नई दिल्ली : मुस्लिम पक्ष ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि राम लला द्वारा 1989 में अपने एक करीबी मित्र के माध्यम से दाखिल मुकदमा और कुछ नहीं बल्कि बाबरी मस्जिद की जगह पर नए मंदिर के निर्माण के लिए राम जन्मभूमि न्यास का सामाजिक राजनीतिक माध्यम था.
राम जन्मभूमि न्यास की स्थापना विश्व हिंदू परिषद ने विवादित स्थल पर भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए 18 दिसंबर 1985 में की थी.
मुस्लिम पक्षों की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ से कहा कि 1989 का मुकदमा ढांचे पर दावे के लिए नहीं बल्कि नए मंदिर के निर्माण के लिए किया गया था.
पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं जो राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मामले में 28वें दिन सुनवाई कर रही थी.
धवन ने पीठ से कहा, 'राम लला विराजमान और जन्मभूमि की ओर से उनके करीबी मित्र देवकी नंदन अग्रवाल द्वारा दाखिल मुकदमा संख्या 5 मंदिर निर्माण के लिए न्यास का सामाजिक-राजनीतिक माध्यम है. मेरा यह मानना है.
राम लला और जन्मभूमि के करीबी मित्र के तौर पर उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने 1989 में अदालत में विवादित जमीन पर दावा करने के लिए मुकदमा दायर किया था.
पीठ ने शुरू में सुन्नी वक्फ बोर्ड और मूल वादी एम सिद्दीक समेत अन्य की ओर से पक्ष रख रहे धवन से ढांचे के महराब पर अरबी में अंकित शब्दों की तस्वीरों को दिखाने को कहा.
धवन ने 1990 में ली गयी एक तस्वीर का जिक्र करते हुए कहा कि अंदर बीचोंबीच बने महराब के शीर्ष पर अरबी में अल्लाह शब्द लिखा था.
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धवन ने कहा, बाबर केवल एक वजह से भारत आया था क्योंकि वह समरकंद हार गया था. उन्होंने कहा और मस्जिद 1528 में बनाई गयी.
धवन ने अपनी बात दोहराते हुए कहा कि जन्मभूमि को 1989 के मुकदमे में केवल इस मकसद से पक्ष बनाया गया कि मंदिर निर्माण के रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं को हटाया जा सके.
पीठ ने दोपहर करीब 12:30 बजे सुनवाई बंद की जो 23 सितंबर को फिर शुरू होगी.
धवन ने बृहस्पतिवार को मामले में सुनवाई के दौरान आपा खोते हुए न्यायमूर्ति भूषण से कहा था कि 'वह उनके लहजे में एक तरह की आक्रामकता देख रहे हैं. हालांकि उन्होंने फौरन ही अपने बयान पर खेद जता दिया.