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पूर्व मुख्य सचिव ने मीडिया पर जताई चिंता, कहा- विभाजित हो रहा समाज

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Published : Oct 24, 2020, 3:07 PM IST

राजस्थान के पूर्व मुख्य सचिव सलाउद्दीन अहमद कहते हैं कि टीवी चैनल और सोशल मीडिया ऐसे दावे कर रहे हैं और तथ्य फैला रहे हैं, जो किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छा नहीं है.

राजस्थान के पूर्व मुख्य सचिव सलाउद्दीन अहमद
राजस्थान के पूर्व मुख्य सचिव सलाउद्दीन अहमद

जयपुर : राजस्थान के पूर्व मुख्य सचिव सलाउद्दीन अहमद को लगता है कि सोशल मीडिया और टीवी चैनल समाज में दरार पैदा कर रहे हैं. सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अहमद ने हाल ही में 91 पूर्व ब्यूरोक्रेट्स के साथ मिलकर सुदर्शन न्यूज चैनल के यूपीएससी जिहाद प्रोमो के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी.

उन्होंने कहा, 'हमने संबंधित अधिकारियों को एक पत्र लिखा था, क्योंकि हम 91 लोग हिंदू या मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करते. हम भारतीय सिविल सर्वेंट थे, जो चाहते थे कि यूपीएससी जैसे शीर्ष संस्थान का अपमान नहीं होना चाहिए. टीवी चैनलों की तो इसे लेकर ज्यादा जिम्मेदारी बनती है, क्योंकि उनके प्रसारण को कई घरों में देखा जाता है.'

राजस्थान के पहले मुस्लिम मुख्य सचिव रहे अहमद इस बात को खारिज करते हैं कि भारत में हिंदुत्व अपना कब्जा जमा रहा है, लेकिन वह कहते हैं कि टीवी चैनल और सोशल मीडिया ऐसे दावे कर रहे हैं जो किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छा नहीं है.

उन्होंने कहा, 'सोशल मीडिया पर जहर उगलने वाले बहुत लोग हैं और उनके फॉलोअर्स भी बहुत हैं. लेकिन एक शिक्षित समाज के रूप में, हमें खड़े होना चाहिए और ऐसे पोस्ट और टीवी चैनलों से बचना चाहिए.'

सेवानिवृत्ति के बाद पूर्व मुख्य सचिव अहमद शहर की भागदौड़ से दूर जयपुर में ही आलीशान विला में अपना जीवन बिता रहे हैं. यहां बड़ी तादाद में पेड़ लगे हैं. शहरी जीवन से दूर रहने के बावजूद वह भारतीय जनता पर सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है. उन्होंने कहा कि कुछ टीवी चैनल भी समाज में जहर फैला रहे हैं.

एक इंटरव्यू में अहमद कहते हैं, 'कुछ भारतीय चैनल भी समाज में एक दरार बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. अलग-अलग कैडरों के हमारे कई दोस्त इस मुद्दे पर आवाज उठाने के लिए साथ आए हैं.'

अहमद उन 101 सिविल सर्वेंट में शामिल थे, जिन्होंने राज्यों के मुख्यमंत्रियों और सभी केंद्र शासित प्रदेशों के लेफ्टिनेंट गवर्नरों को एक पत्र लिखा था, जिसमें कोरोना प्रसार के दौरान हुए तबलीगी जमात विवाद के कारण देश के मुस्लिमों को उत्पीड़ित किया गया था.

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें वास्तव में लगता है कि मुसलमानों के खिलाफ किसी भी तरह का पूर्वाग्रह है. इस पर उन्होंने कहा, 'भारत ऐसा देश है, जो कई धर्मों का प्रतिनिधित्व करता है और जाति से संबंधित मुद्दे अब भी हमारे समाज में मजबूती से जमे हुए हैं.'

उन्होंने कहा कि आरक्षण और जातियों के पक्षपाती रवैये पर सभी जातियों को लेकर सामान्य रूप से चर्चा की जा रही है लेकिन एक विशेष समुदाय के खिलाफ ऐसा नहीं है.

पढ़ें : बीएआरसी का बड़ा फैसला, टीआरपी रेटिंग्स पर तीन महीने तक लगी रोक

उन्होंने आगे कहा, 'मुझे पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में सर्वश्रेष्ठ पद मिले और भगवा पार्टी के तहत काम करना अजीब नहीं लगा. लेकिन हो सकता है कि मुख्यमंत्री के रूप में योगी के साथ काम करना मुश्किल हो गया हो, क्योंकि चीजें बदल रही हैं.'

मुस्लिमों की स्थिति को लेकर उन्होंने कहा, 'शिक्षित होने की आवश्यकता है. मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक दुर्दशा बदल सकती है, अगर वे अपने दम पर खड़े होकर शिक्षित होना सीखें.'

1975 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी अहमद का कहना है कि उनके पिता ने उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला दिलाया था, क्योंकि उन दिनों वह आईएएस फैक्ट्री माना जाता था. वहीं उनकी मां उन्हें राज्य के मुख्य सचिव के रूप में देखना चाहती थीं, उनका यह सपना पूरा हुआ.

जयपुर : राजस्थान के पूर्व मुख्य सचिव सलाउद्दीन अहमद को लगता है कि सोशल मीडिया और टीवी चैनल समाज में दरार पैदा कर रहे हैं. सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अहमद ने हाल ही में 91 पूर्व ब्यूरोक्रेट्स के साथ मिलकर सुदर्शन न्यूज चैनल के यूपीएससी जिहाद प्रोमो के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी.

उन्होंने कहा, 'हमने संबंधित अधिकारियों को एक पत्र लिखा था, क्योंकि हम 91 लोग हिंदू या मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करते. हम भारतीय सिविल सर्वेंट थे, जो चाहते थे कि यूपीएससी जैसे शीर्ष संस्थान का अपमान नहीं होना चाहिए. टीवी चैनलों की तो इसे लेकर ज्यादा जिम्मेदारी बनती है, क्योंकि उनके प्रसारण को कई घरों में देखा जाता है.'

राजस्थान के पहले मुस्लिम मुख्य सचिव रहे अहमद इस बात को खारिज करते हैं कि भारत में हिंदुत्व अपना कब्जा जमा रहा है, लेकिन वह कहते हैं कि टीवी चैनल और सोशल मीडिया ऐसे दावे कर रहे हैं जो किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छा नहीं है.

उन्होंने कहा, 'सोशल मीडिया पर जहर उगलने वाले बहुत लोग हैं और उनके फॉलोअर्स भी बहुत हैं. लेकिन एक शिक्षित समाज के रूप में, हमें खड़े होना चाहिए और ऐसे पोस्ट और टीवी चैनलों से बचना चाहिए.'

सेवानिवृत्ति के बाद पूर्व मुख्य सचिव अहमद शहर की भागदौड़ से दूर जयपुर में ही आलीशान विला में अपना जीवन बिता रहे हैं. यहां बड़ी तादाद में पेड़ लगे हैं. शहरी जीवन से दूर रहने के बावजूद वह भारतीय जनता पर सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है. उन्होंने कहा कि कुछ टीवी चैनल भी समाज में जहर फैला रहे हैं.

एक इंटरव्यू में अहमद कहते हैं, 'कुछ भारतीय चैनल भी समाज में एक दरार बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. अलग-अलग कैडरों के हमारे कई दोस्त इस मुद्दे पर आवाज उठाने के लिए साथ आए हैं.'

अहमद उन 101 सिविल सर्वेंट में शामिल थे, जिन्होंने राज्यों के मुख्यमंत्रियों और सभी केंद्र शासित प्रदेशों के लेफ्टिनेंट गवर्नरों को एक पत्र लिखा था, जिसमें कोरोना प्रसार के दौरान हुए तबलीगी जमात विवाद के कारण देश के मुस्लिमों को उत्पीड़ित किया गया था.

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें वास्तव में लगता है कि मुसलमानों के खिलाफ किसी भी तरह का पूर्वाग्रह है. इस पर उन्होंने कहा, 'भारत ऐसा देश है, जो कई धर्मों का प्रतिनिधित्व करता है और जाति से संबंधित मुद्दे अब भी हमारे समाज में मजबूती से जमे हुए हैं.'

उन्होंने कहा कि आरक्षण और जातियों के पक्षपाती रवैये पर सभी जातियों को लेकर सामान्य रूप से चर्चा की जा रही है लेकिन एक विशेष समुदाय के खिलाफ ऐसा नहीं है.

पढ़ें : बीएआरसी का बड़ा फैसला, टीआरपी रेटिंग्स पर तीन महीने तक लगी रोक

उन्होंने आगे कहा, 'मुझे पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में सर्वश्रेष्ठ पद मिले और भगवा पार्टी के तहत काम करना अजीब नहीं लगा. लेकिन हो सकता है कि मुख्यमंत्री के रूप में योगी के साथ काम करना मुश्किल हो गया हो, क्योंकि चीजें बदल रही हैं.'

मुस्लिमों की स्थिति को लेकर उन्होंने कहा, 'शिक्षित होने की आवश्यकता है. मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक दुर्दशा बदल सकती है, अगर वे अपने दम पर खड़े होकर शिक्षित होना सीखें.'

1975 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी अहमद का कहना है कि उनके पिता ने उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला दिलाया था, क्योंकि उन दिनों वह आईएएस फैक्ट्री माना जाता था. वहीं उनकी मां उन्हें राज्य के मुख्य सचिव के रूप में देखना चाहती थीं, उनका यह सपना पूरा हुआ.

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