नई दिल्ली : पूरी दुनिया में कोरोना महामारी के खिलाफ वैक्सीन बनाने की तैयारी हो रही है. ऐसे में वैश्विक स्तर पर किए गए एक सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि चार में से एक वयस्क कोरोना का टीकाकरण नहीं चाहता. इसका सबसे अहम कारण टीके के साइड इफेक्ट और इसकी प्रभावशीलता के बारे में उनकी आशंकाएं हैं. हालांकि भारत में ऐसे लोगों का अनुपात काफी कम यानी 13 प्रतिशत है.
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा किए गए इप्सोस (Ipsos) सर्वे में 27 देशों के तकरीबन 20,000 युवा शामिल रहे. यह सर्वे 2020 की वैक्सीन पर आधारित रहा.
विश्व स्तर पर 74 प्रतिशत उत्तरदाताओं का कहना था कि अगर वैक्सीन उपलब्ध है तो वे जरूर इसे लेंगे, लेकिन आधे से ज्यादा यानी 59 प्रतिशत उम्मीदवारों का कहना है कि उन्हें उम्मीद नहीं है कि वैक्सीन इस साल के अंत तक उपलब्ध होगी.
डब्ल्यूईएफ में शेपिंग द फ्यूचर ऑफ हेल्थ एंड हेल्थकेयर के प्रमुख, अरनौद बर्नर्ट ने कहा कि जरूरी है कि सरकारें और निजी क्षेत्र कोरोना के टीके की वैश्विक आपूर्ति के लिए एक साथ आगे आएं.
इसके लिए शोधकर्ताओं और निर्माताओं के बीच आपसी सहयोग की जरूरत है, जिससे टीके के उपयोग पर प्रतिबंध को हटा सके.
WEF ने सर्वेक्षण परिणामों की घोषणा करते हुए कहा कि कोरोना के टीकाकरण के इच्छुक सबसे ज्यादा देशों में चीन (97 प्रतिशत), ब्राजील (88 प्रतिशत), ऑस्ट्रेलिया (88 प्रतिशत), और भारत (87 प्रतिशत) हैं.
इसके विपरीत सबसे कम रूस (54 फीसदी), पोलैंड (56 फीसदी), हंगरी (56 फीसदी) और फ्रांस (59 फीसदी) हैं.
सभी 27 देशों में, 59 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने असहमति जताई कि 2020 के अंत से पहले उनके लिए COVID-19 का एक टीका उपलब्ध होगा.
चीन इस सर्वेक्षण में 87 प्रतिशत उन लोगों के साथ आशावाद के लिए खड़ा था, जो इस वर्ष वैक्सीन तैयार होने की उम्मीद कर रहे थे, इसके बाद सऊदी अरब (75 प्रतिशत) और भारत (74 प्रतिशत) थे.
सर्वेक्षण किए गए देशों में अमेरिका, कनाडा, मलेशिया, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, दक्षिण कोरिया, पेरू, अर्जेंटीना, मैक्सिको, स्पेन, नीदरलैंड, स्वीडन और इटली भी शामिल रहे.