नई दिल्ली : भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय पारदर्शिता कानून, सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) के अधीन है. उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने ये व्यवस्था दी है.
उच्चतम न्यायालय की पीठ ने फैसला देते हुए आगाह किया कि सूचना के अधिकार कानून का इस्तेमाल निगरानी रखने के हथियार के रूप में नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार एक महत्वपूर्ण पहलू है, और प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय से जानकारी देने के बारे में निर्णय लेते समय निजता और पारदर्शिता के बीच संतुलन कायम करना होगा.
क्या हैं दूसरे देशों में प्रावधान
- अमेरिका
अमेरिको में आय के स्रोतों आदि के बारे में जानकारी देने अनिवार्य है.
- अर्जेंटीना
अर्जेंटीना का पब्लिक एथिक्स लॉ यह स्थापित करता है कि केंद्र सरकार के प्रत्येक सार्वजनिक अधिकारी को भ्रष्टाचार निरोधक कार्यालय में जमा किए गए हलफनामे में अपनी संपत्ति का खुलासा करना होगा.
- केन्या और दक्षिण अफ्रीका
न्यायिक नियुक्ति आयोग द्वारा लिए गए उम्मीदवारों के साक्षात्कार का सीधा प्रसारण किया जाता है. इस तरह जनता चयन प्रक्रिया पूरी तरह से अवगत है.
- पोलैंड
पोलैंड का Freedom of Information कानून 35 सरकार के पास सूचना तक पहुंच प्रदान करता है. इस कानून के तहत यह आवश्यक है कि अधिकारी वार्षिक वेतन, आय, लाभ और विशेषाधिकारों से संबंधित जानकारी प्रदान करें.
- अल साल्वाडोर
इस देश के Illegal Enrichment कानून 36 के तहत प्रावधान है कि सरकारी कर्मचारी (न्यायाधीश भी) को राज्य की इकाई के पास एक हलफनामा दायर करना होगा.
न्यायपालिका को RTI के अधीन लाने के पक्ष में दलीलें
- यह न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में न्यायपालिका में पारदर्शिता को बढ़ाएगा.
- इससे न्यायपालिका में भाई-भतीजावाद और निरंकुशता में कमी आएगी.
- इससे न्यायपालिका की जवाबदेही बढ़ेगी. न्यायाधीशों को उनके निर्णयों के लिए जवाबदेह ठहराया जा सकता है.
- इससे न्यायपालिका में लंबित मामलों में कमी आएगी.
- निर्णय जल्दी आएंगे.
- न्यायिक कार्यवाई के बारे में जानकारी मिलने से लोगों के मन में विश्वास बढ़ेगा.
- न्यायिक नियुक्तियों में हस्तक्षेप करने के लिए लोगों की आवश्यकता में कमी आएगी.
- विभिन्न न्यायिक क्षेत्रों में रिक्त सीटें हस्तांतरणीय हो सकेंगी और उन पदों के लिए भर्ती में तेजी आएगी.
- बढ़ती पारदर्शिता के साथ भ्रष्टाचार में कमी आएगी.
न्यायपालिका को RTI के अधीन लाने के विपक्ष में दलीलें
- इससे न्यायिक स्वतंत्रता खत्म हो सकती है.
- यह न्यायपालिका के निर्णय लेने की शक्ति को चुनौति देगा
- इससे न्यायपालिका पर दबाव बढ़ जाएगा. क्योंकि हर फैसले को लेकर न्यायपालिका की जवाबदेही होगी.
- कुछ मामलों में शामिल गोपनियता और सुरक्षा पर आंच आएगी.
- इससे न्यायपालिका लोगों के हाथ की कटपुतलि बन जाएगी.
- इससे न्यायपालिका में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ जाएगा.