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सरकार ने कृषि लॉकडाउन तो खोला पर बड़ी समस्या मजदूरों की कमी

मजदूरों की कमी की वजह से समय से फसल कटाई का काम नहीं हो पा रहा है. कृषि विशेषज्ञों की मानें तो हर मौसम में लगभग पांच लाख मजदूर उत्तर प्रदेश और बिहार से इन सभी क्षेत्रों से अलग-अलग राज्यों में पहुंचते हैं और गेहूं की कटाई का काम करते हैं. जिस समय लॉकडाउन की घोषणा हुई, उसी अवधि में प्रवासी मजदूरों का पलायन होता है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से जो मजदूर जहां थे वहीं रह गए और लगभग सभी राज्यों में किसानों के सामने मजदूरों की समस्या खड़ी हो गई.

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Published : Apr 9, 2020, 9:03 PM IST

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रचनात्मक चित्र

हैदराबाद : देशभर में कोरोना के बढ़ते प्रभाव के बीच अब संभावना जताई जा रही है कि बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन की अवधी को और आगे बढ़ाया जा सकता है. ऐसे में देश की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है वह सीधे सीधे प्रभावित हो रहा है. हालांकी कृषि मंत्रालय और सभी राज्य की सरकारों ने कृषि क्षेत्र के लिए लॉकडाउन के दौरान लगने वाले रोक से राहत देने की घोषणा की है, लेकिन इसके बावजूद देश के अलग-अलग राज्यों में किसानों के सामने कई समस्याएं खड़ी हैं.

भारतीय किसान युनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष राकेश टिकैत उत्तर प्रदेश से आते हैं. उनका कहना है कि सरकार द्वारा खेती किसानी से जुड़े लोगों के लिए प्रतिबंध हटा दिया गया है और इससे कुछ सहुलियत किसानों को जरूर मिली है, लेकिन अभी गेहूं की कटाई का समय है. ऐसे में राज्य और देश के अन्य हिस्सों में भी गेहूं कटाई के लिए मजदूरों की समस्या किसानों के सामने जरूर आ रही हैं.

चौधरी राकेश टिकैत उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से आते हैं और उनका कहना है कि वहां स्थानीय किसानों को गेहूं की फसल कटाई करने में कोई खास समस्या सामने नहीं आ रही है. यहां स्थानीय मजदूरों और मशीनों की मदद से फसल की कटाई संभव हो सकेगी, लेकिन मध्य प्रदेश में ऐसा नहीं है. इसी राज्य से आने वाले किसान नेता और राष्ट्रीय किसान महासंघ के अध्यक्ष शिवकुमार कक्काजी जी ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि कोरोना के साथ लड़ाई में पूरा देश एक साथ है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा लॉक डाउन का निर्णय कहीं न कहीं जल्दीबाजी में लिया गया. अगर लोगों को कम से कम 48 घंटे का भी समय मिल जाता तो वह अपनी तैयारी कर सकते थे, जहां तक किसानों का सवाल है मध्य प्रदेश में गेहूं के फसल तैयार खड़े हैं, लेकिन किसानों को मजदूर नहीं मिल पा रहे हैं कि वह अपने फसल को काट सके. आमतौर पर मध्य प्रदेश के किसान या तो बिहार और उत्तर प्रदेश से आए मजदूरों पर निर्भर करते हैं या फिर पंजाब से हर साल 5000 से ज्यादा हार्वेस्टर मशीनें यहां आती हैं और गेहूं की फसल कटाई का काम पूरा करती है.

शिवकुमार कक्काजी का कहना है कि मध्य प्रदेश में आज भी 5000 से ज्यादा हार्वेस्टर मशीन मौजूद हैं, लेकिन उनको चलाने के लिए जो प्रशिक्षित मजदूर उन्हें चाहिए वह पंजाब से आते हैं और इस लॉकडाउन की वजह से वह नहीं आ सके. लिहाजा अब किसानों के सामने एक बड़ा संकट खड़ा है. इसके अलावा राष्ट्रीय किसान महासंघ के अध्यक्ष ने सरकार की कुछ कदमों का स्वागत भी किया जैसे कि किसानों के लिए क्रेडिट कार्ड के भुगतान की तिथि को बढ़ाकर 30 जून करना और कृषि क्षेत्र के लिए अंतर राज्य परिवहन को खोलना.

इसी तरह से पंजाब में भी गेहूं की फसलें तैयार खड़ी हैं, लेकिन मजदूरों की कमी की वजह से समय से कटाई का काम नहीं हो पा रहा है. कृषि विशेषज्ञों की माने तो हर मौसम में लगभग पांच लाख मजदूर उत्तर प्रदेश और बिहार से इन सभी क्षेत्रों में अलग-अलग राज्यों में पहुंचते हैं और गेहूं की कटाई का काम करते हैं. जिस समय लॉक डाउन की घोषणा हुई उसी अवधि में प्रवासी मजदूरों का पलायन होता है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से जो मजदूर जहां थे, वहीं रह गए और लगभग सभी राज्यों में किसानों के सामने मजदूरों की समस्या खड़ी हो गई.

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह खुद इस समय राजस्थान के चित्तौड़ में मौजूद हैं, जहां वह गेहूं चना और सरसों की खेती करते हैं. किसान नेता युद्धवीर सिंह ने जानकारी दी कि चित्तौड़ के अलावा राजस्थान के भीलवाड़ा, कोटा और पाली में भी किसानों के सामने इस तरह की समस्या सामने आ रही है. जिन किसानों ने किसी तरह से मजदूरों की व्यवस्था करके फसल की कटाई करवा भी ली है, उनके सामने खरीद की समस्या खड़ी हो गई है, क्योंकि इन क्षेत्रों में सरकार की तरफ से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद का काम शुरू नहीं हुआ है. मजबूरी में बहुत सारे किसानों को एमएसपी से भी कम कीमत पर अपने फसल को बेचना पड़ रहा है और उन्होनें खुद अपने खेत से गेहूं, चने और सरसों को एमएसपी से कम कीमत पर बेचा.

इसके पीछे एक कारण यह भी है कि उन किसानों के पास भंडारण की सुविधा उपलब्ध नहीं है और कोरोना के संकट के बीच उन्हें इस बात का भी भय है कि लॉकडाउन अगर लंबा चलता है तो ऐसे में उन्हें नकद पैसों की ज्यादा जरूरत होगी. इसलिए किसान अपनी जरूरत भर अनाज रखने के बाद जल्दी से जल्दी अपने अतिरिक्त फसल को बेच देने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं. वहीं अगर बात बिहार की करें तो इस राज्य में गेहूं की कटाई के लिए मजदूरों की समस्या सामने नहीं आ रही है, क्योंकि इसी राज्य से मजदूर दूसरे राज्यों में भी जाकर फसल की कटाई का काम करते हैं. लॉकडाउन की वजह से यह मजदूर दूसरे राज्यों में नहीं जा सके लिहाजा स्थानीय किसानों को अभी मजदूर के संकट से नहीं जूझना पड़ा.

हैदराबाद : देशभर में कोरोना के बढ़ते प्रभाव के बीच अब संभावना जताई जा रही है कि बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन की अवधी को और आगे बढ़ाया जा सकता है. ऐसे में देश की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है वह सीधे सीधे प्रभावित हो रहा है. हालांकी कृषि मंत्रालय और सभी राज्य की सरकारों ने कृषि क्षेत्र के लिए लॉकडाउन के दौरान लगने वाले रोक से राहत देने की घोषणा की है, लेकिन इसके बावजूद देश के अलग-अलग राज्यों में किसानों के सामने कई समस्याएं खड़ी हैं.

भारतीय किसान युनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष राकेश टिकैत उत्तर प्रदेश से आते हैं. उनका कहना है कि सरकार द्वारा खेती किसानी से जुड़े लोगों के लिए प्रतिबंध हटा दिया गया है और इससे कुछ सहुलियत किसानों को जरूर मिली है, लेकिन अभी गेहूं की कटाई का समय है. ऐसे में राज्य और देश के अन्य हिस्सों में भी गेहूं कटाई के लिए मजदूरों की समस्या किसानों के सामने जरूर आ रही हैं.

चौधरी राकेश टिकैत उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से आते हैं और उनका कहना है कि वहां स्थानीय किसानों को गेहूं की फसल कटाई करने में कोई खास समस्या सामने नहीं आ रही है. यहां स्थानीय मजदूरों और मशीनों की मदद से फसल की कटाई संभव हो सकेगी, लेकिन मध्य प्रदेश में ऐसा नहीं है. इसी राज्य से आने वाले किसान नेता और राष्ट्रीय किसान महासंघ के अध्यक्ष शिवकुमार कक्काजी जी ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि कोरोना के साथ लड़ाई में पूरा देश एक साथ है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा लॉक डाउन का निर्णय कहीं न कहीं जल्दीबाजी में लिया गया. अगर लोगों को कम से कम 48 घंटे का भी समय मिल जाता तो वह अपनी तैयारी कर सकते थे, जहां तक किसानों का सवाल है मध्य प्रदेश में गेहूं के फसल तैयार खड़े हैं, लेकिन किसानों को मजदूर नहीं मिल पा रहे हैं कि वह अपने फसल को काट सके. आमतौर पर मध्य प्रदेश के किसान या तो बिहार और उत्तर प्रदेश से आए मजदूरों पर निर्भर करते हैं या फिर पंजाब से हर साल 5000 से ज्यादा हार्वेस्टर मशीनें यहां आती हैं और गेहूं की फसल कटाई का काम पूरा करती है.

शिवकुमार कक्काजी का कहना है कि मध्य प्रदेश में आज भी 5000 से ज्यादा हार्वेस्टर मशीन मौजूद हैं, लेकिन उनको चलाने के लिए जो प्रशिक्षित मजदूर उन्हें चाहिए वह पंजाब से आते हैं और इस लॉकडाउन की वजह से वह नहीं आ सके. लिहाजा अब किसानों के सामने एक बड़ा संकट खड़ा है. इसके अलावा राष्ट्रीय किसान महासंघ के अध्यक्ष ने सरकार की कुछ कदमों का स्वागत भी किया जैसे कि किसानों के लिए क्रेडिट कार्ड के भुगतान की तिथि को बढ़ाकर 30 जून करना और कृषि क्षेत्र के लिए अंतर राज्य परिवहन को खोलना.

इसी तरह से पंजाब में भी गेहूं की फसलें तैयार खड़ी हैं, लेकिन मजदूरों की कमी की वजह से समय से कटाई का काम नहीं हो पा रहा है. कृषि विशेषज्ञों की माने तो हर मौसम में लगभग पांच लाख मजदूर उत्तर प्रदेश और बिहार से इन सभी क्षेत्रों में अलग-अलग राज्यों में पहुंचते हैं और गेहूं की कटाई का काम करते हैं. जिस समय लॉक डाउन की घोषणा हुई उसी अवधि में प्रवासी मजदूरों का पलायन होता है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से जो मजदूर जहां थे, वहीं रह गए और लगभग सभी राज्यों में किसानों के सामने मजदूरों की समस्या खड़ी हो गई.

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह खुद इस समय राजस्थान के चित्तौड़ में मौजूद हैं, जहां वह गेहूं चना और सरसों की खेती करते हैं. किसान नेता युद्धवीर सिंह ने जानकारी दी कि चित्तौड़ के अलावा राजस्थान के भीलवाड़ा, कोटा और पाली में भी किसानों के सामने इस तरह की समस्या सामने आ रही है. जिन किसानों ने किसी तरह से मजदूरों की व्यवस्था करके फसल की कटाई करवा भी ली है, उनके सामने खरीद की समस्या खड़ी हो गई है, क्योंकि इन क्षेत्रों में सरकार की तरफ से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद का काम शुरू नहीं हुआ है. मजबूरी में बहुत सारे किसानों को एमएसपी से भी कम कीमत पर अपने फसल को बेचना पड़ रहा है और उन्होनें खुद अपने खेत से गेहूं, चने और सरसों को एमएसपी से कम कीमत पर बेचा.

इसके पीछे एक कारण यह भी है कि उन किसानों के पास भंडारण की सुविधा उपलब्ध नहीं है और कोरोना के संकट के बीच उन्हें इस बात का भी भय है कि लॉकडाउन अगर लंबा चलता है तो ऐसे में उन्हें नकद पैसों की ज्यादा जरूरत होगी. इसलिए किसान अपनी जरूरत भर अनाज रखने के बाद जल्दी से जल्दी अपने अतिरिक्त फसल को बेच देने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं. वहीं अगर बात बिहार की करें तो इस राज्य में गेहूं की कटाई के लिए मजदूरों की समस्या सामने नहीं आ रही है, क्योंकि इसी राज्य से मजदूर दूसरे राज्यों में भी जाकर फसल की कटाई का काम करते हैं. लॉकडाउन की वजह से यह मजदूर दूसरे राज्यों में नहीं जा सके लिहाजा स्थानीय किसानों को अभी मजदूर के संकट से नहीं जूझना पड़ा.

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