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घरेलू फसलों से मिले सुरक्षित भोजन व बेहतर स्वास्थ्य - कोरोना महामारी

रसायनों के अवैज्ञानिक उपयोग के कारण हमारा भोजन रासायनिक रूप से जहरीला होता है और घातक बीमारियों का खतरा बढ़ा देता है. कोरोना महामारी के कारण सुरक्षित भोजन पर जोर दिया जा रहा है. सरकार को सबसे पहले सुरक्षित भोजन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध कदम उठाना चाहिए. रसायनों का उपयोग काफी कम किया जाना चाहिए और जैविक खेती प्रथाओं को लोकप्रिय बनाया जाना चाहिए.

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जैविक खेती
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Published : Sep 6, 2020, 12:24 PM IST

हैदराबाद : हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां सब्जियों से लेकर मां के दूध तक सब कुछ विषाक्त हो चुका है. ऐसे समय में हम जो भोजन खाते हैं, जिस हवा में हम सांस लेते हैं, सब प्रदूषित होता है. आज पर्यावरण संरक्षण एक प्राथमिकता बन गई है. हरित क्रांति के दौरान खाद्य उत्पादन बढ़ाने के लिए शुरू किए गए रसायनों का उपयोग ने अब सभी सीमाओं को पार कर दिया है. मुनासिब सीमा से परे उनके अंधाधुंध उपयोग से कारण भोजन दूषित हो चुका है और रासायनिक अवशेष मां के दूध तक में प्रवेश कर रहे हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. ज्यादा पैदावार के लिए अंधाधुंध उथली भूमि में रसायनों के छिड़काव करने की प्रवृत्ति को रोका जाना चाहिए. सुरक्षित भोजन प्राप्त करने के लिए लोगों को घर पर फसल उगाने और जैविक खेती करने की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है.

रसायनों के कारण बढ़ती आपदाएं
रसायनों के अंधाधुंध उपयोग पर भारी जागरुकता अभियान चलाने के बावजूद, उनका उपयोग उम्मीद के मुताबिक नहीं घट रहा है. रसायनों के अवैज्ञानिक उपयोग के कारण पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है और मिट्टी की उर्वरता धीरे-धीरे घटती जा रही है. हालांकि केंद्र सरकार ने 2015 में मृदा संरक्षण के लिए मृदा परीक्षण कार्ड की एक प्रणाली शुरू की, लेकिन उससे भी स्थिति में कोई बदलाव नजर नहीं आया. इस गलत धारणा के कारण कि यूरिया के अधिक उपयोग से अधिक पैदावार होगी, किसान इसका अनावश्यक रूप से उपयोग कर रहे हैं और मिट्टी को बंजर बना रहे हैं. किसानों के हित में तो यह होता कि वह अपनी मिट्टी का परीक्षण करवाते और मिट्टी में पोषक तत्वों की जरूरत के आधार पर उपयुक्त उर्वरकों का इस्तेमाल करते. लेकिन या तो वह कोई परीक्षण नहीं करवा रहे हैं... या किए गए परीक्षण पूर्ण और वास्तव में उपयोगी नहीं हैं. उदाहरण के लिए, जब मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस अधिक होती है, तो उनका उपयोग अलग से नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन अगर वह एक नियमित तौर पर मिट्टी में शामिल किए जा रहे हैं, तो मिट्टी में उनकी जमा मात्रा बिना किसी लाभ के बढ़ती जाएगी. पैदावार नहीं बढ़ेगी और खर्च बेकार बढ़ता जाएगा.

किसानों में जागरुकता की कमी
एक अध्ययन के अनुसार, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में लगभग 50 प्रतिशत मिट्टी में जिंक की कमी होती है, 30 प्रतिशत फॉस्फोरस की, 17 प्रतिशत आयरन की, 12 प्रतिशत बोरान की और 5 प्रतिशत मैंगनीज में कमी होती है. किसानों में इस बात की जागरुकता की कमी है कि यदि वह रसायनों और कीटनाशकों का सावधानीपूर्वक और केवल आवश्यकतानुसार उपयोग करें तो खेती करने में आने वाली लागत को कम कर सकते हैं. हालांकि कई कीटनाशकों को दुनियाभर में प्रतिबंधित किया गया है, इसके बावजूद आज भी हमारे देश में इनका उपयोग खुलेआम किया जा रहा है. हम अभी भी केरल में एंडोसल्फान के अंधाधुंध उपयोग के दुष्प्रभावों का अनुभव कर रहे हैं. केंद्र द्वारा कुछ कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने के लिए मसौदा प्रस्तावों के साथ तैयार हो गया है, लेकिन आपत्तियों के कारण, इनपर रोक लगाने की कोई कार्यवाही नहीं की गई है. अब तक कोई सख्त कानून नहीं बनाया गया है.

तेलुगु राज्यों में रसायनों का उपयोग कहीं अधिक है
हाल ही में केंद्र सरकार ने 27 प्रमुख कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने का एक मसौदा प्रस्ताव जारी किया है. दस्तावेज में यह बताया गया है कि वह मनुष्य के स्वास्थ्य को कैसे नष्ट कर रहे हैं. फिर भी, आश्चर्यजनक रूप से यह दशकों से उनके उपयोग पर प्रतिबंध लगाने में देरी होती आई है. यह परेशान करने वाली बात है कि खाद्य गुणवत्ता के बढ़ते महत्व को देखते हुए, रसायनों के उपयोग को कम करने के बजाय बढ़ाया जा रहा है. हालिया समाचारों से स्पष्ट है कि तेलुगु राज्यों (आंध्र प्रदेश व तेलंगाना) में रसायनों का उपयोग राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है. इस समय लोग फल, सब्जियां और साग खरीदने से डरने लगे हैं. यह चिंता का विषय है कि किसान द्वारा उपज को व्यापारी तक पहुंचाने के बाद भी, व्यापारी अंधाधुंध तरीके से प्रतिबंधित रसायनों का उपयोग करके फल, सब्जी इत्यादि को समय से पहले तैयार कर बाजार में बेच रहे हैं.

कोरोना ने जागरुकता बढ़ाई
कोरोना महामारी ने स्वच्छता के बारे में जनता में जागरुकता बढ़ाई है, सुरक्षित भोजन का उपयोग जो प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ाता है, उस पर जोर दिया जा रहा है. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अनुसार, प्रतिदिन 300 ग्राम सब्जी और 100 ग्राम फल का सेवन आवश्यक है ताकि शरीर को पोषक तत्व ज्यादा मात्रा में मिल सके. अधिक से अधिक लोग अब घरेलू फसलों की खेती करने में रुचि दिखा रहे हैं. जब हर तरह की मिलावट सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही है, तो कैंसर जैसे घातक रोग रासायनिक अवशेषों वाले भोजन के साथ व्याप्त हैं. फिलहाल, जो भी थोड़ी सी जगह उपलब्ध है, जैसे घर के पीछे के हिस्से में बगीचों को विकसित करना बहुत आवश्यक है.

व्यापक रूप से प्रचारित किया जाना चाहिए
हाल के दिनों में बाजार से खरीदने के बजाय घर पर सब्जियां उगाने का चलन बढ़ रहा है. गांवों में घर के आसपास या कस्बों और शहरों की बालकनियों और छत पर लोग सब्जियां उगाने लगे हैं. बागवानी विभाग भी इस तरह की खेती को सब्सिडी प्रदान करता है और प्रोत्साहित करता है. पूरे साल ताजा सब्जियों को रासायनिक अवशेषों से मुक्त करने के अलावा, घर पर होने वाली बागवानी प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकती है और पर्यावरण को स्वच्छ रख सकती है, हरियाली बढ़ा सकती और जीवन को अधिक सुखद बना सकती है. घर पर बागवानी करने में उचित व्यायाम के साथ शरीर भी स्वस्थ रहता है. इसके अलावा, हम अपनी पसंद की सब्जियां आसानी से पा सकते हैं. चूंकि बागवानी विभाग उनकी खेती के लिए सब्सिडी प्रदान करता है, इसलिए विभाग को बड़े पैमाने पर इस खबर को फैलाना चाहिए और ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में लोगों को घर के बगीचे और जैविक खेती के तरीकों का पालन करने के लाभों को बताकर इस तरह की खेती को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

यह भी पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: जैविक खेती किसानों और स्वास्थ्य के लिए वरदान... मिलिए झालावाड़ के प्रभु लाल साहू से

सरकारों की भूमिका और प्रोत्साहन
सुरक्षित भोजन के प्रति दुनिया की आबादी को सकारात्मक रूप से ढालने और बदलने के लिए, सरकारों द्वारा बड़े पैमाने पर जैविक खेती को बढ़ावा देने की आवश्यकता है. ऐसे समय में जब जैविक खेती का महत्व बढ़ रहा है, रासायनिक मुक्त जीवन और जैविक उर्वरकों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. यह एक अच्छा विकास है कि केंद्र ने हाल ही में उनकी गुणवत्ता का पूरी तरह से परीक्षण करने के लिए कदम उठाए हैं. इसके भाग के रूप में, केंद्र ने उर्वरक परीक्षणों की निगरानी और उनमें काम करने वालों के लिए प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने का आदेश दिया है. फसल चक्र की प्रक्रिया के दौरान, उन फसलों का चयन करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए जो उपलब्ध पोषक तत्वों का उपयोग कर सकें और मिट्टी को मजबूत कर सकें ताकि मिट्टी के प्राकृतिक पोषक तत्वों की कमी न हो. साथ ही, भारतीय संस्कृति और परंपरा में निहित प्राकृतिक और जैविक कृषि पद्धतियों को व्यापक रूप से बढ़ावा दिया जाना चाहिए. एक अवसर के रूप में कोरोना के बाद की स्थितियों का लाभ उठाते हुए, घर में उगने वाली सब्जियों को बढ़ावा देना, आदि, स्वास्थ्य में सुधार के साथ-साथ पर्यावरणीय लाभ भी पहुंचा सकते हैं.

सुरक्षित पर्यावरण के अनुकूल
सुरक्षित भोजन और स्वस्थ जीवन शैली में दिलचस्पी दुनिया को बुरी तरह प्रभावित करने वाली कोरोना महामारी के कारण बढ़ रही है. हम जो भोजन करते हैं वह रासायनिक रूप से जहरीला होता है और घातक बीमारियों का खतरा बढ़ा देता है. इस समय, सरकार के लिए सबसे पहले सुरक्षित भोजन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध कदम उठाना सबसे जरूरी है. इस उद्देश्य के लिए, रसायनों का उपयोग काफी कम किया जाना चाहिए, जैविक खेती प्रथाओं को लोकप्रिय बनाया जाना चाहिए और बड़े पैमाने पर घर में उगाई जाने वाली फसलों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.

हैदराबाद : हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां सब्जियों से लेकर मां के दूध तक सब कुछ विषाक्त हो चुका है. ऐसे समय में हम जो भोजन खाते हैं, जिस हवा में हम सांस लेते हैं, सब प्रदूषित होता है. आज पर्यावरण संरक्षण एक प्राथमिकता बन गई है. हरित क्रांति के दौरान खाद्य उत्पादन बढ़ाने के लिए शुरू किए गए रसायनों का उपयोग ने अब सभी सीमाओं को पार कर दिया है. मुनासिब सीमा से परे उनके अंधाधुंध उपयोग से कारण भोजन दूषित हो चुका है और रासायनिक अवशेष मां के दूध तक में प्रवेश कर रहे हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. ज्यादा पैदावार के लिए अंधाधुंध उथली भूमि में रसायनों के छिड़काव करने की प्रवृत्ति को रोका जाना चाहिए. सुरक्षित भोजन प्राप्त करने के लिए लोगों को घर पर फसल उगाने और जैविक खेती करने की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है.

रसायनों के कारण बढ़ती आपदाएं
रसायनों के अंधाधुंध उपयोग पर भारी जागरुकता अभियान चलाने के बावजूद, उनका उपयोग उम्मीद के मुताबिक नहीं घट रहा है. रसायनों के अवैज्ञानिक उपयोग के कारण पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है और मिट्टी की उर्वरता धीरे-धीरे घटती जा रही है. हालांकि केंद्र सरकार ने 2015 में मृदा संरक्षण के लिए मृदा परीक्षण कार्ड की एक प्रणाली शुरू की, लेकिन उससे भी स्थिति में कोई बदलाव नजर नहीं आया. इस गलत धारणा के कारण कि यूरिया के अधिक उपयोग से अधिक पैदावार होगी, किसान इसका अनावश्यक रूप से उपयोग कर रहे हैं और मिट्टी को बंजर बना रहे हैं. किसानों के हित में तो यह होता कि वह अपनी मिट्टी का परीक्षण करवाते और मिट्टी में पोषक तत्वों की जरूरत के आधार पर उपयुक्त उर्वरकों का इस्तेमाल करते. लेकिन या तो वह कोई परीक्षण नहीं करवा रहे हैं... या किए गए परीक्षण पूर्ण और वास्तव में उपयोगी नहीं हैं. उदाहरण के लिए, जब मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस अधिक होती है, तो उनका उपयोग अलग से नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन अगर वह एक नियमित तौर पर मिट्टी में शामिल किए जा रहे हैं, तो मिट्टी में उनकी जमा मात्रा बिना किसी लाभ के बढ़ती जाएगी. पैदावार नहीं बढ़ेगी और खर्च बेकार बढ़ता जाएगा.

किसानों में जागरुकता की कमी
एक अध्ययन के अनुसार, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में लगभग 50 प्रतिशत मिट्टी में जिंक की कमी होती है, 30 प्रतिशत फॉस्फोरस की, 17 प्रतिशत आयरन की, 12 प्रतिशत बोरान की और 5 प्रतिशत मैंगनीज में कमी होती है. किसानों में इस बात की जागरुकता की कमी है कि यदि वह रसायनों और कीटनाशकों का सावधानीपूर्वक और केवल आवश्यकतानुसार उपयोग करें तो खेती करने में आने वाली लागत को कम कर सकते हैं. हालांकि कई कीटनाशकों को दुनियाभर में प्रतिबंधित किया गया है, इसके बावजूद आज भी हमारे देश में इनका उपयोग खुलेआम किया जा रहा है. हम अभी भी केरल में एंडोसल्फान के अंधाधुंध उपयोग के दुष्प्रभावों का अनुभव कर रहे हैं. केंद्र द्वारा कुछ कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने के लिए मसौदा प्रस्तावों के साथ तैयार हो गया है, लेकिन आपत्तियों के कारण, इनपर रोक लगाने की कोई कार्यवाही नहीं की गई है. अब तक कोई सख्त कानून नहीं बनाया गया है.

तेलुगु राज्यों में रसायनों का उपयोग कहीं अधिक है
हाल ही में केंद्र सरकार ने 27 प्रमुख कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने का एक मसौदा प्रस्ताव जारी किया है. दस्तावेज में यह बताया गया है कि वह मनुष्य के स्वास्थ्य को कैसे नष्ट कर रहे हैं. फिर भी, आश्चर्यजनक रूप से यह दशकों से उनके उपयोग पर प्रतिबंध लगाने में देरी होती आई है. यह परेशान करने वाली बात है कि खाद्य गुणवत्ता के बढ़ते महत्व को देखते हुए, रसायनों के उपयोग को कम करने के बजाय बढ़ाया जा रहा है. हालिया समाचारों से स्पष्ट है कि तेलुगु राज्यों (आंध्र प्रदेश व तेलंगाना) में रसायनों का उपयोग राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है. इस समय लोग फल, सब्जियां और साग खरीदने से डरने लगे हैं. यह चिंता का विषय है कि किसान द्वारा उपज को व्यापारी तक पहुंचाने के बाद भी, व्यापारी अंधाधुंध तरीके से प्रतिबंधित रसायनों का उपयोग करके फल, सब्जी इत्यादि को समय से पहले तैयार कर बाजार में बेच रहे हैं.

कोरोना ने जागरुकता बढ़ाई
कोरोना महामारी ने स्वच्छता के बारे में जनता में जागरुकता बढ़ाई है, सुरक्षित भोजन का उपयोग जो प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ाता है, उस पर जोर दिया जा रहा है. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अनुसार, प्रतिदिन 300 ग्राम सब्जी और 100 ग्राम फल का सेवन आवश्यक है ताकि शरीर को पोषक तत्व ज्यादा मात्रा में मिल सके. अधिक से अधिक लोग अब घरेलू फसलों की खेती करने में रुचि दिखा रहे हैं. जब हर तरह की मिलावट सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही है, तो कैंसर जैसे घातक रोग रासायनिक अवशेषों वाले भोजन के साथ व्याप्त हैं. फिलहाल, जो भी थोड़ी सी जगह उपलब्ध है, जैसे घर के पीछे के हिस्से में बगीचों को विकसित करना बहुत आवश्यक है.

व्यापक रूप से प्रचारित किया जाना चाहिए
हाल के दिनों में बाजार से खरीदने के बजाय घर पर सब्जियां उगाने का चलन बढ़ रहा है. गांवों में घर के आसपास या कस्बों और शहरों की बालकनियों और छत पर लोग सब्जियां उगाने लगे हैं. बागवानी विभाग भी इस तरह की खेती को सब्सिडी प्रदान करता है और प्रोत्साहित करता है. पूरे साल ताजा सब्जियों को रासायनिक अवशेषों से मुक्त करने के अलावा, घर पर होने वाली बागवानी प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकती है और पर्यावरण को स्वच्छ रख सकती है, हरियाली बढ़ा सकती और जीवन को अधिक सुखद बना सकती है. घर पर बागवानी करने में उचित व्यायाम के साथ शरीर भी स्वस्थ रहता है. इसके अलावा, हम अपनी पसंद की सब्जियां आसानी से पा सकते हैं. चूंकि बागवानी विभाग उनकी खेती के लिए सब्सिडी प्रदान करता है, इसलिए विभाग को बड़े पैमाने पर इस खबर को फैलाना चाहिए और ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में लोगों को घर के बगीचे और जैविक खेती के तरीकों का पालन करने के लाभों को बताकर इस तरह की खेती को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

यह भी पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: जैविक खेती किसानों और स्वास्थ्य के लिए वरदान... मिलिए झालावाड़ के प्रभु लाल साहू से

सरकारों की भूमिका और प्रोत्साहन
सुरक्षित भोजन के प्रति दुनिया की आबादी को सकारात्मक रूप से ढालने और बदलने के लिए, सरकारों द्वारा बड़े पैमाने पर जैविक खेती को बढ़ावा देने की आवश्यकता है. ऐसे समय में जब जैविक खेती का महत्व बढ़ रहा है, रासायनिक मुक्त जीवन और जैविक उर्वरकों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. यह एक अच्छा विकास है कि केंद्र ने हाल ही में उनकी गुणवत्ता का पूरी तरह से परीक्षण करने के लिए कदम उठाए हैं. इसके भाग के रूप में, केंद्र ने उर्वरक परीक्षणों की निगरानी और उनमें काम करने वालों के लिए प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने का आदेश दिया है. फसल चक्र की प्रक्रिया के दौरान, उन फसलों का चयन करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए जो उपलब्ध पोषक तत्वों का उपयोग कर सकें और मिट्टी को मजबूत कर सकें ताकि मिट्टी के प्राकृतिक पोषक तत्वों की कमी न हो. साथ ही, भारतीय संस्कृति और परंपरा में निहित प्राकृतिक और जैविक कृषि पद्धतियों को व्यापक रूप से बढ़ावा दिया जाना चाहिए. एक अवसर के रूप में कोरोना के बाद की स्थितियों का लाभ उठाते हुए, घर में उगने वाली सब्जियों को बढ़ावा देना, आदि, स्वास्थ्य में सुधार के साथ-साथ पर्यावरणीय लाभ भी पहुंचा सकते हैं.

सुरक्षित पर्यावरण के अनुकूल
सुरक्षित भोजन और स्वस्थ जीवन शैली में दिलचस्पी दुनिया को बुरी तरह प्रभावित करने वाली कोरोना महामारी के कारण बढ़ रही है. हम जो भोजन करते हैं वह रासायनिक रूप से जहरीला होता है और घातक बीमारियों का खतरा बढ़ा देता है. इस समय, सरकार के लिए सबसे पहले सुरक्षित भोजन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध कदम उठाना सबसे जरूरी है. इस उद्देश्य के लिए, रसायनों का उपयोग काफी कम किया जाना चाहिए, जैविक खेती प्रथाओं को लोकप्रिय बनाया जाना चाहिए और बड़े पैमाने पर घर में उगाई जाने वाली फसलों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.

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