मैसूर (कर्नाटक): कोरोना महामारी के बीच मैसूर का विश्व प्रसिद्ध दशहरा सफलतापूर्वक समाप्त हुआ. मैसूर दशहरे में जंबो सवारी की अगुवाई अभिमन्यु हाथी ने किया. जंबो सवारी में भाग लेने वाले सभी हाथी आज अपने-अपने शिविर में लौट गये. हालांकि कोरोना के मद्देनजर दशहरे का सीमित मात्रा में आयोजन किया गया.
हाथी अभिमन्यु और उनकी टीम के सदस्य, गोपी, विक्रम, कावेरी और विजया, जिन्होंने जंबो सवारी में भाग लिया. इन हाथियों ने दशहरा के त्योहार के लिए दो अक्टूबर को मैसूर पैलेस लाया गया था. इन्होंने सफलतापूर्वक अपनी जिम्मेदारी निर्वहन किया.
जानिए कैसी हुई परेड?
कोरोना के कारण इस बार जंबो सवारी सरल तरीके से मनाई गई. जंबो सवारी में चार कालाठंडा कैवलरी रेजिमेंट, एक टैब्लो और कर्नाटक पुलिस बैंड ने हिस्सा लिया. विजया और कावेरी हाथी अभिमन्यु हाथी के साथ अंबारी ले गए. जंबो सावरी को महल परिसर के 500 मीटर के दायरे में घुमाया गया. जनता को पैलेस में जाने की इजाजत नहीं दी गई थी. पैलेस के आस-पास की सभी सड़कों पर यातायात प्रतिबंधित किया गया था. केवल तीन सौ लोगों ने जंबो सवारी परेड में भाग लिया.
मैसूर दशहरा हौदा और हाथियों के लिए बहुत प्रसिद्ध है इसे हाथियों का त्योहार भी कहा जाता है. यहां का मुख्य आकर्षण हाथी होते हैं, जिन पर हौदा को ले जाया जाता है.
प्रत्येक वर्ष यह कार्यक्रम 10 दिन चलता है, जिसमें कर्नाटक की सांस्कृतिक विरासत को लोक कला के जरिए शानदार तरीके से पेश किया जाता है, लेकिन इस बार संक्रमण को देखते हुए कार्यक्रम को सीमित किया गया.
मैसूर की विरासत दशहरा
मैसूर दशहरा यहां 410 सालों से मनाया जा रहा है. मैसूर के राजा ने नवरात्र महोत्सव को शरद नवरात्र (Sharannavaratri) के रूप में मनाया था, जहां राजा को जंबो सवारी के दौरान हौदा पर बैठाया गया था. मैसूर दशहरा महोत्सव में हौदा को ले जाने के लिए बिलिगिर रंगा, ऐरावत, हमसराज, चामुंडी प्रसाद और राजेंद्र प्रसिद्ध हाथी हैं. जंबो सावरी मैसूर महल से मैसूर के बन्नीमंतप तक जाती है. मैसूर के अंतिम राजा जयचामाराजेंद्र ओडेयार बिलीगिरी हाथी पर बैठकर जंबो सावरी में शामिल हुए थे. बाद में सरकार ने दशहरा को नड्डा हब्बा के रूप में मनाना शुरू किया था.
यह भी पढ़ें- कोरोना संक्रमण : पांच किलोमीटर की जगह पांच सौ मीटर निकला जुलूस
दशहरे के लिए हाथियों को प्रशिक्षण
इस बार का दशहरा पाबंदियों के साथ मनाया गया. इस दौरान मुख्य आकर्षण हाथी थे, जिन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया गया था. यह प्रथा 400 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी है. इस वर्ष अभिमन्यु, विक्रम, विजय, गोपी और कावेरी नाम के हाथी दशहरा में भाग लिया.
मैसूर दशहरा हौदा और हाथियों के लिए बहुत प्रसिद्ध है. इसे हाथियों का त्योहार भी कहा जाता है. यहां का मुख्य आकर्षण हाथी होते हैं, जिन पर हौदा को ले जाया जाता है. नवरात्र के दसवें दिन मैसूर पैलेस में एक विशेष पूजा होती है, जिसमें पैलेस में जंबो सवारी (हाथी का जुलूस) आयोजित की जाती है.
हौदा लेकर जाते हैं हाथी
मैसूर राजाओं की बनाई गई परंपराओं के दौरान मैसूर दशहरा की शुरुआत हुई थी. मैसूर साम्राज्य की परंपरा के अनुसार नवरात्र महोत्सव नौ दिनों तक महल के अंदर मनाया जाता है और विजयादशमी यानी दसवें दिन जंबो सवारी का आयोजन किया जाता है. इस दौरान हाथी की शोभायात्रा निकलती है. इनका नेतृत्व करने वाला विशेष हाथी, जिसकी पीठ पर चामुंडेश्वरी देवी प्रतिमा सहित 750 किलो का स्वर्ण हौदा रखा जाता है.
आपको बता दें कि विजयादशमी के अवसर पर राजेंद्र हाथी ने एक बार, द्रोण हाथी ने 18 बार, बलराम हाथी ने 12 बार, अर्जुन हाथी ने आठ बार हौदा लादा है. इस साल जंबो सवारी में अभिमन्यु हाथी हौदा ले जा रहा है. जंबो सवारी में रंग-बिरंगे, अलंकृत कई हाथी सोने का हौदा, देवी की प्रतिमा लोगों का आकर्षण होती है. यह हौदा राजा के महल में रखा जाता है.