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छह वर्ष में रक्षा सौदों के विदेशी विक्रेताओं से वसूला सिर्फ 0.45% जुर्माना - नियंत्रक और महालेखा परीक्षक

पिछले छह वर्षों में डिफेंस ऑफसेट डील पर लगाए जुर्माने में से केवल 0.45 प्रतिशत जुर्माना ही वसूला गया है. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

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Published : Sep 26, 2020, 1:23 PM IST

Updated : Sep 26, 2020, 2:07 PM IST

नई दिल्ली : एक चौंकाने वाली स्थिति में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने पाया है कि छह वर्ष में (2018 तक) 659.99 करोड़ रुपये का जुर्माना विदेशी सैन्य विक्रेताओं पर ऑफसेट दायित्वों को पूरा करने में विफल रहने के लिए लगाया गया था, उसमें से मई 2019 तक सिर्फ 2.97 करोड़ रुपये यानी मात्र 0.45 प्रतिशत जुर्माने की ही वसूली की गई है.

हाल ही में प्रकाशित हुई कैग की मैनेजमेंट ऑफ डिफेंस ऑफसेट्स रिपोर्ट के अनुसार 659.99 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है, जिसमें से सेना के सौदों के लिए 105.35 करोड़ रुपये का जुर्माना और आईएएफ सौदों के लिए 478.35 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है. साथ ही नौसेना के सौदों के लिए 76.29 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है.

वहीं रक्षा मंत्रालय ने कैग की रिपोर्ट में वसूली के आंकड़े का खंडन करते हुए कहा कि विदेशी विक्रेताओं से जुर्माना के रूप में 57.68 करोड़ रुपए यानी 8.7 प्रतिशत की वसूली की गई है.

बता दें कि ऑफसेट एक ऐसा अनुबंध है, जो इंडियन ऑफसेट पार्टनर को विदेशी साजो-सामानों की बड़ी खरीद या प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में खरीदार देश के संसाधनों के एक महत्वपूर्ण बहिर्वाह के लिए घरेलू उद्योग की क्षमताओं को बेहतर बनाने में मदद करता है.

राष्ट्रीय लेखा परीक्षक ने मुख्य सैन्य अनुबंध को ऑफसेट अनुबंध के साथ नहीं जोड़ने के महत्वपूर्ण लक्ष्य को इंगित किया. इसमें कहा गया,'मुख्य अनुबंध में ऑफसेट क्लॉज को शामिल न किए जाने के कारण, वेंडर पर ऑफसेट को डिस्चार्ज करने की बाध्यता लगभग वैकल्पिक है.'

कैग की रिपोर्ट में कहा गया, 'मुख्य अनुबंध प्राप्त करने के लिए विक्रेता ऑफसेट प्रतिबद्धता बनाते हैं, लेकिन बाद में वह इन प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं करते, जिससे ऑफसेट कार्यान्वयन में देरी होती है.'

पढ़ें :- क्या बोइंग ने अमेरिकी प्रतिबंधों को भारत सरकार से छिपाया : कैग

ऑफसेट डिस्चार्ज की पात्रता का आंकलन करने के बाद लगाया जाने वाला जुर्माना रक्षा लेखा महानियंत्रक (CGDA) द्वारा निर्धारित किया जाता है, लेकिन रक्षा अधिग्रहण के लिए रक्षा मंत्रालय के महानिदेशक को इसकी मंजूरी देनी होती है.

कैग की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि ज्यादातर मामलों में या तो सीजीडीए ने जुर्माना लगाने की सीमा को कम नहीं किया या रक्षा अधिकारी प्रबंधन विंग (DOMW) ने पूर्ण दस्तावेज सीजीडीए को प्रस्तुत नहीं किए.

नई दिल्ली : एक चौंकाने वाली स्थिति में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने पाया है कि छह वर्ष में (2018 तक) 659.99 करोड़ रुपये का जुर्माना विदेशी सैन्य विक्रेताओं पर ऑफसेट दायित्वों को पूरा करने में विफल रहने के लिए लगाया गया था, उसमें से मई 2019 तक सिर्फ 2.97 करोड़ रुपये यानी मात्र 0.45 प्रतिशत जुर्माने की ही वसूली की गई है.

हाल ही में प्रकाशित हुई कैग की मैनेजमेंट ऑफ डिफेंस ऑफसेट्स रिपोर्ट के अनुसार 659.99 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है, जिसमें से सेना के सौदों के लिए 105.35 करोड़ रुपये का जुर्माना और आईएएफ सौदों के लिए 478.35 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है. साथ ही नौसेना के सौदों के लिए 76.29 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है.

वहीं रक्षा मंत्रालय ने कैग की रिपोर्ट में वसूली के आंकड़े का खंडन करते हुए कहा कि विदेशी विक्रेताओं से जुर्माना के रूप में 57.68 करोड़ रुपए यानी 8.7 प्रतिशत की वसूली की गई है.

बता दें कि ऑफसेट एक ऐसा अनुबंध है, जो इंडियन ऑफसेट पार्टनर को विदेशी साजो-सामानों की बड़ी खरीद या प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में खरीदार देश के संसाधनों के एक महत्वपूर्ण बहिर्वाह के लिए घरेलू उद्योग की क्षमताओं को बेहतर बनाने में मदद करता है.

राष्ट्रीय लेखा परीक्षक ने मुख्य सैन्य अनुबंध को ऑफसेट अनुबंध के साथ नहीं जोड़ने के महत्वपूर्ण लक्ष्य को इंगित किया. इसमें कहा गया,'मुख्य अनुबंध में ऑफसेट क्लॉज को शामिल न किए जाने के कारण, वेंडर पर ऑफसेट को डिस्चार्ज करने की बाध्यता लगभग वैकल्पिक है.'

कैग की रिपोर्ट में कहा गया, 'मुख्य अनुबंध प्राप्त करने के लिए विक्रेता ऑफसेट प्रतिबद्धता बनाते हैं, लेकिन बाद में वह इन प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं करते, जिससे ऑफसेट कार्यान्वयन में देरी होती है.'

पढ़ें :- क्या बोइंग ने अमेरिकी प्रतिबंधों को भारत सरकार से छिपाया : कैग

ऑफसेट डिस्चार्ज की पात्रता का आंकलन करने के बाद लगाया जाने वाला जुर्माना रक्षा लेखा महानियंत्रक (CGDA) द्वारा निर्धारित किया जाता है, लेकिन रक्षा अधिग्रहण के लिए रक्षा मंत्रालय के महानिदेशक को इसकी मंजूरी देनी होती है.

कैग की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि ज्यादातर मामलों में या तो सीजीडीए ने जुर्माना लगाने की सीमा को कम नहीं किया या रक्षा अधिकारी प्रबंधन विंग (DOMW) ने पूर्ण दस्तावेज सीजीडीए को प्रस्तुत नहीं किए.

Last Updated : Sep 26, 2020, 2:07 PM IST
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