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अयोध्या केस : सुप्रीम कोर्ट में 11वें दिन की दलीलें, अब 26 अगस्त को सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या भूमि विवाद पर 11वें दिन भी सुनवाई की गई. शीर्ष अदालत की संविधान पीठ इस मामले में 26 अगस्त को आगे की सुनवाई करेगी.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Aug 26, 2019, 9:21 PM IST

Updated : Sep 28, 2019, 9:27 AM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या रामजन्मभूमि विवाद की 11वें दिन सुनवाई की. 11वें दिन की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े से कहा कि शबैत (उपासक) का दावा कभी देवता के प्रतिकूल नहीं हो सकता.

इससे पहले गुरुवार को 10वें दिन की सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़ा ने कहा था कि 'राम लला' का मुकदमा खारिज किया जाए और अयोध्या में विवादित भूमि उसे दी जाए क्योंकि वह राम लला का एकमात्र उपासक है.

मामले में 11वें दिन दलीलों पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि अखाड़ा 'राम लला विराजमान' के मुकदमे को लड़ रहा है तो वह राम लला के स्वामित्व के खिलाफ जा रहा है और अदालत से देवता के मुकदमे को खारिज करने के लिये कह रहा है.

निर्मोही अखाड़ा ने गुरुवार को दावा किया था कि विवादित स्थल पर वह राम लला का एकमात्र 'शबैत' है, जिस पर न्यायालय ने कहा कि अगर ऐसा है तो अखाड़ा 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर स्वामित्व नहीं रख सकता.

हालांकि अखाड़ा की ओर से बहस कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील जैन ने न्यायालय की टिप्पणी का प्रतिवाद किया और कहा कि अखाड़ा 'शबैत' के नाते संपत्ति का कब्जेदार रहा है, इसलिए उसके अधिकार समाप्त नहीं हो जाते.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने शुक्रवार को अखाड़ा के वकील की बात पर आपत्ति उठाते हुए कहा, 'आप जब अपने खुद के देवता के मुकदमे को खारिज करने की मांग करते हैं तो आप उनके खिलाफ अधिकार मांग रहे हैं.'

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल रहे.

पीठ ने कहा, 'शबैत का दावा कभी देवता के प्रतिकूल नहीं हो सकता. अगर आप (राम लला का) मुकदमा लड़ रहे हैं तो आप देवता के स्वामित्व के खिलाफ जाते हैं. आप शबैत (राम लला के भक्त) होते हुए राम लला का मुकदमा खारिज करने के लिए कह रहे हैं.'

उन्होंने कहा, 'मान लीजिए कि राम लला का मुकदमा खारिज हो जाता है तो आपका कोई स्वतंत्र दावा नहीं रह जाता. अगर देवता का अस्तित्व नहीं रहता तो आपका अस्तित्व नहीं रह सकता.'

न्यायमूर्ति बोबडे ने अखाड़ा को यह स्पष्ट करने के लिये कहा कि क्या वह देवता के खिलाफ रुख अपना रहे हैं. उन्होंने वकील से कहा, 'पहले हां या ना कहिए.'

ये भी पढ़ें: अयोध्या केस : 10वें दिन की सुनवाई में निर्मोही अखाड़े की अधूरी तैयारी, नाराज हुए CJI

जैन ने अदालत से कहा कि राम लला की याचिका 1989 में आई थी लेकिन अखाड़ा 1934 से इस जगह का कब्जा रख रहा है.

उन्होंने कहा, 'मैंने यह दलील दी है कि देवता के हित में आदेश केवल उपासक के पक्ष में दिया जा सकता है.'

जैन ने कहा कि भगवान राम का जन्मस्थान 'कानूनी व्यक्ति' नहीं है जैसा कि दावा किया गया है और अखाड़ा को दलील पेश करने का हक है.

पीठ ने कहा कि अखाड़ा ने अब तक उच्च न्यायालय में रखे अपने विषय के विपरीत दलील दी है.

जैन ने कहा कि अखाड़ा संपत्ति के स्वामित्व पर दावा नहीं कर रहा, बल्कि उपासक के नाते इस पर कब्जे और इसका प्रबंधन संभालने का दावा कर रहा है. उन्होंने कहा, 'मैं राम मंदिर के पुनर्निर्माण का अधिकार भी मांग रहा हूं और मैं अन्य कोई हक नहीं मांग रहा.'

जैन ने कहा कि मामले में अन्य पक्षों को अखाड़ा का समर्थन करना चाहिए. उन्होंने कहा कि वह इस बात से इनकार नहीं कर रहे कि स्थान 'वक्फ' की संपत्ति है लेकिन 'वक्फ' हिंदू 'वक्फ' भी हो सकती है और इस शब्द का अर्थ केवल इतना है कि एक संस्था जो धार्मिक संपत्तियों का स्वामित्व रखती है और उनका प्रबंधन देखती है.

इस पर पीठ ने कहा, 'आपको अपने 'शबैत' के अधिकार साबित करने के लिए हमें साक्ष्य दिखाने होंगे. हमें उससे संबंधित प्रमाण दिखाइए. आप हमें दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य दिखाइए.'

जैन ने कहा कि किसी अन्य पक्ष ने अखाड़ा के देवता के उपासक होने के दावे को चुनौती नहीं दी है.

क्या अखाड़े के पास 'शबैत' के अधिकार के समर्थन में दस्तावेजी साक्ष्य हैं, इस प्रश्न पर जैन ने कहा, 'मेरे पास मौखिक साक्ष्य (गवाह के) हैं जिन्हें अन्य पक्षों ने चुनौती नहीं दी है.'

जैन ने विवादित स्थल का प्रबंधन देखते रहने की ओर संकेत करने के लिए कुछ बयान पढ़े. उन्होंने यह भी कहा कि एक डकैती में अखाड़े के रिकॉर्ड खो गये थे.

पीठ ने फिर रिकार्ड की ओर इशारा किया कि उन्होंने कहा है कि अखाड़ा 'राम चबूतरा' की पूजा करता रहा है. जैन ने कहा कि उसका आशय 'राम चबूतरा मंदिर' से है.

पीठ ने कहा, 'ऐसा नहीं है. आपने विवादित मंदिर और राम चबूतरा के बीच भेद किया है.'

वकील ने कहा कि मौखिक बयान उचित तरीके से दर्ज नहीं किये गये, इस पर पीठ ने कहा, 'ये बयान गवाह के कठघरे में नहीं दिये गये. ये हलफनामे हैं जो उचित तरीके से सोच विचार कर तैयार किये गये हैं.'

जैन ने कहा कि अखाड़ा 'निर्धन' है क्योंकि 1982 में विवादित ढांचे के बाहरी परिसर का कब्जा उससे लिये जाने के बाद उसका चढ़ावा और धन आदि चला गया और फिर 1992 में पूरा ढांचा गिरा दिया गया.

रोजाना सुनवाई कर रहा है सुप्रीम कोर्ट
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट बीते छह अगस्त से अयोध्या भूमि विवाद मामले की रोजाना सुनवाई कर रहा है.

कहां से शुरू हुआ मामला
बता दें कि उच्चतम न्यायालय इस समय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई कर रहा है.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2010 में चार दीवानी मुकदमों में अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित जमीन को तीन पक्षों में बराबर-बराबर बांटने का फैसला सुनाया था. इनमें सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला हैं.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या रामजन्मभूमि विवाद की 11वें दिन सुनवाई की. 11वें दिन की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े से कहा कि शबैत (उपासक) का दावा कभी देवता के प्रतिकूल नहीं हो सकता.

इससे पहले गुरुवार को 10वें दिन की सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़ा ने कहा था कि 'राम लला' का मुकदमा खारिज किया जाए और अयोध्या में विवादित भूमि उसे दी जाए क्योंकि वह राम लला का एकमात्र उपासक है.

मामले में 11वें दिन दलीलों पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि अखाड़ा 'राम लला विराजमान' के मुकदमे को लड़ रहा है तो वह राम लला के स्वामित्व के खिलाफ जा रहा है और अदालत से देवता के मुकदमे को खारिज करने के लिये कह रहा है.

निर्मोही अखाड़ा ने गुरुवार को दावा किया था कि विवादित स्थल पर वह राम लला का एकमात्र 'शबैत' है, जिस पर न्यायालय ने कहा कि अगर ऐसा है तो अखाड़ा 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर स्वामित्व नहीं रख सकता.

हालांकि अखाड़ा की ओर से बहस कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील जैन ने न्यायालय की टिप्पणी का प्रतिवाद किया और कहा कि अखाड़ा 'शबैत' के नाते संपत्ति का कब्जेदार रहा है, इसलिए उसके अधिकार समाप्त नहीं हो जाते.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने शुक्रवार को अखाड़ा के वकील की बात पर आपत्ति उठाते हुए कहा, 'आप जब अपने खुद के देवता के मुकदमे को खारिज करने की मांग करते हैं तो आप उनके खिलाफ अधिकार मांग रहे हैं.'

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल रहे.

पीठ ने कहा, 'शबैत का दावा कभी देवता के प्रतिकूल नहीं हो सकता. अगर आप (राम लला का) मुकदमा लड़ रहे हैं तो आप देवता के स्वामित्व के खिलाफ जाते हैं. आप शबैत (राम लला के भक्त) होते हुए राम लला का मुकदमा खारिज करने के लिए कह रहे हैं.'

उन्होंने कहा, 'मान लीजिए कि राम लला का मुकदमा खारिज हो जाता है तो आपका कोई स्वतंत्र दावा नहीं रह जाता. अगर देवता का अस्तित्व नहीं रहता तो आपका अस्तित्व नहीं रह सकता.'

न्यायमूर्ति बोबडे ने अखाड़ा को यह स्पष्ट करने के लिये कहा कि क्या वह देवता के खिलाफ रुख अपना रहे हैं. उन्होंने वकील से कहा, 'पहले हां या ना कहिए.'

ये भी पढ़ें: अयोध्या केस : 10वें दिन की सुनवाई में निर्मोही अखाड़े की अधूरी तैयारी, नाराज हुए CJI

जैन ने अदालत से कहा कि राम लला की याचिका 1989 में आई थी लेकिन अखाड़ा 1934 से इस जगह का कब्जा रख रहा है.

उन्होंने कहा, 'मैंने यह दलील दी है कि देवता के हित में आदेश केवल उपासक के पक्ष में दिया जा सकता है.'

जैन ने कहा कि भगवान राम का जन्मस्थान 'कानूनी व्यक्ति' नहीं है जैसा कि दावा किया गया है और अखाड़ा को दलील पेश करने का हक है.

पीठ ने कहा कि अखाड़ा ने अब तक उच्च न्यायालय में रखे अपने विषय के विपरीत दलील दी है.

जैन ने कहा कि अखाड़ा संपत्ति के स्वामित्व पर दावा नहीं कर रहा, बल्कि उपासक के नाते इस पर कब्जे और इसका प्रबंधन संभालने का दावा कर रहा है. उन्होंने कहा, 'मैं राम मंदिर के पुनर्निर्माण का अधिकार भी मांग रहा हूं और मैं अन्य कोई हक नहीं मांग रहा.'

जैन ने कहा कि मामले में अन्य पक्षों को अखाड़ा का समर्थन करना चाहिए. उन्होंने कहा कि वह इस बात से इनकार नहीं कर रहे कि स्थान 'वक्फ' की संपत्ति है लेकिन 'वक्फ' हिंदू 'वक्फ' भी हो सकती है और इस शब्द का अर्थ केवल इतना है कि एक संस्था जो धार्मिक संपत्तियों का स्वामित्व रखती है और उनका प्रबंधन देखती है.

इस पर पीठ ने कहा, 'आपको अपने 'शबैत' के अधिकार साबित करने के लिए हमें साक्ष्य दिखाने होंगे. हमें उससे संबंधित प्रमाण दिखाइए. आप हमें दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य दिखाइए.'

जैन ने कहा कि किसी अन्य पक्ष ने अखाड़ा के देवता के उपासक होने के दावे को चुनौती नहीं दी है.

क्या अखाड़े के पास 'शबैत' के अधिकार के समर्थन में दस्तावेजी साक्ष्य हैं, इस प्रश्न पर जैन ने कहा, 'मेरे पास मौखिक साक्ष्य (गवाह के) हैं जिन्हें अन्य पक्षों ने चुनौती नहीं दी है.'

जैन ने विवादित स्थल का प्रबंधन देखते रहने की ओर संकेत करने के लिए कुछ बयान पढ़े. उन्होंने यह भी कहा कि एक डकैती में अखाड़े के रिकॉर्ड खो गये थे.

पीठ ने फिर रिकार्ड की ओर इशारा किया कि उन्होंने कहा है कि अखाड़ा 'राम चबूतरा' की पूजा करता रहा है. जैन ने कहा कि उसका आशय 'राम चबूतरा मंदिर' से है.

पीठ ने कहा, 'ऐसा नहीं है. आपने विवादित मंदिर और राम चबूतरा के बीच भेद किया है.'

वकील ने कहा कि मौखिक बयान उचित तरीके से दर्ज नहीं किये गये, इस पर पीठ ने कहा, 'ये बयान गवाह के कठघरे में नहीं दिये गये. ये हलफनामे हैं जो उचित तरीके से सोच विचार कर तैयार किये गये हैं.'

जैन ने कहा कि अखाड़ा 'निर्धन' है क्योंकि 1982 में विवादित ढांचे के बाहरी परिसर का कब्जा उससे लिये जाने के बाद उसका चढ़ावा और धन आदि चला गया और फिर 1992 में पूरा ढांचा गिरा दिया गया.

रोजाना सुनवाई कर रहा है सुप्रीम कोर्ट
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट बीते छह अगस्त से अयोध्या भूमि विवाद मामले की रोजाना सुनवाई कर रहा है.

कहां से शुरू हुआ मामला
बता दें कि उच्चतम न्यायालय इस समय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई कर रहा है.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2010 में चार दीवानी मुकदमों में अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित जमीन को तीन पक्षों में बराबर-बराबर बांटने का फैसला सुनाया था. इनमें सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला हैं.

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SC-AYODHYA (RPT)
SC tells Nirmohi Akhara claim of devotee can not be adverse to deity
(Eds: Changes slug)
         New Delhi, Aug 23 (PTI) The Supreme Court on Friday told Nirmohi Akhara, which has said the lawsuit of 'Ram Lalla' be rejected and the disputed land in Ayodhya be given to it as it has been the deity's sole devotee, that the claim of 'shebait' (devotee) "can never be adverse to the deity".
         Hearing the arguments on the 11th day, the top court said if the Hindu body was contesting the suit of 'Ram Lalla Virajman', it was going against the deity's title and asking the court to dismiss the suit of the deity.
         On Thursday, the Akhara claimed it was the sole 'shebait' of Ram Lalla at the disputed site, prompting the court to say if it was so the Akhara cannot have the title over the 2.77-acre disputed land.
         But the court's observation was resisted by the Akhara counsel, Sushil Jain, who said the Hindu body has been in possession of the property in the capacity of 'shebait' and hence its "right does not vanish".
         On Friday, the five-judge Constitution bench headed by CJI Ranjan Gogoi took exception to the Akhara counsel's statement, and said, "When you seek dismissal of the suit of your own deity then you are seeking right against your deity."
         "Claim of the shebait can never be adverse to the deity. If you are contesting the suit (of Ram Lalla) then you are going against the title of the deity. So, as a shebait, you are asking to dismiss the suit of the deity," said the bench, comprising Justices S A Bobde, D Y Chandrachud, Ashok Bhushan and S A Nazeer.
         "Suppose the suit of Ram Lalla goes then you have no independent claim... You can't survive if the deity does not survive."
         Justice Bobde then asked the Akhara to clear whether it was taking a position "contrary to the deity". He told the counsel: "First say 'yes' or 'no'."
         Jain explained to the court that the plea of the deity (Ram Lalla) was made in 1989 but the Akhara has been in possession of the place since 1934. "I have taken a plea that decree in interest of deity can only be given in shebait's favour," he said.
         The birth place of Lord Ram is not a "juridical person" as claimed and the Akhara is entitled to take the plea, Jain asserted.
         The bench said the Akhara has so far argued to contrary to the case built by it in the high court and asked Jain to refer to documents to "build the case on merits".
         The Allahabad High Court, in its judgment of 2010 on four civil lawsuits, had partitioned the 2.77-acre disputed land equally among the three parties Sunni Waqf Board, Nirmohi Akhara and Ram Lalla.
         Jain said the Akhara was not claiming the title right of the property, but claiming its possession and the right to manage as a devotee.
         "I am also seeking right to re-construct the Ram temple and I am not seeking any other right," he said, adding the other parties in the case should support the Akhara.
         Jain said he was not denying the site was a 'wakf' property but 'wakf' can be a Hindu 'wakf' and the term only meant that a body which owns and manages religious properties.
         The bench then asked: "You will have to show us the evidence to establish your 'shebait' rights. Show us the documents related to that. You show us documentary and oral evidence."
         Jain said no other party has challenged Akhara's claim to shebaitship of the deity.
         In response to a pointed query whether it had any documentary evidence in support of its right as 'shebait', Jain said, "I have oral evidence (of witnesses) which has not been denied by others" and read out statements to indicate it had been managing the disputed site.
         He also said the Akhara lost the records in a dacoity.
         The bench then pointed out from the records that they said the Akhara had been performing worship at the 'Ram Chabutra'. Jain said it meant the 'Ram Chabutra temple'.
         "It is not so... You have made a distinction between disputed temple and Ram Chabutra," the bench said.
         On the submissions of the lawyer that the oral statements have not been properly recorded, the bench said, "These are not testimonies given in the witness box. They are affidavits which are prepared by proper application of mind".
         Jain said the Akhara was "poor" as it lost offerings including money after its possession over the outer courtyard of disputed structure in 1982 was taken away and then in 1992, the entire structure was demolished.
         The bench would resume hearing on August 26.
         Fourteen appeals have been filed in the Supreme Court against the 2010 Allahabad High Court judgment. PTI SJK
ABH
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Last Updated : Sep 28, 2019, 9:27 AM IST
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