय कार्यक्रम और सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ करते थे। बाद स्थानीय लोगों ने भी गणेश उत्सव मनाना शुरू किया जिसमें पुरानी बस्ती में महरु दाऊ और लोहारपारा में सुकरू लोहार का गणेश रखा जाता था जिसे देखने लोग दूर दूर से आते थे। वही के गणेश पंडाल के माध्यम से राष्ट्रीय घटनाओं ,शहीदों की झांकी रखी जाती थी। राष्ट्र प्रेम और संस्कृति को युवाओं और समाज में जागरूकता मफैलाने का काम किया जाता था।।

रायपुर शहर में गणपति उत्सव के दौरान एक अलग ही माहौल हुआ करता था इस दौरान आसपास के लोग भी यहां बैठे भव्य प्रतिमाओं के दर्शन के लिए आया करते थे। विसर्जन के दौरान निकलने वाली झांकी का लुफ्त उठाने प्रदेश भर से लोग रायपुर पहुंचा करते थे।



Conclusion:

इतिहासकार डॉ रमेन्द्र नाथ मिश्र रायपुर के गणेश उत्सव के बारे में बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में गणेशोत्सव का इतिहास लगभग 100 साल से 150साल पुराना है । पुरानी बस्ती ,गोल बाजार ,सदर बाजार ,बनियापारा ,लोहार चौक सभी स्थानों में उत्साह पूर्वक गणेश उत्सव मनाया जाता था।पहले पंडाल बनाकर गणेश रखने की परंपरा नहीं थी। पहले घर के हॉल में गणेश रखते थे जिसे लोग आसानी से देख पाते थे।। रायपुर में जितना भी गणेश बैठाया जाता था उसका जुलूस बनाकर पुरानी बस्ती के खो-खो तालाब में विसर्जन किया जाता था। उन्होने बताया कि गणेश रखने की परंपरा से सामाजिक संचेतना का विकास हुआ साथ ही राष्ट्रीय आंदोलन को गति मिली, ओर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से कलाकारों को अवसर मिला। आजादी की लड़ाई में गणेशोत्सव ने काफी लोगों को जागृत किया क्योंकि उस समय लोग सार्वजनिक रूप से आपस में विचार-विमर्श नही कर।पाए थे। बाहर अंग्रेजों के गुप्तचर लगे रहते थे मिलना जुलना मुश्किल था उस दृष्टिकोण से छत्तीसगढ़ में रायपुर का गणेश उत्सव सबसे पुराना है ।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से प्रेरित होकर रायपुर में रहने वाले महाराष्ट्रीयन ने 1935 में महाराष्ट्र मंडल की स्थापना की,जिसका आफिस तात्यापारा में हुआ करता था।। वही 1936 से महाराष्ट्र मंडल ने गणपति स्थापना की शुरुआत की । उस समय स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था इसलिए लोगों को जन जागरूक कार्यक्रम कर लोगों को जोड़ा जाने लगा।
महाराष्ट्र मंडल के पदाधिकारी बताते हैं महाराष्ट्र मंडल में 1936 से गणपति की स्थापना की शुरुआत की गई उसके बाद 1938 से उसका रेगुलराइजेशन शुरू हुआ, गणेश उत्सव के दौरान एक नाटक, शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम, और गेट टू गेदर किया जाने लगा।बाद में मंडल द्वारा नागरिक संवाद कार्यक्रम की शुरूआत की गई जो पूरे छत्तीसगढ़ में लोकप्रिय कार्यक्रम हुआ करता था। जिसमे कमल नारायण शर्मा, द्वारिका प्रसाद मिश्रा ,पंडित रविशंकर शुक्ल, पंडित सुंदरलाल शर्मा, सुधीर मुखर्जी उस समय के बड़े नेता अलग अलग पक्ष वाले आपस मे जोर शोर से एक विषय पर आपस मे वाद विवाद होता था।।

1938 में गणपति का 100 रुपए का बजट

महाराष्ट्र के रिकॉर्ड के अनुसार गणपति को लेकर कमेटी बनाई गई थी जिसमें सन 1938 में समिति द्वारा गणपति का बजट 100 रुपए का बनाया गया था।। जिमसें प्राण प्रतिष्ठा और मूर्ति के लिए 10 रुपए, कार्यक्रम के लिए 50 रुपए, विसर्जन के लिए 25 रुपए और प्रसाद अन्य खर्च के लिए 15 रुपए ।।
( रजिस्टर का विजुअल भेजा है)

गणेश उत्सव का आकार और भव्यता लगातार बढ़ती जा रही है जहां आजादी के पहले 100 रुपए के बजट में शहर का सबसे बड़ा गणेश उत्सव संपन्न हो जाता था वहीं अब यह बजट 10 लाख को भी पार कर गया है. जहां पहले गणेशोत्सव आजादी की लड़ाई से जुड़ा हुआ आयोजन था वहीं अब बाजार को गति प्रदान करने में सहायक है इसलिए इसकी महत्ता हमेशा बरकरार रही है..



बाईट 1

महादेव प्रसाद पाण्डेय
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी

(इनकी बाईट में आवाज बढ़ा लेंगे)


बाईट 2

डॉ रमेन्द्रनाथ मिश्र
इतिहासकार

बाईट 3

अजय काले
अध्यक्ष महाराष्ट्र मंडल


बाईट 4

अनिल कालेले
सेवानिवृत्त प्राध्यापक



कुछ विजुअल ओर फोटो भेजे है बैक ग्राउंड में।इस्तेमाल किया जा सकता है।।

पुराने फोटो रिपोर्टर एप से भेजे गए है।।
Last Updated : Sep 28, 2019, 11:26 PM IST
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