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उत्तराखंड आपदा : विशेषज्ञों ने हिमालयी क्षेत्र में ज्यादा मानवीय दखल की ओर किया इशारा

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Published : Feb 7, 2021, 10:06 PM IST

हिमालयी क्षेत्र में मानवीय दखल बढ़ा है, जिस कारण यह जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील हो गया है. ऐसा मानना है पर्यावरण विशेषज्ञों का. उनका कहना है कि पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों में भारी निर्माण कार्य से बचा जाना चाहिए.

हिमालयी क्षेत्र
हिमालयी क्षेत्र

नई दिल्ली : पर्यावरण विशेषज्ञों ने रविवार को कहा कि पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में मानवीय हस्तक्षेप बढ़ने से यह जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील हो गया है. उत्तराखंड के चमोली जिले में जोशीमठ में एक ग्लेशियर टूटने से राज्य में भीषण बाढ़ आ गई.

ग्लेशियर के टूटने से धौली गंगा नदी में भीषण बाढ़ आई और हिमालय के ऊपरी इलाकों में बड़े पैमाने पर तबाही हुई. ग्रीनपीस इंडिया के वरिष्ठ जलवायु एवं ऊर्जा प्रचारक अविनाश चंचल ने इस पर कहा, 'घटना के सटीक कारण का अभी तक पता नहीं चल पाया है और इसकी ईमानदार जांच की आवश्यकता है, लेकिन यह स्पष्ट है कि पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में मानव हस्तक्षेप बढ़ रहा है जो इसे जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील बना रहा है.'

उन्होंने कहा, 'पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों में भारी निर्माण कार्य से बचा जाना चाहिए. हिमालयी क्षेत्र के लिए वर्तमान विकास मॉडल के बारे में पुनर्विचार करने की आवश्यकता है.'

एक अन्य विशेषज्ञ एवं जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की महासागरों और क्रायोस्फीयर पर एक विशेष रिपोर्ट के प्रमुख लेखकों में से एक अंजल प्रकाश ने कहा कि प्रथमदृष्टया ऐसा प्रतीत होता है ऐसा जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण हुआ है जिससे अब 'एक खतरनाक और अपरिवर्तनीय स्थिति' बन गई है.

ज्यादा निगरानी की जरूरत

उन्होंने कहा, 'हिमालयी क्षेत्र सबसे कम निगरानी वाला क्षेत्र है और यह घटना वास्तव में दिखाती है कि हम कितने जोखिम में हो सकते हैं. मैं सरकार से इस क्षेत्र की निगरानी में अधिक संसाधन खर्च करने का अनुरोध करूंगा ताकि हमें परिवर्तन प्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी हो. इसका नतीजा यह होगा कि हम अधिक जागरूक होंगे और बेहतर अनुकूलन प्रथाओं को विकसित कर सकते हैं.' प्रकाश इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी), हैदराबाद में एक अनुसंधान निदेशक और एडजंक्ट एसोसिएट प्रोफेसर भी हैं.

आईआईटी इंदौर में सहायक प्रोफेसर, (ग्लेशियोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी) मोहम्मद फारूक आजम ने ग्लेशियर टूटने को एक दुर्लभ घटना करार देते हुए कहा कि उपग्रह और गूगल अर्थ की तस्वीरों में इस क्षेत्र के पास कोई हिमनद झील नहीं दिखती, लेकिन एक जलक्षेत्र होने की संभावना है.

पढ़ें- वैज्ञानिकों ने 2019 में ही चेताया था, हिमालय के हिमखंड दोगुनी तेजी से पिघल रहे

उन्होंने कहा, 'जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित मौसम के स्वरूप जैसे बर्फबारी और बारिश में वृद्धि हुई है, और बहुत अधिक सर्दियां नहीं पड़ने से बहुत अधिक बर्फ पिघलने लगी है.'

नई दिल्ली : पर्यावरण विशेषज्ञों ने रविवार को कहा कि पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में मानवीय हस्तक्षेप बढ़ने से यह जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील हो गया है. उत्तराखंड के चमोली जिले में जोशीमठ में एक ग्लेशियर टूटने से राज्य में भीषण बाढ़ आ गई.

ग्लेशियर के टूटने से धौली गंगा नदी में भीषण बाढ़ आई और हिमालय के ऊपरी इलाकों में बड़े पैमाने पर तबाही हुई. ग्रीनपीस इंडिया के वरिष्ठ जलवायु एवं ऊर्जा प्रचारक अविनाश चंचल ने इस पर कहा, 'घटना के सटीक कारण का अभी तक पता नहीं चल पाया है और इसकी ईमानदार जांच की आवश्यकता है, लेकिन यह स्पष्ट है कि पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में मानव हस्तक्षेप बढ़ रहा है जो इसे जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील बना रहा है.'

उन्होंने कहा, 'पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों में भारी निर्माण कार्य से बचा जाना चाहिए. हिमालयी क्षेत्र के लिए वर्तमान विकास मॉडल के बारे में पुनर्विचार करने की आवश्यकता है.'

एक अन्य विशेषज्ञ एवं जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की महासागरों और क्रायोस्फीयर पर एक विशेष रिपोर्ट के प्रमुख लेखकों में से एक अंजल प्रकाश ने कहा कि प्रथमदृष्टया ऐसा प्रतीत होता है ऐसा जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण हुआ है जिससे अब 'एक खतरनाक और अपरिवर्तनीय स्थिति' बन गई है.

ज्यादा निगरानी की जरूरत

उन्होंने कहा, 'हिमालयी क्षेत्र सबसे कम निगरानी वाला क्षेत्र है और यह घटना वास्तव में दिखाती है कि हम कितने जोखिम में हो सकते हैं. मैं सरकार से इस क्षेत्र की निगरानी में अधिक संसाधन खर्च करने का अनुरोध करूंगा ताकि हमें परिवर्तन प्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी हो. इसका नतीजा यह होगा कि हम अधिक जागरूक होंगे और बेहतर अनुकूलन प्रथाओं को विकसित कर सकते हैं.' प्रकाश इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी), हैदराबाद में एक अनुसंधान निदेशक और एडजंक्ट एसोसिएट प्रोफेसर भी हैं.

आईआईटी इंदौर में सहायक प्रोफेसर, (ग्लेशियोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी) मोहम्मद फारूक आजम ने ग्लेशियर टूटने को एक दुर्लभ घटना करार देते हुए कहा कि उपग्रह और गूगल अर्थ की तस्वीरों में इस क्षेत्र के पास कोई हिमनद झील नहीं दिखती, लेकिन एक जलक्षेत्र होने की संभावना है.

पढ़ें- वैज्ञानिकों ने 2019 में ही चेताया था, हिमालय के हिमखंड दोगुनी तेजी से पिघल रहे

उन्होंने कहा, 'जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित मौसम के स्वरूप जैसे बर्फबारी और बारिश में वृद्धि हुई है, और बहुत अधिक सर्दियां नहीं पड़ने से बहुत अधिक बर्फ पिघलने लगी है.'

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