नई दिल्ली: देश के जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य परिदृश्य में सुधार के लिए भारत सरकार की अलग-अलग स्वास्थ्य पहलों के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र में विशेषज्ञ ने सरकार की प्रशंसा की है.
स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. गिरधर ज्ञानी ने कहा कि भारत सरकार ने आदिवासी समुदाय के लोगों की स्वास्थ्य स्थिति में सुधार के लिए कई विकासात्मक योजनाओं की शुरुआत की है. ऐसी ही एक पहल आयुष्मान भारत है.
उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि भारत को अब भी इस क्षेत्र में बहुत सुधार की जरूरत है.
डॉ. ज्ञानी ने कहा, 'हमारे पास देश में 16 लाख बेड हैं, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा प्रति हजार लोगों में 3.5 बेड की जरूरत के हिसाब से अब भी कम से कम 40 लाख बेड की जरूरत है.'
डॉ ज्ञानी ने बताया कि देश में 25000 प्राइमरी हेल्थ सेंटर हैं, वहीं 6500 कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर हैं और 1.5 लाख सब सेंटर हैं. लेकिन प्राइमरी स्वस्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की कमी है और सब सेंटर की बात तो आप छोड़ ही दीजिए.
इसके लिए सरकार ने आयुष्मान भारत योजना के तहत नर्सों और आयुष डॉक्टरों को ट्रेनिंग देने का फैसला लिया है.
अभी देश में 30 हजार सब सेंटर कार्यरत हैं, अगले तीन सालों में जब नर्सों और आयुष डॉक्टरों को ट्रेनिंग पूरी हो जाएगी तो आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुधार में व्यापक परिवर्तन देखने को मिलेगा.
डॉं ज्ञानी एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स ऑफ इंडिया (AHPI) के अध्यक्ष भी हैं.
उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि आदिवासी आबादी के स्वास्थ्य परिणामों में पूरे भारत के परिणामों की तुलना में तेज गति से सुधार हुआ है. यह आदिवासी क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करने के कारण हो सका है.
मंत्रालय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) और जिला स्तरीय घरेलू सर्वेक्षण (डीएलएचएस) जैसे सर्वेक्षण आदिवासी स्वास्थ्य संकेतकों के लिए अंतर का अनुमान देते हैं.
अधिकारियों ने कहा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 3 (2005-06) और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 4 (2015-16) के आंकड़ों से पता चलता है कि जनजातीय आबादी के स्वास्थ्य परिणामों के संकेतकों में सुधार हुआ है.
जनजातीय क्षेत्रों के लिए शिशु मृत्यु दर (IMR) में 17.7 अंकों का सुधार हुआ, वहीं भारत के लिए यह 16.3 अंकों से सुधरा है.
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आदिवासी क्षेत्रों में पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चों की मृत्यु दर में सुधार 38.5 अंकों का सुधार हुआ है, वहीं पूरे भारत में 24.6 अंकों का सुधार दर्ज किया गया है.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत ही केंद्र सरकार राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अपने स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों को मजबूत करने के लिए सहायता प्रदान करती है.
यह मदद राज्यों से प्राप्त प्रस्तावों के आधार पर उपलब्ध कराई जाती है ताकि पूरे देश में न्यायसंगत, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच प्रदान की जा सके. इसमें अनुसूची जिले भी शामिल हैं.
आदिवासी महिलाओं और बच्चों में एनीमिया की व्यापकता क्रमशः 2.3 और 11.1 अंकों की महिलाओं के लिए राष्ट्रीय कमी के आंकड़ों की तुलना में क्रमशः 8.7 और 13.7 अंकों की कमी आई है.
केंद्र ने जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं स्थापित करने के मानदंडों में भी ढील दी है.
जनजातीय क्षेत्रों में उप केंद्र, पीएचसी और सीएचसी की स्थापना के लिए आबादी के मानदंड क्रमशः तीन हजार, 20 हजार और 80 हजार है. वही देश के बाकी हिस्सों में ये मानदंड क्रमशः पांच हजार, 30 हजार और 1.20 लाख है.