पटना : नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के भगवान राम को नेपाली मूल का बताए जाने के बाद से चर्चाओं का बाजार गर्म है. ओली ने भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या के नेपाल में होने का विवादित बयान दिया है. तब से राम जन्मस्थली और माता सीता के जन्म स्थान को लेकर चर्चाएं तेज हैं.
जनकपुरी पर शोध
इस मामले पर इतिहासकार और संस्कृत के विद्वान पंडित भावनाथ झा ने जानकारी दी है. झा महावीर मंदिर संस्थान से जुड़े हैं और जनकपुरी पर शोध करते हैं. उनके मुताबिक मां जानकी की जन्मस्थली जनकपुरी के सीतामढ़ी में होने के पुख्ता प्रमाण मौजूद हैं. इस मामले में दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में उनका शोध प्रकाशित है.
विदेह की राजधानी राजा जनक की नगरी
भावनाथ झा ने बताया कि राजा जनक की नगरी के लोकेशन की खोज करने पर ये सीतामढ़ी के आसपास का क्षेत्र साबित होता है. विदेह की राजधानी को राजा जनक की नगरी माना गया है. वाल्मीकि रामायण में बार-बार मिथिलापुरी की चर्चा आई है. राम का विवाह और धनुष यज्ञ भी इसी क्षेत्र में हुआ है.
मिहिला परगना के रूप में स्थापित
इन सबके अलावा ह्वेनसांग का यात्रा वृतांत हो या महाकवि विद्यापति के 'भूपरिक्रमणम्' के सबूत, इन सबसे मिले संकेतों के तहत मौजूदा समय का सीतामढ़ी, 12वीं- 13वीं शताब्दी से मिहिला परगना के रूप में स्थापित है. यही प्राचीन जनकपुरी थी और मिथिलापुरी के नाम से उसी की परंपरा रही है. वहीं वाल्मीकि रामायण में अहिल्यापुरी का वर्णन आया है, जहां भगवान राम ने अहिल्या का उद्धार किया था. आज वो क्षेत्र अहियारी गांव के नाम से जाना जाता है जो कमतौल के पास है.
ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत में विस्तृत वर्णन
पंडित भावनाथ झा ने कहा कि वाल्मीकि रामायण के वृत्तांत से ये साफ नहीं पता चल पाता कि वास्तव में राजा जनक की नगरी कहां थी. इसके लिए हमें दूसरे सबूतों का सहारा लेना पड़ता है. ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत में एक-एक स्थान का विस्तृत वर्णन मिलता है. ये यात्रा वृतांत वर्तमान में सीयूकी के रूप में उपलब्ध है.
राजा जनक की नगरी का नाम चें-सू-न
ह्वेनसांग के अनुसार वैशाली के चेचर ग्राम से 500 ली. पर जनक देश है. ह्वेनसांग ने वर्णन किया है कि राजा जनक की नगरी का नाम चें-सू-न था. इसके अनुवादक सैमुअल विल ने जूलियन के मेम्वाएड के आधार पर इसे चङ्-शुणा स्थान माना है. इसी को जनक देश माना है जो राजधानी थी.यही वह स्थान है जिसकी दूरी श्वेतपुर महाविहार यानी चेचर से 166 किलोमीटर उत्तर पूर्व की ओर है. ह्वेनसांग ने जिस रास्ते का वर्णन किया है, वह रास्ता आज भी वैशाली से समस्तीपुर और दरभंगा के कमतौल होते हुए जाता है. इस रास्ते पर चले तो 166 किलोमीटर पर सीतामढ़ी का वहीं स्थान आ जाता है.
चें-सू-न ही राजा जनक की नगरी
पंडित भावनाथ झा ने बताया कि ह्वेनसांग ने लिखा है कि इस जनक देश से नेपाल की उपत्यका 1400 ली. है. यानी 466 किलोमीटर और आगे है. हिमालय की घाटियों को पार करने के बाद नेपाल पहुंचा जा सकता है. ह्वेनसांग ने जो दूरी दी है उसमें 3 ली. बराबर एक किलोमीटर होता है और ये सबने मानी है. इस तरह से अगर हम ह्वेनसांग को प्रामाणिक माने तो चेचर से 166 किलोमीटर पर इस रास्ते से आज भी सीतामढ़ी मिल जाएगा. उन्होंने कहा कि इसलिए ह्वेनसांग ने जिस चें-सू-न का उल्लेख किया है वह वर्तमान का सीतामढ़ी है और वही राजा जनक की नगरी है.
महाकवि विद्यापति के ग्रंथ में जनकपुर का नाम
पंडित भावनाथ झा ने कहा कि यदि हम महाकवि विद्यापति के ग्रंथ 'भूपरिक्रमणम्' की बात करें तो उन्होंने वर्तमान जनकपुर का नाम लिया है, जो अभी नेपाल में स्थित है. विद्यापति लिखते हैं कि जनकपुर गांव से 7 कोस दक्षिण में डिजगल नाम का विशाल गांव है जहां राजा जनक का महल है. झा ने कहा कि विद्यापति ने चौदहवीं शताब्दी में यात्रा के दौरान मिले साक्ष्यों के आधार पर ग्रंथ लिखा है.
अहियारी गांव से मिलते वर्णन
पंडित भावनाथ झा ने कहा कि विद्यापति ने डिजगल से 2 कोस दक्षिण में गिरिजा ग्राम का वर्णन किया है. यहां दो तालाबों के बीच एक भैरव मंदिर का उन्होंने उल्लेख किया है. उन्होंने कहा कि विद्यापति लिखते हैं कि यहीं सीता कुंड है, यही सीता मंडप है. यही स्थान वर्तमान में सीतामढ़ी है. जिस डिजगल का महाकवि विद्यापति ने उल्लेख किया है वह हलेश्वर स्थान स्पष्ट होता है, ये भी सीतामढ़ी में है. विद्यापति ने उल्लेख किया है कि इसके दक्षिण में 5 कोस बाद एक वन क्षेत्र है और उस वन क्षेत्र को पार करने पर आहारी नामक एक गांव है. पहाड़ी गांव में गौतम कुंड है, अहिल्या वट है, कमला नदी है. ये सारे वर्णन आज के अहियारी गांव से मिलते वर्णन हैं
उत्तर पूर्व कोण का सुरस्थान ही वर्तमान में सुरसंड
झा ने कहा कि इसी स्थल पर महाकवि विद्यापति लिखते हैं कि गिरिजा ग्राम से उत्तर पूर्व कोण में सुरस्थान है जो वर्तमान में सुरसंड स्थान है. ये आज भी बहुत ही ऐतिहासिक महत्व का स्थान है. उन्होंने कहा कि विद्यापति ने सुरसंड स्थान से दक्षिण में चंडी स्थान का उल्लेख किया है. चंडी स्थान के 7 कोस दक्षिण में धनुष ग्राम का उल्लेख किया है और वहां पर लिखते हैं कि यहां परशुराम कुंड है. इस धनुष ग्राम में सीता विवाह का धनुष रखा हुआ था. आज भी इसी लोकेशन पर धनुखी नाम का एक गांव है.
नेपाल स्थित जनकपुर का इतिहास 300 साल पुराना
इन सबके अलावा पंडित भावनाथ झा ने नेपाल में स्थित जनकपुर के बारे में भी बताया. उन्होंने कहा कि नेपाल स्थित जनकपुर का प्राचीन इतिहास उपलब्ध नहीं है. इस जनकपुर का विकास लगभग 300 साल पहले से होना शुरू हुआ है. उन्होंने कहा कि आज से लगभग 300 साल पहले मकवानपुर के राजा ने वहां 600 बीघा जमीन दान दी जिसके बाद अयोध्या के साधुओं ने अथक परिश्रम कर उस जंगल को विकसित कर आज एक नगर बना दिया. जनकपुर धाम से प्रकाशित सीतायण नामक एक ग्रंथ की भूमिका में भी नेपाल के बहुत बड़े इतिहासकार राजेंद्र विमल ने ये बातें लिखी हैं कि नेपाली जनकपुर का इतिहास बहुत पुराना नहीं है. नेपाल का वर्तमान जनकपुर अयोध्या के साधु-संतों द्वारा हाल में बसाया हुआ ही नगर है.
मिथिलापुरी सीतामढ़ी के आसपास का क्षेत्र
पंडित भावनाथ झा ने कहा कि 14 वीं सदी में महाकवि विद्यापति ने जो विवरण दिया है उसके आधार पर राजा जनक की नगरी मिथिलापुरी सीतामढ़ी के आसपास का क्षेत्र है. आज भी उसी नाम से परगना है जिसका क्षेत्रफल मुगल काल में अबुल फजल ने 15 हजार 295 बीघा लिखा है. नेपाल का जनकपुर है वह कोराडी परगना में है. परगना के आधार पर वर्तमान और प्राचीन दोनों जनकपुर के बीच अंतर समझा जा सकता है.
सीतामढ़ी के आसपास के क्षेत्रों में ऐतिहासिक उल्लेख
भावनाथ झा कहते हैं कि मिहिला परगना आज तक रेवेन्यू रिकॉर्ड में है. विद्यापति ने लिखा है कि जो जनकपुर है वहां से 5 कोस दक्षिण में विशोर नाम का गांव है. यहां विश्वामित्र आश्रम है. वहां से 5 कोस दक्षिण में अरगाजापुर नामक कुंड है और वहां दशरथ कुंड है, गंगासागर कुंड है जलेश्वर महादेव की प्राचीन पद्धति से पूजा होती है. आज यह सब कुंड नेपाल के जनकपुर में बना लिए गए हैं, जबकि इन सभी का ऐतिहासिक उल्लेख सीतामढ़ी के आसपास के क्षेत्रों में मिलता है. 1816 में सुगौली संधि के तहत तत्कालीन तिरहुत जिले का कुछ अंश नेपाल में चला गया. उसके बाद से ही विशेष रूप से वर्तमान जनकपुर का विकास होना शुरू हुआ है, और ये ऐतिहासिक तथ्य है.
आर्कियोलॉजिकल सर्वे से भी हुए साबित
भावनाथ झा ने कहा कि अगर इसके पहले के साक्ष्यों को देखते हैं जैसे ह्वेनसांग का यात्रा वृतांत या महाकवि विद्यापति का भूपरिक्रमणम् ग्रंथ. इन ग्रंथों के तथ्यों को देखे तो राजा जनक की राजधानी जहां माता सीता का विवाह हुआ, धनुष यज्ञ हुआ, ये सारी घटना सीतामढ़ी और उसके आसपास के क्षेत्रों में घटित हुई थी. इसका उल्लेख 1877 में आर्कियोलॉजिकल सर्वे से जुड़े कनिंघम ने भी अपने रिपोर्ट में किया है. 19वीं सदी के अंत में हुंटर ने भी अपने रिपोर्ट में इसी तथ्य को सत्यापित किया है.