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सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या केस की सुनवाई का 17वां दिन, जानें पूरा विवरण - ayodhya land dispute in sc

अयोध्या केस में 17वें दिन भी सुनवाई की गई. आज मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलीलें पेश की. ईटीवी भारत ने जफरयाब जिलानी से उनका पक्ष जाना. जिलानी ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद कमेटी के संयोजक हैं. जानें क्या है पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Sep 3, 2019, 12:02 AM IST

Updated : Sep 29, 2019, 5:58 AM IST

नई दिल्ली: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में मुस्लिम पक्षों ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि हिन्दुओं ने 1934 में बाबरी मस्जिद पर हमला किया, फिर 1949 में अवैध घुसपैठ की और 1992 में इसे तोड़ दिया तथा अब कह रहे हैं कि संबंधित जमीन पर उनके अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए.

सोमवार को प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने महत्वपूर्ण कार्यवाही के 17वें दिन मुस्लिम पक्ष की दलीलें सुननी शुरू कीं. अधिवक्ता राजीव धवन ने पीठ को बताया कि कानूनी मामलों में ऐतिहासिक बातों और तथ्यों पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता.

सुन्नी वक्फ बोर्ड और वास्तविक याचिकाकर्ताओं में से एक एम सिद्दीक की ओर से पेश धवन ने कहा, '1934 में आपने (हिन्दुओं) मस्जिद को तोड़ दिया और 1949 में अवैध घुसपैठ की तथा 1992 में आपने मस्जिद को पूरी तरह नष्ट कर दिया...और सभी तबाही के बाद आप कह रहे हैं कि ब्रिटिश लोगों ने हिन्दुओं के खिलाफ काम किया और अब आप कह रहे हो कि हमारे अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए.'

जफरयाब जिलानी से बातचीत

पीठ ने हालांकि, उनसे कहा, 'कृपया इस सबमें मत जाइये. आपकी दलीलें मुद्दों से संबंधित होनी चाहिए.'

धवन ने कहा कि ये सभी मुद्दे दूसरे पक्ष द्वारा उठाए गए हैं और उन्हें जवाब देने की अनुमति मिलनी चाहिए क्योंकि यह सुनवाई 'देश के भविष्य' से जुड़ी है. इस पर देवता (रामलला विराजमान) पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन खड़े हुए और कहा कि धवन को मुद्दई (मुस्लिम पक्षों) के मामले के बारे में चर्चा करनी चाहिए.

ये भी पढ़ें: अयोध्या केस : विवादित जमीन का तिहाई हिस्सा हिंदुओं को देने को तैयार, 16वें दिन शिया बोर्ड की पेशकश

इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'वह अपने मामले को जिस तरह से रखना चाहें, उसके लिए वह स्वतंत्र हैं.' धवन ने पीठ से कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों में से एक ने उल्लेख किया था कि ऐतिहासिक तथ्य स्वामित्व पर फैसला करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकता.

उन्होंने कहा कि तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामायण एक काव्य है और उसे इतिहास का हिस्सा नहीं कहा जा सकता. इस पर, पीठ ने कहा, 'तुलसीदास समकालीन थे और काव्य में भी तथ्य हो सकते हैं.'

नई दिल्ली: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में मुस्लिम पक्षों ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि हिन्दुओं ने 1934 में बाबरी मस्जिद पर हमला किया, फिर 1949 में अवैध घुसपैठ की और 1992 में इसे तोड़ दिया तथा अब कह रहे हैं कि संबंधित जमीन पर उनके अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए.

सोमवार को प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने महत्वपूर्ण कार्यवाही के 17वें दिन मुस्लिम पक्ष की दलीलें सुननी शुरू कीं. अधिवक्ता राजीव धवन ने पीठ को बताया कि कानूनी मामलों में ऐतिहासिक बातों और तथ्यों पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता.

सुन्नी वक्फ बोर्ड और वास्तविक याचिकाकर्ताओं में से एक एम सिद्दीक की ओर से पेश धवन ने कहा, '1934 में आपने (हिन्दुओं) मस्जिद को तोड़ दिया और 1949 में अवैध घुसपैठ की तथा 1992 में आपने मस्जिद को पूरी तरह नष्ट कर दिया...और सभी तबाही के बाद आप कह रहे हैं कि ब्रिटिश लोगों ने हिन्दुओं के खिलाफ काम किया और अब आप कह रहे हो कि हमारे अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए.'

जफरयाब जिलानी से बातचीत

पीठ ने हालांकि, उनसे कहा, 'कृपया इस सबमें मत जाइये. आपकी दलीलें मुद्दों से संबंधित होनी चाहिए.'

धवन ने कहा कि ये सभी मुद्दे दूसरे पक्ष द्वारा उठाए गए हैं और उन्हें जवाब देने की अनुमति मिलनी चाहिए क्योंकि यह सुनवाई 'देश के भविष्य' से जुड़ी है. इस पर देवता (रामलला विराजमान) पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन खड़े हुए और कहा कि धवन को मुद्दई (मुस्लिम पक्षों) के मामले के बारे में चर्चा करनी चाहिए.

ये भी पढ़ें: अयोध्या केस : विवादित जमीन का तिहाई हिस्सा हिंदुओं को देने को तैयार, 16वें दिन शिया बोर्ड की पेशकश

इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'वह अपने मामले को जिस तरह से रखना चाहें, उसके लिए वह स्वतंत्र हैं.' धवन ने पीठ से कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों में से एक ने उल्लेख किया था कि ऐतिहासिक तथ्य स्वामित्व पर फैसला करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकता.

उन्होंने कहा कि तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामायण एक काव्य है और उसे इतिहास का हिस्सा नहीं कहा जा सकता. इस पर, पीठ ने कहा, 'तुलसीदास समकालीन थे और काव्य में भी तथ्य हो सकते हैं.'

Last Updated : Sep 29, 2019, 5:58 AM IST
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