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मुगल सम्राट अकबर का हरियाणा से है खास नाता, बेटे की मन्नत लेकर आए थे दादा चोखा दरगाह - दुआ मांगी

अकबर बादशाह की कोई औलाद नहीं थी, तो उन्होंने दादा चोखा से औलाद की दुआ मांगी. जिस पर दादा चोखा शाह ने कहा कि तुम्हारी फरियाद ख्वाजा सलीम चिश्ती ने स्वीकार कर ली है और तुम्हारा लड़का होगा. तुम उस लड़के का नाम सलीम रखना. देखिए ईटीवी भारत की टीम पहुंची हरियाणा...

किस्सा हरियाणे का
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Published : Nov 24, 2019, 3:02 PM IST

नूंह: हरियाणा के नूंह में कस्बा पिनगवां से सटे गांव खोरी शाह चोखा के पहाड़ की चोटी में बनी वर्षों पुरानी दादा चौखा की दरगाह अपने आप में अनूठा इतिहास समेटे हुए है. मेवात में ना जाने कितने किस्से हैं जिसने भारत के इतिहास को अहम किरदार दिए. ऐसे ही हरियाणा के कुछ किस्सों और पूरानी कहानियों में को खोजते हुए, ईटीवी भारत हरियाणा की टीम पहुंची पुन्हाना के चौखा गांव में इस गांव में 500 साल पूरानी दादा चौखा शाह की मजार है.

बड़कली-पुन्हाना मार्ग पर बसा शाह चौखा गांव का यह मजार सैकड़ों फिट ऊंचाई पर बना हुआ है. इलाके में हिन्दू- मुस्लिम और अमूमन सभी धर्मों के लोग यहां मुराद मांगने और चादर चढ़ाने आते हैं. इस दुर्गम जगह पर बसे शाह चौखा की मजार के पीछे भी एक कहानी है. गांव वाले बताते हैं कि 500 साल पहले जब दादा शाह चौखा इसी जगह पहाड़ पर बैठे थे, तो कुछ लोग उनसे पूछने लगे कि आप कौन हो..? कहां से आये हो..? शाह चौखा ने उनसे बात की ग्रामीण उनसे संतुष्ट हुए और गांव में लोगों को बताया कि पहाड़ पर चोखो आदमी है यानी बढ़ियां शख्सियत है. उसी दिन से उनका नाम दादा शाह चौखा नाम पड़ गया.

दादा चोखा की दरगाह से स्पेशल रिपोर्ट

अकबर बादशाह की भरी गोद
बताया जाता है कि एक बार अकबर बादशाह फतेहपुर सीकरी से दिल्ली जा रहे थे, तो रास्ते में एक झोपड़ी में उन्होंने आराम किया. उस झोपड़ी में फकीर बाबा यानी दादा चौखा रहते थे. अकबर बादशाह की कोई औलाद नहीं थी, तो उन्होंने दादा चोखा से औलाद की दुआ मांगी. जिस पर उन्होंने कहा कि तुम्हारी फरियाद ख्वाजा सलीम चिश्ती ने कबूल कर ली है और तुम्हारा लड़का होगा. तुम उस लड़के का नाम सलीम रखना.

इसे भी पढ़ें- कराची में अगवा हुए धर्म गुरुओं को वापस वतन लाईं थी सुषमा, जानिए पूरा किस्सा

अकबर बादशाह वहां से आराम करने के बाद चले गए. जब अकबर बादशाह की पत्नी को लड़का हुआ और उन्होंने उसका नाम सलीम रखा, तो फिर से वह दिल्ली के लिए आए, तब उन्होंने झोपड़ी पर रुक कर दादा का धन्यवाद करना चाहा, लेकिन तब तक दादा चौखा अल्ला को प्यारे हो गए थे. उसी के बाद अकबर बादशाह ने उनकी याद में यह दरगाह बनवाई थी.

दादा चौखा के सेवकों का है गांव
दादा चौखा की आठ भाई सेवा करते थे और आज पूरा गांव उन आठ भाइयों की औलाद है. जो आज भी दादा की सेवा करते हैं. हर गुरुवार को यहां लोगों की भीड़ देखने को मिलती है और जो चढ़ावा लोगों से इकट्ठा होता है, उसी से इसका रख-रखाव का कार्य किया जाता है.

इसे भी पढ़ें- फरीदाबाद की 'डेथ वैली', जिसने 'सम्मोहन' से लील लीं सैकड़ों जिंदगियां

आज यहां चलता है मदरसा
आज भी दूरदराज से लोग यहां मन्नत मांगने आते हैं. इस दरगाह में अब इस्लामिया मदरसा भी चलता है, जिसमे लगभग 200 बच्चे तालीम हासिल करते हैं. इतना ही नहीं चुनाव में तो इस मजार पर सूबे के बड़े-बड़े महारथी मुराद मांगने आते हैं. लोगों की आस्था है कि यहां सच्चे मन से मुराद मांगने पर जरूर पूरी होती है. किस्सा हरियाणा के एपिसोड में फिलहास बस इतना ही. अगले एपिसोड में हम आपको रूबरू करवाएंगे हरियाणा की एक और नई कहानी से.

नूंह: हरियाणा के नूंह में कस्बा पिनगवां से सटे गांव खोरी शाह चोखा के पहाड़ की चोटी में बनी वर्षों पुरानी दादा चौखा की दरगाह अपने आप में अनूठा इतिहास समेटे हुए है. मेवात में ना जाने कितने किस्से हैं जिसने भारत के इतिहास को अहम किरदार दिए. ऐसे ही हरियाणा के कुछ किस्सों और पूरानी कहानियों में को खोजते हुए, ईटीवी भारत हरियाणा की टीम पहुंची पुन्हाना के चौखा गांव में इस गांव में 500 साल पूरानी दादा चौखा शाह की मजार है.

बड़कली-पुन्हाना मार्ग पर बसा शाह चौखा गांव का यह मजार सैकड़ों फिट ऊंचाई पर बना हुआ है. इलाके में हिन्दू- मुस्लिम और अमूमन सभी धर्मों के लोग यहां मुराद मांगने और चादर चढ़ाने आते हैं. इस दुर्गम जगह पर बसे शाह चौखा की मजार के पीछे भी एक कहानी है. गांव वाले बताते हैं कि 500 साल पहले जब दादा शाह चौखा इसी जगह पहाड़ पर बैठे थे, तो कुछ लोग उनसे पूछने लगे कि आप कौन हो..? कहां से आये हो..? शाह चौखा ने उनसे बात की ग्रामीण उनसे संतुष्ट हुए और गांव में लोगों को बताया कि पहाड़ पर चोखो आदमी है यानी बढ़ियां शख्सियत है. उसी दिन से उनका नाम दादा शाह चौखा नाम पड़ गया.

दादा चोखा की दरगाह से स्पेशल रिपोर्ट

अकबर बादशाह की भरी गोद
बताया जाता है कि एक बार अकबर बादशाह फतेहपुर सीकरी से दिल्ली जा रहे थे, तो रास्ते में एक झोपड़ी में उन्होंने आराम किया. उस झोपड़ी में फकीर बाबा यानी दादा चौखा रहते थे. अकबर बादशाह की कोई औलाद नहीं थी, तो उन्होंने दादा चोखा से औलाद की दुआ मांगी. जिस पर उन्होंने कहा कि तुम्हारी फरियाद ख्वाजा सलीम चिश्ती ने कबूल कर ली है और तुम्हारा लड़का होगा. तुम उस लड़के का नाम सलीम रखना.

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अकबर बादशाह वहां से आराम करने के बाद चले गए. जब अकबर बादशाह की पत्नी को लड़का हुआ और उन्होंने उसका नाम सलीम रखा, तो फिर से वह दिल्ली के लिए आए, तब उन्होंने झोपड़ी पर रुक कर दादा का धन्यवाद करना चाहा, लेकिन तब तक दादा चौखा अल्ला को प्यारे हो गए थे. उसी के बाद अकबर बादशाह ने उनकी याद में यह दरगाह बनवाई थी.

दादा चौखा के सेवकों का है गांव
दादा चौखा की आठ भाई सेवा करते थे और आज पूरा गांव उन आठ भाइयों की औलाद है. जो आज भी दादा की सेवा करते हैं. हर गुरुवार को यहां लोगों की भीड़ देखने को मिलती है और जो चढ़ावा लोगों से इकट्ठा होता है, उसी से इसका रख-रखाव का कार्य किया जाता है.

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आज यहां चलता है मदरसा
आज भी दूरदराज से लोग यहां मन्नत मांगने आते हैं. इस दरगाह में अब इस्लामिया मदरसा भी चलता है, जिसमे लगभग 200 बच्चे तालीम हासिल करते हैं. इतना ही नहीं चुनाव में तो इस मजार पर सूबे के बड़े-बड़े महारथी मुराद मांगने आते हैं. लोगों की आस्था है कि यहां सच्चे मन से मुराद मांगने पर जरूर पूरी होती है. किस्सा हरियाणा के एपिसोड में फिलहास बस इतना ही. अगले एपिसोड में हम आपको रूबरू करवाएंगे हरियाणा की एक और नई कहानी से.

Intro:संवाददाता नूंह मेवात 
स्टोरी ;- दादा शाह चौखा की ऐतिहासिक मजार पर विशेष कवरेज 
नूंह जिले की पुन्हाना विधानसभा के बड़े गांवों में शुमार शाह चौखा गांव में दादा शाह चौखा की ऐतिहासिक मजार है। दूरदराज से लोग यहां मन्नत मांगने आते हैं। इतना ही विधानसभा - लोकसभा चुनाव में तो इस मजार पर सूबे के बड़े - बड़े महारथी मुराद मांगने आते हैं। कई बार नेताओं की मुराद यहां पूरी भी हुई है। मजार करीब 500 वर्ष पुरानी है। उसी समय से शाह चौखा के नाम से गांव बसा जो पहले खोरी के नाम से जाना जाता था। पूर्व सीएम ओपी चौटाला , केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह , पूर्व मंत्री मोहमद इलियास , पूर्व विधायक स्वर्गीय चौधरी हामिद  हुसैन , पूर्व मंत्री आफ़ताब अहमद , राज्य मंत्री रहीस खान सहित कई बड़े दिग्गज यहां चुनाव प्रचार में आ चुके हैं। मन्नत मांगने वालों की तो कोई गिनती ही नहीं है। बड़कली - पुन्हाना मार्ग पर बसा शाह चौखा गांव का यह मजार सैकड़ों फिट ऊंचाई पर बना हुआ है। इलाके में हिन्दू - मुस्लिम सभी धर्मों के लोग यहां मुराद मांगने और चादर चढ़ाने आते हैं। मुग़ल बादशाह अकबर ने भी यहां मन्नत मांगी थी , तभी उसके घर में बच्चे की किलकारी लडके के रूप में सुनाई दी। गांव वाले बताते हैं कि जब दादा शाह चौखा पहाड़ पर बैठे थे , तो कुछ लोग उनसे पूछने लगे कि आप कौन हो , कहां से आये हो। बातचीत में ग्रामीणों दादा शाह चौखा से संतुष्टि हुई और उन्होंने बाकि गांव वालों को बताया कि चोखों आदमी है यानि बढ़िया व्यक्ति है। उसी दिन है चौखा नाम पड़ गया। उसी की याद में यह आलिशान मजार बनाई गई। मान्यता तो यह भी है कि यह मजार एक ही रात में बनाई गई। दादा चौखा का पैर आज भी पत्थर पर छपा हुआ है। उसी से लगता है कि दादा शाह चौखा विशाल कद - काठी के व्यक्ति थे। उनके 11 पुत्र थे , जिन्होंने गांव शाह चौखा बसाया था। बुजुर्ग बताते हैं कि सऊदी अरब से दादा शाह चौखा दिल्ली आये थे और बाद में वे अमन - शांति का पैगाम लेकर खोरी चौखा गांव में आये थे। मजार में विशाल दरवाजे हैं , जिनको सरसों का तेल लगाकर आज भी सुरक्षित रखा गया है। तख़्त , दरवाजे , खिड़कियां सब ठीक स्तिथि में हैं। आजकल इस मजार पर इस्लामिक मदरसा चलता है , जिसमें करीब 210 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। भले ही आज हाईटैक जमाना हो। गरीब के घर में भी बिजली की रौशनी हो ,लेकिन मजार में कब्र के पास हमेशा से सरसों के तेल का दिया ही जलाया जाता है। रौशनी से इस मजार को दूर रखा गया है। मदरसा के मौलाना जाकिर हुसैन दादा शाह चौखा के मजार की देखरेख करते हैं , ग्रामीण भी अपने बुजुर्ग की मजार की देखरेख में कमी कोताही नहीं करते। शुरुआत में पहाड़ के ऊपर यह मजार बनी थी , उस समय मजार पर जाने के लिए रास्ते की अच्छी व्यवस्था नहीं थी , लेकिन कुछ साल पहले तत्कालीन सरकार के सहयोग से रास्ता मजार तक बना दिया गया , ताकि लोगों को दीदार करने के  समय ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़े। मजार पर आरामगाह बनी हुई है। ऊंचाई से न केवल गांव बल्कि कई - कई किलोमीटर तक सब कुछ दिखाई देता है बल्कि खासकर गर्मियों में यहां ठंडी हवा लगती है। यही कारण है कि बिजली नहीं होने पर भी यहां गर्मी का एहसास नहीं होता। मजार पर मदरसा में बिजली - पानी तक की पुख्ता व्यवस्था कराई हुई है। इतिहास में तो दादा शाह चौखा का नाता आगरा - दिल्ली - अजमेर की कई नामी दरगाहों से भी  जुड़ता है ,लेकिन ग्रामीणों को पुराना इतिहास होने की वजह से खास जानकारी नहीं है। कुछ भी हो चुनावी सीजन में इस दरगाह पर सफेदपोशों की भीड़ लगी रहती है। शाह चौखा गांव का बच्चा - बच्चा ही नहीं हर शख्स दादा शाह चौखा के नाम से ही पुकारता है। गांव के दोनों तरफ गुरुग्राम कैनाल और उजीना ड्रेन बहती हैं। दरगाह का इतिहास एक बार अकबर बादशाह फतेहपुर सीकरी से दिल्ली जा रहे थे, तो रास्ते में एक झोपड़ी में उन्होंने आराम किया। उस झोपड़ी में फकीर बाबा यानी दादा चौखा रहते थे। अकबर बादशाह के कोई औलाद नहीं थी, तो उन्होंने दादा चौखा से औलाद की दुआ मांगी। जिस पर उन्होंने कहा कि तुम्हारी फरियाद ख्वाजा सलीम चिश्ती ने कबूल कर ली है और तुम्हारा लड़का होगा। तुम उस लड़के का नाम सलीम रखना। अकबर बादशाह वहां से आराम करने के बाद चले गए। जब अकबर बादशाह की पत्नी को लड़का हुआ और उन्होंने उसका नाम सलीम रखा, तो फिर से वह दिल्ली के लिए आए, तब उन्होंने झोपड़ी पर रुक कर दादा का धन्यवाद करना चाहा, लेकिन तब तक दादा चौखा अल्ला को प्यारे हो गए थे। उसी के बाद अकबर बादशाह ने उनकी याद में यह दरगाह बनवाई थी।  
बाइट;- हाजी आजम ग्रामीण बाइट;- यासीन ग्रामीण बाइट;- तैयब अली युवा ग्रामीण संवाददाता कासिम खान नूंह मेवात Body:संवाददाता नूंह मेवात 
स्टोरी ;- दादा शाह चौखा की ऐतिहासिक मजार पर विशेष कवरेज 
नूंह जिले की पुन्हाना विधानसभा के बड़े गांवों में शुमार शाह चौखा गांव में दादा शाह चौखा की ऐतिहासिक मजार है। दूरदराज से लोग यहां मन्नत मांगने आते हैं। इतना ही विधानसभा - लोकसभा चुनाव में तो इस मजार पर सूबे के बड़े - बड़े महारथी मुराद मांगने आते हैं। कई बार नेताओं की मुराद यहां पूरी भी हुई है। मजार करीब 500 वर्ष पुरानी है। उसी समय से शाह चौखा के नाम से गांव बसा जो पहले खोरी के नाम से जाना जाता था। पूर्व सीएम ओपी चौटाला , केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह , पूर्व मंत्री मोहमद इलियास , पूर्व विधायक स्वर्गीय चौधरी हामिद  हुसैन , पूर्व मंत्री आफ़ताब अहमद , राज्य मंत्री रहीस खान सहित कई बड़े दिग्गज यहां चुनाव प्रचार में आ चुके हैं। मन्नत मांगने वालों की तो कोई गिनती ही नहीं है। बड़कली - पुन्हाना मार्ग पर बसा शाह चौखा गांव का यह मजार सैकड़ों फिट ऊंचाई पर बना हुआ है। इलाके में हिन्दू - मुस्लिम सभी धर्मों के लोग यहां मुराद मांगने और चादर चढ़ाने आते हैं। मुग़ल बादशाह अकबर ने भी यहां मन्नत मांगी थी , तभी उसके घर में बच्चे की किलकारी लडके के रूप में सुनाई दी। गांव वाले बताते हैं कि जब दादा शाह चौखा पहाड़ पर बैठे थे , तो कुछ लोग उनसे पूछने लगे कि आप कौन हो , कहां से आये हो। बातचीत में ग्रामीणों दादा शाह चौखा से संतुष्टि हुई और उन्होंने बाकि गांव वालों को बताया कि चोखों आदमी है यानि बढ़िया व्यक्ति है। उसी दिन है चौखा नाम पड़ गया। उसी की याद में यह आलिशान मजार बनाई गई। मान्यता तो यह भी है कि यह मजार एक ही रात में बनाई गई। दादा चौखा का पैर आज भी पत्थर पर छपा हुआ है। उसी से लगता है कि दादा शाह चौखा विशाल कद - काठी के व्यक्ति थे। उनके 11 पुत्र थे , जिन्होंने गांव शाह चौखा बसाया था। बुजुर्ग बताते हैं कि सऊदी अरब से दादा शाह चौखा दिल्ली आये थे और बाद में वे अमन - शांति का पैगाम लेकर खोरी चौखा गांव में आये थे। मजार में विशाल दरवाजे हैं , जिनको सरसों का तेल लगाकर आज भी सुरक्षित रखा गया है। तख़्त , दरवाजे , खिड़कियां सब ठीक स्तिथि में हैं। आजकल इस मजार पर इस्लामिक मदरसा चलता है , जिसमें करीब 210 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। भले ही आज हाईटैक जमाना हो। गरीब के घर में भी बिजली की रौशनी हो ,लेकिन मजार में कब्र के पास हमेशा से सरसों के तेल का दिया ही जलाया जाता है। रौशनी से इस मजार को दूर रखा गया है। मदरसा के मौलाना जाकिर हुसैन दादा शाह चौखा के मजार की देखरेख करते हैं , ग्रामीण भी अपने बुजुर्ग की मजार की देखरेख में कमी कोताही नहीं करते। शुरुआत में पहाड़ के ऊपर यह मजार बनी थी , उस समय मजार पर जाने के लिए रास्ते की अच्छी व्यवस्था नहीं थी , लेकिन कुछ साल पहले तत्कालीन सरकार के सहयोग से रास्ता मजार तक बना दिया गया , ताकि लोगों को दीदार करने के  समय ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़े। मजार पर आरामगाह बनी हुई है। ऊंचाई से न केवल गांव बल्कि कई - कई किलोमीटर तक सब कुछ दिखाई देता है बल्कि खासकर गर्मियों में यहां ठंडी हवा लगती है। यही कारण है कि बिजली नहीं होने पर भी यहां गर्मी का एहसास नहीं होता। मजार पर मदरसा में बिजली - पानी तक की पुख्ता व्यवस्था कराई हुई है। इतिहास में तो दादा शाह चौखा का नाता आगरा - दिल्ली - अजमेर की कई नामी दरगाहों से भी  जुड़ता है ,लेकिन ग्रामीणों को पुराना इतिहास होने की वजह से खास जानकारी नहीं है। कुछ भी हो चुनावी सीजन में इस दरगाह पर सफेदपोशों की भीड़ लगी रहती है। शाह चौखा गांव का बच्चा - बच्चा ही नहीं हर शख्स दादा शाह चौखा के नाम से ही पुकारता है। गांव के दोनों तरफ गुरुग्राम कैनाल और उजीना ड्रेन बहती हैं। दरगाह का इतिहास एक बार अकबर बादशाह फतेहपुर सीकरी से दिल्ली जा रहे थे, तो रास्ते में एक झोपड़ी में उन्होंने आराम किया। उस झोपड़ी में फकीर बाबा यानी दादा चौखा रहते थे। अकबर बादशाह के कोई औलाद नहीं थी, तो उन्होंने दादा चौखा से औलाद की दुआ मांगी। जिस पर उन्होंने कहा कि तुम्हारी फरियाद ख्वाजा सलीम चिश्ती ने कबूल कर ली है और तुम्हारा लड़का होगा। तुम उस लड़के का नाम सलीम रखना। अकबर बादशाह वहां से आराम करने के बाद चले गए। जब अकबर बादशाह की पत्नी को लड़का हुआ और उन्होंने उसका नाम सलीम रखा, तो फिर से वह दिल्ली के लिए आए, तब उन्होंने झोपड़ी पर रुक कर दादा का धन्यवाद करना चाहा, लेकिन तब तक दादा चौखा अल्ला को प्यारे हो गए थे। उसी के बाद अकबर बादशाह ने उनकी याद में यह दरगाह बनवाई थी।  
बाइट;- हाजी आजम ग्रामीण बाइट;- यासीन ग्रामीण बाइट;- तैयब अली युवा ग्रामीण संवाददाता कासिम खान नूंह मेवात Conclusion:संवाददाता नूंह मेवात 
स्टोरी ;- दादा शाह चौखा की ऐतिहासिक मजार पर विशेष कवरेज 
नूंह जिले की पुन्हाना विधानसभा के बड़े गांवों में शुमार शाह चौखा गांव में दादा शाह चौखा की ऐतिहासिक मजार है। दूरदराज से लोग यहां मन्नत मांगने आते हैं। इतना ही विधानसभा - लोकसभा चुनाव में तो इस मजार पर सूबे के बड़े - बड़े महारथी मुराद मांगने आते हैं। कई बार नेताओं की मुराद यहां पूरी भी हुई है। मजार करीब 500 वर्ष पुरानी है। उसी समय से शाह चौखा के नाम से गांव बसा जो पहले खोरी के नाम से जाना जाता था। पूर्व सीएम ओपी चौटाला , केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह , पूर्व मंत्री मोहमद इलियास , पूर्व विधायक स्वर्गीय चौधरी हामिद  हुसैन , पूर्व मंत्री आफ़ताब अहमद , राज्य मंत्री रहीस खान सहित कई बड़े दिग्गज यहां चुनाव प्रचार में आ चुके हैं। मन्नत मांगने वालों की तो कोई गिनती ही नहीं है। बड़कली - पुन्हाना मार्ग पर बसा शाह चौखा गांव का यह मजार सैकड़ों फिट ऊंचाई पर बना हुआ है। इलाके में हिन्दू - मुस्लिम सभी धर्मों के लोग यहां मुराद मांगने और चादर चढ़ाने आते हैं। मुग़ल बादशाह अकबर ने भी यहां मन्नत मांगी थी , तभी उसके घर में बच्चे की किलकारी लडके के रूप में सुनाई दी। गांव वाले बताते हैं कि जब दादा शाह चौखा पहाड़ पर बैठे थे , तो कुछ लोग उनसे पूछने लगे कि आप कौन हो , कहां से आये हो। बातचीत में ग्रामीणों दादा शाह चौखा से संतुष्टि हुई और उन्होंने बाकि गांव वालों को बताया कि चोखों आदमी है यानि बढ़िया व्यक्ति है। उसी दिन है चौखा नाम पड़ गया। उसी की याद में यह आलिशान मजार बनाई गई। मान्यता तो यह भी है कि यह मजार एक ही रात में बनाई गई। दादा चौखा का पैर आज भी पत्थर पर छपा हुआ है। उसी से लगता है कि दादा शाह चौखा विशाल कद - काठी के व्यक्ति थे। उनके 11 पुत्र थे , जिन्होंने गांव शाह चौखा बसाया था। बुजुर्ग बताते हैं कि सऊदी अरब से दादा शाह चौखा दिल्ली आये थे और बाद में वे अमन - शांति का पैगाम लेकर खोरी चौखा गांव में आये थे। मजार में विशाल दरवाजे हैं , जिनको सरसों का तेल लगाकर आज भी सुरक्षित रखा गया है। तख़्त , दरवाजे , खिड़कियां सब ठीक स्तिथि में हैं। आजकल इस मजार पर इस्लामिक मदरसा चलता है , जिसमें करीब 210 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। भले ही आज हाईटैक जमाना हो। गरीब के घर में भी बिजली की रौशनी हो ,लेकिन मजार में कब्र के पास हमेशा से सरसों के तेल का दिया ही जलाया जाता है। रौशनी से इस मजार को दूर रखा गया है। मदरसा के मौलाना जाकिर हुसैन दादा शाह चौखा के मजार की देखरेख करते हैं , ग्रामीण भी अपने बुजुर्ग की मजार की देखरेख में कमी कोताही नहीं करते। शुरुआत में पहाड़ के ऊपर यह मजार बनी थी , उस समय मजार पर जाने के लिए रास्ते की अच्छी व्यवस्था नहीं थी , लेकिन कुछ साल पहले तत्कालीन सरकार के सहयोग से रास्ता मजार तक बना दिया गया , ताकि लोगों को दीदार करने के  समय ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़े। मजार पर आरामगाह बनी हुई है। ऊंचाई से न केवल गांव बल्कि कई - कई किलोमीटर तक सब कुछ दिखाई देता है बल्कि खासकर गर्मियों में यहां ठंडी हवा लगती है। यही कारण है कि बिजली नहीं होने पर भी यहां गर्मी का एहसास नहीं होता। मजार पर मदरसा में बिजली - पानी तक की पुख्ता व्यवस्था कराई हुई है। इतिहास में तो दादा शाह चौखा का नाता आगरा - दिल्ली - अजमेर की कई नामी दरगाहों से भी  जुड़ता है ,लेकिन ग्रामीणों को पुराना इतिहास होने की वजह से खास जानकारी नहीं है। कुछ भी हो चुनावी सीजन में इस दरगाह पर सफेदपोशों की भीड़ लगी रहती है। शाह चौखा गांव का बच्चा - बच्चा ही नहीं हर शख्स दादा शाह चौखा के नाम से ही पुकारता है। गांव के दोनों तरफ गुरुग्राम कैनाल और उजीना ड्रेन बहती हैं। दरगाह का इतिहास एक बार अकबर बादशाह फतेहपुर सीकरी से दिल्ली जा रहे थे, तो रास्ते में एक झोपड़ी में उन्होंने आराम किया। उस झोपड़ी में फकीर बाबा यानी दादा चौखा रहते थे। अकबर बादशाह के कोई औलाद नहीं थी, तो उन्होंने दादा चौखा से औलाद की दुआ मांगी। जिस पर उन्होंने कहा कि तुम्हारी फरियाद ख्वाजा सलीम चिश्ती ने कबूल कर ली है और तुम्हारा लड़का होगा। तुम उस लड़के का नाम सलीम रखना। अकबर बादशाह वहां से आराम करने के बाद चले गए। जब अकबर बादशाह की पत्नी को लड़का हुआ और उन्होंने उसका नाम सलीम रखा, तो फिर से वह दिल्ली के लिए आए, तब उन्होंने झोपड़ी पर रुक कर दादा का धन्यवाद करना चाहा, लेकिन तब तक दादा चौखा अल्ला को प्यारे हो गए थे। उसी के बाद अकबर बादशाह ने उनकी याद में यह दरगाह बनवाई थी।  
बाइट;- हाजी आजम ग्रामीण बाइट;- यासीन ग्रामीण बाइट;- तैयब अली युवा ग्रामीण संवाददाता कासिम खान नूंह मेवात 
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