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छत्तीसगढ़ में हुआ था गुरुदेव रविंद्रनाथ को 'पत्नी वियोग,' जीवनभर रहा एक झूठ का मलाल

गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर पत्नी का इलाज करवाने के लिए बिलासपुर आए थे. यहां उनके साथ कुछ ऐसा हुआ कि उन्हें अपनी पत्नी से झूठ बोलना पड़ा और उसके कुछ महीने बाद पत्नी का निधन का हो गया. पत्नी से बोले झूठ और उनके वियोग में गुरुदेव ने यहीं 'फांकी' की रचना की थी. जानें पूरा विवरण

रविन्द्र नाथ की बुक फांकी (फाइल फोटो)
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Published : Aug 16, 2019, 8:15 PM IST

Updated : Sep 27, 2019, 5:38 AM IST

बिलासपुर : हम स्वतंत्रता दिवस के रंग में रंगे हुए हैं. राष्ट्र की बात हो और हम राष्ट्रगान का जिक्र न करें, ऐसा हो नहीं सकता. ऐसे में भला हम अपने राष्ट्रगान 'जन गण मन' के रचयिता गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर को कैसे भूल सकते हैं.

गुरुदेव रविंद्र नाथ ने पत्नी के वियोग में लिखी थी 'फांकी'

पत्नी को इलाज के लिए लाए थे बिलासपुर

  • बात वर्ष 1918 की है जब टैगोर अपनी बीमार पत्नी बीनू को लेकर बिलासपुर पहुंचे थे.
  • गुरुदेव को वर्तमान में बिलासपुर जिले में स्थित पेंड्रारोड स्टेशन जाना था. इसलिए वो बिलासपुर पहुंचे थे और चन्द घंटों के बाद वो गाड़ी बदलकर पेंड्रा रोड चल दिए.
  • इस बीच वो तकरीबन 5 से 6 घंटे तक बिलासपुर स्टेशन के वेटिंग रूम में बैठे रहे. टैगोर अपनी पत्नी की टीबी का इलाज कराने पेंड्रा रोड स्थित सेनेटोरियम अस्पताल ले जा रहे थे.
    etvbharat
    विलासपुर रेलवे स्टेशन की (फाइल फोटो)
  • उन दिनों बिलासपुर का सेनिटोरियम अस्पताल टीबी के इलाज और विशेष आबोहवा के लिए देशभर में मशहूर था.

'फांकी' लिखने की कहानी
बिलासपुर के प्रतीक्षाघर में बैठे टैगोरजी की बीमार पत्नी की नजर स्टेशन परिसर में झाड़ू लगाने वाली महिला पर पड़ी. उस महिला और गुरुदेव के बीच संवाद, उसके बाद गुरुदेव के मन में अपनी पत्नी की अंतिम इच्छा पूरी न कर पाने के बीच की कहानी क्या है जानिए...

झाड़ू लगाने वाली से बीनू का संवाद

  • बीमार बीनू ने उस महिला को बुलाया और तुम्हारा नाम क्या है और तुम यह काम क्यों कर रही हो.
  • महिला ने अपना नाम रुक्मणी बताया और कहा कि उसकी बेटी शादी के योग्य हो चुकी है इसलिए मैं मजदूरी कर पैसा जोड़ रही हूं.
  • यह पूछने पर कि कितने में काम हो जाएगा रुक्मिणी ने बताया 20 रुपये में शादी हो जाएगी. फिर टैगोरजी की पत्नी ने गुरुदेव से उसे 20 रुपये देने का आग्रह किया.
  • गुरुदेव ने कहा कि ठीक है, मैं इसे पैसे दे दूंगा, लेकिन सौ रुपए के खुल्ले करवाने के लिए उसे मेरे साथ बाहर चलना होगा.
  • रुक्मणी को लेकर गुरुदेव बाहर ले गए और कहा कि तुम यह काम पैसे ठगने के लिए करती हो, मैं स्टेशन मास्टर को बताऊं क्या ? इतने में रुक्मणी वहां से चली गई.

पत्नी से बोल दिया झूठ

  • जब गुरुदेव दोबारा प्रतीक्षालय पहुंचे तो उन्होंने अपनी पत्नी से पैसा देने का झूठ बोल दिया.
  • इसके बाद पति पत्नी सेनेटोरियम अस्पताल पहुंचे, जहां तकरीबन 6 महीने तक बीमार बीनू का टीबी का इलाज चला, लेकिन वो बच नहीं पाईं.

आखिरी इच्छा पूरी न कर पाने का दुख

  • इस तरह गुरुदेव पत्नी वियोग में खो गए और उन्हें बार-बार यह गम सताने लगा कि उन्होंने उनकी पत्नी की आखिरी इच्छा पूरी नहीं की.
  • गुरुदेव फिर से अकेले बिलासपुर लौटे, तो वो स्टेशन परिसर में रुक्मणी को पैसे देने के लिए ढूंढ़ते रहे, लेकिन रुक्मणी उन्हें कहीं नहीं मिली.

इस तरह लिखी 'फांकी'

  • यहीं से एक महान कवि के हृदय में 'फांकी' कविता जन्म लेती है, जिसे गुरुदेव ने बिलासपुर स्टेशन पर ही लौटते वक्त लिखा था.
  • फांकी एक बांग्ला शब्द है, जिसका अर्थ 'छलना' होता है.
    etvbharat
    रविन्द्र नाथ की बुक फांकी की तस्वीर
  • गुरुदेव को लगा कि उन्होंने अपनी पत्नी के साथ झूठ बोलकर एक छल किया है और इसी मनोभाव से उनकी प्रसिद्ध कविता 'फांकी' ने जन्म लिया.
  • साहित्यकार मनीष दत्त बताते हैं कि एक कवि के अंदर जितनी अधिक स्वीकारोक्ति की भावना होती है, वो उतनी ही महान और स्थाई रचना समाज को देता है.
  • इस अर्थ में गुरुदेव की फांकी एक महान रचना है. यह रचना मूल रुप से बांग्ला में है. जो स्टेशन पर लगे एक शिलापट्ट पर अंकित है.
    etvbharat
    शिलापट्ट पर रविन्द्र नाथ की रचना 'फांकी'

बिलासपुर : हम स्वतंत्रता दिवस के रंग में रंगे हुए हैं. राष्ट्र की बात हो और हम राष्ट्रगान का जिक्र न करें, ऐसा हो नहीं सकता. ऐसे में भला हम अपने राष्ट्रगान 'जन गण मन' के रचयिता गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर को कैसे भूल सकते हैं.

गुरुदेव रविंद्र नाथ ने पत्नी के वियोग में लिखी थी 'फांकी'

पत्नी को इलाज के लिए लाए थे बिलासपुर

  • बात वर्ष 1918 की है जब टैगोर अपनी बीमार पत्नी बीनू को लेकर बिलासपुर पहुंचे थे.
  • गुरुदेव को वर्तमान में बिलासपुर जिले में स्थित पेंड्रारोड स्टेशन जाना था. इसलिए वो बिलासपुर पहुंचे थे और चन्द घंटों के बाद वो गाड़ी बदलकर पेंड्रा रोड चल दिए.
  • इस बीच वो तकरीबन 5 से 6 घंटे तक बिलासपुर स्टेशन के वेटिंग रूम में बैठे रहे. टैगोर अपनी पत्नी की टीबी का इलाज कराने पेंड्रा रोड स्थित सेनेटोरियम अस्पताल ले जा रहे थे.
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    विलासपुर रेलवे स्टेशन की (फाइल फोटो)
  • उन दिनों बिलासपुर का सेनिटोरियम अस्पताल टीबी के इलाज और विशेष आबोहवा के लिए देशभर में मशहूर था.

'फांकी' लिखने की कहानी
बिलासपुर के प्रतीक्षाघर में बैठे टैगोरजी की बीमार पत्नी की नजर स्टेशन परिसर में झाड़ू लगाने वाली महिला पर पड़ी. उस महिला और गुरुदेव के बीच संवाद, उसके बाद गुरुदेव के मन में अपनी पत्नी की अंतिम इच्छा पूरी न कर पाने के बीच की कहानी क्या है जानिए...

झाड़ू लगाने वाली से बीनू का संवाद

  • बीमार बीनू ने उस महिला को बुलाया और तुम्हारा नाम क्या है और तुम यह काम क्यों कर रही हो.
  • महिला ने अपना नाम रुक्मणी बताया और कहा कि उसकी बेटी शादी के योग्य हो चुकी है इसलिए मैं मजदूरी कर पैसा जोड़ रही हूं.
  • यह पूछने पर कि कितने में काम हो जाएगा रुक्मिणी ने बताया 20 रुपये में शादी हो जाएगी. फिर टैगोरजी की पत्नी ने गुरुदेव से उसे 20 रुपये देने का आग्रह किया.
  • गुरुदेव ने कहा कि ठीक है, मैं इसे पैसे दे दूंगा, लेकिन सौ रुपए के खुल्ले करवाने के लिए उसे मेरे साथ बाहर चलना होगा.
  • रुक्मणी को लेकर गुरुदेव बाहर ले गए और कहा कि तुम यह काम पैसे ठगने के लिए करती हो, मैं स्टेशन मास्टर को बताऊं क्या ? इतने में रुक्मणी वहां से चली गई.

पत्नी से बोल दिया झूठ

  • जब गुरुदेव दोबारा प्रतीक्षालय पहुंचे तो उन्होंने अपनी पत्नी से पैसा देने का झूठ बोल दिया.
  • इसके बाद पति पत्नी सेनेटोरियम अस्पताल पहुंचे, जहां तकरीबन 6 महीने तक बीमार बीनू का टीबी का इलाज चला, लेकिन वो बच नहीं पाईं.

आखिरी इच्छा पूरी न कर पाने का दुख

  • इस तरह गुरुदेव पत्नी वियोग में खो गए और उन्हें बार-बार यह गम सताने लगा कि उन्होंने उनकी पत्नी की आखिरी इच्छा पूरी नहीं की.
  • गुरुदेव फिर से अकेले बिलासपुर लौटे, तो वो स्टेशन परिसर में रुक्मणी को पैसे देने के लिए ढूंढ़ते रहे, लेकिन रुक्मणी उन्हें कहीं नहीं मिली.

इस तरह लिखी 'फांकी'

  • यहीं से एक महान कवि के हृदय में 'फांकी' कविता जन्म लेती है, जिसे गुरुदेव ने बिलासपुर स्टेशन पर ही लौटते वक्त लिखा था.
  • फांकी एक बांग्ला शब्द है, जिसका अर्थ 'छलना' होता है.
    etvbharat
    रविन्द्र नाथ की बुक फांकी की तस्वीर
  • गुरुदेव को लगा कि उन्होंने अपनी पत्नी के साथ झूठ बोलकर एक छल किया है और इसी मनोभाव से उनकी प्रसिद्ध कविता 'फांकी' ने जन्म लिया.
  • साहित्यकार मनीष दत्त बताते हैं कि एक कवि के अंदर जितनी अधिक स्वीकारोक्ति की भावना होती है, वो उतनी ही महान और स्थाई रचना समाज को देता है.
  • इस अर्थ में गुरुदेव की फांकी एक महान रचना है. यह रचना मूल रुप से बांग्ला में है. जो स्टेशन पर लगे एक शिलापट्ट पर अंकित है.
    etvbharat
    शिलापट्ट पर रविन्द्र नाथ की रचना 'फांकी'
Intro:आज 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस का खास दिन है । ऐसे में भला हम अपने राष्ट्रगान "जन गण मन" के रचयिता गुरदेव रविन्द्र नाथ टैगोर को कैसे भूल सकते हैं,जिन्होंने अपनी कई रचनाओं से पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने की कोशिश की थी । लेकिन आज हम आपको गुरदेव के एक ऐसे संस्मरण को आपके सामने लाएंगे जिसका सीधा कनेक्शन बिलासपुर शहर से है,जहां गुरुदेव ने अपनी पत्नी की वियोग एक मार्मिक कविता "फाँकी" की रचना की थी ... एक खास रिपोर्ट ।


Body:बात आजादी से पहले वर्ष 1918 की है जब गुरुदेव अपनी बीमार पत्नी बीनू को लेकर बिलासपुर पहुंचे थे । दरअसल गुरुदेव को वर्तमान में बिलासपुर जिले में स्थित पेंड्रारोड स्टेशन जाना था । इसलिए वो बिलासपुर पहुंचे थे और चन्द घण्टों के बाद वो गाड़ी बदलकर पेंड्रारोड चल दिये । इस बीच वो तकरीबन 5 से 6 घण्टे तक बिलासपुर स्टेशन के वेटिंगरूम में बैठे रहे । टैगोर अपनी पत्नी का टीबी का इलाज कराने पेंड्रारोड स्थित सेनेटोरियम अस्पताल ले जा रहे थे । उन दिनों सेनिटोरियम अस्पताल टीबी के इलाज और विशेष आवोहवा के लिए देशभर में मशहूर था ।
बिलासपुर के प्रतीक्षाघर में बैठे टैगोर जी की बीमार पत्नी की नजर स्टेशन परिसर में झाड़ू लगानेवाली महिला पर पड़ी । बीमार बीनू ने उस महिला को बुलाया और तुम्हारा नाम क्या है और तुम यह काम क्यों कर रही हो । महिला ने अपना नाम रुक्मिणी बताया और कहा कि उसकी बेटी शादी के योग्य हो चुकी है इसलिए मैं मजदूरी कर पैसा जोड़ रही हूँ । यह पूछने पर कि कितने में काम हो जाएगा रुक्मिणी ने बताया 20 रुपये में शादी हो जाएगी । फिर टैगोर जी की पत्नी ने गुरुदेव से उसे 20 रुपये देने का आग्रह किया । गुरूदेव ने कहा कि ठीक है मैं इसे पैसे दे दूंगा लेकिन सौ रुपए के खुल्ले करवाने के लिए उसे मेरे साथ बाहर चलना होगा । रुक्मिणी को लेकर गुरुदेव बाहर ले गए और कहा कि तुम यह काम पैसे ठगने के लिए करती हो,मैं स्टेशन मास्टर को बताऊँ क्या ?..इतने में रुक्मिणी वहां से चली गई । जब गुरुदेव दुबारा प्रतीक्षालय पहुंचे तो उन्होंने अपनी पत्नी से पैसा देने का झूठ बोल दिया। इसके बाद पति पत्नी सेनेटोरियम अस्पताल पहुंचे जहां तकरीबन 6 महीने तक बीमार बीनू का टीबी का इलाज चला लेकिन वो बच नहीं पाईं । और इस तरह गुरुदेव पत्नी वियोग में खो गए और उन्हें बार-बार यह ग़म सताने लगा कि उन्होंने उनकी पत्नी की आखिरी इच्छा पूरी नहीं की । अकेले गुरुदेव जब दुबारा फिर से बिलासपुर लौटे तो वो स्टेशन परिसर में रुक्मिणी को पैसे देने के लिए ढूंढ़ते रहे लेकिन रुक्मिणी उन्हें कहीं नहीं मिली ।







































Conclusion:यहीं से एक महान कवि के हृदय में "फांकी" कविता जन्म लेता है जिसे गुरुदेव ने बिलासपुर स्टेशन पर ही लौटते वक्त लिखा था । फांकी एक बंग्ला शब्द है जिसका अर्थ "छलना" होता है । गुरुदेव को लगा कि उन्होंने अपनी पत्नी के साथ झूठ बोलकर एक छल किया है और इसी मनोभाव से उनकी प्रसिद्ध कविता "फांकी" जन्म लेती है । साहित्यकार मनीष दत्त बताते हैं कि एक कवि के अंदर जितनी अधिक स्वीकारोक्ति की भावना होती है वो उतना ही महान और स्थाई रचना समाज को देता है । गुरुदेव की फाँकी इस अर्थ में एक महान रचना है ।
बाईट.... मनीष दत्त....साहित्यकार
विशाल झा....... बिलासपुर








Last Updated : Sep 27, 2019, 5:38 AM IST
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