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पहली बार स्पेशल फ्रंटियर फोर्स ने चीनी सेना को चटाई थी धूल

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Published : Sep 1, 2020, 8:00 PM IST

Updated : Sep 2, 2020, 2:00 PM IST

58 साल के अपने गोपनीय इतिहास में पहली बार 'एस्टेब्लिशमेंट 22' या स्पेशल फ्रंटियर फोर्स ने चीनी सेना से मुकाबला किया और अपना कौशल दिखाया. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

एस्टेब्लिशमेंट 22
एस्टेब्लिशमेंट 22

नई दिल्ली : अपने 58 साल के गोपनीय इतिहास में पहली बार 'एस्टेब्लिशमेंट 22' या स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF) को 29-30 अगस्त की मध्यरात्रि में पूर्वी लद्दाख की उच्च ऑक्सीजन की कमी वाली चोटियों पर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के खिलाफ अपना कौशल दिखाने और उनका मुकाबला करने का मौका मिला.

यह दोनों पक्षों के बीच पहाड़ी की ऊंचाई पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने की सामरिक प्रतियोगिता थी और SFF ने उस क्षेत्र में साहस के साथ अपना प्रभुत्व कायम किया, जो वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के ग्रे जोन में है.

हालांकि, पांच-बटालियन के मजबूत SFF या लगभग 5,000 पुरुषों और महिलाओं के ऊंचाई वाले पर्वतीय सेनानियों के लिए संघर्ष की किसी भी स्थिति से निपटने के लिए यह दोनों देशों की सेनाओं का पहला अभ्यास था.

SFF हिंदुस्तानी फौज का एक अहम हिस्सा है. यह रक्षा मंत्रालय के नियंत्रण में नहीं है. इसे 1971 में बांग्लादेश के लिए लिबरेशन वॉर में अपनी शानदार भूमिका के लिए नाम और शोहरत हासिल है. SFF विदेश में गुप्त मिशनों को अंजाम देने के लिए गुरिला वॉर में शामिल रहते हैं. हालांकि SFF ने कई युद्धों और संघर्षों में दर्जनों वीरता पुरस्कार जीते हैं, लेकिन उनकी जानकारी नहीं दी जाती. यह पुरस्कार नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाले निजी समारोहों में सौंपे जाते हैं.

SSF का मुख्यालय देहरादून के पास चकराता में है. इसमें SFF के सबसे शीर्ष सेना विशेष बल या पहाड़ी लोग तैनात हैं. इनमें अधिकांश लोग तिब्बत के खम्पा और गोरखा इलाके के हैं.

पीएमओ के अधीन आने वाले कैबिनेट सचिवालय द्वारा नियंत्रित, SFF दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पर्वतीय युद्ध सैनिकों में से एक हैं.

एक सेवारत रक्षा अधिकारी ने ईटीवी भारत को बताया, अगस्त 29-30 की घटना पीएलए द्वारा पांच मई को हुई घटना की प्रतिक्रिया हो सकती है, जहां पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी तट पर दोनों पक्षों के बीच हाथापाई हुई थी. यह डोमिनेटिंग रिजलाइन है और PLA अब यहां हिलने से इनकार कर रहा है. चीन द्वारा हमला फिंगर 4 के महत्व को बयान कर रहा है.

पीएलए को अब यह पता चलेगा कि दोनों देश गेम खेल सकते हैं और एलएसी के निकट एक प्रमुख स्थान पर भारत द्वारा पोजिशन को संभालना उनको आश्चर्यचकित करता है.

चीन का दावा है कि मध्यरात्रि में हुई झड़प LAC पर उसके क्षेत्र में हुई जबकि, भारत का कहना है कि झड़प भारतीय इलाके में हुई.

पढ़ें - एलएसी पर तनाव : जहां थी चीन की नजर, भारत ने उस पर कब्जा जमाया

दोनों पक्ष इस बात से सहमत नहीं हैं कि LAC कहां है. दूसरे शब्दों में, यह मल्टी लेयर अनुभूति की लड़ाई है. लेकिन SSF के दो जवानों-जिनमें एक वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल थे, ऑपरेशन के दौरान अपनी जान गंवा बैठे, जब उन्होंने एक ऐसी माइंस पर कदम रखा जो संभवतः 1962 के भारत-चीन युद्ध का अवशेष थी.

इत्तेफाक से पैंगॉन्ग त्सो के अलावा यह गलवान घाटी का दक्षिणी बैंक था, जहां चीन के साथ 1962 का युद्ध हुआ था जबकि, उत्तरी बैंक युद्ध से दूर था.

नई दिल्ली : अपने 58 साल के गोपनीय इतिहास में पहली बार 'एस्टेब्लिशमेंट 22' या स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF) को 29-30 अगस्त की मध्यरात्रि में पूर्वी लद्दाख की उच्च ऑक्सीजन की कमी वाली चोटियों पर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के खिलाफ अपना कौशल दिखाने और उनका मुकाबला करने का मौका मिला.

यह दोनों पक्षों के बीच पहाड़ी की ऊंचाई पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने की सामरिक प्रतियोगिता थी और SFF ने उस क्षेत्र में साहस के साथ अपना प्रभुत्व कायम किया, जो वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के ग्रे जोन में है.

हालांकि, पांच-बटालियन के मजबूत SFF या लगभग 5,000 पुरुषों और महिलाओं के ऊंचाई वाले पर्वतीय सेनानियों के लिए संघर्ष की किसी भी स्थिति से निपटने के लिए यह दोनों देशों की सेनाओं का पहला अभ्यास था.

SFF हिंदुस्तानी फौज का एक अहम हिस्सा है. यह रक्षा मंत्रालय के नियंत्रण में नहीं है. इसे 1971 में बांग्लादेश के लिए लिबरेशन वॉर में अपनी शानदार भूमिका के लिए नाम और शोहरत हासिल है. SFF विदेश में गुप्त मिशनों को अंजाम देने के लिए गुरिला वॉर में शामिल रहते हैं. हालांकि SFF ने कई युद्धों और संघर्षों में दर्जनों वीरता पुरस्कार जीते हैं, लेकिन उनकी जानकारी नहीं दी जाती. यह पुरस्कार नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाले निजी समारोहों में सौंपे जाते हैं.

SSF का मुख्यालय देहरादून के पास चकराता में है. इसमें SFF के सबसे शीर्ष सेना विशेष बल या पहाड़ी लोग तैनात हैं. इनमें अधिकांश लोग तिब्बत के खम्पा और गोरखा इलाके के हैं.

पीएमओ के अधीन आने वाले कैबिनेट सचिवालय द्वारा नियंत्रित, SFF दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पर्वतीय युद्ध सैनिकों में से एक हैं.

एक सेवारत रक्षा अधिकारी ने ईटीवी भारत को बताया, अगस्त 29-30 की घटना पीएलए द्वारा पांच मई को हुई घटना की प्रतिक्रिया हो सकती है, जहां पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी तट पर दोनों पक्षों के बीच हाथापाई हुई थी. यह डोमिनेटिंग रिजलाइन है और PLA अब यहां हिलने से इनकार कर रहा है. चीन द्वारा हमला फिंगर 4 के महत्व को बयान कर रहा है.

पीएलए को अब यह पता चलेगा कि दोनों देश गेम खेल सकते हैं और एलएसी के निकट एक प्रमुख स्थान पर भारत द्वारा पोजिशन को संभालना उनको आश्चर्यचकित करता है.

चीन का दावा है कि मध्यरात्रि में हुई झड़प LAC पर उसके क्षेत्र में हुई जबकि, भारत का कहना है कि झड़प भारतीय इलाके में हुई.

पढ़ें - एलएसी पर तनाव : जहां थी चीन की नजर, भारत ने उस पर कब्जा जमाया

दोनों पक्ष इस बात से सहमत नहीं हैं कि LAC कहां है. दूसरे शब्दों में, यह मल्टी लेयर अनुभूति की लड़ाई है. लेकिन SSF के दो जवानों-जिनमें एक वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल थे, ऑपरेशन के दौरान अपनी जान गंवा बैठे, जब उन्होंने एक ऐसी माइंस पर कदम रखा जो संभवतः 1962 के भारत-चीन युद्ध का अवशेष थी.

इत्तेफाक से पैंगॉन्ग त्सो के अलावा यह गलवान घाटी का दक्षिणी बैंक था, जहां चीन के साथ 1962 का युद्ध हुआ था जबकि, उत्तरी बैंक युद्ध से दूर था.

Last Updated : Sep 2, 2020, 2:00 PM IST
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