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महाराष्ट्र से तिरुवनंतपुरम एक वर्ष में पहुंची अंतरिक्ष परियोजना की मशीन, जानें कारण

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Published : Jul 19, 2020, 9:09 PM IST

अंतरिक्ष परियोजना के लिए विशालकाय मशीन आज तिरुवनंतपुरम के विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) पहुंच गई है. इस मशीन को एक साल पहले महाराष्ट्र से रवाना किया गया था. इसके बड़े आकार की वजह से इसे सड़क मार्ग के सहारे यहां पहुंचाया गया है. इसके साथ 32 स्टाफ मेंबर भी आए हैं. पढ़ें पूरी खबर...

giant machine for space project
अंतरिक्ष परियोजना

तिरुवनंतपुरम : अंतरिक्ष परियोजना के लिए विशालकाय मशीन आज तिरुवनंतपुरम के विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) पहुंच गई है. इस मशीन को एक साल पहले महाराष्ट्र से रवाना किया गया था. इसके बड़े आकार की वजह से इसे सड़क मार्ग के सहारे यहां पहुंचाया गया है. इसके साथ 32 स्टाफ मेंबर भी आए हैं. दरअसल यह ट्रक दिन में सिर्फ पांच किलोमीटर का सफर तय करता था, यही वजह है कि इसे पहुंचने में एक साल का समय लगा.

महाराष्ट्र से एक साल बाद तिरुवनंतपुरम पहुंची विशाल मशीन

स्टाफ के एक सदस्य ने बताया कि वे आठ जुलाई 2019 को महाराष्ट्र से चले थे. एक साल में चार राज्यों से होते हुए वे तिरुवनंतपुरम पहुंच गए हैं. वे वीएसएससी में आज मशीन पहुंचाने की उम्मीद करते हैं.

यह एक एयरोस्पेस क्षैतिज आटोक्लेव है, जिसका उपयोग भारहीन सामग्री बनाने के लिए किया जाता है. यह वीएसएससी के लिए एक साल पहले महाराष्ट्र से निकला था.

बता दें, इस विशाल मशीन का वजन 70 टन है और इसकी ऊंचाई 7.5 मीटर और लंबाई 6.65 मीटर है. यह नासिक में बनाया गया था और जल्द ही इसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परियोजना के लिए शुरू कर दिया जाएगा.

पढ़ें - भारत-चीन सीमा विवाद : वायुसेना की इस सप्ताह बैठक, राफेल की तैनाती पर चर्चा

एक अन्य अधिकारी ने बताया कि वह इस कार्गो को ले जाने के लिए रस्सियों का उपयोग कर रहे हैं. इसे दो धुरी आगे और पीछे से खींचा जा रहा है. दोनो में 32 पहिए हैं और खींचने के लिए 10 पहिए हैं. ड्रॉक डेक का वजन 10 टन और कार्गो का 78 टन हैं. कर्मचारियों के अनुसार मशीन की ऊंचाई के कारण वह इसे जहाज के माध्यम से ले जाने में असमर्थ थे, इसलिए उन्हें सड़क का चयन करना पड़ा है.

तिरुवनंतपुरम : अंतरिक्ष परियोजना के लिए विशालकाय मशीन आज तिरुवनंतपुरम के विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) पहुंच गई है. इस मशीन को एक साल पहले महाराष्ट्र से रवाना किया गया था. इसके बड़े आकार की वजह से इसे सड़क मार्ग के सहारे यहां पहुंचाया गया है. इसके साथ 32 स्टाफ मेंबर भी आए हैं. दरअसल यह ट्रक दिन में सिर्फ पांच किलोमीटर का सफर तय करता था, यही वजह है कि इसे पहुंचने में एक साल का समय लगा.

महाराष्ट्र से एक साल बाद तिरुवनंतपुरम पहुंची विशाल मशीन

स्टाफ के एक सदस्य ने बताया कि वे आठ जुलाई 2019 को महाराष्ट्र से चले थे. एक साल में चार राज्यों से होते हुए वे तिरुवनंतपुरम पहुंच गए हैं. वे वीएसएससी में आज मशीन पहुंचाने की उम्मीद करते हैं.

यह एक एयरोस्पेस क्षैतिज आटोक्लेव है, जिसका उपयोग भारहीन सामग्री बनाने के लिए किया जाता है. यह वीएसएससी के लिए एक साल पहले महाराष्ट्र से निकला था.

बता दें, इस विशाल मशीन का वजन 70 टन है और इसकी ऊंचाई 7.5 मीटर और लंबाई 6.65 मीटर है. यह नासिक में बनाया गया था और जल्द ही इसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परियोजना के लिए शुरू कर दिया जाएगा.

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एक अन्य अधिकारी ने बताया कि वह इस कार्गो को ले जाने के लिए रस्सियों का उपयोग कर रहे हैं. इसे दो धुरी आगे और पीछे से खींचा जा रहा है. दोनो में 32 पहिए हैं और खींचने के लिए 10 पहिए हैं. ड्रॉक डेक का वजन 10 टन और कार्गो का 78 टन हैं. कर्मचारियों के अनुसार मशीन की ऊंचाई के कारण वह इसे जहाज के माध्यम से ले जाने में असमर्थ थे, इसलिए उन्हें सड़क का चयन करना पड़ा है.

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