नई दिल्ली : भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर देश में विपक्ष लगातार मोदी सरकार पर हमलावर है. विपक्ष की रणनीति है कि मानसून सत्र की शुरुआत होते ही इस मुद्दे पर जोर-शोर से सरकार पर सवाल उठाए. मगर सरकार चाहती है कि भारत और चीन के बीच चल रही घटनाओं और बातचीत के दौरान निकली बातों को संसद के सार्वजनिक पटल पर चर्चा ना कर सत्र से पहले एक सर्वदलीय बैठक बुलाकर उसमें विपक्षी सांसदों को भारतीय कार्यवाही की जानकारी दी जाए. सरकार इस मुद्दे पर आम राय बनाने की कोशिश में है.
सूत्रों की माने तो मॉनसून सत्र से पहले सरकार हर हाल में सर्वदलीय बैठक बुलाना चाहती है. मानसून सत्र 14 सितंबर से शुरू हो रहा है और पूरा विपक्ष लामबंद होकर चीन मुद्दे पर सरकार को घेरने की तैयारी कर रहा है, मगर एलएसी पर मौजूदा स्थिति के बारे में चल रही कार्यवाही को लेकर सरकार काफी संवेदनशील है. वह इससे संबंधित हालात को सार्वजनिक नहीं करना चाहती.
यही वजह है कि इससे पहले भी जब भारत और चीन की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी तो प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर यह सफाई दी थी कि ना हमारी सीमा में कोई घुसा है और ना ही घुसने दिया जाएगा, मगर वहां हुई तमाम कार्रवाई की जानकारी विपक्षी नेताओं को दी गई थी. अब सरकार मॉनसून सत्र में इस मुद्दे पर हंगामा होने से पहले या सार्वजनिक चर्चा से पहले हर हाल में यह कोशिश कर रही है कि एक सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए. इसमें विपक्षी सांसदों के तीखे सवालों का जवाब देने को सरकार तैयार है. सरकार की कोशिश है कि उस बैठक में संवेदनशील मुद्दे पर चर्चा हो और सार्वजनिक चर्चा संसद में न कराई जाए.
विपक्षी नेताओं को मनाने का जिम्मा दो कैबिनेट मंत्रियों को सौंपा
सरकारी सूत्रों का कहना है कि चीन सीमा पर पहले सतर्कता जरूरी है. इस मामले पर पहले सीमा पर शांति बहाल करना ज्यादा बड़ा मुद्दा है. सरकार रूस में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और चीन के रक्षा मंत्री के साथ हुई मुलाकात में जो बातचीत हुई, उसकी भी विस्तृत जानकारी संसद के सार्वजनिक पटल पर नहीं देना चाहती है.
यही वजह है कि सरकार एक-दो दिन में सर्वदलीय बैठक बुलाने की कोशिश कर रही है. सूत्रों की मानें तो सर्वदलीय बैठक बुलाने के लिए विपक्षी नेताओं को मनाने का जिम्मा सरकार के उच्च स्तर के दो कैबिनेट मंत्रियों को सौंपा गया है. दोनों पिछले 2 दिनों के अंदर अलग-अलग विपक्षी पार्टियों के कई नेताओं से इस मुद्दे पर बातचीत भी कर चुके हैं. वहीं साथ ही साथ पार्टी की तरफ से सभी सांसदों को चीन पर चल रही गतिविधियों से संबंधित तमाम जानकारियां दी गई हैं. खासकर, सरकार के बचाव में क्या कहना है और क्या नहीं कहना. किन बातों पर चर्चा होनी है, किन-किन पर नहीं होनी है. यह तमाम बातें मसौदे के रूप में भाजपा सांसदों को भेजी जा रही हैं. उन्हें इस पर तैयारी करके ही संसद में आने के निर्देश दिए गए हैं.
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कूटनीति से काम करना चाह रही सरकार
चीन पर फिलहाल सरकार कूटनीति से काम करना चाह रही है, ताकि विश्व में भारत की तरफ से एक ग्लोबल संदेश भी दिया जा सके कि किस तरह चीन लगातार अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा. दूसरी तरफ चीन को आर्थिक मोर्चे पर भी सरकार लगातार पटखनी देने में सफल रही है. चीन के साथ व्यापार को न्यूनतम स्तर पर पहुंचा दिया गया है. चीनी ऐप पर लगाई जा रही लगातार पाबंदियों से चीन की बौखलाहट साफ नजर आ रही है. ऐसे में सरकार चाहती है कि चीन के संवेदनशील मुद्दे पर जो भी कार्रवाई हो, वह कूटनीतिक चाल के तहत ही हो. इससे वह चीन को एक्सपोज भी कर सकेगी और विश्व समुदाय में अपने लिए सहानुभूति का माहौल भी तैयार कर सकेगी.
कांग्रेस गलीच राजनीति करने पर आमादा, यह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण : प्रेम शुक्ला
इस मुद्दे पर ईटीवी भारत ने भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ला से जानना चाहा कि सरकार और पार्टी का रुख चीन को लेकर या विपक्षी पार्टियों के हमले को लेकर क्या रहेगा. इस पर प्रेम शुक्ला ने ईटीवी से कहा कि जिस तरह से विपक्ष और खास तौर पर कांग्रेस चीन से विवाद पर तूल दे रही है, वह देश के लिए घातक है. चीन का मसला किसी भी तरह से अंदरूनी राजनीति का शिकार नहीं होना चाहिए. इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले के प्राचीर से भी स्पष्ट संदेश दिया था. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी मॉस्को से स्पष्ट रूप से संदेश दिया और विदेश मंत्री जयशंकर भी इस पर सारी बातें स्पष्ट कह चुके हैं कि हम बातचीत से मसले को सुलझाना चाहते हैं. शांति हमारी प्राथमिकता है लेकिन हम अपने क्षेत्रीय संप्रभुता और अखंडता से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेंगे. बावजूद इसके कांग्रेस जिस तरह से इस पर गलीच राजनीति करने पर आमादा है, वह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है.