शिमला : मेजर सोमनाथ शर्मा ने अपने अफसरों को वचन दिया था कि जब तक उनके पास एक भी गोली है और सांस है, दुश्मन आगे नहीं बढ़ सकता. कश्मीर पर कब्जा करने के इरादे से आए दुश्मनों को मेजर सोमनाथ शर्मा ने दीवार बन रोक दिया. ऐसे वीर को जन्म दिया था हिमाचल की कांगड़ा घाटी की मिट्टी ने. यहां के ढाढ़ गांव में जन्मे मेजर सोमनाथ शर्मा के परिवार की रगों में भारतीय सेना के नाम का जाप करता लहू दौड़ता था.
पिता खुद सेना के बड़े अफसर थे. यही कारण रहा कि मेजर सोमनाथ शर्मा बुलंद हौसलों के साथ मोर्चे पर डटे रहने की आदत विरासत में ही लेकर आए थे. मेजर जनरल अमरनाथ शर्मा के बेटे मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी 1923 को हुआ था.
सोमनाथ शर्मा की शिक्षा नैनीताल के मशहूर शिक्षण संस्थान शेरवुड कॉलेज से हुई थी. इस सैन्य परिवार में मेजर सोमनाथ शर्मा के भाई जनरल वीएन शर्मा भारतीय सेना में चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ रहे.
उनके एक भाई सुरेंद्र नाथ शर्मा भी भारतीय सेना में ऊंचे ओहदे पर थे. बहन कमला भी सेना में डॉक्टर रहीं. मात्र उन्नीस साल की उम्र में यानी फरवरी 1942 में कुमाऊं रेजीमेंट में कमीशन हासिल करने के बाद मेजर सोमनाथ शर्मा को दूसरे विश्व युद्ध में लड़ाई का भी अनुभव था. उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में अरकान ऑपरेशन में भाग लिया था.
बाजू में प्लास्टर, लेकिन हौसला आसमान पर
कमाऊं रेजीमेंट की टुकड़ी ने मेजर शर्मा के नेतृत्व में मोर्चा संभाला. हालांकि मेजर शर्मा की बाजू में प्लास्टर था और उन्हें युद्ध के मोर्चे पर जाने से रोका भी गया था, लेकिन मेजर शर्मा ने अपने तर्क से अधिकारियों को निरूत्तर कर दिया और मोर्चे पर जाने की अनुमति ले ली.
कश्मीर में चालाकी से काम लेते हुए कबायली गोरिल्ला युद्ध पर उतर आए थे. अपनी टुकड़ी के साथ मेजर शर्मा बडगाम की तरफ रवाना किए गए. नवंबर की 3 तारीख को बड़गाम में तैनाती लेकर सैनिक मोर्चे पर डट गए. अचानक दुश्मन ने हमला बोल दिया. भारी संख्या में कबायली चारों दिशाओं से आगे बढ़ने लगे.
यदि उन्हें वहीं पर न रोका जाता, तो वे कश्मीर में एयरफील्ड की तरफ बढ़ सकते थे. ताबड़तोड़ गोलीबारी करते हुए दुश्मन आगे बढ़ रहा था. मेजर सोमनाथ की टुकड़ी में सैनिक की संख्या कम थे. उन्हें हर हाल में रोके रखना था, जब तक भारतीय सेना को मदद न आती. छह घंटे तक चली भीषण लड़ाई के दौरान मेजर सोमनाथ और उनके साथियों ने कबायलियों के हमले का मुंहतोड़ जबाब दिया और उन्हें वहीं रोके रखा. कबायली एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाए.
मेजर सोमनाथ खुद ओपन ग्राउंड में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा-जाकर अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाते रहे. बाजू में प्लास्टर होने के बावजूद वे खुद भी दुश्मन पर गोलीबारी करते रहे. इसी दौरान दुश्मन का गोला मेजर सोमनाथ शर्मा के पास रखे गोला बारूद के ढेर पर गिरा और ये वीर सपूत सदा सदा के लिए भारत माता की गोद में सो गया.
आखिरी गोली और आखिरी सांस तक लड़ेंगे
बिग्रेडियर हैडक्वार्टर को मिला मेजर सोमनाथ का आखिरी संदेश बेहद मर्मस्पर्शी था. मेजर ने कहा- दुश्मन हमसे मात्र 50 गज दूर है. हमारी तादाद न के बराबर है और हम जबरदस्त गोलाबारी के बीच घिरे हैं, लेकिन मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा, जब तक हमारे पास आखिरी गोली और आखिरी फौजी है हम आखिरी सांस तक लड़ेंगे. यह मेजर सोमनाथ और उनके साथियों के साहस का ही कमाल था कि उन्होंने दुश्मन को तब तक रोके रखा, जब तक भारतीय सेना की मदद नहीं पहुंची. अद्भुत वीरता के लिए मेजर सोमनाथ शर्मा को देश का सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र (मरणोपरांत) दिया गया. उनके पिता मेजर जनरल अमरनाथ शर्मा ने अपने बेटे को मिला देश का पहला परमवीर चक्र जिस समय अपने हाथों में लिया, उनका सीना गर्व से फूल गया.
बड़े अरमान से याद करता है हिमाचल अपने सपूत को
मेजर सोमनाथ शर्मा 24 साल की उम्र में ही शहीद हो गए. इसे संयोग ही कहा जाएगा कि हिमाचल की ही धरती और कांगड़ा की मिट्टी के ही महान सपूत कैप्टन विक्रम बत्रा ने भी 24 साल की उम्र में ही वीरगति को प्राप्त हुए थे. ये दोनों सपूत भारत के परमवीर साबित हुए. धर्मशाला में मेजर सोमनाथ शर्मा के कई स्मृति चिन्ह हैं. जिला प्रशासन कांगड़ा ने भी मेजर सोमनाथ की स्मृतियों को संजोया है.
जिला कांगड़ा प्रशासन ने वॉर हीरोज ऑफ कांगड़ा (war heroes of Kangda) के नाम से एक पन्ना बनाया है. इसमें कांगड़ा जिला से परमवीर चक्र विजेता सोमनाथ शर्मा के अलावा अन्य योद्धाओं को शामिल किया गया है. इनमें विक्रम बत्रा, सौरभ कालिया भी हैं. छावनियों में तो भारतीय सेना अपने स्तर पर आयोजन करती है, लेकिन जिला प्रशासन भी परमवीरों को आदरांजलि देने के लिए समारोह करता है.