नई दिल्ली : प्रतिबंधित खालिस्तान समर्थक समूह, सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) ने शनिवार को पंजाब में लोगों के लिए 'रेफरेंडम 2020' के लिए एक रूसी पोर्टल के जरिए अपना बहुप्रचारित ऑनलाइन मतदाता पंजीकरण शुरू कर दिया है, लेकिन भारत सरकार ने रविवार को इस रूसी पोर्टल को ब्लॉक कर दिया. इसके साथ ही खालिस्तान की भारत में पुन: उत्थान होने पर रोक लग गई है. हालांकि वैश्विक परिदृश्य से खालिस्तान नेटवर्क अब भी सक्रिय है.
सिख अलगाववादी आंदोलन के हालिया घटनाक्रम से परिचित एक शीर्ष सुरक्षा अधिकारी ने माना है कि खालिस्तान आंदोलन वैश्विक स्तर पर फंडिंग करने में मजबूत हुआ है.
अधिकारी ने ईटीवी भारत को बताया कि इस आंदोलन में एक बुनियादी दोष है कि यह आंदोलन विदेश में रह रहे धनी सिखों द्वारा प्रायोजित है और इनके समर्थन से ही आगे बढ़ा है, जबकि भारतीय सिखों में देश विरोधी भावनाएं कम हैं, इसलिए यह आंदोलन यहां अधिक फल-फूल नहीं पाया है.
तकरीबन दो साल की योजना के बाद रेफरेंडम 2020 शनिवार यानी चार जुलाई को भारत में लॉन्च किया गया, जो पंजाब और पड़ोसी क्षेत्रों के लिए स्वतंत्र देश खालिस्तान के आंदोलन को फिर से जीवित करने के एक बड़े प्रयास के एक हिस्से के रूप में शुरू किया गया था.
अमेरिका स्थित सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) एक खालिस्तान समर्थक समूह है. एसएफजे का नेतृत्व अवतार सिंह पन्नू और गुरपटवंत सिंह पन्नू कर रहे हैं, जिन्होंने खालिस्तान की वकालत करने के साथ ही रेफरेंडम 2020 के लिए ऑनलाइन अलगाववादी अभियान को अंजाम दिया.
अमेरिका स्थित आतंकवादी गुरपटवंत सिंह पन्नू ने एक वीडियो के माध्यम से मतदाता पंजीकरण की घोषणा की थी, जिसमें पंजाब पुलिस के साथ-साथ केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों को भी शामिल किया गया था.
रेफरेंडम 2020 एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें पंजाब के वयस्क व्यक्ति ऑनलाइन पंजीकरण कर सकते थे. इतना ही नहीं वह खालिस्तान का स्वतंत्र देश के पक्ष में अपना वोट दे सकते थे.
रेफरेंडम 2020 प्रक्रिया शुरू होने से एक दिन पहले, सरकार ने एक रूसी डोमेन पर होस्ट किए गए ऑनलाइन पोर्टल को ब्लॉक कर दिया. इसके बाद गृह मंत्रालय की सिफारिश पर इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) ने रविवार को एसएफजे से जुड़ी 40 वेबसाइट ब्लॉक कर दी. इस प्रक्रिया ने रेफरेंडम 2020 को बड़ा झटका दिया. इससे पहले सरकार ने एसएफजे को 10 जुलाई, 2019 को प्रतिबंधित कर दिया था.
रेफरेंडम 2020 की योजना अगस्त, 2018 में लंदन में शुरू हुई थी. इसे 6 जून, 2020 को पंजाब में लॉन्च किया जाना था. यह दिन ऑपरेशन ब्लूस्टार से जुड़ा है. हालांकि, अपेक्षित समर्थन नहीं मिलने के कारण तारीख फिर से तय की गई. 4 जुलाई को प्रस्तावित रेफरेंडम भी विफल रहा. बता दें कि 2020 में ऑपरेशन ब्लूस्टार की 36वीं वर्षगांठ है.
साइबर सुरक्षा फर्म इननेफू (Innefu ) द्वारा तैयार हालिया रिपोर्ट के अनुसार साइबर डोमेन में सरकार के साथ मिलकर काम करती है. यह आंदोलन भौगोलिक रूप से पाकिस्तान, कनाडा, अमेरिका और यूके में अधिक सक्रिय है. इसके अलावा संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और बेल्जियम में इस आंदोलन की कम सक्रिय है.
खालिस्तान अपने प्रोपेगैंडा सोशल मीडिया, ब्लॉग, समाचार, प्रकाशन और अन्य ओपेन वेब सोर्स वेब स्रोतों फैलता है, जिसमें दुनियाभर के तमाम मंत्री, सांसदों, महापौरों, राजनीतिक नेताओं और अन्य लोगों का सर्मथन किया जाता है.
रिपोर्ट ने ट्विटर पर पाकिस्तान स्थित कई बीओटी प्रोफाइल की पहचान की है. कुछ टि्वटर हैंडल पर पर्याप्त फॉलोअर्स हैं. इन टि्वटर एकांउटों में @ DrAliya7 (52,774 फॉलोअर्स), @ smushtaq30 (16,347 फॉलोअर्स), @ Gillsab027, और @ Rameezkhan066 शामिल हैं.
रिपोर्ट का एक और उल्लेखनीय निष्कर्ष का कश्मीर मुद्दे के साथ जुड़ाव है. रिपोर्ट में कहा गया है कि खालिस्तान आंदोलन के प्रमुख मुद्दों में एक मुद्दा फ्री कश्मीर है.
रेफरेंडम 2020 का उद्देश्य पंजाब के लिए स्वतंत्रता के समर्थन में पांच मिलियन लोगों का समर्थन प्राप्त करना था. इसके बाद एक अलग देश की मांग को रेखांकित करने के लिए यूएन को प्रस्तुत करना है.
ओपन सोर्स इंटेलिजेंस का विश्लेषण करते हुए इननेफू (Innefu ) ने पाया कि रेफरेंडम 2020 कि योजना पंजाब से पहले अमेरिका, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और यूरोप और एशिया के अन्य देशों में मतदाता पंजीकरण कराना था.