हैदराबाद : जैव विविधता के नुकसान और जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव पहाड़ों में रह रहे लोगों पर पड़ रहा है. अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस 2020 पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा और आजीविका में सुधार पर प्रकाश डाल रहा है. अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस 2020 की थीम पर्वतीय जैव विविधता (माउंटेन बायोडायवर्सिटी) है. 'जैव विविधता सुपर ईयर' के साथ संरेखण और 2020 के बाद की जैव विविधता ढांचे की बातचीत में, दिवस पर्वतीय जैव विविधता का जश्न मनाएगा और इसके खतरों का सामना करने की समझ बढ़ाने की कोशिश करेगा.
अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस 2020 को चिह्नित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) और इसके साझेदारों द्वारा किए गए एक नए अध्ययन के अनुसार कहा कि वैश्विक जैव विविधता के आधे हिस्से का केंद्र पहाड़ हैं और यहां भुखमरी से सबसे अधिक प्रभावित लोगों की संख्या बढ़ रही है.
एफएओ, माउंटेन पार्टनरशिप सेक्रेटेरियट (एमपीएस) और यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) द्वारा किए गए अध्ययन से पता चलता है कि विकासशील देशों में पहाड़ों पर रहने वाले लोगों के खाने के लिए प्रर्याप्त भोजन नहीं मिलता है. खाद्य असुरक्षा की चपेट में आने वाले पर्वतीय लोगों की संख्या वर्ष 2000 में 243 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2017 में लगभग 350 मिलियन हो गई.
एफएओ द्वारा 'माउंटेन बायोडायवर्सिटी मैटर्स' नाम से आयोजित होने वाले एक वर्चुअल समाहरोह से पहले 'पहाड़ के लोगों की खाद्य असुरक्षा के प्रति संवेदनशीलता: अद्यतन डेटा और ड्राइवरों का विश्लेषण' नाम का संयुक्त अध्ययन प्रकाशित किया गया.
इस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस में पर्वतीय जैव विविधता के सामाजिक, आर्थिक और पारिस्थितिक मूल्य पर प्रकाश डाला गया है क्योंकि पहाड़ पृथ्वी के प्रमुख जैव विविधता वाले क्षेत्रों का 30 प्रतिशत हिस्सा कवर करते हैं.
पहाड़, दुनिया के 60 से 80 प्रतिशत मीठे पानी की आपूर्ति करते हैं, जो सिंचाई, उद्योग, खाद्य और ऊर्जा उत्पादन के साथ घरेलू खपत के लिए आवश्यक हैं. दुनिया की कई सबसे महत्वपूर्ण फसलें और पशुधन प्रजातियां भी पर्वतीय क्षेत्रों में उत्पन्न होती हैं और भोजन और चिकित्सा का एक स्रोत होती हैं.
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इस अध्ययन में पाया गया कि पहाड़ के पारिस्थितिक तंत्र तेजी से कमजोर होते जा रहे हैं. जलवायु परिवर्तन, सतत खेती के तरीके, वाणिज्यिक खनन, लॉगिंग और अवैध शिकार से पहाड़ की जैव विविधता पर भारी असर पड़ता है. इसके अलावा, भूमि उपयोग, प्राकृतिक आपदाओं से भी जैव विविधता में तेजी से हानि होती है, जिससे आजीविका और खाद्य सुरक्षा को भी खतरा है.
अध्ययन में बताया गया कि पर्यावरणीय गिरावट पहाड़ में रह रहे लोगों को अनुपातहीन ढंग से प्रभावित करती है. जलवायु परिवर्तन से पर्वतीय पारितंत्रों का पतन हो रहा है. इसी के साथ भूस्खलन और सूखे जैसी प्राकृतिक घटनाओं में भी वृद्धि हुई है. यह अनुमान लगाया गया कि खाद्य असुरक्षा की चपेट में आने वाले लगभग 275 मिलियन ग्रामीण लोग पर्वतीय क्षेत्रों में रहते हैं, जो प्राकृतिक खतरों से प्रभावित हुए हैं.